क्या आपने कभी सोचा है कि जिन देशों की जनसंख्या बहुत ज़्यादा होती है, वे ज़्यादातर गरीब क्यों होते हैं? जनसंख्या और गरीबी के बीच सीधा संबंध होता है। जितनी ज़्यादा जनसंख्या, उतने ही कम संसाधन हर व्यक्ति को मिलते हैं। इसमें जो व्यक्ति अमीर होता है, वह ज़्यादा संसाधन ले लेता है और गरीब व्यक्ति पीछे रह जाता है। इस तरह अमीर और अमीर होता जाता है और गरीब और गरीब।
मैंने यह देखा है कि मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग के पास अच्छे करियर के मौके कम होते हैं। वे उन नौकरियों में जाते हैं जो आसानी से मिलती हैं लेकिन कम पैसे देती हैं, जबकि अमीर लोग ऐसी पढ़ाई और करियर चुनते हैं जो मुश्किल से मिलती हैं लेकिन उनका इनाम बड़ा होता है, क्योंकि वे महंगे कोर्स का खर्च उठा सकते हैं।
उदाहरण: मान लीजिए दो लोग हैं - A और B। A की महीने की आमदनी 20,000 रुपये है और B की आमदनी 2 लाख रुपये है। दोनों के 2-2 बच्चे हैं। जब बात बच्चों की पढ़ाई की आती है, तो B हर तरीके से A से बेहतर स्थिति में है। B अपने बच्चों की पढ़ाई पर 1 लाख तक खर्च कर सकता है, लेकिन A को सबकुछ 20,000 में ही संभालना होता है।
अब मान लीजिए कि आगे चलकर A और B दोनों की आमदनी बराबर हो जाती है, लेकिन A के 4 बच्चे हैं और B का सिर्फ 1 बच्चा। अब B अपने बच्चे को ऐसे स्कूल में पढ़ा सकता है जिसकी फीस 1 लाख रुपये है, लेकिन A ऐसा नहीं कर सकता। नतीजा यह होगा कि A के बच्चे उस स्कूल में पढ़ेंगे जो B के बच्चे के स्कूल से कम अच्छा होगा।
इसका असर यह होगा कि B का बच्चा बेहतर करियर के मौके पाएगा जबकि A का बच्चा पिछड़ जाएगा। इस कारण A का बच्चा भविष्य में भी गरीब रहेगा और गरीबी आगे चलती रहेगी।
मामले का अध्ययन (Case Study):
भारत का उदाहरण लीजिए। भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, फिर भी यहाँ प्रति व्यक्ति जीडीपी सिर्फ $2500 है, जो कि 5वें नंबर के देश से भी बहुत कम है। ऐसा क्यों? क्योंकि भारत की जनसंख्या 140 करोड़ है, जिनमें से 80 करोड़ लोग इतने गरीब हैं कि उन्हें खाना भी सरकार से मिलने वाले राशन पर निर्भर रहकर खाना पड़ता है। बाक़ी बचे 60 करोड़ में से 40 करोड़ लोग ऐसे हैं जो बस किसी तरह अपना गुज़ारा कर लेते हैं, जिन्हें हम मिडिल क्लास कहते हैं।
अब अमीर लोग जो चाहे खरीद सकते हैं, लेकिन गरीबों को ज़रूरत की चीज़ों के लिए भी कई बार सोचना पड़ता है। अमीर अपने बच्चों को विदेश में पढ़ने भेज सकते हैं, जबकि गरीबों के बच्चे अगर पढ़ भी लें तो ज़्यादातर कम दर्जे के कॉलेजों में पढ़ते हैं, जिससे कॉलेज की क्वालिटी भी घटती है।
ज्यादा जनसंख्या से भ्रष्टाचार के मौके भी बढ़ते हैं, जिससे जीवन स्तर गिरता है।
समाधान (The Solution):
गरीबी मिटाने का सबसे व्यावहारिक तरीका है – "बच्चे पैदा न करना"। यह बात थोड़ी विवादित लग सकती है, लेकिन व्यावहारिक भी है। मान लीजिए A की आमदनी 20,000 रुपये है और वह बच्चे पैदा नहीं करता, तो यही पैसा उसके खुद के लिए काफी होगा। पहले उसे यह पैसा बच्चों की पढ़ाई और बाकी ज़रूरतों पर खर्च करना पड़ता था, लेकिन अब नहीं करना होगा।
अगर ज़्यादातर मिडिल क्लास और गरीब लोग बच्चे पैदा न करें, तो कुछ पीढ़ियों बाद गरीबी अपने आप खत्म हो जाएगी।
जो इंसान किसी और को कष्ट देता है, वह बुरा इंसान होता है। इसलिए अगर कोई गरीब इंसान बच्चे पैदा करता है, जिन्हें ठीक से खाना और कपड़े नहीं मिलते, तो इसका मतलब है कि माता-पिता ने ही अपने बच्चों को दुःख दिया और वे गलत हैं।
यह कहना कि सिर्फ अमीर लोगों को ही बच्चे पैदा करने चाहिए, भेदभाव जैसा लग सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है। बच्चे पैदा करने से पहले सिर्फ इतना सोचिए – क्या आप अपने बच्चे को ऐसी पढ़ाई दिला सकते हैं जिसकी फीस बहुत ज़्यादा हो? क्या आप बिना दाम देखे उसे अच्छे कपड़े या ज़रूरत की चीजें दिला सकते हैं?
अगर हाँ, तो जितने बच्चे आप पाल सकते हैं, उतने जरूर पैदा कीजिए। लेकिन अगर आपको थोड़ी भी हिचक हो, तो कृपया बच्चे न पैदा करें। आप धरती पर आखिरी पीढ़ी नहीं हैं। जो लोग इस दुनिया में आएँ, वे इसे खुशी से जिएँ, ना कि दुख और तकलीफ के जाल में उलझें।
हालाँकि गरीबी के कई कारण हैं – जैसे संसाधनों का बंटवारा, सरकार का कामकाज और भ्रष्टाचार – लेकिन जनसंख्या एक ऐसा कारण है जो सबसे ज़्यादा योगदान करता है।