Hur Subah Station par milti thi wo - 3 in Hindi Love Stories by Rishabh Sharma books and stories PDF | हर सुबह स्टेशन पर मिलती थी वो… पर एक दिन कुछ ऐसा कहा कि सब बदल गया - 3

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हर सुबह स्टेशन पर मिलती थी वो… पर एक दिन कुछ ऐसा कहा कि सब बदल गया - 3

"हर सुबह स्टेशन पर मिलती थी वो… पर एक दिन कुछ ऐसा कहा कि सब बदल गया"

 

🎬 Episode 3 — “प्लेटफॉर्म नंबर 5”

 

📖 एक किताब, एक लाइन, और एक सुबह — जो आरव की जिंदगी बदलने वाली थी।

रात की नींद छिन चुकी थी।

किताब बार-बार खोलता, पढ़ता, और नेहा की हैंडराइटिंग को तकता।

"क्यों आती थी हर सुबह?"
इस सवाल ने पूरी रात बेचैन रखा।


सुबह – 8:40 AM

स्टेशन की भीड़ रोज़ जैसी थी,
पर मेरे दिल की धड़कन कुछ अलग थी।

"आज वो आएगी…"
मैं बार-बार खुद से कह रहा था।


8:55 AM
मैं प्लेटफॉर्म नंबर 5 पर पहुँच गया।

आसपास नज़रें दौड़ाईं —
वो कहीं नहीं थी।


9:00 AM…

एक ट्रेन आई… लोग उतरे…
पर नेहा… नहीं।

9:05… 9:10… 9:15…

हर मिनट भारी लग रहा था।


और फिर…

एक लड़की नीले सूट में धीरे-धीरे सीढ़ियों से उतरती दिखी।

वो थी।
नेहा।

पर आज उसका चेहरा खामोश नहीं… डर से भरा हुआ था।


वो मेरे पास आई —
आंखों में आंसू थे, होंठ कांप रहे थे।

"आरव… तुम्हें सब बताना होगा… आज…"

मैंने धीरे से कहा —
"मैं सुन रहा हूँ।"


"मुझे सुबह स्टेशन पर आना अच्छा लगता था… वहाँ एक सुकून था, जो मेरी दुनिया में कहीं और नहीं था।"

"क्यों?" मैंने पूछा।

"क्योंकि वहाँ… मैं वो हो सकती थी… जो असल में हूँ।"


"और घर?"

उसने एक लंबी सांस ली।

"घर में मैं वो नहीं हूँ जो तुमने देखा।"

"मतलब?"

"मैं शादीशुदा हूँ, आरव।"
उसने नज़रें नीचे झुका लीं।


💔 मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई।

"क्या?"
मेरी आवाज़ जैसे गले में अटक गई थी।


"हाँ… दो साल पहले। माँ-बाप की मर्ज़ी से। एक ऐसा रिश्ता… जिसमें दिल तो कभी था ही नहीं।"

"तो फिर मैं? हम?"

"तुम… सिर्फ एक सुकून थे। एक उम्मीद।"


मैं चुप।

आसपास का शोर जैसे सुन्न पड़ गया था।

"तुम्हें धोखा नहीं देना चाहती थी… इसलिए उस दिन चली गई थी। लेकिन तुम फिर भी आए… रोज़।"


मैंने उसकी आंखों में देखा —
सच था वहाँ… दर्द भी।


"तुम आज क्यों आई?"

"क्योंकि तुम्हारा इंतज़ार मुझे हर रोज़ अंदर से तोड़ रहा था।"


"अब क्या?"

वो चुप हो गई।

फिर बोली —

"अगर तुम चाहो… तो सब भूल सकते हैं। मैं तुम्हें और तकलीफ नहीं देना चाहती।"


मैंने उसकी हथेली थाम ली —

"नेहा, दर्द तो तब होता है जब कोई उम्मीद हो। लेकिन तुम… मेरी आदत बन चुकी हो।"


वो कुछ पल चुप रही।
फिर धीरे से मुस्काई।

और तभी…

उसके मोबाइल पर कॉल आया।

उसने स्क्रीन छुपाई।

मैंने देखा — नाम लिखा था: "पति"


"मुझे जाना होगा…"

वो मुड़ी और तेज़ी से चली गई।


मैं वहीं बैठ गया।
प्लेटफॉर्म नंबर 5 पर।

आज मैं जान गया था उसका सच…
लेकिन अब वो और भी अनजानी लग रही थी।


और तभी…
मेरे मोबाइल पर एक अनजान नंबर से मैसेज आया:

"तुम आरव हो ना? अगर नेहा के बारे में सच जानना है… तो कल इसी वक्त, इसी जगह मिलो। अकेले आना।"

🧠 अब ये सिर्फ एक अधूरी मोहब्बत की कहानी नहीं रही… ये एक राज़ बन चुकी थी।