घात भाग--1सेठ करम चंद कि कपड़े कि दुकान थी तीज त्यौहार एवं शादी व्याह जैसे शुभ मुहूर्त के अवसर आस पास के सभी लोग सेठ करम चंद कि ही दुकान से कपड़े कि खरीदारी करते सेठ करम चंद भी दरिया दिल इंसान थे पैसा मिले ना मिले किसी कि ख़ुशी को कम नहीं होने देते उनकी दरिया दिली का आलम यह था कि आस पास के बड़े छोटे परिवारो पर लाखो रूपए बकाया था ज़ब जिसको सुविधा होती दे जाता आलम यह था कि जितने मूल्य का उधार रहता बिलम्ब से भुगतान मिलने के कारण उतना ही व्याज चढ़ जाता लेकिन सेठ करम चंद भगवान पर भरोसा करने वाले व्यक्ति थे जिसके कारण किसी को अप्रिय नहीं बोलते धंधा ठीक ही चल रहा था सेठ करम चंद का एक ही लाडला बेटा था भाग्येश जो कक्षा सात में शहर के सबसे महंगे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहा था! कहावत मशहूर है समय खराब होता है तों हाथी पर बैठे व्यक्ति को कुत्ता काट लेता है ऐसा ही कुछ सेठ करम चंद के साथ हुआ एक दिन शाम को ज़ब वह दुकान बंद करने ही जा रहे थे रात्रि के लगभग नौ बज रहे थे क्षेत्र नक्सल प्रभावित था साथ ही साथ कुछ बाहुबली भी अपनी रोटी सकते बाजार सुन सान होने को था तभी कुछ लोग दो तीन ट्रकों के साथ आए और सेठ को बंधक बना लिया और दुकान का सारा माल ट्रको में भरकर सेठ करम चंद को बंधक बनाकर साथ लें गए ज़ब सब चले गए तब बज़ार में अफरा तफरी मच गयी और बात निकट के थाने तक पहुंची थानेदार रतन सिंह सेठ के दुकान पहुंचे और हालात का जायजा लिया उधर सेठ करम चंद जी कि पत्नी कर्मा देवी नें अपने घरेलू नौकर शिवदास को भेजा क्योंकि रात्रि बहुत होने के बाद सेठ जी घर वापस नहीं लौटे शिवदास नें ज़ब दुकान के हालात देखा और पुलिस को सामने देखातों हत प्रद रह गया दुकान पर कुछ बचा नहीं था और पुलिस छानबीन कर रही थी इधर पुलिस कार्यवाही कर रही थी शिवदास भगता सेठ जी के घर पहुंचा वहाँ सारा गाँव एकत्र था शिवदास के पैरो तले जमीन खिसक गयी गाँव वालो नें बताया कि सेठ जी सेठानी और बेटे को बदमाश उठा लें गए है शिवदास नें गाँव वालो को सेठ जी के दुकान लूट जाने कि खबर दी तभी पुलिस भी तपतीस के सिलसिले सेठ जी के दरवाज़े पहुंची आश्चर्य चकित रह गयी पुलिस समझ ही नहीं पा रही थी कि अपराध के कारण क्या है सुबह हो चुकी थी पौ फटनें लगी पूरा गाँव बाज़ार एवं पुलिस के समझ नहीं पा रही थी कि अपराध के जड़ क्लू कहाँ से है एक दिन बीता दो दिन बीता धीरे धीरे धीरे धीरे एक वर्ष फिर दो वर्ष बीत गए लेकिन सेठ जी एवं उनके परिवार का कही पता नहीं चला इधर सेठ जी का दूर का भाई आया और उनके मकान में यह कह कर रहने लगा कि सेठ जी नें उसे देख भाल करने के लिए अपनी अनुपस्थिती में कह रखा है गाँव वालो एवं पुलिस को संदेह का कोई कारण नज़र नहीं आया मुम्बई के दूर अलीपुर के प्राईवेट स्कूल में सेठ जी के गाँव का ही नवजवान कार्तिक पढ़ाता था उसी स्कूल की नवी क्लास में सेठ जी का बेटा भाग्येश पढ़ता था उसकी कई महीनो कि फीस जमा न होने के कारण स्कूल से निकाल दिया गया था कार्तिक को भाग्येश पर बहुत तरस आया उसने स्कूल छोड़ने से पूर्व उसे बुलाया और अलीबाग़ में उसके घर का पता पूछा घर तों कोई था नहीं सेठ जी पत्नी बेटे के साथ सीमेंट कि बढ़ी बढ़ी पाइपो में कभी यहा कभी वहा खानाबदोष कि तरह रहते लेकिन सड़क के किनारे छोटी सी झोपडी में चाय कि दुकान चलाते जिससे पेट भरने को मिल जाता भाग्येश भी केतली में चाय लेकर आस पास के दुकानों पर चाय बेचता कार्तिक छुट्टियों के दिन भाग्येस के बताएं पते पर गया और दिन भर कि खोज बिन के बाद सेठ करम चंद जी कि झोपडी वाली दुकान पहुंचा ज्यो ही वह झोपड़ी मेँ दाखिल हुआ और सेठ करम चंद को देखा उसके होश उड़ गए वह बड़ी मुश्किल से सेठ जी कि तरफ मुख़ातिब होकर बोला सेठ जी आप यहाँ कैसे और आपकी हालत कैसे सेठ जी कार्तिक से बोले सब किस्मत है बेटे कार्तिक कार्तिक और सेठ जी एक दूसरे से बात ही कर रहे थे तब तक भाग्येश भी वहां पहुंच गया अपने टीचर को देखते ही प्रणाम करता अपने पापा सेठ करम चंद कि तरफ मुख़ातिब होकर बोला पापा ऐ हमारे सर है सेठ जी बेटे के सर पर हाथ फेरते हुए बोले हाँ बेटे तुम्हारे सर जी बहुत अच्छे है सेठ करम चंद नें साथ चलने के लिए निवेदन किया कार्तिक नें भी हामी भर दी सेठ जी जल्दी जल्दी दुकान बंद किया और और कार्तिक और बेटे भाग्येश को साथ लेकर साथ चल दिए चलते चलते सीवर के एक बड़े सीमेंट कि पाईप के पास रुकते बोले यही मेरी हवेली है कभी इधर कभी उधर गटर के खाली पाइपो मेँ रात गुज़ाराते है अगर तुम्हे कोई परेशानी ना हो तो आज मेरे साथ रात यही गुजारोसेठ करम चंद पत्नी जिज्ञासा से बोले जो भी हो रुखा सूखा बनाओ कार्तिक को खिलाओ यह तुम्हारा ही मुँहबोला बेटा है इतना सुनते ही सेठ जी कि पत्नी जिज्ञासा फ़फ़क कर रोने लगी रोते रोते बोले जा रही थी जल्लाद दुनियां मेँ कोई तो आया हम लोंगो से मिलने नहीँ तो रोज रात पुलिस वालो को घंटो समझाने मेँ गुजर जाते थे कि हम लोंगो का मुंबई मेँ कोई सहारा नहीँ है जिसके कारण गटर कि पाइप मेँ रात गुजारनी पड़ती है चाय किसी तरह से पेट भर देती है कौन आज कल झोपड़ी कि चाय पिता है कार्तिक नें मॉ जिज्ञासा को समझते हुए बोला मॉ देर है अंधेर नहीँ जिज्ञासा शांत हो खाना बनाने कि व्यवस्था करने लगी जिज्ञासा को जैसे अतीत कार्तिक के रूप मेँ सामने खड़ा प्रतीत हो रहा था उसे अच्छी तरह याद था कि कार्तिक कि मॉ ढाई वर्ष के कार्तिक को सौंप कर दुनियां छोड़ गयी उसने कार्तिक कि परिवरिश अपने बेटे जैसा ही किया और सेठ जी नें पढ़ा लिखा कर उसे अपनी दुकान पर न रखते हुए कार्तिक को अपनी मर्जी का जीवन जीने के लिए छोड़ दिया कार्तिक कि माँ जिज्ञासा कि नौकरानी कम बहन जैसी अधिक लगती चौबीसो घंटो का साथ था दोनों का कार्तिक के पिता सेठ जी कि दुकान पर छोटा मोटा काम करते कार्तिक के जन्म से तीन चार माह पूर्व कार्तिक के पिता बुधी चंद कि सर्प दंस से मृत्यु हो गयी कार्तिक को देख कर जिज्ञासा को ऐसा लग रहा था जैसे उसका बड़ा बेटा आ गया हो इधर सेठ जी से कार्तिक नें सवाल किया सेठ जी आप तो इलाके के बड़े सम्मानित रसूक वाले इंसान थे आखिर इस हालात मेँ पहुंचाया किसने आपको सेठ जी नें कार्तिक से कहा कि खाना वाना साथ खाते है फिर विस्तार से बताएंगे तुमसे बस इतना ही निवेदन है बेटे कि किसी तरह से भाग्येश कि शिक्षा दीक्षा कि निर्वाध व्यवस्था कर दो कार्तिक नें बड़े कृतज्ञता भाव से बोला सेठ जी यह तो मैं आपकी चाय वाली छोपड़ी मेँ दाखिल होते ही निर्णय कर चूका हूँ!!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश