Patjhad ke Baad - 3 in Hindi Fiction Stories by Neha kariyaal books and stories PDF | पतझड़ के बाद - एक सच्चा इंतजार - 3

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पतझड़ के बाद - एक सच्चा इंतजार - 3

ज़िंदगी भी कभी कभी क्या अजीब खेल खेलती है। जब हम सब कुछ भूलकर, सब कुछ फिर से शुरू करने को तैयार, होते हैं - बिना किसी उम्मीद के, तब वही ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर ले आती है, जिसकी हमने कभी कल्पना तक नही की होती।

आरवी भी तो बस एक समारोह में हिस्सा लेने आई थी, उस नए अंजान शहर में जहां वो किसी को नहीं जानती थी। लेकिन वहां उसे वो दिखा, जिसकी उम्मीद उसने कब की छोड़ दी थी।

उस चेहरे को देख कर आरवी की सांसे थम गई। वो समझ नहीं पा रही थी - क्या ये वाकई वो रित्विक था? या फिर कोई और, जो हूबहू उसी के जैसा दिखता है?।

मन में बेचैनी, आंखों में सवाल, और दिल में एक अजीब सा डर... वो भी थमी खड़ी रही। उसने चुपचाप पुरस्कार लिया और बिना कुछ कहे नीचे उतर आई।

लोग उसे बधाईयां दे रहे थे, और मुस्कुरा रहे थे, पर आरवी के भीतर सब कुछ ठहर गया था। मानो वो एक सपना हो। और तभी पीछे से एक आवाज आती है "आरवी!" वो आवाज... वही तरीका... वही लहजा...

ठीक वैसा ही जैसे रित्विक उसे पुकारा करता था। पीछे मुड़ी तो सामने वही था। रित्विक । अब आरवी को लगने लगा यह सच में रित्विक ही हैं। रित्विक को देख आरवी की आँखें झलक उठी। वो धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ी। पर उसके मन में सवालों का तूफ़ान था -
तुम कहां थे रित्विक ?
क्यूँ चले गए थे?।

क्या तुम वही हो जिससे मैंने एक ज़िंदगी की शुरुआत की थी? रित्विक ने आरवी को गले से लगा लिया। वो कुछ पलों के लिए मानो फिर से अपने पुराने दिनों में लौट गई।

आरवी खुश तो थी लेकिन उसका मन अभी भी बेचैन था। जबाव चाहिए थे।

लेकिन इससे पहले आरवी रित्विक से कुछ पूछ पाती। वह उसे अपने दोस्तों से मिलवाता है जो बड़े नाम, जाने माने लेखक थे। वे लोग आरवी की लेखनी के प्रशंसक थे, उसकी कहानियों को पढ़ चुके थे।

आरवी चकित थी-
रित्विक इन लोगों को कैसे जाता है?
वो अब क्या करता है?
आखिर ये सब क्या है?

जवाब फिर टल गए। प्रशंसा, मुस्कान, और सम्मान के बीच आरवी के मन में रहस्य और भी गहरा हो गया।

सम्मान समारोह समाप्त हो गया। लोग लौटने लगे। पर आरवी के भीतर कुछ शुरू हो गया था एक सच की तलाश।

आरवी और रित्विक भी अब अपने घर की ओर लौट रहे थे। जिस शहर में आरवी अकेली आई थी अपने अधूरे सवालों, उलझे एहसासों और बीते वक्त की चुप्पियों के साथ और वहीं से वो लौट रही थी, लेकिन इस बार अकेली नहीं थी।
क्या इस बार पतझड़ एक नया मोड़ लेगा?

शायद अब समय आ गया था कि उन सवालों के जवाब मिले जिन्हें वर्षों से उसने अपने भीतर समेट रखा था।

अब पतझड़ की खामोशी में एक आवाज सुनाई देने लगी थी.... जो शायद जवाबो की थी। **

"रात गहराने लगी थी। शहर की सड़के जैसे थककर सो चुके थी पर आरवी के मन में तूफ़ान था। गाड़ी की खिड़की से बाहर देखते हुए वो चुप थी, मगर उसकी आँखें बहुत कुछ कह रही थी - वो सवाल जिसके जवाब आज बहुत करीब थे।"

रित्विक गाड़ी चला रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर भी एक अजीब सी गंभीरता थी जैसे वो जानता था कि अब कुछ छिपा नहीं रह सकता।
आरवी ने एक लंबी सांस ली... और बहुत धीमे स्वर में कहा -
इतने सालों बाद तुम मुझे ऐसे क्यों मिले रित्विक? एक पल को जैसे समय थम गया हो।
रित्विक ने उसकी और देखा, और कहा - मैं जानता था, ये सवाल सबसे पहले यही होगा। और शायद... जवाब सबसे आखिर में दे सकूं।

आरवी उसकी आंखों में देखती रही। वो आंखें अब भी वैसे ही थी - लेकिन उनमें अनकहा बोझ था। क्या तुम जानते थे कि मैं रोज तुम्हें किसी कोने में ढूंढती रही? आरवी की आवाज कांप रही थी।

रित्विक कुछ नहीं बोला। बस गाड़ी किनारे रोक दी। और कहा चलो आरवी आज सब कुछ कहने दो। आरवी भी चुप चाप उतर गई।

आरवी और रित्विक उस अजनबी शहर की सड़कों पर साथ साथ चल रहे थे, पर उनके बीच अभी भी कुछ अधूरे सवाल हवा में तैर रहे थे... बस यही...

कुछ अधूरी बातें,

कुछ बचे हुए जवाब,

कुछ अनकही सच्चाई... और एक सच्चा इंतजार।

शायद इस बार पतझड़ के बाद अधूरे जबाव पूरे होने वाले थे।

आरवी अपने मन में सोच रही थी क्या रित्विक को आन्या के बारे में कुछ भी पता है? क्या उसे पता है कि हमारी एक प्यारी सी बेटी भी हैं जिसे वह छोड़ कर चला गया था, जब वो इस दुनिया में आई भी नहीं थी। बेचारी आन्या... जिसने कभी अपने पिता की उंगली नहीं पकड़ी, जिसकी मासूम आंखें हर रात मुझसे वहीं सवाल पूछती थीं - मां मेरे पापा कैसे दिखते थे? और मैं... अधूरी मुस्कान के साथ उसे टाल देती थी।

उस रात का सन्नाटा जैसे सब कुछ अंधेरे में मिल गया हो। जैसे वक्त थम गया हो। तभी रित्विक की आवाज आई - कुछ तो बोलो आरवी... हम इतने सालों बाद मिले हैं।

आरवी की आँखें नम थी, लेकिन उसकी आवाज में एक ठहराव था। वो धीरे से बोली- क्या तुम्हें पता है हमारी एक प्यारी सी बेटी भी है...?
पहले रित्विक कुछ देर चुप रहा, बस आरवी की बातें ध्यान से सुनता रहा। फिर दोनों के बीच एक गहरा सन्नाटा छा गया।

आखिरकार, रित्विक ने धीमी आवाज में कहा, " हां, मुझे पता है कि मेरी एक बेटी है। और अब वो बड़ी हो चुकी है - तुम्हारे जैसी ही खूबसूरत। मुझे सब पता है।"

आरवी चुपचाप सुन रही थी। हर शब्द जैसे उसके पुराने घावों पर मरहम भी रखता और फिर उन्हें खुद ही कुरेद देता।

पर में हमेशा तुम्हारे साथ था... हर शब्द में जो तुमने लिखा, हर पंक्ति में जिसमे तुमने दर्द को पिरोया। मैंने सब पढ़ा। आरवी की आँखें पथरा सी गई थी।

तो फिर... इतने सालों तक खामोश क्यों रहे? जब मैं टूट रही थी, जब मेरी बेटी अपने पिता के बारे में पूछती थी तब कहां थे तुम ?

रित्विक ने गहरी सांस ली... उसकी आवाज में थकान थी, कोई बोझ था जिसे वो सालों से ढो रहा था। मैं हर दिन तुम्हें पास लौटना चाहता था, लेकिन लौट ना सका। क्योंकि डरता था - कहीं मुझे देखकर तुम और टूट ना जाओ। कहीं आन्या मुझसे नफरत न करने लगे।

आरवी कुछ कहने ही वाली थी तभी रित्विक ने जेब से एक पुराना लिफाफा निकाला। ये हर साल तुम्हारे जन्मदिन पर लिखा... पर भेज नहीं पाया। आन्या के नाम भी कुछ खत लिखे है... क्या तुम चाहोगी कि वो पढ़े?

आरवी कांपती उंगली से लिफाफ लेती है... और आरवी कहती है हां मैं ये लिफाफा उसे दूंगी।

लेकिन उससे पहले, आरवी ने सवालों की लड़ी लगा दी,

आखिर तुम हो कौन?

तुमने मुझे कभी अपने बारे में कुछ क्यों नहीं बताया? तुम क्या करते हो?

तुम उन लोगों को कैसे जानते हो?

और तुम थे कहां इतने सालों में?

ये वही सवाल थे जिसके जवाब वर्षों से अधूरे थे।

क्या रित्विक आरवी को बताएगा कि वह वास्तव में कौन है? और वह क्यों चला गया था? और उसे कैसे पता आन्या के बारे में?

शायद पतझड़ में आरवी के अधूरे जबाव पूरे होंगे... या फिर पतझड़ में ही वह कुछ और तलाशती रहेगी।

आगे...