Guddi and her kite in Hindi Children Stories by Deepa shimpi books and stories PDF | गुड्डी और उसकी पतंग

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गुड्डी और उसकी पतंग




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भाग 1: गुड्डी का सपना

एक छोटे से गांव में गुड्डी नाम की 10 साल की चुलबुली लड़की रहती थी। उसकी आंखों में सपने थे और दिल में आसमान छूने की तमन्ना। गुड्डी को पतंग उड़ाना बहुत पसंद था, लेकिन उसके पास खुद की कोई पतंग नहीं थी। गांव के लड़के जब पतंगे उड़ाते, तो गुड्डी उन्हें टकटकी लगाकर देखती रहती।

एक दिन वह अपने बाबा के पास गई और बोली, “बाबा, मेरे लिए एक पतंग ला दोगे?”
बाबा मुस्कराए, “गुड्डी, पतंग तो जरूर मिलेगी, लेकिन पहले एक काम करना होगा।”
“क्या काम?” गुड्डी ने उत्सुकता से पूछा।
“तुम्हें अपने मन की सबसे बड़ी इच्छा एक कागज पर लिखनी है और वह कागज नीम के पेड़ के नीचे रखना है।”

गुड्डी को यह थोड़ा अजीब लगा, लेकिन उसने वैसा ही किया। उसने लिखा, "मैं आसमान की सबसे ऊँची पतंग उड़ाना चाहती हूँ।” और वह पर्ची नीम के पेड़ के नीचे रख आई।


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भाग 2: जादुई पतंग

अगली सुबह जब गुड्डी उठी, तो नीम के पेड़ के नीचे एक रंग-बिरंगी, चमकदार पतंग रखी थी। पतंग पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था: “इच्छा पतंग”।

गुड्डी खुशी से उछल पड़ी! उसने पतंग को हाथ में लिया, लेकिन जैसे ही पतंग की डोरी को छुआ, पतंग ने हल्की सी चमक दी और बोली,
“ध्यान से उड़ाओ, क्योंकि मैं सिर्फ उन बच्चों की सुनती हूँ जिनके दिल में सच्ची चाह होती है।”

गुड्डी घबरा तो गई, पर खुशी भी बहुत हुई। उसने तुरंत पतंग उड़ानी शुरू की। पतंग इतनी ऊपर चली गई कि बादलों के पार हो गई। गांव के सारे बच्चे आश्चर्य से देखने लगे।

“वाह गुड्डी! ये पतंग तो जादूई लगती है!” एक लड़के ने कहा।

गुड्डी ने मुस्कराकर कहा, “ये पतंग मेरी दोस्त है।”


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भाग 3: उड़ान से परे

हर दिन गुड्डी उस पतंग के साथ नई-नई बातें करती। पतंग उसे कहानियाँ सुनाती, और जब गुड्डी उदास होती, तो पतंग उसे हँसाती।
एक दिन पतंग बोली, “गुड्डी, क्या तुम उड़ना चाहोगी?”
“मैं? आसमान में?”
“हाँ! अगर तुम्हारा दिल साफ है और इरादा नेक, तो मैं तुम्हें आसमान की सैर करा सकती हूँ।”

गुड्डी ने आंखें बंद कीं और ‘हाँ’ कहा। पलभर में पतंग बड़ी होती गई और गुड्डी उसमें समा गई। वो उड़ने लगी! बादलों के बीच से निकलती, चिड़ियों से बातें करती, इंद्रधनुष को छूती हुई।

अचानक उसे दूर एक पहाड़ की चोटी पर एक रोता हुआ बच्चा दिखा।
गुड्डी बोली, “पतंग, हम उसकी मदद कर सकते हैं?”
पतंग मुस्कराई, “यही तो मेरी असली उड़ान है – जब कोई और उड़ सके।”

गुड्डी ने उस बच्चे तक पहुंचकर उसे अपने साथ उड़ाया और उसके गांव पहुंचा दिया।


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भाग 4: असली उड़ान

अब गुड्डी हर दिन किसी न किसी की मदद करती – कभी किसी खोए हुए बच्चे को घर ले जाती, कभी किसी बीमार को अस्पताल पहुंचाती। उसकी पतंग सिर्फ उड़ने की चीज़ नहीं थी, वह इच्छा, दयालुता और हिम्मत की प्रतीक बन गई थी।

गांव में सब कहते, “गुड्डी अब बस लड़की नहीं, आसमान की रानी है।”

लेकिन एक दिन, पतंग धीमी आवाज़ में बोली,
“गुड्डी, अब मेरा समय खत्म हो रहा है।”
“क्यों?”
“क्योंकि अब तुम खुद उड़ना सीख गई हो – बिना मेरी मदद के भी। असली उड़ान बाहर नहीं, दिल में होती है।”

गुड्डी की आंखों में आंसू थे। अगले दिन पतंग एक चिड़िया बनकर उड़ गई।


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भाग 5: गुड्डी की उड़ती पाठशाला

अब गुड्डी ने गांव में एक “उड़ती पाठशाला” शुरू की – जहाँ वह बच्चों को न सिर्फ पढ़ाती, बल्कि सपने देखना भी सिखाती। वह कहती,
“अगर दिल में सच्ची चाह हो और दूसरों के लिए जगह हो, तो हर बच्चा आसमान छू सकता है।”

उसकी स्कूल की दीवार पर लिखा था –
“हर बच्चे की एक पतंग होती है – बस उसे उड़ाने का हौसला चाहिए।”


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नैतिक शिक्षा:

सच्ची चाह और नेक इरादा हमेशा रंग लाता है।

दूसरों की मदद करना हमारी सबसे बड़ी उड़ान होती है।

सपनों को उड़ने के लिए पंख नहीं, हिम्मत चाहिए।
दीपांजलि
दीपाबेन शिम्पी