Hello friends!
चलो चलें मेरी स्कूल लाइफ की ओर 😄
मेरी जर्नी कुछ अजीब तरीके से शुरू हुई — मुझे स्कूल जाना ही नहीं था! 😂
प्री-नर्सरी के पहले दिन मेरी दादी मां और बड़े भाई-बहन मुझे स्कूल छोड़ने गए। उन्होंने मुझे क्लासरूम में पहले बेंच पर बैठा दिया। टीचर ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिख रही थीं, लेकिन मेरा ध्यान बिल्कुल भी नहीं था।
अचानक मैं पहले बेंच से उठी और भाग गई!
मैं सीधा अपने दो साल बड़े कज़िन की क्लास में चली गई — वहाँ एक खाली सीट देखी और उसके पास जाकर बैठ गई। 😂
टीचर ने रोका भी नहीं और मैं ज़िद पकड़कर वहीं बैठी रही!
और हाँ, वही मेरा प्री-नर्सरी का पहला और आखिरी दिन था! 😅
बाद में मैं अपनी दीदी (जो मेरी बुआ की बेटी हैं) के साथ लोकल ट्यूशन्स जाने लगी।
सुबह मम्मी मुझे छोड़तीं और ट्यूशन के लंच ब्रेक में सभी छोटे बच्चे अपने बड़े भाई-बहनों के पास जाकर लंच करते थे।
पर मैं तो एकदम सीधी-सादी — तब तक उठती ही नहीं थी जब तक दीदी खुद मुझे लेने न आ जाएं। 😌
ट्यूशन के बाद मैं दीदी के घर चली जाती।
वहाँ हम घर-घर खेलते, गली के बच्चों के साथ पतंगबाज़ी और पकड़म-पकड़ाई खेलते।
मैं अपने भाइयों को बहुत तंग करती। मेरा दो साल बड़ा कज़िन मेरा बेस्ट पार्टनर-इन-क्राइम था।
हम दोनों मिलकर उसके बड़े भाई को भूत-भूत कहकर डराते।
वो वैसे तो बड़े भाई थे, लेकिन हर छोटी बात पर डर जाते।
उनका रिएक्शन देखकर तो और हँसी आती — बड़े भाई थे, पर हरकतें बच्चों जैसी! 😂😂
लोकल ट्यूशन्स के बाद मुझे सही से स्कूल भेजा गया — GTB सीनियर सेकेंडरी स्कूल में।
नर्सरी क्लास की बातें
नर्सरी क्लास में जब भी पढ़ाया जाता, मुझे कुछ समझ ही नहीं आता था। न कुछ पल्ले पड़ता, न कोई जवाब देती।
फिर भी रिजल्ट के दौरान पता नहीं कैसे मैं फर्स्ट आ गई! मुझे असेंबली में सर्टिफिकेट मिला।
लोग फर्स्ट आने पर खुश होते हैं, लेकिन मेरा रिएक्शन अजीब था — न खुशी, न कन्फ्यूज़न, बस एक “ठीक है” वाला एक्सप्रेशन। 😂
बचपन से ही ऐसे रिएक्शन्स रहते थे मेरे!
LKG क्लास – ज्योति दीदी के साथ
फिर आई एलकेजी क्लास, जिसमें मेरी टीचर मेरी जान-पहचान की दीदी थीं – ज्योति दीदी।
मैं उन्हें बार-बार “ज्योति दीदी, ज्योति दीदी” कहकर बुलाती थी।
एक दिन मैंने उनसे परमिशन ली और वॉशरूम गई।
वहाँ एक आंटी बैठी थीं जो छोटे बच्चों की मदद करती थीं।
वॉशरूम तो मैं हो आई, लेकिन मुझे असल में जाना ही नहीं था — मुझे तो गले में बलगम आ रही थी! 😅
हमारे घर में उसे “खंगार” कहते हैं — पर स्कूल में किसी को ये शब्द पता ही नहीं था।
फिर भी मैंने आंटी की ओर देखकर Tom कार्टून की तरह मुंह से इशारा किया…
और वापस आ गई जैसे कुछ हुआ ही न हो। 😂
इस स्कूल की यही कुछ प्यारी और अजीब सी यादें रह गईं।
एक और बात — मेरा दो साल बड़ा कज़िन भी इसी स्कूल में था।
एक दिन वो स्कूल के झोले से गिर गया और उसके बाजू में फ्रैक्चर हो गया।
उसके हाथ में प्लास्टर लग गया था। वो टाइम भी यादगार था — उसका दुखी चेहरा देखकर भी हम हँस पड़ते थे क्योंकि वो प्लास्टर पर सबसे ऑटोग्राफ माँगता रहता था! 😄
✨ सबसे खूबसूरत चैप्टर: केंद्रीय विद्यालय, कपूरथला (न्यू कैंट)
अब आते हैं मेरी स्कूल लाइफ के सबसे खास हिस्से पर —
केंद्रीय विद्यालय, कपूरथला न्यू कैंट।
यही वो स्कूल है जिसमें मैंने अपनी ज़िंदगी के 12 साल बिताए।
कहने को तो हर साल स्पेशल था — पर कुछ साल दिल के इतने करीब बन गए कि उन्हें याद करके आँखों में झील सी भर जाती है...
इस स्कूल ने मुझे सिर्फ पढ़ाया नहीं —
इसने मुझे जीना सिखाया, हँसना, गिरना, उठना और खुद पर भरोसा करना सिखाया।
यहाँ की हर गली, हर दोस्त, हर टीचर — सब मेरी यादों का हिस्सा बन गए।
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अब आगे की कहानी एक नया चैप्टर है — मेरी स्कूल लाइफ का सबसे खूबसूरत हिस्सा।
वो चैप्टर मेरे दिल के इतने करीब है कि उसे मैं अलग से लिख रही हूँ...
📝 शीर्षक होगा: केंद्रीय विद्यालय – गोल्डन मोमेंट्स
तो कृपया पढ़ना मत भूलिएगा — क्योंकि वो सिर्फ मेरी कहानी नहीं, एक स्कूल की आत्मा से जुड़ा एहसास है।
✨ जल्द आ रही हूँ उन यादों की बारिश के साथ... ☁️💭