एक ८ साल की छोटी सी लड़की थी — गोल चेहरा, बड़ी बड़ी आँखों में चमक, बालों में माँ के हाथों का जोड़ा।
हर वक्त घर के कोने कोने से उसकी हँसी गूंजती थी।
उसके आने से घर में रंग था, ज़िंदगी थी।
फिर उसके घर एक छोटा भाई आया।
लोग कहते हैं कि नए बच्चे के आने से पुराने बच्चे को कम प्यार मिलता है —
पर यहाँ ऐसा कुछ नहीं था।
वो लड़की फिर भी सबकी लाडली थी।
दादी की गोद उसका फ़ेवरेट जगह थी। दादाजी के हाथों से मिलती टोफ़ी अभी भी उसकी जेब में होती थी।
फिर एक दिन... सब कुछ बदल गया।
दादी की तबियत ख़राब रहती थी, अस्पताल के चक्कर लगने लगे।
और एक रात, जब सब सो रहे थे, दादी ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
उस दिन उस लड़की ने सिर्फ अपनी दादी नहीं, अपना एक टुकड़ा खोया।
कुछ सालों बाद दादाजी भी चले गए।
घर वही था, लोग वही थे, पर उस लड़की का बचपन कहीं छुप गया था।
फिर स्कूल का वक्त आया।
९वीं क्लास में उसने एक लड़के को देखा — neatly dressed, charming smile।
हर क्लास में उसी के आस-पास बैठने की कोशिश, उसकी आँखों में सपने थे।
वो सोचती — कब वो लड़का उससे बात करेगा, कब प्रपोज करेगा?
पर लड़का तो कुछ बोलता ही नहीं था।
और स्कूल के बच्चे मज़ाक बनाते:
"इतनी सिंपल सी लड़की उस हैंडसम लड़के के पीछे?"
पढ़ाई से ध्यान हट चुका था। बस उसकी सोच में खो गई थी।
फिर ११वीं क्लास आई।
नवंबर २०१८ — पापा ने मोबाइल गिफ्ट किया।
लोहड़ी सेलेब्रेशन के दौरान एक रिस्तेदार मिला — पहले नॉर्मल बातें हुईं, फिर मैसेजेस...
फिर एक दिन उसने प्राइवेट मिलने के लिए बुलाया।
लड़की ने सोचा सिर्फ बात होगी।
पर जब उसे एक रूम में ले जाकर कहा गया, “कपड़े उतारो!"
और उसने मना किया,
तो उस आदमी ने गुस्से से कहा: “पैसे दिए हैं इस रूम के।”
उसने ज़बरदस्ती की, और वो मोमेंट बार-बार हुआ — ४–५ बार।
लड़की चुप थी। गिल्ट, शर्म, डर सब उसके अंदर भर चुका था।
फिर... मई २०१९ में एक नया मोड़ आया।
उसकी ज़िंदगी में एक ऐसा इंसान आया, जो सब कुछ जानकर भी उसका हाथ पकड़ के खड़ा रहा।
हर मुश्किल में साथ दिया, हर आंसू समझा, हर छुपी बात महसूस की।
जब लड़की के घर वालों को इस रिश्ते का पता चला, जिनके लिए वो कभी दुनिया थी —
उन्होंने सब कुछ गलत समझा।
पर उस लड़के ने तब भी उनसे बात की।
जब उस परिवार ने उसे चुपचाप सुना, बेइज़्ज़ती की, उसकी कास्ट और फैमिली पर सवाल उठाए —
तब भी उसने कुछ नहीं कहा।
सब कुछ बर्दाश्त किया… सिर्फ उस लड़की के लिए।
वो लड़की कहती है:
"जब सबने छोड़ा, उसने थामा...
और तब मुझे समझ आया, असली प्यार सिर्फ मूवीज का पार्ट नहीं होता।
वो जीता जागता इंसान मेरे साथ खड़ा है — बिना शर्त के, बिना शिकायत के।"
मेरी कहानी, मेरी जुबानी
आज भी मैं अपने प्यार को पाने के लिए सोचती हूँ —
कैसे बात करूँ, कैसे मनाऊं?
मैं भाग नहीं सकती, क्योंकि कभी उन्होंने मुझसे बहुत प्यार किया था।
मैं उन्हें कलंक नहीं दे सकती।
आख़िर मैं लड़की ही हूँ।
सब मेरे बारे में सोच रहे हैं, लेकिन कोई मेरे बारे में नहीं सोचता।
क्या अलग कास्ट के इंसान से प्यार करना पाप है?
अगर वो इंसान मेरे साथ दुख में १०० बार खड़ा हो और एक खुशी में भी साथ दे —
तब भी हम पर ताने सुनते हैं।
क्या उसे दर्द नहीं होता?
अगर वो मेरे लिए इतना दर्द सह सकता है,
तो क्या वो मेरे लिए सही नहीं है?
क्या रिश्ते जातियों के बोझ में ही उलझे रहेंगे?
राइटन बाय — सिमरन