Rudra's Forest in Hindi Children Stories by Ravina books and stories PDF | रुद्र का जंगल

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रुद्र का जंगल

बहुत दूर, ऊँचे पहाड़ों और घनी वादियों के बीच बसा था एक विशाल जंगल — सहस्त्रवन। यहाँ हर प्राणी स्वतंत्रता से रहता था। इस जंगल का राजा था एक बूढ़ा लेकिन बलवान शेर — रुद्र।

रुद्र अब उम्रदराज हो चुका था। उसकी चाल में ठहराव आ गया था, लेकिन उसकी आंखों में आज भी तेज चमक थी। वह समझदार और न्यायप्रिय था। उसके राज में जंगल में कभी लड़ाई नहीं हुई। हिरन, भालू, लोमड़ी, बंदर, सब रुद्र से प्रेम करते थे।

पर समय कभी स्थिर नहीं रहता।

एक दिन जंगल के उत्तर दिशा से कुछ अजनबी जानवरों का झुंड आया — उनमें एक जवान और ताकतवर शेर था — वीर. वह रुद्र को देखकर बोला, “अब तुम्हारा समय पूरा हो गया है। जंगल को एक नया राजा चाहिए, जो जवान हो, तेज हो और शिकार कर सके। मैं इस जंगल का नया राजा बनूंगा।”

जंगल के जानवर सकते में आ गए। कुछ उत्सुक थे, कुछ डरे हुए। रुद्र ने वीर को देखा और शांत स्वर में कहा, “अगर तुम राजा बनना चाहते हो, तो पहले साबित करो कि तुम इस जंगल की रक्षा कर सकते हो। जंगल पर कोई भी अधिकार केवल ताकत से नहीं मिलता, जिम्मेदारी से मिलता है।”

वीर हँस पड़ा, “ठीक है। कोई चुनौती दो, मैं हर कसौटी पर खरा उतरूंगा।”

रुद्र ने मुस्कराते हुए कहा, “ठीक है। कल सुबह से तुम्हें तीन दिनों तक जंगल की सुरक्षा करनी होगी। अगर तीनों दिन जंगल में कोई जानवर घायल नहीं हुआ, कोई लड़ाई नहीं हुई, तो मैं स्वयं तुम्हें राजा घोषित कर दूंगा।”

वीर ने चुनौती स्वीकार कर ली।

पहला दिन: वीर जंगल में इधर-उधर घूमता रहा। उसे लगा सबकुछ शांत है। लेकिन तभी एक बंदर और एक लोमड़ी पेड़ के फल को लेकर झगड़ने लगे। वीर जोर से दहाड़ा और दोनों को डराकर भगा दिया। "समस्या हल," उसने सोचा।

पर रुद्र ने उसे शाम को बुलाकर कहा, “डराना समाधान नहीं है। समस्या की जड़ समझनी चाहिए।”

दूसरा दिन: एक हिरन घायल होकर नदी किनारे पड़ा था। वीर ने उसे देखा, मगर यह सोचकर चला गया कि यह तो खुद गिरा होगा, मेरा काम नहीं है। शाम को रुद्र ने पूछा, “तुमने उस हिरन की मदद क्यों नहीं की?”
वीर बोला, “मैं राजा बनने आया हूँ, नर्स नहीं।”

रुद्र चुप रहा, लेकिन जंगल के कुछ जानवरों की आँखों में वीर के लिए विश्वास कम हो गया।

तीसरा दिन: जंगल के पास के गाँव से कुछ शिकारी आए। उन्होंने जाल बिछाया और एक खरगोश उसमें फँस गया। वीर को इसकी भनक लगी, पर वह सोच में पड़ गया — “शिकारी इंसान हैं, उनसे लड़ना खतरनाक है। मुझ पर हमला कर सकते हैं।” वह वापस लौट गया।

लेकिन जैसे ही खबर रुद्र को मिली, उसने अपनी अंतिम ताकत बटोरी और दौड़ते हुए वहाँ पहुँचा। उसने गरज कर शिकारियों को डराया, गजराज हाथी के साथ पेड़ उखाड़कर रास्ता रोका, और उल्लू बुद्धि ने गाँव जाकर मनुष्यों को चेताया। आखिरकार, शिकारी भाग गए और खरगोश को बचा लिया गया।

जंगल में हर ओर रुद्र की जय-जयकार होने लगी।

वीर चुपचाप रुद्र के पास आया और बोला, “मैं हार गया, लेकिन आपने मुझे बहुत कुछ सिखा दिया। मैं अब जान गया कि राजा बनना केवल ताकत नहीं, सेवा, समझ और साहस मांगता है।”

रुद्र मुस्कराया, “तुम्हारा यही स्वीकार करना तुम्हारे भीतर सच्चे राजा की झलक है। लेकिन अभी तुम्हें सीखना बाकी है। जंगल को अनुभव की जरूरत है, न केवल शक्ति की।”

वीर ने झुककर रुद्र को प्रणाम किया और कहा, “मैं आपका शिष्य बनकर आपकी सेवा करूंगा, जब तक आप कहें।”

उस दिन से वीर रुद्र का दाहिना हाथ बन गया। वह जंगल की रक्षा करता, बीमारों की मदद करता और बच्चों को सिखाता कि सच्ची ताकत भीतर होती है, न केवल पंजों में।

रुद्र धीरे-धीरे गुफा में विश्राम लेने लगा, पर जंगल जानता था — वह अब भी वहीं है — हर पत्ते की सरसराहट में, हर न्याय में, हर शांति में।


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शिक्षा: सच्चा नेतृत्व केवल ताकत से नहीं, सेवा, करुणा और जिम्मेदारी से आता है।