bhrun hatya in Hindi Women Focused by Deepa shimpi books and stories PDF | ભ્રૂણ હત્યા

Featured Books
Categories
Share

ભ્રૂણ હત્યા

शानदार! मैं आपको 600 पंक्तियों की भावनात्मक और सशक्त कहानी लिखकर दूंगा जो भ्रूण हत्या के विषय को छूती है—संवेदनशीलता, समाज, और बदलाव की यात्रा के साथ। यह कहानी हिंदी में होगी, और आप इसे कहानी, नाटक, या जनजागरूकता कार्यक्रम में इस्तेमाल कर सकते हैं।

मैं इसे भागों में दूँगा ताकि आप आराम से पढ़ सकें और फीडबैक दे सकें।
यह रहा भाग 1 (पंक्ति 1–50): भूमिका और किरन का परिचय।


---

शीर्षक: “अनसुनी कोख”

(एक सत्य पर आधारित करुण कथा)

पंक्ति 1–50: किरन की दुनिया

1. एक गाँव था छोटा-सा, हरियाली से भरा,


2. जहाँ हवाओं में मिट्टी का अपनापन तिरता।


3. वहाँ रहती थी किरन, एक प्यारी-सी बहू,


4. सपनों में रंग भरने चली थी वो ससुराल के रुख।


5. पढ़ी-लिखी थी, विचारों में तेज़,


6. मगर ससुराल में था सिर्फ़ बेटे का क्रेज़।


7. पति अमन था शांति का रूप,


8. पर माँ-बाप के सामने बन जाता था चुप।


9. एक दिन किरन ने खबर सुनाई,


10. "माँ बनने वाली हूँ," हँसी रुक ना पाई।


11. मगर घर में शांति नहीं थी,


12. सास ने पूछा – "बेटा है ना? वरना तो विपदा सही।"


13. किरन सन्न रह गई, ये कैसा सवाल?


14. एक माँ बनने का सपना, और ये बेहाल!


15. ससुर ने भी आँखें तरेरी,


16. "नाम रोशन करेगा बेटा, यही है ज़रूरी।”


17. किरन ने बोला – "क्या बेटी नहीं जीती?"


18. सास हँसी – "बेटी तो सिर्फ़ खर्च की रीत है जी!"


19. डॉक्टर की अपॉइंटमेंट लगी,


20. गर्भ में क्या है, यही जानने की फिक्र जगी।


21. किरन ने मन में सोच रखा था,


22. "जो भी हो, मैं अपनी कोख ना मारूँगी इस बार!"


23. पति से कहा – "कसम खाओ मेरे साथ चलो,"


24. अमन ने आँखे झुका दी, और कहा – "माँ के सामने कुछ नहीं बोलूँगा, चलो।"


25. अस्पताल पहुँचे, मशीनें तैयार,


26. किरन का दिल धड़का, भावनाएँ बेकरार।


27. डॉक्टर बोला – "बेटी है ये नन्ही परी,"


28. सास-ससुर ने सुनी, और चेहरे पड़े भारी।


29. "अबॉर्शन करवा दो!" सास ने चिल्लाया,


30. किरन ने काँपते स्वर में कहा – "नहीं, ये तो भगवान का वरदान आया!"


31. डॉक्टर चुप रहा, पैसे की गड्डी टेबल पे रखी,


32. ईमान बिकता रहा, ज़िंदगी कहीं थमी।


33. घर लौटते समय किरन रोई,


34. पेट पर हाथ रख कर बोली – "मैं तुझे बचाऊंगी ओ मेरी परी!"


35. मगर दबाव था भारी, हर दिन एक जंग,


36. माँ बनने का सपना अब बन गया था संग्राम।


37. "अगर नहीं कराओगी तो घर छोड़ दो,"


38. ससुर की आवाज़ थी जैसे कोई तूफ़ान हो।


39. अमन चुप, दरवाज़े से बाहर झाँकता,


40. किरन टूटी, पर भीतर कोई हौसला चिपकता।


41. उसने अपनी सहेली रीमा को बुलाया,


42. दर्द सुनाया, आँसू बहाया।


43. रीमा बोली – "हिम्मत रख, तू अकेली नहीं,"


44. "हम लड़ेंगे, बेटी को ज़िंदा रखेंगे कहीं।"


45. किरन ने सीना ताना, अब मन में प्रतिज्ञा थी,


46. "माँ हूँ मैं, ममता मेरी सबसे ऊँची है कहीं।"


47. उसने खुद डॉक्टर से जाकर कहा –


48. "मैं नहीं करवाऊँगी हत्या, चाहे जो भी कहे जहाँ।"


49. डॉक्टर ने एक नज़र देखा,


50. पहली बार किसी माँ में इतना साहस देखा।

बहुत अच्छा! 
पढ़ते हैं, जिसमें किरन का संघर्ष और समाज का दवाब गहराता है।


---

“अनसुनी कोख” – भाग 2: संघर्ष और दबाव

पंक्ति 51–150

51. गाँव में बात फैल गई चुपचाप,


52. "किरन बेटी को जन्म देगी!" ये बना मातम सा जश्न का आपात।


53. औरतों ने ताने कसे,


54. "बेटी के लिए लड़ रही है? ये तो आफत मसे!"


55. मंदिर के बाहर, किरन अकेली बैठी,


56. कोख से बात करती, आँसू में भी हँसी बहती।


57. "ओ मेरी बच्ची, दुनिया तुझसे डरी हुई है,"


58. "मगर मैं तेरा अस्तित्व बनूँगी, तुझे न मिटने दूँगी कहीं भी।"


59. अमन अब उलझन में था,


60. एक ओर माँ-बाप का डर, दूजी ओर बीवी की राह।


61. रातों को जागता, मन में द्वंद्व भारी,


62. "क्या सचमुच बेटी होना गुनाह है? या ये सब बस हमारी बीमारी?"


63. किरन ने पंचायत की चौखट पर कदम रखा,


64. "मुझे न्याय चाहिए," ये निडर स्वर वहाँ रखा।


65. मुखिया ने टोका – "ये घर की बात है बहू,"


66. "घर में ही सुलझाओ, पंचायत का क्या काम है अबू?"


67. मगर एक औरत वहाँ उठी – सरोज, बूढ़ी सी,


68. उसकी आँखों में चमक थी, और आवाज़ में सच्चाई की बीज बोई सी।


69. "मैंने भी कभी बेटी खोई थी जबरन,"


70. "अब पछतावे की आग में जलती हूँ हर क्षण।"


71. सरोज की बातों से सबका ध्यान बदला,


72. किरन की लड़ाई को मिला अब समाज का पहला क़तरा।


73. गाँव की कुछ महिलाएँ पास आईं,


74. "हमें भी साथ चाहिए, हम भी सहती आईं।"


75. किरन ने महिला मंडल बनाया,


76. “बेटी बचाओ” का पहला नारा लगाया।


77. स्कूल की दीवारों पर पोस्टर लगे,


78. “बेटियाँ भार नहीं, उजियारा हैं, ये रंग सजे।”


79. डॉक्टर शर्मा जो पहले चुप रहा,


80. अब उस पर भी आया जमीर का पहरा।


81. मीडिया में एक खबर छपी,


82. “किरन: कोख की क्रांति” – ये तस्वीर सबने देखी।


83. मगर जब बदलाव शुरू होता है,


84. तब कुचले हुए लोग और ज़्यादा टूटता है।


85. किरन के घर में आग लगाने की कोशिश हुई,


86. औरतें डर गईं, उनकी हिम्मत फिर से रुकी।


87. किरन ने डर कर कहा –


88. "क्या सच में बेटी की कीमत इतनी सस्ती है यहाँ?"


89. रीमा ने थामा हाथ, बोली –


90. "डर नहीं, तू मरे नहीं, तुझसे कईयों की रोशनी जुड़ी।"


91. पुलिस में रिपोर्ट दर्ज हुई,


92. मगर दोषी का नाम लेते सबकी जुबान रुकी।


93. अमन ने पहली बार सामने आकर कहा –


94. "मेरी बेटी को कोई नहीं मारेगा, अब मेरी आत्मा जागा!"


95. माँ-बाप ने चीखकर रोका –


96. "तो अब हमारे खिलाफ जाएगा?"


97. अमन बोला – "हाँ! अगर सच यही है तो अब मैं यही निभाऊँगा!"


98. किरन ने अपने स्कूल में भाषण दिया,


99. "माँ बनना सिर्फ़ शरीर नहीं, आत्मा का संग है किया।"


100. बच्चों ने तालियाँ बजाईं,


101. पहली बार किसी ने कोख को इज़्ज़त दिलवाई।


102. गाँव की औरतें अब खुद को देखने लगीं,


103. किरन की हिम्मत से प्रेरणा लेने लगीं।


104. जिन घरों में बेटियाँ बोझ थीं,


105. अब वहाँ लोरी गूंजने लगी थी कहीं।


106. अमन ने किरन के साथ एक नारा लिखा –


107. "हम बेटी से नहीं डरते, हम अंधेरे से लड़ते!"


108. लोगों ने दीवारों पर रंग भरे,


109. और गाँव में फिर उम्मीदों के दीप जले।


110. पर कहानी यहाँ खत्म नहीं होती,


111. क्योंकि बदलाव को सच्चाई की कीमत भी चुकानी होती।


112. किरन के नाम से केस दायर हुआ,


113. “परिवार विरोध” के तहत कानून का डर पसराया गया।


114. कोर्ट में बयान देना पड़ा,


115. "हाँ, मैंने अपने कोख को बचाया – क्या ये जुर्म था सजा देने वाला?"


116. वकील चुप थे, न्यायधीश सन्न।


117. पहली बार एक माँ की आवाज़ इतनी सच्ची लगी उन्हें हर क्षण।


118. कोर्ट ने फैसला सुनाया –


119. “भ्रूण हत्या अपराध है – किरन नहीं, दोषी वो हैं जो बेटी से डराया।”


120. अदालत से बाहर निकलते ही,


121. भीड़ ने किरन को फूलों से नवाज़ा सही।


122. एक माँ की कोख ने अब क्रांति बोई,


123. अंधेरे में फिर उम्मीद की रौशनी होई।


124. किरन ने बेटी को जन्म दिया,


125. और नाम रखा – "आशा," जो हर दिल में नया सपना लिए जिया।

દીપાંજલી 
દીપાબેન શિમ્પી 


---