Episode#2 बूढा दीना पार्क
शाम धीरे धीरे और गाढ़ी होती जा रही थी ,रात दस्तक देने वाली थी |रात के करीब 9 बज गए थे और रात के 9 बजना मतलब लखनऊ के हिसाब से काफी रात होना ,आज काफी अच्छा वक़्त बीता अधुना के साथ ,वो भी खुश दिख रही थी। उसे देख के ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी बच्चे को पार्क में लाया गया हो ,जैसे बच्चों में होता है चीज़ों को एक्स्प्लोर करने की उत्सुकता बिल्कुल उसी तरह अधुना के अंदर भी थी दीना पार्क का ज़र्रा ज़र्रा छानने की उत्सुकता |
"मेरे ख़्याल से अब हमें चलना चाहिए ?"
मैंने अधुना से पूछा
हालाकिं अधुना का चेहरा देख के लग रहा था कि उसका जाने का बिल्कुल भी मन नहीँ है ,उसके चेहरे पे एक उदासी झलक रही थी ।मानो अभी वो मुझसे कह दे कि आपको जाना है आप जाओ,मैं तो नहीँ जाऊँगी !
"अरे यार !ये वक़्त कब बीत गया पता नहीँ चला !"
आखिर मन मसोस के अधुना ने बोल ही दिया ।
"हाँ, वक़्त का पता ही नहीँ चला ,खैर अब चलना तो है ही ",
"हाँ, चलते हैं अब "
मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे दीना पार्क मुझसे कह रहा हो कि अभी मत जाओ ,अभी रुको विराज।मुझसे शिकायत कर रहा हो कि तुम कितने दिनों बाद मुझसे मिलने आये हो और आज इतनी जल्दी जा रहे हो लेकिन इस वक़्त दीना पार्क की शिकायत को नज़रअंदाज़ करना ही बेहतर था क्योंकि शाम अब रात में बदल चुकी थी।
ख़ैर,हम दोनों ने भारी क़दमो से दीना पार्क को अलविदा कहा और पार्किंग की तरफ जाने लगे ,मेरा मन हो रहा था कि काश इस वक़्त को रोक लूँ ,ये वक़्त कितना अच्छा है और इस वक़्त की उम्र कभी न बढ़े ये वक़्त ऐसा ही रहे | मैं ऐसा ही रहूं, अधुना ऐसी ही रहे और ये दीना पार्क भी कभी बूढ़ा न हो । हमेशा यहाँ ऐसी हरियाली ,ऐसी चहल पहल बनी रहें |
दीना पार्क से अधुना के घर की दूरी लगभग 20 -22 km थी,और मेरी घर की दूरी होगी कुछ 16-17 km |कार में बैठे बैठे हमारे बीच ख़ामोशी भी बैठ गयी और इस ख़ामोशी का फायदा उठा के अधुना ने सोना बेहतर समझा,सोते हुए भी अधुना ऐसे लग रही थी जैसे बात कर रही हो |लगभग 10min बाद मैंने सोचा अधुना को जगाते हैं|आखिर थोड़ी हिम्मत बाँध के मैंने धीमे से अधुना को आवाज़ दी
"अधुना,अधुना"
“हम्म!”
अधुना थोड़ा सा हड़बड़ा के उठी
"घर आ गया क्या ?"
उसने आगे पूछा
"नहीँ अभी नहीँ, अभी तो टाइम है घर आने में ।
वैसे मैं चुपचाप बोर हो रहा था, तो सोचा क्यों ना तुम्हारी नींद ख़राब करते हैं |",
अधुना को देख के लग रहा था कि थोड़ा गुस्से में है ,आखिर मैंने उसकी नींद जो ख़राब की ,ख़ैर कार वाली नींद मुझे भी अच्छी लगती है ,ये बड़ी मस्त और बेफिक्र नींद होती है |मैं चाहता था कि बस हम लोग कुछ बात करते रहें है ,कुछ भी यूँही random बात .
"अधुना,याद करो !"
"क्या ? "
आवाज़ में अधुना की नरमी थी या शायद वो गुस्सा नहीँ दिखाना चाह रही हो
"हम लोग पहले कब और कहाँ मिले थे ?",
ख़ैर मुझे मालूम था कब और कहाँ मिले थे। बस मैं ये जानना चाह रहा था कि अधुना को ये याद है कि नहीँ
"मेरे ख़्याल से शायद हम लोग स्वाति के घर पे मिले थे !,उस दिन रूही का बर्थडे था ,हैं ना ?"
ख़ैर मैं जानता था कि हम पहली बार कहाँ मिले थे लेकिन फ़िलहाल अधुना की बात मानने में ही ज़्यादा भलाई है...
"हम्म ,सही ।उस दिन रूही का बर्थडे था ।”
मैंने अधुना की ये बात आखिर मान ही ली
"देखा…देखा मुझे याद है ! और तुम मुझे हमेशा भुल्लकड़ ही कहते रहते हो !",
ख़ैर अधुना की ये बात सुन के मुझे थोड़ी हँसी आ गयी
"तुमने उस दिन सफ़ेद शर्ट पहनी हुई थी ,हैं ना ?"
मुझे ये समझ नहीं आया कि अधुना ने मुझसे ये सवाल पूछा था या फिर वो मुझे ये जता रही थी कि उसकी यादाश्त कितनी पक्की है।
वैसे ये तो अब मुझे भी सही से याद नहीँ है कि उस दिन मैंने सफ़ेद शर्ट पहनी थी या फिर काली,लेकिन ये भी हो सकता है कि अधुना को भी याद ना हो और ये भी हो सकता है कि उसे ये चीज़ याद रही हो लेकिन फ़िलहाल मैं जिस situation में था मैंने हामी भरी
"हां , मैंने सफ़ेद शर्ट ही पहनी थी।वैसे मानना पड़ेगा तुम्हारी यादाश्त तो हाथी की तरह है….you know ,you have Elephant Memory !! ”
मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा।
2 min का सन्नाटा फिर से पसर गया था लेकिन इस बार अधुना ने खुद पहल की ।
"तो विराज आजकल क्या लिखा जा रहा है ?"
“कोई कविता,कहानी ,क्या लिख रहे हो आजकल ??”
अधुना जिस तरह से सवाल पूछ रही थी मुझे ऐसा लग रहा था कि वो चाह रही थी कि ये छोटा सा सफ़र सन्नाटे में न गुज़र जाये, कभी कभी खामोशियाँ बड़ी सी अजीब लगती है और इन खामोशियों से डर भी बहुत लगता है !
"हाँ, लिखा तो है मैंने कुछ ,एक छोटी सी कहानी लिखी है ,'
मैंने अधुना के सवाल का सीधा सादा सरल जवाब दिया क्योंकि कहीं न कहीं मैं भी चाहता था कि मैं उससे बात करता रहूं
"तो,क्या लिखा है ,ज़रा बताएं !."
"हाँ, एक छोटी सी कहानी है… कहानी का नाम है 'इद्रिल ' ."
“ इद्रिल !!!”
अधुना ने अपनी माथे की लकीर को सिकोड़ते हुए बोला ,मुझे समझ में आ गया था कि उसे ये टाइटल अजीब लग रहा था ।
"इद्रिल,ये कैसा नाम है कहानी का"
आखिर अधुना ने ये बात बोल ही दिया।
"हाँ, इद्रिल ….इद्रिल एक चरित्र है इस कहानी में, तो मैंने उसके नाम पे ही कहानी का नाम भी इद्रिल ही रख दिया |",
मैंने विस्तारपूर्वक अधुना को टाइटल के बारे में समझाया
"तो क्या है इस कहानी में ?"
उसकी बात से लगा की उसे कहानी सुनने की उत्सुकता है।
हम्म ,तो सुनो फिर इद्रिल की कहानी ....
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