Episode#1 तुम्हारी जैसी लड़की
आज बहुत दिनों के बाद अपनी पसंद की जगह पे गया,ये वही जगह है जहाँ पे मैं अक्सर आता था
"तुम पहले कभी आयी हो यहाँ ?",
"नहीँ, कभी नहीँ ".
"आप पहले कभी इस जगह पे मुझे नहीँ लाये ,कितनी खूबसूरत जगह है न ?",.
विराज सर झुका के हल्का सा मुस्कुराता है ,पता नहीँ शायद वो अधुना की बेवकूफी पे मुस्कुरा रहा था या अपनी किस्मत पे !
"हाँ, तुम्हें लेके तो पहली बार ही आया हूँ ",!
विराज के चेहरे पे एक शरारत से भरी मुस्कुराहट थी
ये सुनके अधुना थोड़ा सा जलन फील करती है !
"अच्छा,मतलब मुझसे पहले किसी और को भी लेके यहाँ पे आये हैं ?",
बताएं ना किसको लेके आये थे ?
“उम्म ,थी एक लड़की !”
“तुम्हारी ही जैसी थी लेकिन काफी पुरानी बात हो चुकी है ये तो…i mean 4 ,5 साल !...it's over now”
विराज की बातें में थोड़ा सा दर्द और या यूँ कहें अफ़सोस और कहीं न कहीं तसल्ली भी थी बातों में
अधुना विराज की खिंचाई करते हुए
“ओह ! मतलब आपका एक बार दिल टूट चुका है अच्छा मुझे लगा शायद आप भी पहली बार यहाँ आये हैं !”
विराज थोड़ा सांस भर के अधुना की तरफ देखता है |
“अब दिल टूटा कहो ! या मेरी खराब किस्मत
ख़ैर जो होना है वो तो होके ही रहेगा ,किस्मत का अच्छा बुरा करना ये अपनी फितरत में नहीँ है
ये तो जो उधर (आसमान की तरफ इशारा करके ) बैठा है न,ये सब उसी की आदत है !हम लोग तो बस ऊपर वाले की जो आदत है उसे झेलते हैं बस !”
अधुना विराज की इन डीप बातों से impress होती है और अपने ही चुटकीले अंदाज़ में बोलती है
“वाह !
मतलब क्या बात है सर !
कैसे इतनी गहरी बात बोल लेते हैं आप
मुझे तो ये सब ख़्याल ख्यालों में भी नहीँ आते हैं”
ख़ैर विराज के भी अंदाज कम चुटकीले नहीँ थे
“भई, बड़े लोग हैं हम..ऐसे दिमाग मेरे आइडियाज में आ जाते हैं !”
“मतलब??”
अधुना ने हैरानी भरे अंदाज़ से पूछा।
वैसे भी अधुना का सेंस ऑफ ह्यूमर इतना भी पक्का नहीं था कि वो विराज की इस बेतुकी बातों को आसानी से समझ सके।
“मतलब, ये कि मैडम ऐसे Ideas मेरे इस नाचीज़ दिमाग़ में आते रहते हैं…वैसे अधुना तुम अपने दिमाग़ पर इतना ज़ोर ना दो ”
अधुना अक्सर विराज को कहती थी कि उसकी दो personality है।एक वो जिसे वो जानती है और एक वो जिससे वो अनजान है।
जिसके जवाब में विराज हंस के यही कहता था कि शायर निदा फ़ाज़ली अपनी शायरी में कहते हैं कि हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी, जिसको भी देखना कई बार देखना …इसी तरह मेरी भी कई Personalities हैं, after All मैं भी तो एक शायर हूँ !
विराज की इस हंसी के पीछे एक रंज, एक ग़म छुपा हुआ था।
शाम धीरे धीरे और गाढ़ी होती जा रही थी ,रात दस्तक देने वाली थी |रात के करीब 9 बज गए थे और रात के 9 बजना मतलब लखनऊ के हिसाब से काफी रात होना ,आज काफी अच्छा वक़्त बीता अधुना के साथ ,वो भी खुश दिख रही थी उसे देख के ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी बच्चे को पार्क में लाया गया हो ,जैसे बच्चों में होता है चीज़ों को एक्स्प्लोर करने की उत्सुकता बिल्कुल उसी तरह अधुनाके अंदर भी थी दीना पार्क का ज़र्रा ज़र्रा छानने की उत्सुकता |
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