इसमें धुम्रपान और शराब का सेवन है। लेखक इसे प्रोत्साहित नहीं करता। साथ ही, इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ जबरन संबंध भी शामिल हैं। पाठकगण कृपया विवेक से पढ़ें।
राहुल और मीरा ने नई-नई बातचीत शुरू ही की थी कि समीर वहाँ आ गया। उसे देख मीरा उर्फ वृषाली थोड़ा हिल गई। समीर उन्हें गहरे आँखो से घूर रहा था जैसे वो कुछ जाँच रहा हो।
राहुल ने अपना हाथ बढ़ाया, "मैं आपसे मिलने ही आ रहा था।",
समीर भी हाथ बढ़ाकर, "अच्छा? माहौल तो कुछ और कह रहा है।",
राहुल हँसकर, "ये मोहतरमा इतने प्यारे मासूम आँखो को तकलीफ दिए अकेले रोए जा रही थी तो सोचा उन्हें थोड़ा बचा लूँ।",
समीर हँसकर, "तुम अब भी नहीं बदले। लड़की देखा नहीं कि शुरू हो गए।",
वो शर्माकर हँसते हुए, "ऐसा नहीं है अंकल। बस कुदरत के कारनामे को बिगड़ने से बचा रहा था।",
"तुम नहीं बदल सकते।", समीर ने ज़ोर से उसके कंधे पर थपथपाया,
"आउच अंकल!", वो दर्द से करहया
"कुछ खाया कर बेटा। जान ही नहीं रही। शादी करना है कि नहीं?", समीर ने दोंनो को बैठने का इशारा किया और वो वृषाली के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया। वृषाली भी बैठ गयी तो राहुल को भी अपने जगह वापस बैठना पड़ा।
"तो अंकल आप इन्हें जानते है?", राहुल ने असमंजस में पूछा,
"हाँ। कह सकते हो ये मेरे लिए खास है।", उसने वृषाली का सिर थपथपाया, "तुम्हारा शुक्रिया कि तुमने मेरी गैरहाज़िरी में इसका ध्यान रखा।",
वो अजीब तरह से मुस्कुराया।
"तो तैयार हो अपने पहले काम के लिए?", समीर ने पूछा,
"यहाँ?", राहुल ने हैरानी से पूछा,
"चिंता मर करो, ये घर की सदस्य की तरह है।", समीर ने कहा,
"ओके...", उसने अपना लैपटॉप निकाला,
"यह प्लान के मुताबिक मैंने जो प्लोट देखी है वो सही तो है पर बहुत महँगी है। क्या हमे इसे शहर में छोड़कर कही और बनाए? अगर ऐसा हो सकता है तो मेरे पास चुनाव बहुत सारे चुनाव है।",
समीर और राहुल किसी नये किड्स ऐट्रेक्शन के बारे में बात कर रहे थे। वृषाली ने प्लान पर टेडी नज़र डाली।
(ये? नहीं!)
चिप ने उसके भावनाओ को पकड़ लिया।
यह वही प्रोजेक्ट था जिसपर वो और विषय काम कर रहे थे वृषा की निगरानी में। समीर भी टेडी नज़र से उसे देख रहा था। समीर देखना चाहता था कि उसने खुद को कितना याद रखा था।
वृषाली के होंठ बोलने के लिए तड़प रहे थे। उसके जीभ बार-बार उसके होंठ को चांट रहे थे, अपने होंठ दबा रही थी, उसके हाथ कसे हुए थे। समीर सब देख रहा था।
साथ ही राहुल भी उन दोंनो को देख रहा था।
"क्या हो गया मीरा देवी जी? कुछ परेशान लग रही हो?", राहुल ने मज़ाक में पूछा,
"न-नहीं, नहीं तो। कुछ नहीं!", वृषाली वापस मीरा बन घबराए हुए अपने कर्कश आवाज़ में कह रही थी,
"क्या तुम सचमुच ठीक हो? तुम्हारी आवाज़ बैठी हुई है।",राहुल ने चिंतित होकर पूछा,
उसे आज का दिन और रोना याद आया, "काफी लंबा दिन था।", उसने हँसकर कहा।
तभी अधीर भी वहाँ आ जाता है।
"बॉ- सर?", अधीर हैरान था, "म-मैं वृष- मीरा के लिए गर्म कॉफी लेने गया था। आप यहाँ?", अधीर हकला गया था,
"मैं यहाँ पर तुम यहाँ इसे ऐसी हालत में अकेला कैसे छोड़ सकते हो?", समीर ने अधीर को डाँटते हुए कहा,
"माफ कीजिएगा सर। आगे से गलती नहीं होगी।", अधीर ने सिर झुकाकर कहा,
"ऐसी हालत? आपका क्या मतलब है अंकल?", राहुल ने पूछा,
समीर ने वृषाली की ओर तरस भरी नज़रों से देखा, "यही है वृषा के पागलपन का कारण और पीड़िता, मीरा पात्रा।",
"वही जिसको अपने काबू में रखने के लिए उसने अवैध से अवैध, ज़हरीली से ज़हरीली, लतखोर से लतखोर दवाइयाँ मँगाता था पर उसके डरपोक डॉक्टर के कारण पकड़ा गया और अभी फरार है?", राहुल ने चिंता में पूछा,
गहरी साँस ले, समीर, "हाह! हाँ। ये वही है और पीछे वृषा ने खून की गंगा बहाई थी।", समीर मीरा के सिर पर हाथ रखकर, "यही वो बदनसीब है और अब पुलिस उसे वृषा का साथी मानते है।",
"ये तो गलत बात है!", राहुल की आवाज़ थोड़ी कड़क थी,
"और पाँच घंटे तक उसे वो कबूल कराने कि कोशिश कर रहे थे जो उसे पता भी नहीं है।", समीर के आँखो में क्षमा याचना थी,
"तो इसलिए आप इतना रो रही थी।", राहुल ने मीरा से पूछा,
मीरा की आँखो में पानी भर गया। अपना सिर नीचे कर उसने आँसू पोंछे।
"आई एम सॉरी।", उसने उसके लिए दुख जताते हुए कहा, "ये लो।", उसने नारंगी स्वाद वाला लॉलीपॉप उसके हाथ में रखा, "मिठा खाने से मूड हल्का होता है।",
"इट्स् फाइन। मुझे कुछ याद नहीं तो ठीक है। आई कैन हैंडल इट।", उसने अपनी नाक साफ करते हुए कहा,
"यू आर टफ। व्यस्त हो?", उसकी दिलचस्पी उसपर थी,
मीरा ने अचानक बदले प्रश्न पर समीर की तरफ देखा।
राहुल भी समीर की तरफ देख रहा था।
"ठीक है पर कल।", उसने हार मानते हुए कहा।
मीरा सोच में रह गयी।
थोड़ी देर और अपने व्यवसाय की बात कर दोनों रात को बिजलानी हाउस में दाखिल हुए। मीरा बिना कुछ बोले उदास चेहरा ले अपने कमरे में जाने लगी तब समीर ने उसका हाथ पकड़, "क्या हो गया मीरा? तुम नाराज़ क्यों दिख रही हो? पूरे रास्ते तुमने मेरी तरफ एक बार भी नहीं देखा। क्या हुआ मीरा?",
उसने शिकायत भरी नज़रों से कहा, "आपको क्या ज़रूरत थी हाँ बोलने कि ले जाओ इसे?",
"यह तुम्हारी सेहत के लिए रहेगा। अलग ऊर्जा भरा माहौल जो तुम्हें ये बूढ़ा नहीं दे सकता।", समीर उदास होकर कहा, "माफ करना अगर मैंने कुछ गलत किया हो तो? अगर तुम नहीं जाना चाहती तो मैं अभी उसे मना देता हूँ?",
"मैं क्या कहती? मैं नहीं जानती मैं क्या हूँ और क्या चाहती हूँ?", उसने दुखी मन से कहा, "मैं जो चाहती हूँ वो सच है या भ्रम, या वो सही है या गलत? कही-", वो रुक गयी,
"पता नहीं कल बात करते है। मेरे दवा का वक्त हो गया। नर्स आती ही होगी।", कह वो लॉलीपॉप छोड़ अपने कमरे में भाग गयी।
वो हँसा और सोफे पर बैठा। उसके नौकर उसके जूते निकाल रहे थे और वो, सिगार फूँक लॉलीपॉप को हाथ में ले, "यादे और सोच बदलना कितना आसान है।",
(मुझे बस मेरा पात्र भरना है।)
अगली सुबह राहुल गहरे चमकदार नीले ब्लेज़र के अंदर सफेद शर्ट दो बटन खुले रख जीन्स और फॉर्मल ठक-ठक करते काले जूते पहन वो बिजलानी हाउस में आत्मविश्वास बिखेरते हुए घुसा और समीर से मिला जो अपने पात्र के साथ बैठकर नाश्ता कर रहा था,
"शुभ प्रभात सभी को!", कह वो दाखिल हुआ और मीरा के पास बैठ गया।
"सभी को कि सिर्फ मीरा को?", समीर ने निवाला लेते हुए पूछा,
राहुल जिसकी नज़र मीरा पर थी हँसकर, "आपको कैसे भूल सकता हूँ? हमारा रिश्ता तो बहुत गड़ा हुआ है ना अंकल।", उसने जाकर समीर के पैर छुए,
"हाँ, हाँ। बस है, बस है तेरी ये चापलूसी! शाम तक इसे सही-सलामत छोड़ जाना और ये रही उसकी दवाइयाँ।", उसने उसे दवाइयों का एक बड़ा डिब्बा थमा दिया, "उसे वक्त से खिला देना चाहे वो कितना भी मना करे। यह उसके लिए जीवन रेखा है। और उसमे वो खाने कि लिस्ट भी है जो वो बिल्कुल नहीं खा सकती।", मीरा ने उसे हैरत भरी नज़रो से देखा,
"मुझे पता है कि मैं मूर्खतापूर्ण लग सकता हूँ लेकिन यह महत्वपूर्ण है।", वह चिंतित लग रहा था,
"कोई बात नहीं अंकल, आप चिंता मत करो, अब ये इस राहुल की ज़िम्मेदारी है।", मीरा का हाथ पकड़ उसे अपने साथ भगाता हुआ ले गया।
"क्या!?", वो चीखी।
मीरा उसका हाथ पकड़ सीधी भागते हुए खुद को संतुलित कर रही थी और उसका उड़ाता हुआ नारंगी दुपट्टा उसका पीछा कर रहा था।
राहुल उसे सबसे पहले बुटीक ले गया। बीसवे माले में स्थित ये बुटीक फैशन की पूजा करने वालों का केंद्र था। राहुल, मीरा के ना चाहते हुए भी उसका हाथ पकड़ उसे आलिशान काँच के दरवाज़े पार कराते हुए अंदर ले गया। अंदर महँगे और ना-ना प्रकार के कपड़े हैंगर पर और पुतलों पर अपने अदाएं बिखेर रहे थे।
मीरा राहुल से अपना हाथ छुड़ा, "राहुल आप मुझे यहाँ क्यों लाए है?",
वह अपनी कलाई मल रही तभी एक सेल्सवूमन उनके पास आई और तेज़ व्यापारी की आवाज़ में बोली, "मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूँ सर, मैडम? आप दोनों साथ में बहुत सुंदर लगते हैं।", मीरा उसकी आवाज़ से डरकर राहुल के पीछे छिप गयी,
राहुल को लगा वो शर्मा रही थी, "यस, इन मोहतरमा के लिए कुछ खास कपड़े।",
"परफेक्ट। वी हैव ग्रेट कलेक्शन फॉर यू मिस्टर कपाड़िया। गाउन जो आपने ऑर्डर किया था वो भी महीनो से आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।", उसने अपनी मुस्कान बनाई रखी,
"परफेक्ट! बट पहले कुछ कैजुअल दिखाइए। इनके लिए।", राहुल, मीरा के साथ कमरे के वी.आई.पी. रूम में बैठकर सेल्सवूमन का इंतज़ार कर रहे थे। मीरा अपना मुँह हाथ से ढककर बैठी थी।
"आर यू ओके?", राहुल ने उसका हाथ हटाकर पूछा,
वह पसीने से भीगी हुई थी। आँखे लाल थी और साँसे तेज़ थी।
"क्या हो गया मीरा?", राहुल ने हड़बड़ा कर पूछा,
"पीली ...शीशी हाह! ...वाली- गोलियाँ...", उसने हाँफते हुए टूटे वाक्यों में कहा,
राहुल जल्द से समीर द्वारा दिए गए डब्बे को खोला और अनगिनत दवाईयों के नीचे उसे पीले रंग वाली काँच की बोतल मिली जिसमे 'पैनिक अटैक सोल्यूशन' लिखा हुआ था। उसे देख वो रुका पर उसने प्रेसक्रिपशन के अनुसार दो लंबी गोलियाँ निकाली और वृषाली को दे दी। वह उसे पानी के साथ घूँट-घूँटकर पी रही थी और राहुल उसकी पीठ सहला रहा था।
राहुल ने सबको बाहर रहने को कहा।
थोड़ी देर के बाद उसकी साँसे सामान्य होने लगी।
"आर यू ओके?", उसने स्नेह के साथ पूछा,
"एम सॉरी।", उसने भारी आवाज़ के साथ कहा,
"नो प्रोबल। बट वॉट ट्रिगरड इट?", राहुल ने पूछा,
"कुछ नहीं।", कह उसने अपना चेहरा पोंछा,
"ऐई! हर चीज़ के पीछे कारण होता है।", उसने कहा,
उसने अपने होंठ भींचे। इतना कि उससे खून निकलने लगे। उसने खून साफकर, "ट्रॉमा? सदमा? शायद यह कहना अतिश्योक्ति होगे पर...", वो रुक गयी,
" 'ट्रॉमा', 'सदमा', यह कभी अतिश्योक्ति नहीं हो सकती मीरा। चोट दवाई लगाने से ठीक होता है और दर्द बाँटने से।",
राहुल ने अपना हाथ मीरा के कंधे पर डाला।
"ज-जब मेरा अपने हाथ-पैर पर काबू नहीं था- मतलब, मैं ठीक से बिना सहारे के चल नहीं सकती थी और ना अपने हाथों का इस्तेमाल कर सकती थी-", उसने तंग आ, "मुझसे नहीं होगा।",
"कोशिश करो।", राहुल के हाथ उसके सर पर गया। उससे उसे वृषा की याद आई। अपने सिर में हाथ रख, "ड्रग्स और सालों तक बँधे रहने के वजह से मेरा शरीर बेकार हो गया था। मुझे सब वापस सीखना पड़ा। खाना खाना भी।
एक दिन खाना खाने वक्त्त मेरे हाथ के कंपन के कारण सूप नीचे गिर गया था। तब एक नर्स ने मुझे सबक सिखाने के लिए मेरे बोलो को पकड़ गर्म सूप को मेरे चेहरे से पोंछा था और बाकि बचा सूप मेरे ऊपर डाल दी। उसकी आवाज़ इन्हीं की तरह तेज़ थी। इसलिए-", वह कह ही रही थी कि राहुल ने पूछा,
"गर्म सूप?",
वो रुककर, "जी?",
"जो सूप उसने तुझपर डाला था?",
"इतना गर्म नहीं थी और समीर ने तुरंत उसे निकलवा दिया था। अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ।", उसने माहौल हल्का करने कि कोशिश की पर राहुल गंभीर था। लंबी साँस ले,
"हाह! जो हुआ सो हुआ। उसे उसके कर्मों का फल अवश्य मिला होगा।", कह हँसा,
उसे देख वो भी हँसी तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई, "सर, आर यू डन? ये बुटीक है होटल नहीं।", बुटीक की मालकिन वहाँ आई,
"ऐसा कुछ नहीं हो रहा है यहाँ!", उसने नाक सिकोड़कर कहा,
मालिकन अंदर आई।
राहुल ने उसे सारी बाते बताई। बातचीत के दौरान उसे उसका नाम पता चला, 'मोनिका'।
मीरा उसे देखती रह गई।
मालिकन ने मीरा के चेहरे पर प्यार से हाथ फेरा,
"ठीक है। इसे स्टाइल मैं करूँगी।", कह उसने राहुल के हाथ में मारा और उसे अपने साथ ड्रेसिंग रूम में ले गयी।
ड्रेसिंग रूम में उसने उसे मैग्ज़ीन दिखाए जिससे वो हैरत पर पड़ गयी। सामने तीनो दीवार पर कपड़े लटके हुए थे तो मैग्ज़ीन क्यों?
उसके दिमाग में नाम भी घूम रहा था। उसके धुंधले याद में वो नाम दर्ज था पर याद नहीं।
वह कुछ कपड़े लेकर वापस आई, व्हाइट टॉप के साथ लाइट ग्रीन कलर की जैकेट और प्लाजो।
(यह कॉम्बो मुझे याद है। वृषा... प्लेन...होटल...मेकअप...मोनिका! हाँ मोनिका।)
"मोनिका?", उसके मुँह से आवाज़ निकली,
"आखिर तुम्हें याद आ ग-", उसने झट हे उसका मुँह अपने हाथ से बँद कर दीवार से सटा दिया और उसे चुप रहने का इशारा दिया।
मोनिका के हाथ से कपड़े धमककर गिरे।
राहुल शोर सुनकर सावधान हो गया।