"अब खेल शुरू होगा..." आदमी ने बुदबुदाया।
फिर, एक फाइटर की तरह, उसने दोनों हाथों की मुट्ठी भींची और उन्हें आपस में टकराया।
लिफ्ट की घंटी बजी।
दरवाजे खुले।
आदमी बाहर निकला, उसकी आँखों में वही सुलगती हुई आग थी। जैसे ही उसने रिसेप्शन की ओर कदम बढ़ाया, वहाँ खड़े दो कर्मचारी उसे देखकर घबरा गए। उनमें से एक आदमी हड़बड़ा कर पीछे हट गया और बुदबुदाया, "ये... ये क्या हो रहा है? उसके हाथ... जल रहे हैं?"
प्रिया, जो अब तक अपनी सीट पर बैठी थी, खड़े होते ही ठिठक गई। उसकी नज़र सीधे उस आदमी के हाथों पर पड़ी, जो अब भी सुर्ख अंगारों की तरह दहक रहे थे। उसका गला सूख गया, पर उसने खुद को संभाला।
"प्रियांशु, तुम अंदर नहीं जा सकते!" उसने जल्दी से कहा। "मीटिंग चल रही है, तुम... तुम अभी रुक जाओ।"
प्रियांशु बिना रुके उसकी ओर बढ़ा, उसकी चाल में एक अजीब-सा ठहराव था।
"हटो, प्रिया," उसकी आवाज़ में एक ठंडी कठोरता थी।
"तुम्हें समझ नहीं आ रहा? अभी नहीं!" प्रिया ने थोड़ा और सख्ती से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में हल्की घबराहट थी।
पीछे खड़े दूसरे कर्मचारी ने भी कहा, "सर प्लीज... मत जाइए। अभी आपका जाना ठीक नहीं है।"
लेकिन प्रियांशु ने किसी की नहीं सुनी। वह तेज़ी से आगे बढ़ा, जिससे वह आदमी खुद को बचाने के लिए एक तरफ हट गया।
दरवाजा ज़ोर से खुला।
कमरे के अंदर प्रोजेक्टर की हल्की रोशनी पूरे माहौल को नीला-सा बना रही थी। टेबल पर लैपटॉप भी रखा था, लेकिन प्रोजेक्टर की वजह से रूम की लाइट्स कम कर दी गई थीं। मैनेजर स्क्रीन की ओर देख रहा था और ग्राफिक्स समझा रहा था, लेकिन जैसे ही दरवाजे की धमाकेदार आवाज़ आई, वह चौंककर पीछे मुड़ा।
कमरे में हल्का अंधेरा था, और मैनेजर ने केवल एक चलती हुई चमकती रोशनी देखी। उसे साफ नहीं दिखा कि कौन आया है, बस एक परछाईं नज़र आई, जो जलती हुई रोशनी की तरह हिल रही थी। उसने सोचा कि शायद यह प्रोजेक्टर की लाइट का इफ़ेक्ट है।
"अरे, कौन...?" मैनेजर ने आँखें मिचमिचाईं और थोड़ी आगे झुका। जैसे ही उसकी नज़र ठीक से पड़ी, उसका चेहरा सख्त हो गया।
"कौन है?" उसने अपनी ठहरी हुई आवाज़ में पूछा। "हम मीटिंग में व्यस्त हैं। बाहर जाइए।"
"अभी भी अकड़ में हो, नील?" प्रियांशु की आवाज़ कमरे में गूँज उठी।
मैनेजर का माथा सिकुड़ गया। वह अपनी कुर्सी पर थोड़ा सीधा बैठा और ध्यान से उस आकृति को देखने की कोशिश की। अब लैपटॉप की रोशनी थोड़ी स्थिर हुई थी, जिससे उसे किसी के जलते हुए हाथों की झलक मिली।
"क्या..." मैनेजर के होंठ सूख गए। उसने स्क्रीन की रोशनी के सहारे देखने की कोशिश की, लेकिन जब उसने पूरी तरह से उस चेहरे को पहचाना, तो उसके दिल की धड़कन एक पल के लिए रुक गई।
"त... तुम?!" उसके चेहरे से सारा रंग उड़ गया। "तुम यहाँ क्या कर रहे हो?!"
प्रियांशु ने एक कदम आगे बढ़ाया। अब उसकी आँखों की आग भी हल्की-हल्की चमक रही थी।
"अब तुझे पता चलेगा कि डर क्या होता है," उसने धीरे से कहा। "This fear is nothing compared to what you did to me!"
मैनेजर कुछ कह पाता, इससे पहले ही प्रियांशु ने उसकी तरफ़ झपट्टा मारा और पहले घूँसा उसके चेहरे पर पड़ा। उसके बाद एक और। और एक और।
मैनेजर लड़खड़ाया, उसके होंठों से खून टपकने लगा। अब उसकी हालत इतनी ख़राब हो चुकी थी कि वह खुद को संभाल भी नहीं पा रहा था।
भीड़ में से किसी ने घबराकर कहा, "Bro, बस कर! He will die!"
लेकिन प्रियांशु की आँखों में जलती हुई आग और भी भड़क उठी।
"जो इसने मेरे साथ किया, उसके आगे ये कुछ भी नहीं है!" उसकी आवाज़ पूरे ऑफिस में गूँज उठी। "इसका मर भी जाना इस दुनिया के लिए कोई loss नहीं होगा! यह जीकर भी क्या करेगा? It’s just a waste of space!"
उसकी आँखों से उठती लपटें अब और भी तेज़ हो गई थीं। ऑफिस में रखा फर्नीचर जलने लगा था। लोग दहशत में इधर-उधर भागने लगे।
भीड़ में से एक आदमी हिम्मत करके बोला, "भाई, तेरी दुश्मनी इससे है ना? तो फिर हम सब को क्यों मारना चाहता हैं?"
प्रियांशु ने उसकी ओर देखा, उसकी सांसें तेज़ चल रही थीं। "मैं तुम्हें नहीं मारूंगा। किसी को भी नहीं।"
आदमी चीखा, "If you don’t want to hurt us, then why the hell is everything burning? यह आग क्यों फैल रही है?!"
प्रियांशु की आँखों में कन्फ्यूज़न था। उसे अब समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी आग काबू से बाहर क्यों हो रही थी। चारों तरफ़ जलती लपटें फैल रही थीं। और कमरे की लाइट बार-बार जलती और बुझती—मानो किसी अदृश्य शक्ति की साँसों से तालमेल बैठा रही हो। हर झपक में, जैसे सच और भ्रम के बीच की दीवार और पतली होती जा रही थी।
""This is not me! मैं... मैं ये नहीं कर रहा!"
प्रियांशु की आवाज़ जैसे फट पड़ी।
उसने अपने सिर को दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया, जैसे उसके सिर के भीतर कुछ फट रहा हो… कुछ ऐसा जो उसकी समझ से परे था। उसकी साँसें तेज़ हो गईं, आँखों में पानी तैरने लगा और चेहरा थरथराने लगा।
"मैं नहीं हूँ ये...!" उसकी आवाज़ डूबती जा रही थी, जैसे कोई बच्चा अँधेरे में खुद को पुकारता हो।
"ये सब... मेरे अंदर से नहीं आ सकता... मैं ऐसा नहीं हूँ..."
वो वहीं ज़मीन पर बैठ गया, जैसे अपने ही बोझ से टूट गया हो। उसका शरीर काँप रहा था, और होठों पर बस एक बड़बड़ाहट थी—"नहीं... नहीं... ये मैं नहीं हूँ..."
उसका चेहरा, वो तेज़ निगाहें अब डर से भर गई थीं।
प्रिया की घबराई हुई आवाज़ आई, "Priyanshu, calm down! Please!"
उसकी आवाज़ सुनते ही प्रियांशु थोड़ा शांत हुआ। उसकी आँखों की आग भी थोड़ी मंद पड़ने लगी।
लेकिन तभी, पीछे से मैनेजर ने एक चेयर उठाई और पूरी ताकत से प्रियांशु की ओर फेंक दी।
"धड़ाम!"
चेयर सीधे प्रियांशु के सिर से टकराई।
"Ahhh!"
वह लड़खड़ाया, लेकिन अगले ही पल उसकी आँखों की लपटें और भी तेज़ हो गईं। अब वह पूरी तरह काबू खो चुका था।
उसकी आँखों से आग की एक ज़बरदस्त लपट निकली और सीधी मैनेजर की ओर बढ़ गई।
मैनेजर चीख़ उठा, "Aaaaaaah!!! No!!!"
आग ने उसे घेर लिया। उसकी चीखें पूरे ऑफिस में गूंज उठीं।
पूरी बिल्डिंग में अब सिर्फ़ धुआँ, आग और दहशत थी…किसी कोने में कुछ जलने की गंध थी, और दीवारों पर अब धुएँ की काली लकीरें रेंगने लगी थीं।
(कहानी आगे जारी रहेगी..)
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Extra information
"अरे सुनो…
एक बात बतानी है तुमसे, लेकिन धीरे से… क्योंकि ये बात हर किसी को नहीं पता।
प्रिया, 25 साल की एक युवा लड़की, जो 2 साल पहले ही इस कंपनी में शामिल हुई थी और आज एक खास अंदाज में नजर आई। उसने एक स्टाइलिश पार्टी टॉप पहना था, जो चमकदार सिल्क फैब्रिक से बना था और उसकी फिटिंग उसे और आकर्षक बना रही थी। टॉप पर हल्की कढ़ाई थी, जो रोशनी में हल्का सा झिलमिला रही थी। इसके साथ उसने फिगर-हगिंग ब्लू डेनिम जींस पहनी थी, जो उसके लुक को कैजुअल लेकिन क्लासी बना रही थी।
"आपका शुभचिंतक" SD