Andhkaar ka Devta - 1 in Hindi Fiction Stories by Goku books and stories PDF | अंधकार का देवता - 1

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अंधकार का देवता - 1

दिल्ली कनॉट प्लेस शाम का समय

शाम के लगभग छह बज रहे थे। सूरज क्षितिज की ओर धीरे-धीरे ढल रहा था, और आसमान नारंगी और बैंगनी रंगों में घुलता जा रहा था। हल्की-हल्की ठंडी हवा बह रही थी, जो दिन भर की गर्मी को शांत कर रही थी। हवा में एक अजीब-सी महक थी। जैसे ताज़े पानी से भीगी मिट्टी की या किसी दूर की गली से आती चाय और पकौड़ों की सुगंध। सड़कों पर हलचल थी, लेकिन इसमें कोई हड़बड़ी नहीं थी। हर कोई अपने-अपने दिन के अंतिम सफर में था।

पर इस खूबसूरत शाम के बीच, एक आदमी सड़क के किनारे तेज़ कदमों से चल रहा था।

वह एक साधारण नौकरीपेशा इंसान दिखता था। उसके कंधे पर एक सामान्य-सा ऑफिस बैग झूल रहा था वही बैग जिसे हर रोज़ ऑफिस जाने वाले लोग अपनी फाइलों और ज़रूरी कागज़ात से भरकर ले जाते हैं। उसका कोट और पैंट करीने से प्रेस किया हुआ था, लेकिन उसके कपड़ों की चमक उसकी थकान के नीचे दब चुकी थी। उसका चेहरा सपाट था, लेकिन अगर कोई ध्यान से देखता, तो उसकी आँखों में एक बेचैनी और होंठों पर जमी एक सख्त रेखा देख सकता था एक ऐसा संकेत जो उसके भीतर उमड़ते गुस्से और आक्रोश को बयां कर रहा था।

वह अपने ही ख्यालों में गुम था।

""उन्होंने मुझे बाहर निकाल दिया… मुझे मेरा हक़ नहीं मिला… उन्होंने मुझे धोखा दिया…"

उसकी भौहें सिकुड़ गईं, और उसकी मुठ्ठियाँ अनजाने में भींच गईं। उसकी चाल पहले से तेज़ हो गई, जैसे अपने गुस्से को पैरों के ज़रिए बाहर निकालने की कोशिश कर रहा हो।

"मेरी जगह किसी और को प्रमोशन दे दिया? This is unacceptable!"

उसके भीतर कुछ जल रहा था—एक ऐसा क्रोध जो उसकी आत्मा को धीरे-धीरे घेर रहा था।

"I need power… हाँ… ताकत… कोई भी मुझे फिर से पीछे नहीं धकेल सकता… मुझे मेरा हक़ चाहिए!"

उसकी साँसें तेज़ हो गईं। उसकी आँखें अब शुद्ध नफरत से चमक रही थीं। उसके कानों में अब सड़क की आवाज़ें कम, और अपने ही मन के गूंजते शब्द ज्यादा सुनाई दे रहे थे।

सड़क पर बाकी लोग अपनी ही दुनिया में थे। कोई फोन पर बात कर रहा था, कोई हाथ में सामान लिए जल्दी-जल्दी चल रहा था, तो कोई ऑटोवाले से किराए को लेकर बहस कर रहा था। सड़क पर वाहनों की चिल्ल-पौं थी हॉर्न बजते जा रहे थे, रिक्शे वाले आवाजें लगा रहे थे, और दूर कहीं किसी दुकान में रेडियो पर पुराना गाना बज रहा था।

पर उस आदमी के लिए, ये सब बस एक धुंधली पृष्ठभूमि थी।

लेकिन अचानक कुछ अजीब हुआ।

उसके चेहरे पर गुस्से की एक लाली फैलने लगी, जैसे खून उबलने लगा हो। उसकी सांसें भारी हो गईं, और फिर... धीरे-धीरे उसके शरीर से हल्की-हल्की लपटें उठने लगीं। पहले किसी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब किसी की नज़र उसके जलते हुए हाथों पर पड़ी, तो हलचल मच गई।

"अरे! यह आदमी जल रहा है!" किसी ने घबराकर चीख़ते हुए कहा।

लोग ठिठक गए। कुछ घबराकर पीछे हट गए, कुछ ने अपने फोन निकाल लिए, तो कुछ भागने लगे। मगर हैरानी की बात यह थी कि उसका कोट, उसकी पैंट, उसका बैग कुछ भी जल नहीं रहा था। सिर्फ़ उसकी ही त्वचा से आग निकल रही थी, जैसे उसका गुस्सा सचमुच लपटों में बदल गया हो।

लेकिन वह आदमी अभी भी अनजान था। उसने अपने चारों ओर घबराई भीड़ को देखा, और उसे लगा कि ये सब भी उसे उसी नफरत से घूर रहे हैं, जैसे ऑफिस में उसके सहकर्मी उसे देखते थे उसे हारा हुआ मानकर।

फिर उसकी नज़र एक बच्ची पर पड़ी।

बच्ची अपनी माँ का हाथ पकड़े सहमी खड़ी थी। उसकी आँखों में मासूमियत थी, पर अब डर से भरी हुई। उसने धीरे से अपनी माँ से पूछा

"माँ, यह अंकल जल क्यों रहे हैं?"

उसके शब्दों ने सब कुछ रोक दिया।

पहली बार, उस आदमी को एहसास हुआ कि कुछ ग़लत हो रहा है। उसने अपनी हथेलियों को देखा, अपने जलते हुए हाथों को... ।

उसकी नज़र सड़क के दूसरी ओर खड़ी एक कांच की इमारत पर पड़ी। वह लड़खड़ाते हुए उसके पास गया और अपने प्रतिबिंब को देखा।

वह जल रहा था।

उसकी त्वचा से लपटें उठ रही थीं, उसकी आँखें धधक रही थीं, लेकिन उसका कोट, उसकी पैंट, उसका बैग... वे वैसे के वैसे थे।

उसने खुद को देखा, अपनी भस्म होती हथेलियों को। कुछ पल तक बस घूरता रहा।

और फिर, अचानक, उसके भीतर कुछ टूट गया।

"मैं जल रहा हूँ!" उसने ज़ोर से चिल्लाया।

"I am burning! I AM BURNING!!"

उस आदमी की सांसें तेज़ हो गईं। उसकी छाती तेजी से ऊपर-नीचे हो रही थी, और उसकी उंगलियाँ अकड़ने लगी थीं। उसके पैरों के नीचे फुटपाथ था, लेकिन उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह किसी अनदेखी खाई के किनारे पर खड़ा हो।

उसने घबराकर चारों ओर देखा। चारों ओर भीड़ थी कुछ लोग सहमे हुए खड़े थे, कुछ धीरे-धीरे पीछे हट रहे थे, और कुछ उसे देखकर फुसफुसाने लगे थे। लेकिन उसे ऐसा नहीं लग रहा था कि वे डर रहे हैं। नहीं, उसके कानों में जो आवाज़ें गूंज रही थीं, वे सिर्फ हंसी थीं कहीं धीमी, कहीं तेज़, कहीं ताने मारती हुई।

"वे सब मुझ पर हंस रहे हैं।"

उसके अंदर कुछ चटक गया।

उसकी ऊपरी त्वचा पूरी तरह से जल चुकी थी उसके हाथ, उसकी गर्दन, उसकी गालों की चमड़ी झुलस चुकी थी। वहाँ अब केवल कच्चा, लाल माँस था, जिस पर जलने के काले निशान बिखरे हुए थे। उसकी बाँहों की चमड़ी जगह-जगह फटी हुई थी, जिससे अंदर की मांसपेशियाँ झांक रही थीं। लेकिन अजीब बात यह थी कि अब उसे कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा था।

उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी एक ऐसी चमक, जो किसी इंसान की नहीं, बल्कि किसी ऐसी चीज़ की होती है, जो मौत को करीब से देख चुकी हो और अब उससे डरना बंद कर चुकी हो।

धीरे-धीरे, उसके होंठों पर एक शैतानी मुस्कान फैल गई।

"आग… यह आग अब मुझे कुछ नहीं कर सकती।"

उसने अपनी जली हुई उंगलियों को मोड़ा। उसकी चमड़ी खिंची, जगह-जगह से दरकी, लेकिन उसे कोई अहसास नहीं हुआ।

वह तेजी से अपनी ऑफिस बिल्डिंग की ओर बढ़ा।

नीले कांच की 12-मंजिला ऊँची इमारत के सामने पहुंचकर वह रुका। यह वही जगह थी, जहाँ उसे अपमानित किया गया था। जहाँ उसकी मेहनत को कुचला गया था। जहाँ उसे धक्का देकर बाहर फेंक दिया गया था।

कहानी आगे जारी है.......