ONE SIDED LOVE - 2 in Hindi Fiction Stories by ekshayra books and stories PDF | ONE SIDED LOVE - 2

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ONE SIDED LOVE - 2

कॉलेज का माहौल अब थोड़ा जाना-पहचाना लगने लगा था। क्लासेस अब सिर्फ लेक्चर नहीं, एक दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी थीं। अन्विता हर सुबह अपनी डायरी के पन्ने पलटती और सोचती — “आज शायद कुछ अलग हो।”

लेकिन उसके 'अलग' का मतलब अब सिर्फ एक चेहरा बन चुका था — आरव मेहता।



आरव अब उसकी आंखों की आदत बन चुका था।
कभी उसे कैंटीन की भीड़ में देखती, तो कभी लाइब्रेरी की सीढ़ियों पर बैठे हुए — कानों में इयरफोन, हाथ में कोई नॉवल या मोबाइल, और चेहरा हमेशा जैसे किसी फिल्म का हीरो हो।


वो हँसता तो ऐसा लगता कि कोई गाना चल पड़ा हो…
और जब चुप होता, तो जैसे पूरी भीड़ में सबसे अलग, सबसे गहराई वाला शख्स हो।


अन्विता अब उसकी मौजूदगी को महसूस करना सीख गई थी — बिना कुछ कहे, बिना कुछ जताए।



उस दिन क्लास में हलचल कुछ ज़्यादा थी।

"Intro to media communication" सब्जेक्ट के लिए प्रोजेक्ट अनाउंस हुआ था।

“teams of two… एक हफ्ते का टाइम मिलेगा… और बेस्ट प्रेज़ेंटेशन को कॉलेज फेस्ट में जगह मिलेगी,” प्रोफेसर मिश्रा ने कहा।


हर तरफ जोड़ी बनने लगी। कुछ पहले से ही प्लान कर चुके थे। कुछ दोस्त आपस में जोड़ी बना रहे थे, कुछ नए चेहरे नए पार्टनर ढूंढ रहे थे।


अन्विता के लिए ये प्रोजेक्ट एक और टेंशन था।
ना वो बहुत social थी, ना ही उसे किसी से बात करने की आदत थी। क्लास में कुछ लड़कियाँ थीं जिनसे हल्की-फुल्की बातचीत होती थी, लेकिन दोस्ती तक कुछ भी नहीं पहुंचा था।


वो अपनी डायरी के कोने में कुछ लिख रही थी — शायद कुछ लाइन्स जो दिमाग में आ गई थीं:

 “कुछ चेहरों से डर नहीं लगता,
बस उन्हें खोने का डर सता जाता है…”



अचानक एक छाया उसके डेस्क के पास आई।

Hey… पार्टनर मिल गया तुम्हें?”

उसने धीरे से सिर उठाया।

आरव खड़ा था।

एकदम पास।
उसका कंधा थोड़ा सा झुका हुआ था, जैसे बहुत कूल होकर बातें करता है। बाल थोड़े बिखरे हुए, जैसे जानबूझकर स्टाइल किया हो। आँखों में वही मुस्कान — जो ना पूरी थी, ना अधूरी।

अन्विता की उंगलियाँ डायरी पर जमी रह गईं।

“न-नहीं,” उसने हकलाते हुए कहा।

आरव ने मुस्कुराकर कहा, “तो कर लें टीम? वैसे भी मुझे अभी तक कोई मिला नहीं, और तुम सीरियस लगती हो… तुम्हारे साथ प्रोजेक्ट अच्छा हो जाएगा।”

अन्विता को समझ ही नहीं आया कि क्या कहे।

इतना सिंपल था सब?

“हाँ… ठीक है,” उसने धीरे से कहा।

“Cool! Then we’re a team,” आरव ने हाथ बढ़ाया।

एक सेकंड की हिचकिचाहट के बाद उसने हाथ मिलाया।

उसका स्पर्श हल्का था, पर दिल पर गूंज तेज़ थी।



लंच ब्रेक में पहली बार दोनों एक ही टेबल पर बैठे।

“तो तुम लिखती हो?” आरव ने डायरी की तरफ इशारा किया जो अन्विता ने अब तक बंद भी नहीं की थी।

“हाँ, बस यूँ ही… जब दिल करे"  उसने धीरे से कहा और डायरी बंद कर दी।

आरव ने मुस्कुराते हुए कहा, “Interesting… तुम्हें देख के लगता नहीं कि तुम इतना सोचती हो।”

अन्विता ने पहली बार उसकी आँखों में झाँका — वो आँखें जो देखने से ज़्यादा समझती थीं।

“शायद हर कोई वैसा नहीं होता जैसा दिखता है…” उसने हल्के से जवाब दिया।

आरव थोड़ा मुस्कुराया और बोला, “ये प्रोजेक्ट मज़ेदार रहेगा।”

वो बस सिर झुकाकर मुस्कुरा दी। उसे नहीं पता था कि ये प्रोजेक्ट सिर्फ एक असाइनमेंट नहीं, उसकी ज़िंदगी की दिशा बदलने वाला था।