घर के बड़े– हर्षवर्धन, रागिनी, वर्मा परिवार और कपूर परिवार – ड्रॉइंग रूम में एकत्रित थे। आपस में बाते करते हुए सभी के चेहरों पर मुस्कान झलक रही थी, और उनकी हँसी-ठिठोली से पूरा घर गूंज उठा था।
बड़ों की ही तरह उनके बच्चे भी अपने ही अंदाज़ में मस्ती कर रहे थे। उनके साथ जय, बहन के साथ था, और श्रेया, राखी भी वहां मौजूद थीं। वे सभी सेहगल हाउस के बगीचे में बैठे हुए थे।
काव्या आराम से लेटी हुई थी, ताकि उसकी पीठ की तकलीफ़ न बढ़े। उसके पास ही आकाश बैठा था, जिसकी गोद में काव्या ने अपना सिर रखा हुआ था। रोनित आकाश के पैरों से कुछ दूरी पर बैठा था, और काव्या का हाथ उसके कंधे के पास टिका हुआ था। रोनित उसकी उंगलियों को बड़े स्नेह से धीरे-धीरे दबा रहा था।
उनके सामने वाले सोफ़े पर आकाश, विध्या और श्रेया बैठे थे। आकाश की दाहिनी ओर सुहानी बैठी थी, और सुहानी के ठीक सामने एक सिंगल सोफ़ा चेयर पर मायरा खन्ना मौन बैठी थी। उसके वहां होने से ही रोनित का मूड कुछ बिगड़ गया था।
रोनित के ठीक पास राखी बैठी थी। दोनों ज़मीन पर बिछे गद्दों पर सोफे से टिका कर बैठे हुए थे। अभी भी तीन कुर्सियाँ खाली थीं। बीच में रखी मेज़ पर स्वादिष्ट खाना, आइसक्रीम, चॉकलेट्स और कटे हुए फल सजे हुए थे।
"राखी..." काव्या ने अचानक उसे पुकारा।
राखी ने हल्के स्वर में "हूँ?" कहा।
काव्या ने मुस्कराते हुए पूछा, "कैसी रहीं तुम्हारी छुट्टियाँ? क्या किया इतने दिनों में?"
"मज़े किए, और क्या ही किया होगा?" रोनित ने चिढ़ते हुए कहा।
"बिलकुल मज़े किए। किसी की चिक-चिक से दूर रहकर बहुत सुकून मिला। अहमदाबाद में थी, तो गरबा खेला। और इसमें कोई शक नहीं कि वहाँ की नवरात्रि सबसे शानदार होती है।" राखी ने रोनित को घूरते हुए कहा।
"नवरात्रि इन अहमदाबाद... बहुत सुना है, बहुत ही होती है वहाँ की रौनक।" सुहानी ने उत्साह से कहा।
"बिलकुल! इस बार तो इधर आ गई, वरना हर वर्ष वहीं होती थी।" विद्या ने कहा।
"तुम्हें कैसे पता?" काव्या ने आश्चर्य से पूछा।
"मैं बी.जे. मेडिकल कॉलेज, अहमदाबाद में एमबीबीएस कर रही हूँ," विध्या ने उत्तर दिया।
"ओह..." काव्या ने संक्षिप्त प्रतिक्रिया दी।
"आप लोग नवरात्रि कैसे मनाते हैं?" विध्या ने आतुर होके पूछा।
"बस, कभी-कभार कोई गुजराती बिजनेस पार्टनर हम पर दया कर दे तो गरबा खेलने बुला लेते हैं," रोनित ने व्यंग्यपूर्वक कहा।
उसे सुनकर सभी हँस पड़े।
कुछ देर तक सभी अपने-अपने अनुभव साझा कर रहे थे, क्योंकि उनमें से कई एक-दूसरे से पहली बार मिल रहे थे।
बातचीत चल ही रही थी कि मायरा का ध्यान सुहानी के पीछे की ओर गया। एक आदमी बिना किसी आहट के दबे पाँव उसकी ओर बढ़ रहा था। उसने काली ब्लैक पैंट सफेद शर्ट और काला ओवरकोट पहन रखा था। उसके बाल भी अच्छी तरह से सेट थे। वह अत्यंत आकर्षक लग रहा था। जैसे ही मायरा को उसका चेहरा स्पष्ट दिखा, वह स्तब्ध रह गई। वह कुछ कहती, इससे पहले ही उस आदमी ने अपने दोनों हाथ सुहानी की आँखों पर रख दिए।
उसके स्पर्श मात्र से सुहानी खिल उठी, "भैया!"
जिससे सबका ध्यान उस ओर चला गया। सुहानी खड़ी होकर अपने भाई से लिपट गई, "मैंने आपको बहुत मिस किया।"
"मैंने तुमसे भी ज़्यादा किया," आदित्य ने चारों ओर देखते हुए कहा, "लगता है किसी और ने तो मुझे याद ही नहीं किया।"
"काव्झ.." रोनित ने उसे अनदेखा करते हुए काव्या को पुकारा।
"येह.. ब्रो।" काव्या ने प्रत्युत्तर दिया।
डोंट यू फिल एन अनवांटेड एनर्जीफील अराउंड उस, सिडनली? सीमथिंग लाइक डार्क औरा।" रोनित ने कहा।
"हां..." आकाश ने उसकी बात का समर्थन किया।
मैंने तुम्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया। बस कहीं फँस गया था..." आदित्य ने सुहानी की कुर्सी के पास बिछे गद्दे पर बैठते हुए कहा, "ज़िंदगी और मौत के बीच।"
"अब निकल आए हो उस फंदे से?" काव्या ने ताने भरे स्वर में पूछा।
"ऑफकोर्स। किसी में इतनी हिम्मत नहीं है कि मुझे मेरी इच्छा के खिलाफ काम करवा सके।" आदित्य ने खुद पर अभिमान करते हुए कहा।
"ज्यादा हो रहा है अब इसका।" आकाश ने प्रतिक्रिया दी।
जय, विध्या और श्रेया, वहाँ चल रही बातों से अनजान थे। उन्हें अभी तक यह भी समझ नहीं आया था कि यह नया इंसान कौन है। दूसरी ओर, मायरा वहाँ उपस्थित होते हुए भी इन बातों में नहीं थी। वह अपने विचारों में खोई हुई थी और अचानक बिना कुछ कहे वहाँ से चली गई। रोनित ने उसे जाते हुए देखा, पर उसे किसी से कहना आवश्यक नहीं समझा और अपना ध्यान फिर से आदित्य की ओर केंद्रित कर लिया, जो अब भी अपनी तारीफ़ों के पुल बाँध रहा था।
"ब्रो.." रोनित ने कहा, "मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जो तुम्हें तुम्हारी मरज़ी के खिलाफ कंट्रोल कर सकता है।"
"इसक्यूज़ मी?" आदित्य ने उसकी बात सुनते ही कहा।
"वैसे वह यहीं पर है..." आकाश ने उसे छेड़ते हुए कहा। आदित्य का रिएक्शन देखकर काव्या के होठों पर एक शरारती मुस्कान थी
"जान तो आज जानी ही है..." आदित्य ने धीमे से बड़बड़ाया।
"यह सब छोड़ो गाइज, हमारे साथ कुछ गेस्ट भी हैं," सुहानी ने टोकते हुए कहा।
उसकी बात सुनकर आदित्य का ध्यान आस-पास बैठे अन्य लोगों की ओर गया, "हाई, मिस सूद। आज आप कुछ शांत-सी प्रतीत हो रही हैं।"
"हाई. नहीं, बस आपकी बातों को ध्यान से सुन रही थी," राखी ने हल्की सी चिढ़ि हुई आवाज में कहा।
"आपने भी अपने बॉस के साथ रहकर बातों तने मरण सीखा गई है।" उसके बाद उसका ध्यान दायीं ओर बैठी एक लड़की पर गया, फिर तुरंत आकाश की ओर, जो पहले ही मुस्कुरा रहा था। आदित्य समझ गया कि वह श्रेया है।
उसने श्रेया की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा, "आपके बारे में बहुत कुछ सुना है मेने। मिलकर अच्छा लगा। आदित्य वर्मा।"
"हेलो। श्रेया अवस्थी," श्रेया मुस्कुराई।
"आप.. ही डॉक्टर जय हैं, राइट?" आदित्य ने पूछते हुए हाथ हिलाया।
"हाँ। मिस सेहगल का डॉक्टर।" जय ने प्रोफेशनली जवाब दिया।
"आदित्य वर्मा। आपकी मिस सेहगल के दोस्त भी, और थोड़े से एडिश्नल भी, और सीनियर भी, यह बात अलग है कि ये मानती नहीं।" उसकी बात पर जय ने काव्या की ओर देखा, जो पहले से ही उसकी ओर देख रही थी। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान और आँखों में चमक थी। उसे देख जय अपनी नजरे उससे हटा नहीं पाया। काव्या ने जब उसे अपनी ओर देखता पाया, तो उसके गाल थोड़े गुलाबी हो गए। उसने नज़रें चुराईं और इधर उधर देखने लगी। ऐसे उसका ध्यान श्रेया की ओर गया। जो उसकी तरफ देख मुस्कुराई। श्रेया की मुस्कान देखकर वह समझ गई कि जो भावना उसने अभी-अभी अनुभव की, वह श्रेया भी भाँप गई है। काव्या ने आकाश की गोद में मुँह छुपाने का निष्फल प्रयास किया।
"सब ठीक है, प्रिंसेस?" काव्या के असहज होते ही आकाश ने धीरे से पूछा।
उसने केवल 'हूँ' कहकर उत्तर दिया।
"वैसे, यह छोटी बच्ची कौन है?" आदित्य ने विध्या की ओर इशारा करते हुए पूछा।
"मैं छोटी नहीं हूँ। इक्कीस वर्ष की हूँ। विध्या। विध्या राजशेखर," उसने उत्तर दिया।
"ओह... तो आप इनकी बहन हैं?" आदित्य ने जय की ओर संकेत करते हुए पूछा।
उसने सिर हिलाकर सहमति जताई।
"भाई... अब जब आप आ चुके हैं और सबसे आपकी मुलाकात भी हो चुकी है, तो क्या अब हम गेम शुरू कर सकते हैं?" सुहानी ने अधीर होकर पूछा।
"मैं भी यही सोच रहा था कि आज मेरी बहन इतनी शांति से कैसे बैठी है?" उसकी बात पर सब हँस पड़े।
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Continues in the next episode...........
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