Ek Ladki sabke saath wo Sab Karti - 4 - Last part in Hindi Women Focused by Rakesh books and stories PDF | एक लड़की सबके साथ वो सब करती - 4 - (अंतिम भाग)

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एक लड़की सबके साथ वो सब करती - 4 - (अंतिम भाग)

नैना की साँसें अब तेज़ थीं। उस टूटी कब्र के भीतर रखा आईना उसे खींच रहा था, जैसे किसी और दुनिया का दरवाज़ा हो।

वो झुकी।  
उसने टॉर्च नीचे डाली…  
आईना एकदम साफ़ था — खौफनाक हद तक साफ़।

जैसे ही उसने झाँक कर देखा…  
उसमें उसका चेहरा नहीं था।

बल्कि वहाँ एक दूसरी "नैना" थी —  
वो नैना जो पहले रात में लड़कियों को लुभाती थी,  
फिर सुबह उनकी चीखों को दीवारों में बंद कर देती थी।

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आईने से एक आवाज़ आई:

"तू अब भी सोचती है तू एक विक्टिम थी? नहीं दीदी… तू गुनहगार थी। रिया तो सिर्फ तेरे पापों की आवाज़ थी।"

नैना पीछे हटने लगी… लेकिन उसके पाँव अब मिट्टी में धँस रहे थे।

कब्र उसे निगल रही थी।

वो चिल्लाई, लेकिन आवाज़ लौटकर आई —  
"ना चिल्ला नैना… अब तेरा confession शुरू होता है।"

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अगले ही पल, मिट्टी की सिल्लियाँ अपने आप हटने लगीं।  
कब्र के नीचे एक सीढ़ी दिखी — जो काले अंधेरे में उतर रही थी।

टॉर्च की रौशनी जैसे अंदर जाते ही बुझ गई।  
पर अब रास्ता एक ही था — अंदर जाना।

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वो सीढ़ियों से नीचे उतरी —  
नीचे एक कमरा था, जिसमें दीवारों पर सभी लड़कियों की तसवीरें थीं, जिनके साथ नैना ने "वो सब" किया था।

रिया की तस्वीर बीच में थी —  
पर उसकी आँखों से अब खून नहीं, अंधेरा बह रहा था।

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और अब कमरे के बीचोंबीच एक कुर्सी थी,  
जिस पर किसी ने खुद नैना के नाम का सुलहनामा रखा था:

"या तो सच बोल दे… या झूठ में मर जा।"

और तभी…  
दरवाज़ा बंद हो गया।

कमरे में सिर्फ अंधेरा बचा — और वो आवाज़:

"अब तेरा सच हम बताएँगे… दीदी…"


कमरा अब बिल्कुल शांत था, लेकिन उस ख़ामोशी में भी कोई बुदबुदा रहा था। नैना के कानों में वो आवाज़ गूंज रही थी:

"या तो सच बोल दे… या झूठ में मर जा…"

उसने काँपते हाथों से कुर्सी पर रखा सुलहनामा उठाया। जैसे ही उसकी उंगलियाँ उस कागज़ को छूती हैं… दीवारें थरथराने लगती हैं।

हर तस्वीर से खून बहने लगता है…  
रिया की तस्वीर से सबसे ज़्यादा।

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तभी दरवाज़े के कोने में बैठी एक आकृति उठती है।

लड़की जैसी…  
लेकिन चेहरा नहीं दिखता… बस बाल हैं, जो उसकी आँखों पर लटके हैं।

वो धीरे-धीरे नैना की तरफ बढ़ती है।

"मुझे कब मारा था तूने?"  
उसकी आवाज़ रिया जैसी थी — पर जैसे कांटों से बनी हो।

नैना पीछे हटने लगी —  
"मैंने किसी को नहीं मारा… सब अपनी मर्ज़ी से…"  
"झूठ!"

एक ज़ोर की चीख और कमरा लहूलुहान हो जाता है। दीवारें नैना की ही चीखों से भर जाती हैं —  
"प्लीज़… माफ़ कर दो…"

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पर अब माफ़ी का वक्त नहीं था।

रिया की आकृति अब ठीक नैना के सामने थी।  
उसकी उंगलियाँ अब नैना के चेहरे पर थीं —  
एक उंगली से उसने उसकी आँखों के नीचे छूआ…

"तू दूसरों को अँधेरा दिखाती थी, अब देख अपना अँधेरा…"

और फिर…

रिया ने अपने बाल हटाए —  
उसका चेहरा अब नैना जैसा था।  
बिलकुल हूबहू।

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अब दो नैना थीं उस कमरे में।  
एक — जिसने गुनाह किए थे।  
दूसरी — जो उन गुनाहों की परछाई बन गई थी।

टॉर्च अपने आप जल गई।  
कमरे की दीवार पर लिखा था:

“अब तू ही रिया है… और रिया अब आज़ाद है।”

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दरवाज़ा खुलता है…  
रिया (अब असली शरीर में) बाहर चली जाती है।

नैना — अब कमरे में अकेली नहीं है, बल्कि वो कमरा उसी का नया शरीर बन गया है।

जिस किसी ने अब उस गुनाह की राह पकड़ी,  
उसका आईना… नैना बनकर इंतज़ार करेगा।

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अब जो भी आईने में खुद को देखेगा,  
वो पहले खुद को देखेगा…  
और फिर… नैना को।

The end?