Vo Jo kitabo me likha tha - 3 in Hindi Detective stories by nk.... books and stories PDF | वो जो किताबों में लिखा था - भाग 3

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वो जो किताबों में लिखा था - भाग 3

भाग 3 – परछाई का सच

कमरे की हवा भारी हो गई थी। आरव की धड़कनों की आवाज़ जैसे पूरी हवेली में गूंज रही थी। वह घुटनों के बल गिर पड़ा। वो परछाई अब उसकी तरफ बढ़ रही थी—हर कदम पर फ़र्श की लकड़ी चीख रही थी।

"कौन... कौन हो तुम?" आरव ने कांपती आवाज़ में पूछा।

परछाई मुस्कराई, "मैं वो हूँ... जो तुम बन सकते हो — अगर तुम किताब के आदेशों को नहीं मानते। मैं हर उस इंसान की परछाई हूँ जिसने इसे नज़रअंदाज़ किया।"

आरव की आँखें फैल गईं। मतलब ये परछाई… उसकी अपनी हो सकती थी?

"तो क्या मैं भी...?"

"हाँ। तुम भी खो सकते हो — अगर तुमने अगला निर्णय गलत लिया।"

तभी दीवार पर एक नया दरवाज़ा उभरा। किताब अचानक ज़मीन से हवा में उठ गई और उसमें नया पन्ना चमकने लगा:

> "तीसरे आदेश के बिना कोई आगे नहीं बढ़ सकता —
दरवाज़े के पीछे छिपा है एक नाम।
उस नाम को जानने के लिए अपने सबसे प्रिय स्मृति का बलिदान दो।"



आरव ने आंखें बंद कर लीं। उसके ज़हन में माँ की मुस्कान उभरी — वह स्मृति जिसे वह कभी भूल नहीं सकता था। लेकिन अब वही स्मृति दांव पर थी।

“नहीं… मैं ऐसा नहीं कर सकता,” उसने धीमे से कहा।

परछाई हँसी, “तो तुम यहीं रहोगे — इस हवेली का हिस्सा बनकर, अगले पाठक के लिए एक चेतावनी बनकर।”

आरव के सामने विकल्प दो ही थे — या तो अपनी सबसे प्रिय याद को छोड़कर दरवाज़े के पार जाए, या फिर हवेली में खो जाए... हमेशा के लिए।

वो पल... जब उसने अपनी माँ की मुस्कान आख़िरी बार याद की — और किताब ने वो याद निगल ली।

दरवाज़ा खुल गया।

दूसरी तरफ… धुंध थी। और एक चेहरा… किसी लड़की का… जो उसे घूर रही थी।

“तुम…?” आरव बुदबुदाया।

“मैं… तुम्हें जानती हूँ,” उसने कहा। “क्योंकि मैं भी… किताब की हूँ।”
आरव उस लड़की की आँखों में देखता रहा — गहरी, धुंधली और रहस्यमयी। उसकी आवाज़ में एक ठंडक थी, लेकिन शब्दों में एक गहराई जो आरव को खींच रही थी।

"तुम कौन हो?" आरव ने धीरे से पूछा।

"मेरा नाम नायरा है," उसने जवाब दिया। "मैं कभी एक पाठक थी… इस किताब की तरह तुम्हारी ही उम्र की। लेकिन मैंने चौथे आदेश का विरोध किया… और तब से मैं इसी संसार में फँसी हूँ।"

आरव ने हैरानी से पूछा, "क्या बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं?"

नायरा की आँखों में दर्द उभरा, "शायद है… लेकिन इसके लिए दो आत्माओं का बलिदान चाहिए – एक जो किताब से बंधी हो, और एक जो उसे मुक्त करना चाहे।"

आरव के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। अब ये सिर्फ किताब नहीं थी, ये एक जाल था — और नायरा उसकी चाबी।

"क्या तुम बाहर जाना चाहती हो?" आरव ने पूछा।

नायरा मुस्कुराई, "मैं भूल चुकी हूँ कि बाहर कैसा होता है… लेकिन अगर तुम तैयार हो, तो शायद हम दोनों निकल सकें।"

किताब फिर चमकी — और अब एक नया आदेश था:

> "यदि तुमने साथ चलने का निर्णय किया है, तो अगला पन्ना खोलो — लेकिन ध्यान रहे, एक झूठ… सब कुछ बदल देगा।"

आरव और नायरा ने एक-दूसरे की आंखों में देखा। बिना कुछ कहे, उन्होंने अगला पन्ना खोला। हवेली की दीवारें कांप उठीं… कहानी अब और भी गहराई में उतर रही थी।



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[भाग 4 में जारी…]


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