भाग 2 – किताब का पहला आदेश
आरव की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। किताब अब उसकी मेज़ पर ऐसे रखी थी जैसे वो उसे घूर रही हो। कमरे का तापमान अचानक कम हो गया था, और खिड़की के बाहर की हवा में भी अजीब-सी सरसराहट थी।अचानक किताब के पन्ने फिर से अपने आप पलटने लगे। इस बार उसमें एक पूरा अनुच्छेद उभरा:> "यदि तुमने इसे पढ़ लिया है, तो अब पीछे हटना असंभव है। तुम्हें पहले आदेश का पालन करना होगा — ‘पुरानी हवेली की तीसरी मंज़िल पर जो दरवाज़ा बंद है, उसे खोलो।’"आरव कांप गया। वह जानता था, उस हवेली के बारे में अफवाहें हैं – लोग कहते थे, वहाँ रात में किसी के कदमों की आवाज़ आती है, और तीसरी मंज़िल पर कोई सदीयों से बंद दरवाज़ा है, जो कभी खुला नहीं।“ये पागलपन है,” उसने खुद से कहा। लेकिन जैसे ही उसने किताब को बंद करना चाहा, उसके हाथ जलने लगे — किताब गर्म हो गई थी जैसे आग सी पकड़ ली हो। आरव ने हाथ खींच लिया।अब कोई विकल्प नहीं बचा था।---अगली रात – पुरानी हवेलीकाली रात, सूनी हवेली और आरव का कांपता हुआ दिल।हवेली के अंदर घुसते ही सन्नाटा गूंजने लगा। लकड़ी की सीढ़ियाँ चरमराईं। उसने अपनी टॉर्च निकाली, पर उसकी रोशनी भी अजीब सी मंद पड़ गई।तीसरी मंज़िल पर पहुंचते ही दरवाज़े से ठंडी हवा का झोंका आया। दरवाज़ा वैसा ही था — लोहे की जंजीरों से जकड़ा हुआ। लेकिन जैसे ही आरव ने पास पहुंचकर किताब को अपनी जेब से निकाला… जंजीरें खुद-ब-खुद गिर गईं।दरवाज़ा खुला। भीतर घुप अंधेरा था।आरव ने कदम बढ़ाया — और उसकी टॉर्च बुझ गई।“क…क…कौन है?” उसने कांपती आवाज़ में कहा।एक धीमी फुसफुसाहट आई —"तुमने हमें ढूंढ ही लिया…"।
आरव की सांसें तेज़ हो गईं। अंधेरे में उसकी आंखें कुछ भी नहीं देख पा रही थीं, लेकिन वह उस फुसफुसाहट को साफ़ सुन सकता था। वह पीछे हटना चाहता था, मगर उसके पैर जैसे ज़मीन से चिपक गए थे।
अचानक एक नीली रौशनी कमरे के भीतर चमकी। दीवारों पर पुराने चित्र थे—पर उन चित्रों की आंखें हिल रही थीं… जैसे वे ज़िंदा हों।
आरव की निगाह सामने एक छोटी-सी मेज़ पर गई, जहाँ वही किताब खुली रखी थी। लेकिन ये कैसे हो सकता था? किताब तो आरव के बैग में थी!
किताब के पन्ने फिर पलटने लगे और अगला आदेश उभरा:
> "दूसरे अध्याय की शुरुआत होगी रक्त की बूंद से… चुन लो – सत्य या बलिदान।"
आरव के माथे पर पसीना आ गया। तभी कमरे के कोने में एक परछाई उभरी – एक लड़का, लगभग आरव जितना ही, मगर उसकी आँखें काली थीं और चेहरा वैसा ही जैसे आरव का अक्स हो।
"मैं वो हूँ जो किताब ने छोड़ा था… अब तुम बचे नहीं हो," परछाई बोली।
आरव चीख कर पीछे हट गया, लेकिन दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।
अब किताब ने उसे कैद कर लिया था।
कहानी अब उसकी नहीं थी — वो खुद एक कहानी
बन चुका था।
क्या आरव अब भी जीवित रहेगा? या किताब का अगला पन्ना किसी और की कहानी लिखेगा? आगे जानने के लिए पढ़ते रहे "वो जो किताबों में लिखा था"–सिर्फ matru bharti aap par ....... ......
[भाग 3 में जारी...]
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