Politics in Hindi Fiction Stories by Yash Singh books and stories PDF | राजनीति

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राजनीति

कितना अच्छा होता अगर सब इंसान एक जैसे होते। सभी का धर्म एक होता ,सभी की जात एक होती। फिर धर्म के नाम पर होने वाले ये सियासती झगड़े रुक जाते। ना किसी मंदिर पर विवाद होता, ना किसी मस्जिद पर। लेकिन मेरा भारत देश हमेशा से ही धर्म और जात के नाम पर लड़ता आ रहा है। यहां धर्म की राजनीति चलतीं है। हिन्दू मुस्लमान को आपस में लड़ा कर सरकारे बनती हैं। और ये सरकार गरीबों का शोषण करती है। युवाओं को कोई रोजगार नहीं ,शिक्षा नीतियों में कोई सुधार नहीं। लड़किया आज भी सुरक्षित नहीं हैं। पहले तो ढंग के स्कूल नहीं। अगर मान लो किसी तरह से बच्चा पढ़ भी लिया तो आजकल compitation इतना है है कि उसे नोकरी नहीं। आज के दौर में इंसान करें तो क्या करें? हर बार इस उम्मीद से अपना नेता चुनता है कि शायद अब देश का विकास हो जाए, शायद अब अच्छे दिन आ जाए। लेकिन ऐसा होता नहीं है हर बार उसकी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है। 
घनश्याम एक राजनीति की किताब में ये सारी बातें पड़ रहा था। किताब कोई जाने माने author की रही होगी। जिसने उसे इतना प्रभावित कर दिया कि उसका भी मन नेता बनने का करने लगा।जैसे ही किताब खत्म हुई वो झट से उठा और अपने कमरे कि तरफ बढ़ दिया। जब वो कुछ देर बाद कमरे से बाहर आया तो उसका getup देखने लायक था। उप्पर से नीचे तक उसने सफेद कुर्ता और पजामा पहन रखा था। पैरों में नेताओं की जूती चोंच वाली पहन रखी थी।
अरे मम्मी पापा कहा है घनश्याम बोला 
बाहर गार्डन में बैठकर चाय पी रहे है सुरेखा किचन से बोली। घनश्याम गार्डन की ओर चल दिया। जब वो अपने पिता के पास पहुंचा तो उसने देखा कि उसके पिता भी वही बुक पढ़ रहे है। 
पापा मुझे नेता बनना है मुझे भी राजनीति सीखनी है घनश्याम बोला। 
अरे तेरे बस का नहीं है उसके पापा बोले 
नहीं मुझे कुछ नहीं पता कैसे भी करो मुझे आज ही राजनीति सीखा दो घनश्याम फिर से बोला। अच्छा तुम्हें राजनीति सीखनी है अभी सिखाता हूँ। एक काम करो उप्पर छत पर जाओ। पापा बोले। घनश्याम ने अपने पापा की बात सुनी और वो छत पर चला गया। घनश्याम छज्जे पर खड़ा होकर बोला हाँ पापा पहुंच गया अब क्या करना है? 
उप्पर से खुद जाओ मैं तुझे पकड़ लूँगा पापा ऊँचे स्वर में बोले।
 नहीं पापा मुझे डर लग रहा है घनश्याम बोला। अरे कुछ नहीं होगा खुद जाओ मैं पकड़ लूँगा पापा बोले। अपने पिता की यह बात मानकर घनश्याम उप्पर से खुद गया लेकिन पापा दोनों हाथ पीछे बांधे खड़े रहे बेटे को नहीं पकड़ा। बेटे की पैर की हड्डी टूट गयी। गंभीर हालत में होते हुए भी बेटा अपने पिता से यह प्रश्न पूछता है पापा अपने मुझे पकड़ा क्यों नहीं। पिता जी मुस्कुराए और बोले राजनीति का पहला सबक कभी अपने बाप पर भी भरोसा मत करना। राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। घनश्याम को राजनीति समझ आयी हो या ना आयी हो पर एक बात समझ में आ गयी राजनीति करने के लिए कमिनापन चाहिए जो सीखा नहीं जाता। वो तो जन्म से ही होता है। जो जितना ज्यादा कमिना उतना बड़ा नेता।