मैं अगर आपसे पूछूं की प्रेम की क्या परिभाषा है?तो आपके उत्तर अलग अलग होंगे कई लोग नयी नयी परिभाषाएं देंगे। कोई कहेगा लगाव ही प्रेम है। लेकिन थोड़ा रुकिए और विचार कीजिए जिस प्रेम को मोती बनाकर शब्दों की माला में पिर जाए वो सच्चा प्रेम नहीं। प्रेम किसी शब्द का मोहताज नहीं।
प्रेम तो वो ओस की बूंद है जो अगर पुष्प पर गिर जाए तो शबनम बन जाती है । सरिता (नदी) सिंधु (समुद्र ) की व्याकुल बहाओ में लीन हो जाने के लिए दौड़त चली जाती है।रूपहली चाँदनी और सुनहरी रेशमिया सरिता की लहरों पर थिरक थिरक कर उसे मोहित कर देना चाहती है। हम देखते है कि प्रकृति की हर चीज अपने अस्तित्व को एक दूसरे में खोकर ही अपने आप में पूर्ण होती है।
प्यार बड़ी अजीब चीज है , किसी से भी हो जाता है। कोई जब पहली नजर में ही पसंद आ जाए तो सब कुछ उस पर न्यौछावर कर देने का मन करता है। आज एक ऐसी ही करुण कहानी लेकर आया हूँ जो पंक्तियों के रूप में चलेगी। आज जैसे ही भोर हुई सूरज की पहली किरण खिड़की के कांच से पार होकर ध्रुव के कमरे में आयी। रोशनी की चमक से ध्रुव की आँखें खुल गयी। लेकिन आज कुछ उसकी आँखे सूजी हुई थी लगता है पूरी रात रोया था बेचारा। आखिर क्या बात है जो उसे अन्दर ही अन्दर खाए जा रही है। ये बात जानने के लिए चलते हैं हम कुछ दिन पीछे जब वो आखिरी बार तारा से मिला था। तारा कुछ संतों के साथ मंदिर में कीर्तन कर रही थी। ये वही तारा है जो कभी उसकी प्रेमिका हुआ करती थी। सब सही चल रहा था लेकिन अचानक तारा ने ध्रुव से मिलना बंद कर दिया। आज जब तारा उसे सत्संग में मिली तो उसके सब्र का बाँध टूट गया और वह तारा से कहता है------ मेरे दिल की बगिया उजड़ गयी ,
लुट गयी अरमानो की डाली।
चेहरे का नूर भी फिका पढ़ गया ,
हल्की पढ़ गयी होठों की लाली।।
इस वियोग को कैसे झेलू मैं,
तू किसी और की हो गयी कैसे सह लूँ मैं।।
क्या कमी रह गयी थी मेरे प्यार में,
मुझे तो रब दिखता था तेरे दीदार में।।
कैसे बताऊ माँ को कि तू छोड़ गयी
कैसे समझाऊ ख़ुद को की तू मुह मोड़ गयी।।
विश्वास उठ गया अब इश्क से मेरा,
खानाबदोश बनकर रह गया ये आशिक तेरा।।
भले ही बदनाम हो जाए इश्क मेरा इस संसार में,
ताउम्र अकेला रहूँगा तेरे इंतजार में।।
ये सुनकर तारा की आखें नम हो गयी और वह बेसुध सी होकर ध्रुव से बोली-'----
ना जाने कैसा मुगालता(गलतफहमी)है तुझे
बार बार रब बदलने का शौक नहीं है मुझे
चाह तुझे सिर्फ चाह तुझे पूजा है दिन रात
तेरे तो सिर्फ दिल की बगिया उजड़ी है
मेरे तो आसमान का उजड़ गया महताब (चन्द्रमा )
ना खिल सकीं तेरे प्यार की कलि
उसपर थी किसीकी नजर बुरी
एक रोज़ जब तू तन्हा छोड़ गया
कोई और इस कलि को नोच गया
किस मुहँ से तुझे बताती मैं
तेरे लायक ना रह सकी
कैसे समझाती मैं
तोड़ ली मैंने हाथों की चूडियां
उतार ली पैरों की पैजनिया
वैराग्य को मैंने साध लिया
कृष्ण तुझे मानकर मैंने मीरा सा प्यार किया।। इस कहानी में सच्चा इश्क किसने किया ध्रुव ने या तारा ने। एक ने आजीवन अविवाहित रहने का फैसला कर लिया और एक ने वैराग्य के मार्ग को चुन लिया।