Manzile - 22 in Hindi Human Science by Neeraj Sharma books and stories PDF | मंजिले - भाग 22

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मंजिले - भाग 22

            "   चमक " 

 कहानी सगरे की मार्मिक कहानी जो पेश हैं, जीवन की अचनाक बीती कुछ गतिविधि जो कभी सोचा भी नहीं था। मजदूर अब भीड़ से अकेला रहता हैं, पता कयो, आधुनिक जीवन ने उसका रोजगार छीन लिया हैं। बड़ा दुखदायी समय हैं, एक समय की अब रोटी भी नहीं जुड़ती। पता कयो ? समझ मे आता हैं कुछ, हम आधुनिक हो गए हैं, बहुत दूर तक पुलाड़ से जा चुके हैं। अब मजदूर का काम दस वाली एक मशीन अकेला 

कर देती हैं, सोचे तो नथू अब बच्चों को भर पेट खाना चावल कैसे खिलायेगा। मजदूरी आटे वाली चकी मॉडर्न लग गयी हैं..... नथू सोच रहा हैं, अब कया हो गा। प्रगीति 21 वी सदी का आधुनिक करन हो गया हैं। 

                       पहले वो चकी बिजली की पटे चाड़ कर चलाता था, कभी कभी बंद भी कर देता था, पर अब नहीं होगा ऐसा कुछ भी, एक वार मे ही बोरे कनक के डाल दो, पैक हो कर आटे के निकल आएंगे... इस मे एक पढ़ा लिखा नौजवान चाइये बस, बाकी सब हो जाएगा। इस मे नथू की जरूरत नहीं हैं, पेकिंग की जरूरत नहीं हैं, खुद ही गुशा धागो का डाल दो, फिर शुरू पेकिंग का तरीका। कया कोई समझ सकता हैं..नथू अब कया करे। बच्चे तीन, झूपड़ी वालो के तीन बच्चे भी ऐसे होते हैं, थोड़ा सा विनोद किया.. तो बस गरीब के और गरीब जन्म ले लेगे। एक विनोद प्यार कही अमीर करे, तो बस बच्चा होये ही न, कयो ?? आधुनिक करन इनके घरो मे भी हैं, गरीब के नहीं... नथू जगाड़ सोच रहा था, अब कया करेगा??? बच्चे पढ़ाने कहा हैं, खाने के लाले पड़े हैं, चलो एक बिटिया हैं उसे तो पढ़ाना लाजमी बनता हैं, हाँ आपना आप वेच कर भी पढ़ाऊंगा... जरूर।

                              चलो एक दो दिन काम की तलाश मे खाली ही रहा नथू, बच्चे ऊपर जालम ने कयो गुसा निकाल दिया।

चलो किसी ऊपर तो निकलना ही था। बिस्कुट के कारखाने मे बिस्कुट बनाने का काम निकल आया। दो महीने किया बस। पांच हजार मे आता कुछ नहीं  हैं, दो सो रूपये तो बिल्लू बादशाह की दरगाह मे धक्के से चढ़ता था, थक कर हार कर काम ही छोड़ दिया।

छोटे को मजदूरी मे धकेला, कया होता फिर, बीड़ी का चोखा शौकीन हो गया, मिथुन की तरा डिस्को करे... लाला ने कूट दिया... " कल से मत आ मिठु बनता हैं कमबख्त.. " बीड़ी की लत थी। अब घर मे मन नहीं लगा, फिर काम को निकला, बनारस निकल गया। घाट पे लासे उठाने को... बहुत दुखभरी जिंदगी थी। लाशें उठा ते उठाते दिल पथर हो गया था। मिलता था, ऊपर से अच्छे पैसे बनते.. गांव गया.. तो दस पंद्रहा हजार हाथ मे रखे। " कया करता हैं, छोटे। " बड़े ने पूछा। " बोलू तो तुम कूटने लगो गे। " 

बाप नथू बोला " काहे चोरी करते हो। " 

"नहीं घाट पे बनारस के लाशें उठाते हैं, बापू। " एक दम से स्नाटा छा गया। " काहे ये इलाहबाद मे मजदूरी माड़ी लगे। " बापू ने कहा, " चंडाल का काम करे हो , तो कया समझे, ये पैसे पच जायेगे। " कमबख्त हो " 

" पेसो पर लिखा हैं चंडाल के पैसे हैं। " छोटे ने नुथने भर के कहा।

बापू चुप था, "हाँ बड़े को भी ले जा.... मैं यही कुछ करता हू। " चावल और मछी रज कर पहली वार जैसे सब ने खायी हो। "-------"

( चलदा )                नीरज शर्मा।