Tum hi ho Mera Jahaan - 1 in Hindi Love Stories by Archana Pardhi books and stories PDF | तुम ही हो मेरा जहाँ - भाग 1

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तुम ही हो मेरा जहाँ - भाग 1

  • "तुम ही हो मेरा जहाँ"


भाग 1: पहली मुलाकात


सूरज की हल्की किरणें पर्वतों की चोटियों को छूकर धीरे-धीरे गाँव की पगडंडियों तक उतरने लगी थीं। गुलमोहर गाँव की यह सुबह वैसी ही थी जैसी हर दिन होती थी—कोमल, ताज़ी, और हल्की ठंडी हवा से भरी हुई। आम के बाग़ों में से गुज़रती हवा पत्तों को हौले से हिलाती, जैसे कोई मधुर राग छेड़ रही हो।


गाँव की बाहरी छोर पर, जहाँ घने वृक्षों के बीच से एक निर्मल नदी बहती थी, वहाँ एक युवती पत्थर पर बैठी अपनी डायरी में कुछ लिख रही थी। उसकी उँगलियाँ स्याही में भीगी थीं, और माथे पर कुछ उलझे हुए विचारों की छाया थी। वह आवनी थी—इस गाँव की एक सीधी-सादी, मगर ख्वाबों से भरी लड़की।


उसकी दुनिया छोटी थी, मगर उसकी कल्पनाएँ असीमित थीं। उसकी काली घनी चोटियाँ हवा में लहरातीं, और उसकी आँखों में किसी अधूरे सपने की परछाई झलकती थी। उसने कलम उठाई, फिर रुकी, जैसे किसी सोच में डूब गई हो।


"क्या लिख रही हो?"


अचानक किसी अपरिचित आवाज़ ने उसकी तन्मयता भंग कर दी। आवनी ने चौंककर सिर उठाया। सामने एक युवक खड़ा था—शहरी परिधान में, आत्मविश्वास से भरा हुआ, मगर आँखों में एक अनकही जिज्ञासा थी।


"सपने," आवनी ने हल्की मुस्कान के साथ उत्तर दिया।


"किस तरह के सपने?"


आवनी ने क्षणभर को उसकी आँखों में देखा, फिर हल्की उदासी के साथ बोली,


"जो शायद कभी पूरे नहीं होंगे।"


अर्णव को यह उत्तर अजीब लगा। उसने हल्के से भौंहें चढ़ाईं और उत्सुकता से पूछा,


"ऐसा क्यों कह रही हो? सपने तो पूरे करने के लिए होते हैं!"


आवनी ने एक गहरी साँस ली। उसकी आँखों में एक अनकही टीस थी।


"शायद तुम्हारे लिए, मगर हमारे लिए सपने देखना भी एक हिम्मत का काम है। हर किसी को अपनी तक़दीर चुनने का हक़ नहीं होता।"


उसके शब्दों में कोई कटुता नहीं थी, बस एक गहरी सच्चाई थी।


अर्णव को पहली बार महसूस हुआ कि शायद दुनिया हर किसी के लिए समान नहीं होती। वह कुछ और पूछना चाहता था, लेकिन तभी पास के मंदिर की घंटियाँ गूँज उठीं। एक पल को ऐसा लगा जैसे हवा में कोई पवित्र ध्वनि घुल गई हो।


आवनी धीरे से मुस्कुराई, अपनी डायरी बंद की, और उठ खड़ी हुई।


"अब चलना चाहिए," उसने धीरे से कहा।


अर्णव उसे जाते हुए देखता रहा। उसकी चाल में आत्मविश्वास था, मगर आँखों में कोई गहरी सोच तैर रही थी। उसकी ओढ़नी हल्की हवा में लहराई, जैसे कोई अनकही बात कहकर जा रही हो।


अर्णव ने पहली बार खुद से यह सवाल किया कि क्या जीवन की असली खुशी सिर्फ ऊँची इमारतों और बड़े सौदों में ही है, या फिर यह छोटी-छोटी सच्चाइयों में भी बसती है?


उसकी नज़र पास पड़े आवनी की डायरी पर पड़ी, जो जाते-जाते गिर गई थी। उसने उसे उठाया, और पन्नों को पलटा। एक जगह कुछ शब्द लिखे थे—


"अनकहे सपने, जो किसी की मुस्कान में बसते हैं, मगर कभी कहे नहीं जाते..."


अर्णव के होठों पर एक अनजानी मुस्कान उभरी। शायद यह उसकी ज़िंदगी का पहला दिन था जब उसने सफलता से ज़्यादा किसी और चीज़ के बारे में सोचा था—एक लड़की, जो सपने लिखती थी, मगर उन्हें

पूरा करने का हक़ नहीं रखती थी।


(क्रमशः…)