पंद्रहा साल पहले हुई भविष्यवाणी का सच होना जैसे मुश्किल लग रहा है , अंधतमस का प्रकोप दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है, ...राजा चंद्रसेन अपने नागरिकों की दशा को देखते हुए बहुत विचलित हो उठे ...." और कितना हमारी मासुम प्रजा को इस दुष्ट का कहर सहना पड़ेगा..."
अपने पति की मनोदशा को देखते हुए रानी सुकृति उन्हें समझाते हुए कहती हैं...." महाराज ! हमें और हमारी निर्दोष प्रजा को देवी की इच्छा अनुसार तक सहना पड़ेगा....जानते है न ये नियम भंग होने का प्रकोप आप पहले भी झेल चुके हैं , मैं अपने एक पुत्र को तो को चुकी हूं , अब दूसरे को नहीं खोना चाहती..."
राजा चंद्रसेन दुःखी मन से कहते हैं..." और उन निर्दोष कन्याओं का क्या..." राजा चंद्रसेन की बात सुनकर सुकृति आंखों में आसूं लिए वहां से चली जाती है और चंद्रसेन सेनापति के साथ उस कन्या के घर के लिए चले जाते हैं.....
राजा चंद्रसेन सेनापति के साथ वहां पहुंचे , अपने बेटे को वहां देखकर कहते हैं..." चंद्रकेतु आपको यहां नहीं आना चाहिए था...."
" किंतु पिताजी , हम अपनी प्रजा के पास नहीं होंगे तो कहां होंगे..."
आज गोरिका का सोलहवां साल पूरा हो चुका था …सारनगढ़ वासी गोपाल दास के घर जाकर गोरिका को ले जाने के लिए कहते है …सारे सारनगढ वासी इकट्ठा होकर गोपाल दास के घर पहुंचते.....
" गोपाल दास ..... जल्दी करो गोरिका को भेजो नहीं तो उनके अधप्रेत गांव में आ जाएंगे..... जल्दी करो ...अंधतमस को देरी अच्छी नहीं लगती...".. गांववासी ने कहा...
" चल गोरिका..."
" बाबा मुझे नहीं जाना …" रोते हैं गोरिका ने कहा
" मैं कुछ नहीं कर सकता …गोरिका इस साल तेरी ही बारी है तामस के महल जाने की. " रोते हुए गोपाल दास ने कहा
" गोरिका …अब जल्दी इन्हे पहन लो फिर चंडिका देवी के मंदिर भी जाना है …" उदासी भरे शब्दों में गोरिका की मां ने कहा
" मैं चंडिका देवी के मंदिर नही जाऊंगी. " गुस्से में गोरिका ने कहा
" क्यूं गोरिका …वहां जाना सबके लिए जरुरी है "
" क्या मां चंडिका मुझे उस अंधतमस से बचा लेंगी …" रोते हुए गोरिका ने कहा
" वो तो नही हो सकता गोरिका …लेकिन मां चंडिका क्या पता इस बार कुछ संकेत दे दे .…"
" हर बार यही कहा जाता हैं बाबा …" गुस्से में गोरिका ने कहा
गोरिका बस रोये जा रही थी किसी तरह वो अंधतमस के महल जाने से बच जाऐ.... पर उसकी दशा पर किसी को दया नही थी....
" तो तू उस अंधतमस से लड़ पाऐगी …तो जा खत्म कर दे उस सारनगढ़ के अभिशाप को …जा .……(गोपाल दास की बात सुनकर गोरिका दुःखी मन से चुप हो जाती हैं)
अपने मन को मारकर आज गोरिका भी एक जिंदा लाश की तरह बन जाती हैं....
सब मिलकर गोरिका को तैयार करके कुल देवी चंडिका के मंदिर में पहुंचते हैैं ……
" पता नहीं ये दिपक कब प्रज्जवलित होगा. " राजा चंद्रसेन ने कहा
" राजा साहब हम भी बहुत सालो से उस समय की प्रतिक्षा कर रहे हैं "
" हमारी ये प्रतिक्षा कब खत्म होगी नही जानते मजबूरीवश हमे मासूम कन्या को उस अंधतमस के पास भेजना पड़ता है.. " दुःखी मन से चंद्रकेतु ने कहा
" क्षमा करना युवराज छोटा मुंह बड़ी बात किंतु आप भी तो चंद्रवंशी है.. "
" हम ये बात जानते हैं , किंतु हमारे हस्त पर चंद्रप्रतापी चिन्ह नहीं है ….हम बहुत बेबस है ... पंद्रहा वर्ष प्रतिक्षा करते हुए बीत चुके हैं , मां चंडिका देवी दयालु कब बनेंगी कोई नही जानता , जाओ गोरिका को मां के समक्ष प्रस्तुत करो..."
" क्षमा करना राजा साहब हमे थोड़ी देर हो गई.. " गोपाल दास ने कहा
" आप विलंब न किया करे अंधतमस को शांत करना मुश्किल हो जाएगा.. " समझाते हुए राजा ने कहा
गोरिका मां चंडिका के सामने सर झुकाकर प्रणाम करती है .…
" मां …मैं तो अपने काल के मुख में जा रही हूं …कृप्या मेरी छोटी बहन को उस अंधतमस के महल में मत भेजना मां …हम ये नही जानते ये दिपक कब जल उठेगा …बस मेरी बहन के पहुंचने से पहले ……ये भाग जाग उठे मां ." गोरिका ने प्रणाम करते हुए ये सब कहा
" चलो गोरिका "
आज गोरिका भी अंधतमस के महल में चली गई ….दु : खी मन से सबको अपनी बेटियो की बलि देनी पड़ती थी …बदले में उन्हें मिलता है तो सिर्फ दु:ख ……
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....... To be continued....