Swayamvadhu - 41 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 41

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स्वयंवधू - 41

इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ ज़बरदस्ती के रिश्ते हैं। पाठकों, यदि आप आघात नहीं चाहते तो इसे छोड़ दें।

पहला चरण
वह कमरे में अकेली असहज और अपमानित महसूस कर रही थी। उसे उस बात का अपराध बोध हुआ जो उसने नहीं किया था और ना ही उसे याद था। थककर उसने अब कमरे की ओर अधिक ध्यान से देखा। कमरे के बीच में एक बड़े बिस्तर के अलावा, कमरा दो बड़े फूलदानों से भरा हुआ था जो लगभग उसकी ऊँचाई तक पहुँच रहे थे और प्रवेश द्वार पर रखे हुए थे, कमरे के दाहिनी ओर एक महँगी ड्रेसिंग टेबल थी, जिसके साथ सफेद सोफा सेट और लैवेंडर रंग का मुलायम गलीचा था। बाईं ओर एलीशान बाथरूम था जिसमें अंतर्निर्मित जकूज़ी और विशाल वॉक-इन क्लोज़ेट थी। सब कुछ असाधारण था! शानो-शौकत से थककर बाथरूम में ही उसने वह स्टिकी नोट निकाला जिसे उसने उस दिन के बाद से अपने पास संभालकर रखा था। उसे समझ नहीं आया लेकिन उसके पैर और हाथ अपने आप हिलने लगे। उसने पूरे कमरे में रंगीन कागज ढूँढ़ा, उसे एक भी कागज नहीं मिला, लेकिन मेकअप उत्पादों और शैम्पू की बोतलों के स्टिकर मिले। उसने कागज को सावधानीपूर्वक खुरच कर निकालना चाहा पर थोड़ी-बहुत गड़बड़ हो गयी लेकिन फिर भी कुछ स्टिक नोट बनाने में कामयाब रही। उसे दस रैपरों में से तीन मिले। उसने उन नोटों को उन स्थानों पर चिपका दिया जहाँ लोग आमतौर पर छिपाते हैं। जैसे बाथरूम के शीशे के पीछे, अलमारियों के अंदर या वॉक-इन क्लोज़ेट में।
जब वह अंदर थी, एक सहायक अंदर आयी। सहायक ने अंदर आने के लिए उसकी अनुमति नहीं माँगी। वह धड़ल्ले से बिना अनुमति का अंदर घुस आई, और उसके एकमात्र बैग को लेकर सीधे उसके सामने ज़मीन पर उल्ट दिया। उसके कपड़े, दवाइयाँ सभी नीचे फर्श पर बिखरी पड़ी थी। वह उसके बैग झाड़कर देख रही थी कि कुछ बाकि ना रह गया हो। उसने फिर बैग के हर एक खाने को तेज़ नज़रो से जाँचा फिर ज़मीन पर पड़े कपड़ो को एक-एक कर झाड़कर जाँचने लगी। वृषाली ने उसे रोका पर वह बिना रुके उसके कपड़ो को जाँचकर इधर-उधर फेंकने लगी। कपड़े खत्म करने के बाद उसके हाथ उसकी दवाईयों पर गयी। उसने उसकी सारी दवाइयाँ और रिपोर्ट समेटी और बिना मुड़े बाहर निकल गयी। वह हतप्रभ रह गई। वह काफी देर तक इस बात पर विचार करती रही कि उसे उसका पीछा करना चाहिए था या नहीं। अंततः उसने उस मामले को छोड़ने का निर्णय लिया और कमरे की सफाई के बारे में सोचने लगी। वह जानती थी कि कोई भी उसकी मदद करने नहीं आएगा इसलिए उसने खुद ही कमरा साफ करने का फैसला किया। वह सामान्य रूप से चल तो सकती थी, लेकिन फर्श से चीजें उठाने का काम वह बिना मदद के नहीं कर सकती थी। उसने कमरे में चारों ओर देखा और हैंगरो को पाया। उसने अलमारी से कपड़े का टुकड़ा लेकर हैंगर को एक छड़ी की तरह बाँध दिया। यह उतना स्थिर नहीं था, लेकिन काम चलाऊ था। उसने उस हैंगर स्टिक का इस्तेमाल कर उन्हें सोफे के किनारे धकेलकर कपड़ो का एक पहाड़ तैयार किया। वह सोफे का सहारा लेकर सोफे पर बैठ गई, "मेरा शरीर! आई-या अभी भी दर्द कर रहा है।", उसने कमर पकड़कर करहाकर कहा।
दर्द सहते हुए उसने एक-एक करके कपड़े उठाए, उन्हें मोड़ा और मेज़ पर रख दिया। तह करते समय उसके कपड़े से वह फोटो गिरा जो उस दिन समीर की जेब से गिर गयी थी। अब भी वह खुद को देखकर पहचान नहीं पा रही थी।
"क्या यह असली मैं हूँ? बेशर्म!", उस फोटो को मुट्ठी में दबा लिया। जिसमें वह बहुत छोटी ड्रेस पहने वृषा की गोद में बैठी ड्रग्स ले रही थी।
"क्या यह बेबुनियाद लड़की सचमुच मैं हूँ?",
"क्या मेरी माँ सचमुच चली गयी है?",
"क्या मेरा परिवार सचमुच?",
"क्या मैंने उनके अंतिम क्षणों में उन्हें श्रद्धांजलि भी दी?",
"मैंने उन्हें कितनी बुरी तरह चोट पहुँचाई? क्या वे जीवित हैं? क्या डैडी और भाई जीवित हैं?",
वह अचानक दुःख से बड़बड़ाने लगी।
"माफ कर दीजिए। प्लीज़। मा, डै...हिक...हिक... मैं आपके साथ रहना चाहती हूँ। मैं जीना नहीं चाहती। मैं पश्चाताप करूँगी। मैं अपने पाप के लिए अनंत काल तक पश्चाताप करूँगी। कृपया मुझे अपने साथ ले जाइए...हिक...हिक....", उसने हताश होकर वह फोटो फाड़कर ज़मीन पर फेक दिया, माफी माँगने लगी और फूट-फूटकर रोने लगी। उसे कही ना कही अंदाज़ा था कि उसके परिवार में कोई नहीं बचा, जिसका वो एकमात्र कारण थी। वह अंदर ही अंदर जानती थी कि अगर यह उसकी असली जिंदगी है, तो उसने अपने ही हाथों अपने परिवार को मार डाला है। वो सारा दिन रोती रही। किसी ने भी उसकी सुध लेने की भी नहीं सोची, यहाँ तक कि उसके लिए रखी नर्स ने भी और अधीर, जिसे उसकी ज़िम्मेदारीरदी गयी थी उसने भी उसकी सुध नहीं ली। दिन बीत गयी, रात का अँधेरा छा गया। वह रोते-रोते बिना उसकी दवाईयों के वह कमज़ोर, थककर, फूली आँखे लेकर सो गयी। उसकी यह सब हरकते अधीर की जगह ज़ंजीर बड़ी गंभीरता के साथ देख रहा था। उसके साथ वृषाली पर चौबीस घंटे नज़र रखने के लिए जीवन को नियुक्त किया गया था जो जंजीर का साथी और अधीर के अधीन था।

रात को समीर अपनी शर्ट की आस्तीन पर खून लगा कर घर आया। पूरे घर का माहौल निराशाजनक हो गया। घर में सभी लोग भयभीत होकर एकत्र हो गए। वह सोफे पर बैठ गया। उसके नौकरों ने उसके जूते और मोज़े को बहुत सावधानी के साथ उतारा, उसके पैंरो को गीले गर्म तौलिये से साफ किया और नरम स्लीपर पहना दिया। सब उसके निर्धारित दो मिनट के अंदर।
उसने अपना बायां हाथ हिलाया। अधीर आगे आया। उसने मुट्ठी बाँध ली। अधीर को छोड़कर सभी लोग कमरे से बाहर चले गए। उसने अपनी दैनिक रिपोर्ट देनी शुरू कर दी, "हमें शिवम रेड्डी और सुहासिनी राय के विवाह का निमंत्रण मिला है। वे निर्देशानुसार 2 मई को मध्य रात्रि में विवाह कर रहे हैं।",
"अच्छा! हमारी महाशक्ति के बारे में क्या?", उसने गर्म खून से भरी एक छोटी कांच की बोतल निकाली, "क्या उसने कुछ खाया?", उसने उसे बोतल देते हुए पूछा। उसने दोनों हाथों से बोतल को ले लिया। 
"नहीं, वह अपने कमरे में सो रही है।",
"कितनी असहाय लड़की है। उसका अंतिम अपहरणकर्ता ने उसे बड़े नाज़ो से पाला होगा ना? चलो उसकी यादों को थोड़ा ताज़ा किया जाए। उसके लिए एक स्वस्थ पेय तैयार किया जाए। ",
"यस बॉ- सर।",
वह खड़ा हुआ और उसके चेहरे पर एक काला गुलाब फेंका, "इसे तीन बार धोकर अच्छे से मिला देना।",
पहले वह ऊपर गया, अपने कपड़े बदले, फिर एक बार उसके दरवाज़े पर दस्तक दी। फिर उसने दरवाज़े का हैंडल घुमाया और अंधेरे कमरे में प्रवेश किया। बिस्तर पर जीवन का कोई चिह्न नहीं था। उसने सहजता से अंधेरे कमरे को देखा और सोफे की ओर बढ़ा। 
वहाँ उसने धीरे से उसके सिर पर हाथ फेरा जिससे वह भयभीत होकर जाग गयी। उसने उसका हाथ पीछे धकेल दिया और तकिये को ढाल बना लिया। वह घबरा गई। तभी प्रकाश स्वतः चालू हो गया। जब उसे पता चला कि वह हाथ समीर का है तो वह थोड़ा शांत हुई। "आप यहाँ कैसे? क्या आपका हाथ ठीक है?", उसने चिंता से पूछा,
वह हँसा। उसका पूरा व्यवहार माफिया बॉस से सज्जन में बदल गया, "यह बूढ़ा आदमी उतना कमज़ोर नहीं है जितना तुम सोचती हो।", उसने उससे कहा,
वह मुस्कुराई, उसे समझ में नहीं आया कि क्या जवाब दे।
फिर उसने पहले पूछा, "आज का दिन कैसा रहा? क्या तुमने कुछ खाया?", उसने उसकी आँखों में देखा, भौंहें सिकोड़ीं, "तुम्हारी आँखों को क्या हुआ?", उसने संदेह से पूछा,
उसने अपना चेहरा छुआ और घबरा कर मुस्कुराई, "यह... यह...", वह एक शब्द भी नहीं बोल सकी,
"एक बर्फ की थैली लाओ।", उसने ऊँची आवाज़ में आदेश दिया, उसने कमरे में चारों ओर देखा, "यहाँ क्या हुआ?",
वह एक क्षण के लिए रुकी, "जब मैं अपना बैग हटाने कि कोशिश कर रहा थी तो वह गिर गया। यह भारी था ना, इसलिए गिर गयी।", उसकी आवाज़ भारी थी,
"और तुम्हारी आवाज़ भी गिर गई?",
उसने अपना मुँह बँद कर लिया।
वह हँसा, "मै भी एक बाप हूँ। तुम्हें क्या लगा सामने सामने झूठ बोलकर बच जाओगी?", उसका हावभाव एक पिता के समान था।
"सॉरी।", उसकी आँखों में आँसू भर आये, "मुझे पता है कि मेरे करीबी मेरी वजह से मारे गए और मुझे उनके बारे में कुछ याद भी नहीं है। यहाँ तक कि उनके चेहरे भी नहीं। क्या आपको नहीं लगता कि यह अनुचित है? मुझे उनके साथ मर जाना चाहती था। मैं इस लक्ष्यहीन, बेकार की जिंदगी जीकर क्या करूँगी? कृपया मुझे मार दीजिए।", वह दिल खोलकर रोई, "मेरी माँ की मृत्यु मेरे विस्तृत परिवार की लालचखोरी के कारण हुई। मेरे भाई और मेरे पिता भी मेरी वजह से मारे गए। पता नहीं उन्हें कितने दर्द देकर मारा होगा। मुझे यह पता है, मेरे पास मेरा अपना कोई नहीं है, इसलिए मैं क्यों जीऊँ? आपसे विलासिता प्राप्त करने से बेहतर है कि मैं नर्क में रहूँ।",
"क्या किसी ने तुमसे कुछ कहा?", उसने कोमल स्वर में पूछा,
वह काँप उठी, पता नहीं क्यों? इससे पहले कि वह जवाब दे पाती, एक सहायक उसके लिए आइस पैक और जूस लेकर आ गया। वह प्रत्याशित लग रहा था। उसने उसकी आँखों पर बर्फ पैक थपथपाया। यह उसकी दोनों आँखों को ढकने के लिए काफी था।
"अब इससे अपनी आंखों को धीरे से थपथपाओ।",
उसने वही किया जो उसने कहा था। इसका फायदा उठाकर उसने चाकू से अपनी उँगली काटी। खून टपकने लगा, उसने उसके काले गुलाब पेय पर खून की सात बूँदें गिरा दीं।
काला गुलाब पेय?
क्या?
नहीं!!!
उसे यह नहीं पीना चाहिए! मुझे उसे रोकना होगा, "वृषाली! क्या तुम मुझे सुन सकती हो?", उसने अपना सिर थोड़ा सा हिलाया जैसे वह मुझे पहचानना नहीं चाहती थी।
"अगर तुम मुझे सुन सकती हो तो इसे मत पिना। मत पियो...",
अब वह मुझे पहचानना नहीं चाहती, उसने खुद से बाते करना बँद कर दिया।
"इसे पी लो। एक बार में छोटे घूंट लो।", उसने निर्देश दिया,
उसने मेरी सलाह माने बिना ही जूस पी लिया। जैसे ही उसने पीना शुरू किया, उसने उसे उसके जीवन के बारे में बताना शुरू कर दिया,
"तुम उसका जुनून थी और दूसरों की भी।",
वो रुक गयी। गिलास तीन-चौथाई भरा था।
"पीते रहो।", उसने तिरछी नज़र से कहा,
उसने एक बड़ा घूंट लिया। गिलास आधा था। उसका शरीर तपने लगा। समीर ने उसने पीने का इशारा किया। वह सब सुनते-सुनते पी रही थी।
"तुम पर अपना स्वामित्व दिखाने और तुम्हारा आत्मसम्मान जिसे वो अकड़ समझता था, उसे कुचलने के लिए वो हमेशा तुम्हारे गले पर कुत्ते का पट्टा बाँध तुम्हें हर डिनर मीटिंग, क्लब और पार्टियों में एक ट्रॉफी की तरह ले जाता था। उसका व्यवहार तुम्हारे प्रति बहुत अमानवीय था।",
उसका सिर चकराने लगा। फिर भी वह सुन रही थी।
"उसने तुम्हें कभी मनुष्य के रूप में नहीं देखा।",
उसने आखिरी घूंट पी।
"पहला उपहार जो उसने तुम्हें दिया था वह यह कॉलर था। दूसरा था सिर... तुम्हारे पि... ", काले गुलाब ने अपना काम कर दिया। वह सो गई, खाली गिलास उसके पैर तक लुढ़का। उसने उसकी ओर लालच भरी नज़रो से देखा। वह मुस्कुराया, और उस चाकू से उसकी गर्दन को दाहिनी ओर से काट दिया। वह मुस्कुराया, उस चाकू का इस्तेमाल करके उसकी गर्दन को दाहिनी ओर से काट दिया और आखिरी बूँदें उसकी गर्दन पर गिरा दी जिससे उसकी गर्दन जल गई। फिर उसने उसके घाव को ठीक करने के लिए बोतल में से खून का इस्तेमाल किया। फिर उसने उसे बिस्तर पर पटक दिया।
"जल्द ही यह शक्ति मेरी होगी। पहले चरण- सफल!", उसने उसके कान में फुसफुसाया।