Swayamvadhu - 40 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 40

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स्वयंवधू - 40

इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ ज़बरदस्ती के रिश्ते हैं। पाठकों, यदि आप आघात नहीं चाहते तो इसे छोड़ दें।

नया जीवन

अब तक उसे पता चला कि वह वृषाली राय नहीं थी, वह मीरा पात्रा थी जो कि एक ड्रॉप आउट थी और एक वेश्या थी साथ ही वृषा की सनक भी। उसके और उसके बॉस के मनाही सुनने के बाद उसके अहंकार के सनक ने उस क्लब को रौंद दिया जिसमें वह काम करती थी और बिना किसी दूसरे विचार या दया के सभी को निर्दयता से पीट-पीटकर मार डाला और उन्हें, उन्हीं के क्लब के बाहर सजावट की तरह दरवाज़े के सामने लटका दिया। कइयों को पहचानना भी मुश्किल था। जब उसे उनके सामने से घसीटते हुए ले जाया गया, वह खुद भी उन्हें पहचान नहीें सकी।
उसे और उसके सहकर्मियों को वृषा और उसके आदमियों ने अपनी पसंद के अनुसार चुनकर कैद कर उनके साथ दिन-रात खिलवाड़ करते रहे और फिर बोर होने के बाद उन्हें ऐसे गायब कर दिया जैसे वो कभी थे ही नहीं, जबकि ये मीरा की नरक भरी ज़िंदगी की आगाज़ था।
बस उतना ही उसे पता था।
वह बहुत उलझन में थी। उसके लिए वृषा उसका दोस्त था जो उसके लिए बहुत सुरक्षात्मक था जबकि समीर था जो नकारात्मक पक्ष पर था। लेकिन भूमिका अब उलट गई थी, यह उसके ज्ञान के बिल्कुल विपरीत था।
अगले दिन जब समीर उससे मिलने आया। उसने उससे अपने परिवार के बारे में पूछने कि कोशिश की लेकिन उसने उसे और कुछ नहीं बताया, बस ठीक होने की बात कहता रहा।
अपने परिवार के बारे में जानने के लिए उसे पहले ठीक होना होगा।
कमरे में समीर के अंगरक्षक और नर्सेज थी।
पारदर्शिता बनाए रखने के लिए उन्होंने उसे मेडिकल रिपोर्ट दिखायी।
"यह क्या है?", उसने उस रिपोर्ट में लिखी सूची की ओर इशारा करते हुए पूछा, जिसमे नशीली दवाओं की सूची थी।
"को- क्या?",
"यह स्पष्ट रूप से नशीली दवाओं और जहर की सूची है जो आपको अपहरण के दौरान दी गई थी।", डॉक्टर ने समझाया,
"-खैर...ये तो नामों से भरा एक पन्ना है... क्या कोई मनुष्य इतनी दवाओं के बाद जीवित रह सकता है?", उसने घबराहट में हँसकर पूछा,
(तुम्हें जल्द ही पता चल जाएगा।)- डॉक्टर की अंदर की बात,
"नीचे दो और हैं।", डॉक्टर ने कागज़ों की ओर इशारा किया,
उसका चेहरा पीला पड़ गया।
यह वह ड्रग्स थी जो तथाकथित वृषा बिजलानी ने अपहरण की अवधि के दौरान उसे दी थी।
"आपको विषमुक्त करने में सात महीने लग गए लेकिन अभी भी समय चाहिए।", उसके अंगों की जाँच करते हुए उसने टिप्पणी की। उसने उसके पैंरो को कसते हुए पूछा, "-दर्द?",
"थोड़ा सा- आ! हाँ।", उसने अपने होंठ दबाकर कहा,
"आप पुनर्वास के लिए तैयार हैं। कृप्या इन्हें एक बार पढ़कर अपने दस्तखत करे।", उन्होंने उसे हस्ताक्षर करने के लिए प्रक्रिया संबंधी दिशानिर्देश और अनुमोदन पत्र दिया।
"किसी भी तरह से मैं यहाँ मर सकती हूँ।", उसने बुदबुदाया,
(या तो अंगों की तस्करी या फिर नजरअंदाज कर मार डालना फिर अंग तस्करी।)- उसने मन ही मन सोचा,
वह पुनर्वास के दस्तावेज़ों को बिना पढ़े आखिरी पन्ने पर हस्ताक्षर करने गयी। तब उसकी नज़र एक स्टिकी नोट पर गयी, "कृपया मीरा पात्रा के रूप में हस्ताक्षर करें। इसे छुपाए!", उसने डॉक्टर की ओर देखा, वह समीर से उसके भावी उपचार और लागत के बारे में बात कर रहा था, उसने हस्ताक्षर का इशारा किया। उसके हाथ से पेन फिसलकर चादर के अंदर घुस गया। स्थिति की विचित्रता को भाँपते हुए, उसने स्टिकी नोट निकाला और चादर के नीचे अपने हॉस्पिटल गाउन के अंदर चुपके चिपका दिया और 'मीरा पात्रा' के रूप में हस्ताक्षर कर समीर को पकड़ा दिया।
समीर ने दस्तावेजों कि जाँच की।
समीर ने धीरे से पूछा, "तुमने मीरा के नाम से हस्ताक्षर क्यों किया?",
उसने धीरे से उत्तर दिया, "क्योंकि मैं मीरा हूँ।",
वह मुस्कुराया और डॉक्टर के साथ कमरे से बाहर चला गया।
रिपोर्ट के अनुसार वृषाली को हर बार नशीली दवाएँ और जहर दिया जाता था, जिससे उसके अंग बेहद कमज़ोर हो गए थे। मेरा मतलब मीरा।
उसने असमंजस में गहरी साँस ली। उसके मन में बहुत सारे सवाल थे और समीर की दयालुता पर संदेह होने लगा। असमंजस की स्थिति में दो नर्स उसके पास आई। एक जिसने उसे बेहोश रहने के वक्त बुरा-बला कहा था उसने अहंकारपूर्ण तरीके से उसने कहा, "यदि आपको किसी सहायता की आवश्यकता हो, तो बिस्तर के बाईं ओर स्थित इस कॉल बटन का उपयोग करें।", उसने घृणा से उसकी ओर देखा। इससे वह असहज हो गई, लेकिन अपने इस जीवन के अतीत को देखते हुए उसे लगा यह अपरिहार्य था। उसने हाँ में सिर हिलाया। दूसरी नर्स इतनी दयालु थी कि उसने उसकी उचित देखभाल की। पहली नर्स हमेशा उसका मज़ाक उड़ाती और उसे वेश्या कहती थी तथा उसके साथ हर मुलाकात को घृणास्पद मानती थी। वह कभी भी समीर के सामने नहीं आती थी लेकिन जैसे ही वह चला जाता था वह जानबूझकर उसके आत्मसम्मान को आघात करने के लिए कोई-न-कोई पैंतरे खेलती। कभी चलने के अभ्यास के दौरान उसे छोड़ देना या उसे धक्का मारना। हमेशा उसे परजीवी जैसे देखना। उसपर अकारण चिल्लाना और उसकी ज़रूरते जैसे साफ कपड़े, खाने के साथ खिलवाड़। एक दिन तो वह उसे एक्सपायर हो चुकी दवा देने ही वाली थी, अगर दूसरी नर्स ने सतर्कता ना होती तो उसकी जान को खतरा हो सकता था। वह हमेशा कुछ ऐसा चुनती थी जिसे वह नहीं खा सकती थी, वह था डेयरी उत्पाद। वह डेयरी नहीं खा सकती। यही एकमात्र समानता है जो वह अब तक खोज सकी थी। नर्स अक्सर उसे भोजन की बर्बादी और समाज में भोजन की कमी के प्रभाव के बारे में चिल्लाती थी। यह देखकर कि वह कितनी कठोरता से उसके साथ व्यवहार कर रही थी, उसकी देखभाल का अधिकांश काम दूसरी नर्स ने ले लिया गया, जिससे पहली नर्स और अधिक उत्तेजित हो गई। वह अधिक निर्दयी थी, लेकिन गुप्त थी।
एक दिन जब वह अपने हाथों से खाना खाने का अभ्यास कर रही थी तब उसने अपने ऊपर सूप गिरा लिया। यह देखकर कि दूसरी नर्स ने मीरा के हाथ को टिश्यू से साफ किया और मेज को साफ करने के लिए एक कपड़ा लेने के लिए बाहर चली गई, जबकि पहली नर्स ने गंदगी देखी और मीरा के चेहरे पर ज़ोरदार तमाचा मारा, उसे अपशब्द कहे और उसके सिर को गिरे हुए सूप पर पटका और उसके चेहरे से टेबल साफ करने लगी। सूप उसके आँखो में जा रहा था। वो रोकर माफी माँग रही थी पर उसने उसके मुँह को और मज़बूती से पटका, "खबरदार जो एक शब्द और निकाला तो! तुम जीने के लायक नहीं हो!!", उसने बचे गर्म सूप को उसपर डालकर कहा।
वह सहमी आँखे बँदकर चुपचाप उसे झेलती रही।
इसी बीच दूसरी नर्स दौड़कर आई और पहली नर्स को कमरे के दूसरी ओर धकेलते हुए उसे रुकने के लिए चिल्लाने लगी। वह मीरा को सांत्वना दे रही थी। शोरगुल सुनकर कमरा स्टाफ और समीर के अंगरक्षकों से भर गया जो उस समय वहाँ नहीं थे जब उसे धमकाया जा रहा था, लेकिन अब उन्होंने कार्यभार संभाल लिया, स्टाफ को कमरे से बाहर निकाल दिया और मौके पर डॉक्टर को बुलाया। एक तरफ उसके माथे से खून बह रहा था जिसका डॉक्टर ने ध्यान रखा तो दूसरी तरफ बॉडीगार्ड्स, उसे अपने साथ ले गए। दूसरी नर्स ने उसे नहाने में मदद की और उसे सांत्वना दी। वह नर्स फिर कभी नहीं दिखी।
उस शाम समीर माफी माँगते हुए मीरा के पास आया। उसने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा, "माफ करना बेटे, तुम्हारे साथ फिर वैसा सुलूक हुआ।",
जब उसने उसे छुआ तब उसे पहली नर्स को बिल्कुल नज़दीक से गोली मारकर मार डालते हुए देखा।
"तुम जैसे कीड़े तो यह भी नहीं पत्ता कि कब रुकना है।", उसने समीर की आवाज़ सुनी।
"कोई बात नहीं।", उसने नज़र फेर ली।
"जल्दी ठीक हो जाओ ताकि हम जल्द ही घर जा सकें। हम्म?",
वह हैरान थी, उसे ना घर याद था, ना वो खुद।
"लेकिन... मेरे पास घर नहीं है?", उसने कहा,
वह मुस्कुराये और बोला, "तुम्हें याद नहीं है कि मैंने क्या कहा था? अब तुम मेरी बेटी हो। तुम मेरे साथ रहोगी।",
उसे पेट के अन्दर जकड़न महसूस हुई। वह खुद को यह समझाने कि कोशिश कर रही थी कि वह एक दयालु व्यक्ति हो सकता है।
उसने थोड़ा सा सिर हिलाकर उससे सहमति जताई।
अगले दिन जब उसने दूसरी नर्स से पहली वाली के बारे में पूछा तो उसने सवाल टाल दिया, "वह वहीं है जहाँ उसे होना चाहिए।",
वह समझ नहीं पाई लेकिन दूसरी नर्स ने अपना काम किया। नर्स उसकी मांसपेशियों को मज़बूत करने के लिए दिन में दो बार औषधीय तेल से उसके शरीर की मालिश करती थी। चूंकि उसके साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया गया था, वह डेढ़ महीने में लगभग पूरी तरह ठीक हो गई। उसकी हालत ठीक देखकर डॉक्टर ने उसे अस्पताल छोड़ने की अनुमति दे दी। समीर ने उसे छूटने पर गुलदस्ता दिया। उसने इसे उलझन में ले दिया।
"क्या तैयार हों?", उसने पूछा।
वह उसे अपने घर ले गया। दूसरी नर्स आगे के उपचार के लिए उसके साथ गई। समीर उन्हें अपने भव्य हवेली में ले गया। ऐसा लगा जैसे हम सीधे सिनेमा घर से आया हों। वह हिचकिचाई।
"मैं तुम्हें बाद में भ्रमण करा दूँगा। तुम घर पर ही रहो। मुझे अभी कुछ काम है। मेरे आदमी तुम्हारा ख्याल रखेंगे।",
नर्स कॉल अटेंड करने के लिए बाहर गई थी। वह लिविंग रूम में अकेले अपने बैग को खुद से चिपकाए बैठी थी जो वृषा के लिविंग रूम से भी दोगुना बड़ा था। उसने वृषा की दादी, अमलिका बिजलानी का वही चित्र देखी जिसे वह जानती थी। उसके बगल में छोटे वृषा की एक पेंटिंग थी। वह वहीं बैठी उस मासूम बच्चे को देख रही थी जो प्रसन्नतापूर्वक मुस्कुरा रहा था। फिर सावधानी से अंतर्मुखी वृषाली मीरा नहीं अगले दस मिनट तक, नीचे की ओर देखती रही। तभी दो आदमी अन्दर आये। वो लोग बड़े रौबदार तरीके से अंदर आए। दोनों को ही चालाक और अविश्वसनीय लगे। वे दोनों लंबे, आत्मविश्वासी और भारी भरकम थे जैसे कि वे अकेले, आसानी से दस आदमियों को कुचल सकते थे। वे दोनों उसके पास पहुँचे। वह डर से काँप उठी। उन्होंने उसे ऊपर से नीचे तक ताड़ा। उसने अपनी कुर्ती और दुपट्टा ठीक किया और दो कदम पीछे हट गयी। समीर भी सीढ़ियों से नीचे आया और बोला, "अधीर तुम्हारी सहायता करेगा।",
वो आदमी वृषाली को पुरुष अहंकार का दुकान लगा। समीर कुछ ही देर में उसे उस आदमी के साथ अकेला छोड़कर चला गया। उस आदमी ने अपना परिचय दिया, "मैं अधीर, बॉस का बायां हाथ।",
(बायां हाथ?)
उसने उसके हाथ में पकड़ा एकमात्र बैग बिना उससे पूछे छीन लिया।
हॉल के केंद्र में सीढ़ियाँ थीं, दीवारें फैली हुई थीं जिन पर सुसज्जित फर्नीचर थे, जिनमें से अधिकतर महँगे सजावट के सामान थे। यह वृषा के घर से भी अधिक पैसा चिल्लाता था, यह इस घर की तरह नहीं था। ('मर्यादा' घर जैसा था।) इस विला के अंदर एक लिफ्ट भी थी। वे लिफ्ट लेकर दूसरी मंजिल पर चले गए जहाँ वह ठहरेगी। इस विला में चार मंजिलें, निजी हेलीकॉप्टर के साथ एक हेलीपैड, व्यक्तिगत बार, पार्टी हॉल, पूल, समुद्र तट कक्ष और बहुत कुछ था जिसका अभी तक उल्लेख नहीं किया गया था। उसका कमरा बड़ा था, इतना बड़ा कि वृषा का बेडरूम उससे दोगुना छोटा लगा। एक पूरी तरह से सुसज्जित कमरा, जिसमें रानी आकार का गुलाबी और सुनहरा बिस्तर था, जो लैवेंडर रंग के कमरे की शोभा बढ़ाता था, जिसमें सभी आवश्यक चीजें थी जो एक लड़की इस्तेमाल कर सकती थी, लेकिन ये नहीं, ये केवल एक लड़की की तरह कपड़े पहनना जानती थी, कुछ भी फैंसी नहीं। वह इससे घबरा गई और विनम्रता से पूछा, "क्या मुझे कुछ कम फैंसी मिल सकता है?",
उसने अहंकार में हँसते हुए कहा, "हमारा नौकर कक्ष तुम्हारी अपेक्षा से कहीं अधिक भव्य है।",
उसने उसका बैग बिस्तर पर पटका, "बाथरूम बाईं ओर है और कॉल बटन बिस्तर के दाईं ओर नाइटस्टैंड पर है। यदि तुम्हें किसी सहायता की आवश्यकता हो तो उसका उपयोग करना और यह तुम्हारा नया सेलफोन है। तुम्हारा सेलफोन कई साल पहले ही तोड़ा जा चुका था।",
वह अपने अतीत के बारे में सवाल पूछना चाहती थी लेकिन चुप रही।
"बॉस ने कहा है कि तुम्हें आराम की ज़रूरत है। अभी यहीं आराम करो और इतनी शर्मीली होने का दिखावा बँद करो। यह तुम्हारा आखिरी मौका है। सर शायद तुम्हें माफ कर दें लेकिन मैं नहीं।", वह बहुत खतरनाक था। वह बाहर अपने पीछे दरवाज़ा धड़ाम से बँद कर चला गया। उसके गुस्से से वो वह और अधिक अपराध बोध में डूब गई।
"मैंने इस परिवार के साथ क्या किया था?", उसने पश्चाताप में खुद से पूछा, "मैं क्या हूँ? क्या मैं खुद को इंसान कहलाने के लायक भी हूँ?",

बाहर,
"तुमने उसके साथ गलत किया।", वह उपहास में मुस्कुराया, "बेचारी लड़की, खुद को कोस रही होगी।", ज़ंजीर ने कहा,
"उसे 'बेचारी' कहना अभी जल्दबाज़ी होगी। उसका नरक अभी शुरू हुआ है और तुम उससे दूर रहो!", उसने दाँत पीसते हुए कहा,
उसने कँधा उचकाया, "यह मेरी गलती नहीं है कि उसके भाई ने तुम्हें मूर्ख बनाया। जल्द ही वह तुम्हारी हालिया स्थिति की तरह मेरे अधीन होगी।",
उसके पास कहने को कुछ नहीं था इसलिए उसने उसे दीवार पर धक्का दिया और चला गया।
"बहुत बचकाना।", उसने अपने कोट को झाड़ते हुए कहा,
"सब कुछ सेट है।", वह अपने आप से बुदबुदाया।