चंद्रशेखर आज़ाद की जीवनीप्रारंभिक जीवन
चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को भाबरा (अब अलीराजपुर, मध्य प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता सीताराम तिवारी और माता जगरानी देवी थीं। उनका बचपन भी अन्य साधारण बच्चों की तरह बीता, लेकिन देश की दयनीय हालत और ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों ने उनके मन में क्रांतिकारी विचार जगा दिए।
क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत
1921 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर, 15 वर्ष की उम्र में वे इस आंदोलन में शामिल हुए। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, और जब जज ने उनका नाम पूछा, तो उन्होंने गर्व से कहा:"मेरा नाम आज़ाद, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है!"इस उत्तर से नाराज होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 15 बेंतों की सजा दी। इस घटना के बाद उन्होंने अपना नाम चंद्रशेखर आज़ाद रख लिया और संकल्प लिया कि अब कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे।
क्रांतिकारी संगठन में सक्रियता
1922 में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, जिससे आज़ाद निराश हो गए। इसके बाद वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आए और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में शामिल हो गए। इस संगठन का उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से देश को आज़ादी दिलाना था।
काकोरी कांड (1925)
चंद्रशेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और उनके साथियों ने ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूटने के लिए 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के पास काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया। इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन आज़ाद बच निकले।
एचएसआरए (HSRA) की स्थापना
1928 में, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर आज़ाद ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) की स्थापना की। उनका मानना था कि सिर्फ अहिंसा से आज़ादी नहीं मिल सकती, इसलिए उन्होंने क्रांतिकारी तरीकों को अपनाया।
सांडर्स हत्या (1928)
जब ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सांडर्स ने लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज किया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई, तो आज़ाद, भगत सिंह और राजगुरु ने लाहौर में सांडर्स को गोली मारकर बदला लिया।
अल्फ्रेड पार्क में बलिदान (1931)
27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (अब चंद्रशेखर आज़ाद पार्क) में एक मुखबिर की सूचना पर ब्रिटिश पुलिस ने आज़ाद को घेर लिया। उन्होंने बहादुरी से मुकाबला किया, लेकिन जब उनके पास आखिरी गोली बची, तो उन्होंने खुद को गोली मार ली ताकि अंग्रेज उन्हें जिंदा न पकड़ सकें।
निष्कर्ष
चंद्रशेखर आज़ाद ने अपना पूरा जीवन भारत की आज़ादी के लिए समर्पित कर दिया। उनका बलिदान आज भी हमें देशभक्ति की प्रेरणा देता है। वे सच में अपने नाम की तरह "आज़ाद" थे और हमेशा रहेंगे।
"दुश्मन की गोलियों का सामना हम करेंगे, आज़ाद ही रहे हैं, आज़ाद ही मरेंगे!"
शायरी - चंद्रशेखर आज़ाद के सम्मान में
जलती रही क्रांति की ज्वाला, अंगारों पर पथ बनाया था,वो वीर था, वो निडर था, जिसने आज़ादी का गीत सुनाया था।दुश्मन की गोलियों से जो न डरा, वो रणभूमि का शेर कहाया था,आज़ाद था, आज़ाद रहा, और आज़ाद ही अमर कहलाया था।शायरी - चंद्रशेखर आज़ाद के सम्मान में
जलती रही क्रांति की ज्वाला, अंगारों पर पथ बनाया था,वो वीर था, वो निडर था, जिसने आज़ादी का गीत सुनाया था।दुश्मन की गोलियों से जो न डरा, वो रणभूमि का शेर कहाया था,आज़ाद था, आज़ाद रहा, और आज़ाद ही अमर कहलाया था।