Badlaav Zaruri Hai - 10 in Hindi Moral Stories by Pallavi Saxena books and stories PDF | बदलाव ज़रूरी है भाग - 10

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बदलाव ज़रूरी है भाग - 10

लीजिये पेश है इस शृंखला की दसवी एवं अंतिम कहानी जिसका शीर्षक है

कंचन

एक दिन कंचन ने अपनी मम्मी से कहा "क्या मम्मी...! आप मुझे मोबाइल क्यूँ नहीं लेकर देती हो...?"

तभी कंचन की मम्मी ने आँगन में से सूखे हुए कपड़े उठाते हुए कहा,

"कहा ना अभी तुम छोटी हो, जब बड़ी हो जाओगी तो दिला देंगे...!"

"नहीं... अब मैं छोटी बच्ची नहीं हूँ, बड़ी हो गयी हूँ. मेरी सब दोस्तों के पास मोबाइल है, सिर्फ एक मेरे पास ही नहीं है"

"अच्छा इस हिसाब से तो और भी अच्छा है तुम्हारे लिए, दोस्तों की चीजो का उपयोग करने में जो मजा है ना...! वो अपनी खुद की चीज का उपयोग करने में नहीं."

"लेकिन मम्मी वो अपना मोबाइल भला मुझे क्यूँ देंगी...? मोबाइल तो सब के अपने निजी उपयोग की वस्तु होती है ना ऐसे सार्वजनिक उपयोग की थोड़ी ना होती है कि कोई भी किसी का भी मोबाइल लेले या कोई भी किसी को भी देदे "

"ओह हो, ऐसा होता है क्या..." माँ ने जान बूझकर अनजान बनते हुए कहा. साथ ही अलमारी में तह किए हुए कपड़ों को रखते हुए बोली

"ऐसी भी क्या देखना होता है सबको कि दोस्तों के साथ भी मिल बाँटकर नहीं देखा जा सकता...?"

"अब यह तो मैं क्या बताऊँ आपको वो हर एक की अलग अलग पसंद होती है ना... इसलिए "

"अच्छा यदि ऐसा है तो फिर तो तुम मेरा मोबाइल बिंदास इस्तेमाल कर सकती हो. मुझे अपनी चाँद सी गुड़िया के साथ अपना मोबाइल शेयर करने में कोई प्रॉब्लम नहीं है...!"

"नहीं माँ...! मुझे इस बार अपने जन्मदिन पर अपना खुद का मोबाइल चाहिए, मतलब चाहिए. नहीं तो मैं कोई पढ़ाई वढ़ाई नहीं करूंगी” कहते हुए कंचन मुंह फुला के एक कौने में बैठ गयी.

माँ ने कहा “नहीं करोगी तो नुकसान तुम्हारा ही होगा. लेकिन तुम्हारी इस धमकी से मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा. साफ बात यही है कि यदि तुमको मोबाइल का उपयोग करना ही है तो कुछ देर के लिए मेरे मोबाइल का करलो. वरना मजे करो.”

कहते हुए माँ कंचन के कमरे से बाहर निकल गयी. माँ बेटी का यह संवाद कंचन के पिता जी ने सुन लिया था. उन्होंने कंचन की माँ से कहा

“दे देते है ना उसे भी एक मोबाइल इस बार उसके इस जन्मदिन पर..?”

“जी नहीं बिलकुल नहीं...!”

“लेकिन क्यूँ...? उसकी सब दोस्तों के पास मोबाइल है, एक उसी के पास नहीं है. जरा सोचो तो कैसा लगता होगा उसे, वैसे भी “कोविड” के बाद से तो छोटे छोटे बच्चे भी मोबाइल पर निर्भर हो गए हैं. फिर अपनी कंचन तो अब बड़ी हो गयी है.”

“तुम्हें क्या लगता है मैं उसकी दुश्मन हूँ...?”

“नहीं ऐसा नहीं है, मेरे कहने का वो मतलब नहीं था”

थोड़ी ही देर में सुबह से शाम हो गयी. सभी लोग रात्रि के भोजन के लिए एक साथ खाना खाने बैठे तभी कंचन की दादी ने कंचन से कहा

“अरे तू क्यूँ चिंता करती है...! तेरी दादी है ना, मैं तुझे मोबाइल दिला दुंगी.”
यह सुनते ही कंचन की माँ की आँखें बड़ी हो गयी और उसने सबसे पहले कंचन के पिता की ओर देखते हुए कहा

“कंचन को कोई मोबाइल नहीं मिलेगा...! ना आप खरीद के लाओगे और ना ही दादी दिलाएंगी. यह मेरा आखरी फैसला है.”

“लेकिन बहू”

“बस अब इस बारे में कोई कुछ नहीं बोलेगा...!”

अपनी माँ का गुस्सा देख कंचन को भी गुस्सा आ गया और वह खाने की थाली को जोर से आगे धकेल कर भुन भुनाती हुई अपने कमरे में चली गयी.
बेटी को बिना भोजन किए जाते देख पिता जी उसे मनाने जाने के लिए उठे ही थे कि तभी कंचन ने उनका हाथ पकड़कर उन्हें वहीं रोक लिया ओर आँखों के इशारे से चुप चाप भोजन करने के लिए कहा.

“अम्मा आप यह क्यूँ नहीं समझती कि मैं उसकी दुश्मन नहीं हूँ. यदि मैंने किसी चीज के लिए माना किया है, तो कुछ सोचकर ही किया होगा ना...! अब आप ही इस तरह से मेरे विरुद्ध जाकर बात करेंगी तो ऐसे तो बच्चे बिगड़ जायेंगे ना...!”

कुछ ही देर बाद भोजन के पश्चात् सभी अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए. तभी कंचन के पिता ने फिर एक बार अपनी पत्नी से कहा

“आखिर तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है ? तुम्हारी ज़िद की वजह से आज बच्ची ने खाना तक नहीं खाया...”

“जब भूख लगेगी तो अपने आप खा लेगी”

“वह तो बच्ची है, लेकिन तुम तो समझदार हो, फिर ऐसी बच्चों जैसी ज़िद पकड़ के क्यूँ बैठी हो...?”

“बच्ची..., यही कहा ना तुमने अभी...! मैं भी यही कह रही हूँ. कंचन अभी बच्ची है. उसे अभी सही गलत, अच्छे बुरे की समझ नहीं है. वह अभी उम्र के उस पड़ाव पर है जहाँ से पैर फिसलने में देर नहीं लगती. इसलिए मैं उसे अभी मोबाइल जैसा खतरनाक हथियार नहीं देना चाहती.”

“अरे लेकिन यह आज के समय की जरूरत है, प्राथमिकता है, कल को वो कोचिंग जाएगी या अपने दोस्तों के साथ कहीं आयेगी जायेगी तो उसे जरूरत होगी ना और फिर हमें भी उससे संपर्क बनाये रखने में सुविधा होगी. नहीं...?”

“हाँ होगी, लेकिन तुमको पता है ना, आजकल आभासी दुनिया में साइबर क्राइम के नाम पे कितना कुछ चल रहा है. ऐसा काम करने वाले, ऐसी ही मासूम लड़कियों को अपना शिकार बनाते है और मैं नहीं चाहती कि मेरी बच्ची भी उन्हीं में से एक हो, ओर फिर अभी उसकी परीक्षा भी तो सर पर है. ऐसे में मोबाइल दिलाने से उसका मन भटक जायेगा. फिर क्या होगा तुम्हें अच्छे से जानते हो. वैसे ही आजकल मानसिक चिकित्सा,

क्या..?

“अरे ‘मेंटल हेल्थ’ यार और क्या...! तुम भी ना, हाँ तो मैं क्या कह रही थी 'मेंटल हेल्थ,' 'हाँ वही'...को लेकर लोग इतने परेशान है कि उसके लिए जागरूकता अभियान चलाये जा रहे है. फिल्में और वेब सीरीज तक बन रही है इस मुद्दे पर और कहीं ना कहीं यह इंटरनेट और मोबाइल ही है इस सब के पीछे...! जो लोगों को अवसाद और अकेलेपन का शिकार बना रहा है.”

“अरे इसमें टेक्नोलॉजी की भला क्या गलती...! यह तो उसे उपयोग करने वाले पर निर्भर करता है ना कि वह इस यंत्र से हत्या करेगा या आत्मरक्षा...”

“अरे ऐसा कैसे...? और फिर यदि हमने अभी उसकी मांग पूरी कर भी दी ना तो, उसे लगेगा कि बस इसी तरह माता पिता को ब्लैक मेल करो...!”

“देखो में तुम्हारा डर समझ सकता हूँ. लेकिन उस डर के चलते हम अपने बच्चे को समय से पीछे रहने के लिए तो मजबूर नहीं कर सकते ना..! इसके लिए हमें उसे समझाना होगा. इस यन्त्र के सही ओर गलत उपयोग के बारे में बताना होगा. तो मुझे पूरी उम्मीद है कि वो समझ जायेगी. वैसे भी हमारी बेटी बहुत समझदार है”
“हाँ वो तो है...!”

“देखो मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि तुम्हारा डर गलत है. लेकिन यह भी तो सोचो, आज तो वह सामने से मांग रही है अपने मन की बात हम से कह रही है. कहीं ऐसा ना हो कि कल को वह चोरी छिपे, बिना सही गलत जाने कुछ उल्टा सीधा देख समझ ले तो ओर भी दिक्कत हो सकती है. इससे अच्छा है हम ही उसे इस यंत्र के विषय में सही गलत बताते हुए इसके फायदे ओर नुकसान की जानकारी प्रदान कर दें.”

“हाँ....! कहना बहुत आसान है लेकिन आजकल के बच्चों को कुछ भी समझना मतलब कुतर्क से सर फोड़ने जैसा है. तुम नहीं जानते”

“अरे नहीं, समझाने के तरीके पर भी निर्भर करता है. हम उसे ना बिलकुल किसी योद्धा की तरह समझायेंगे. वो जैसे पुराने जमाने में बच्चों को तलवार सिखाते वक्त उन्हें यह बताया, सिखाया, जाता था कि यह उनकी आत्मरक्षा के लिए दिया जाना वाला एक शक्तिशाली हथियार है. जिसे केवल आत्मरक्षा के लिए ही उपयोग किया जाना चाहिए. लेकिन इससे किसी की जान भी जा सकती है. इसका मतलब यह नहीं है कि आप बे वजह किसी की भी जान ही लेलो. ठीक उसी तरह हम भी अपनी बिटिया से बात करेंगे उसे समझायेंगे... ठीक है...?”

“ठीक है, लेकिन परीक्षा के बाद ही उसके पहले बिलकुल नहीं.”

“अच्छा बाबा ठीक है, जैसा तुम कहो”
समय बीता कंचन 9 वी कक्षा में बहुत ही अच्छे नंबरों से पास होकर अब 10 वी में आ चुकी थी ओर उसके पास होने की खुशी में उसकी माँ ने उसे मोबाइल उपहार के रूप में देते हुए कहा
“देखो बेटा, माना के यह आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है और आज के समय में इसके बिना जीना भी उतना ही मुश्किल है जैसे पानी ओर भोजन के बिना. लेकिन यदि तुमने इसका सही इस्तेमाल किया तो तुम फर्श से अर्श पर भी जा सकती हो क्यूंकि इस यंत्र के माध्यम से सारी दुनिया एक तरह से सिमट कर तुम्हारे हाथों में आ जायेगी. जिसमें तुम्हें बहुत कुछ सीखने समझने को मिलेगा.

लेकिन यह यंत्र साथ में लाएगा एक ‘आभासी दुनिया’ जहाँ दिखेगा तुम्हें कुछ ओर, वास्तव में होगा कुछ और ही...! बहुत कुछ सही होगा तो बहुत कुछ गलत भी होगा. इसलिए तुम्हें सब कुछ बहुत ही सतर्कता और होशियारी के साथ इसका उपयोग करना होगा. यहाँ कई अनजाने लोगों से तुम्हारी दोस्ती होगी. पहले पहल सिर्फ बात होगी, फिर मुलाक़ात के लिए दबाव बनाया जायेगा. फिर हो सकता है, मिलने के लिए भी बुलाया जायेगा. पर जैसा की मैंने कहा यहाँ दिखेगा कुछ और हकीकत कुछ और ही होगी. इसलिए बिना भ्रमित हुए तथ्यों की जाँच करते हुए ही तुम्हें यह तय करना होगा कि क्या वह व्यक्ति या विषय वस्तु सही है जिसके विषय में तुम देख सुन और समझ रही हो.चूंकि कुछ गलत होने की संभावना अधिक होंगी तो चाहे कुछ भी हो जाये किसी भी तरह से तुम किसी को भी अपनी कोई भी निजी जानकारी नहीं देना. चाहे वह इंसान तुम्हें कितना भी अपना क्यूँ ही ना लगता हो. विशेष तौर पर अपनी तस्वीरें..

हाँ... हाँ...! माँ में सब समझ गयी, अब मुझे मोबाइल खोलकर देखने तो दो...!

इस सबके साल भर बाद ही कंचन ने अपनी माँ को उसकी एक सहपाठी के विषय में बताया जिसने किसी लड़के के चक्कर में पड़कर उसके कहे पर अपनी कुछ निजी और आपत्तिजनक तस्वीरें मोबाइल पर साझा कर दी थी और फिर उस लड़के ने उसकी वह निजी तस्वीरें ‘सोशल मिडिया’ पर डाल देने की धमकी देते हुए उसका फायदा उठाया. उसे पूरी तरह से अपने जाल में फंसाकर ना सिर्फ उसे बल्कि उसके माँ बाप को भी बहुत ब्लैक मेल किया. इतना परेशान करने के बाद भी वह लड़का शांत नहीं हुआ और आखिर में उन लोगों ने उसका वीडियो वायरल कर दिया. जिसके कारण उन लोगों को शर्म के मारे यह शहर छोड़कर जाना पड़ा.

इतना सुनने की देर थी कि कंचन की माँ के होश उड़ गए और उसे लगा ‘जिस बात का डर था वही हुआ’ “पता है इसी वजह से मैं तुझे मोबाइल देने से डर रही थी.”

“तुझे यह सब कैसे पता...?”
“उसकी मम्मी आज टीसी लेने आयी थी और जब वह प्रिंसिपल मैम से इस विषय में बात कर रही थी तो हम लोगों ने सुन लिया”
“अच्छा और क्या कहा उन्होंने...?”
“उन्होंने कहा कि मैडम आप तो जानती ही है कि आजकल के सभी बच्चे मोबाइल का उपयोग करते ही है. उन में से कुछ बच्चे चोरी छिपे स्कूल में भी लाते है और उल्टी सीधी चीजे देखते है. मेरी बेटी भी उन्हीं में से एक थी. ऐसा सब करके उसकी ज़िन्दगी तो बर्बाद हो गयी. इससे पहले और किसी बच्चे या बच्ची के साथ ऐसा कुछ हो, उन्हें इस विषय के बारे में जानकारी देना और सतर्क रहना सिखाना ही होगा. हमारे देश में आज “सेक्स एजुकेशन” की जितनी जरूरत है. उतनी ही जरूरत इस “साइबर क्राइम” से जुड़ी जानकारी देने की भी है”

जीवन में आगे बढ़ना ज़रूरी है. लेकिन तेजी से बदलते वक्त के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए ना सिर्फ सोच में बल्कि किए जाने वाले कर्म में भी पूरी सतर्कता और सावधानी के साथ "बदलाव ज़रूरी है"

आशा है आप सभी पाठकों को इस शृंखला से जुड़ी कोई न कोई कहानी अवश्य पसंद आयी होगी और किसी न किसी कहानी ने आपका दिल भी अवश्य ही छुआ होगा यदि हाँ तो ज्यादा से ज्यादा संख्या में इसे देखें, पढ़े और पसंद करें ताकि मैं इसी तरह की अन्य नयी कहानियाँ लिखकर आपके मन को छु सकूँ 

धन्यवाद