The Situation Self - 2 in Hindi Motivational Stories by ADARSH PRATAP SINGH books and stories PDF | The Situation Self - 2

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The Situation Self - 2

**भाग 2: भावनात्मक बुद्धिमत्ता**

 **अध्याय 2: भावनाओं को समझना और नियंत्रित करना**  आरव की आत्म-जागरूकता की यात्रा अब एक नए मोड़ पर पहुँच चुकी थी। उसे एहसास हो चुका था कि खुद को समझने के लिए सिर्फ ताकत और कमजोरियों को जानना ही काफी नहीं है। उसे अपनी भावनाओं को समझने और उन्हें नियंत्रित करने की कला सीखनी होगी।  एक शाम, आरव अपने दफ्तर से लौटा। दिन भर की थकान और तनाव उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था। उसका प्रोजेक्ट डेडलाइन के करीब था, और टीम के सदस्यों के बीच मतभेदों ने उसकी मुश्किलें और बढ़ा दी थीं। जैसे ही वह घर पहुँचा, उसकी माँ ने उसे देखते ही पूछा,

"क्या हुआ बेटा? तुम इतने परेशान क्यों लग रहे हो?"  आरव ने गुस्से में जवाब दिया, "कुछ नहीं, माँ। बस थक गया हूँ।"  उसकी आवाज़ में छिपा गुस्सा उसकी माँ को समझ आ गया। उसने धीरे से कहा, "गुस्सा करने से कुछ हल नहीं होगा, बेटा। तुम्हें अपनी भावनाओं को समझना होगा और उन्हें नियंत्रित करना सीखना होगा।"  माँ की बात आरव के दिल में उतर गई। उसने सोचा, "शायद माँ सही कह रही है। मैं अपने गुस्से, डर और खुशी को समझने की कोशिश क्यों न करूँ?"  

उस रात, आरव ने अपनी डायरी खोली और एक नया पन्ना शुरू किया। उसने लिखा:  

**"भावनात्मक बुद्धिमत्ता: गुस्से, डर और खुशी को समझना।"**  उसने तीन कॉलम बनाए:

**गुस्सा**, **डर**, और **खुशी**।

हर कॉलम के नीचे उसने लिखा कि ये भावनाएँ कब और क्यों उत्पन्न होती हैं।

 **गुस्सा:**  1. जब कोई मेरी बात नहीं सुनता।  2. जब मैं खुद को असहाय महसूस करता हूँ।  3. जब मेरी उम्मीदें पूरी नहीं होतीं।

 **डर:**  1. असफलता का डर।  2. लोगों के बीच खुद को साबित न कर पाने का डर।  3. अज्ञात का डर।  

**खुशी:**  1. जब मैं अपने लक्ष्यों को पूरा करता हूँ।  2. जब मैं अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताता हूँ।  3. जब मैं दूसरों की मदद करता हूँ।  

आरव ने महसूस किया कि उसकी भावनाएँ उसके विचारों और परिस्थितियों से जुड़ी हुई हैं। उसने सोचा, "अगर मैं अपने विचारों को बदल सकूँ, तो शायद मैं अपनी भावनाओं को भी नियंत्रित कर सकता हूँ।"  अगले दिन, आरव ने एक नया प्रयोग शुरू किया। जब भी उसे गुस्सा आता, वह गहरी साँस लेता और खुद से पूछता, "मैं गुस्सा क्यों हूँ? क्या यह स्थिति इतनी गंभीर है?" धीरे-धीरे, उसने महसूस किया कि गुस्सा करने से पहले सोचने की आदत ने उसे शांत रहने में मदद की।  इसी तरह, जब उसे डर लगता, तो वह खुद से पूछता, "मैं किस बात से डर रहा हूँ? क्या यह डर वाजिब है?" उसने पाया कि ज्यादातर डर उसकी कल्पना का हिस्सा थे और वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं था।  और जब वह खुश होता, तो वह उस पल का आनंद लेता और उसे अपनी डायरी में लिखता। उसने महसूस किया कि खुशी को महसूस करने और उसे सहेजने की कला भी सीखनी ज़रूरी है।  एक हफ्ते बाद, आरव ने अपनी डायरी में लिखा:

 **"भावनाएँ हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा हैं। उन्हें समझना और नियंत्रित करना ही भावनात्मक बुद्धिमत्ता है। मैंने सीखा है कि गुस्से, डर और खुशी को समझने से मैं खुद को बेहतर तरीके से संभाल सकता हूँ।"**  

और इस तरह, आरव ने भावनात्मक बुद्धिमत्ता की ओर अपना दूसरा कदम बढ़ाया।