लीजिये पेश है इस शृंखला की नवी कहानी जिसका शीर्षक है
ज़िम्मेदारी
एक गर्भवती महिला जब अपनी गर्भावस्था के दौरान अपनी चिकित्सक से जाकर मिली तो चिकित्सक ने निरीक्षण परीक्षण के उपरांत उससे कहा
"क्या बात है, बहुत परेशान लग रही हो कोई टेंशन है क्या...?"
चिकित्सक की बात सुनकर पहले तो उस महिला ने कहा
"नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है."
"मैं मान ही नहीं सकती कि कोई बात नहीं है, परन्तु हाँ यदि तुम मुझे बताना नहीं चाहती तो ओर बात है. फिर भी मैं यह जरूर कहना चाहूंगी कि इतनी टेंशन, इतना तनाव, ना तुम्हारे लिए ठीक है ना तुम्हारे होने वाले बच्चे के लिए. आगे तुम्हारी मर्जी."
उस दिन तो वह महिला वहां से वापस अपने घर लौट गयी. लेकिन फिर कुछ दिनों बाद, जब वही महिला दुबारा अपनी उसी चिकित्सक के पास पहुँची तो वह पहले से भी ज्यादा कमजोर और अस्वस्थ दिखाई दे रही थी. इस बार डॉक्टर ने उससे सिर्फ इतना ही पूछा
“क्या तुम्हारे साथ कोई और भी आया है...?”
उसने कहा "नहीं मैं अकेली ही आयी हूँ. क्या बात है डॉ. सब ठीक तो है ना...!"
“नहीं कुछ ठीक नहीं है, इसलिए तो पूछ रही हूँ. तुम्हारा होने वाला बच्चा बहुत कमजोर है. उसका विकास ठीक से नहीं हो रहा है...!”
“यह आप क्या कह रही हो डॉक्टर...? ऐसा क्यों...?
"क्यूंकि आप ठीक से खाना नही खा रही हो, पोषक तत्वों की भारी कमी तो आपकी हालत देखकर ही पता चल रही है. ऐसी हालत में तो खिलायी पिलायी अच्छी तरह से होनी चाहिए. अकेली दवाओं के भरोसे थोड़ी ना बच्चा पल जायेगा."
यह सुनकर महिला एकदम चुप सी हो गयी और थोड़ी देर के लिए कहीं खो सी गयी. तभी डॉक्टर ने पूछा डॉक्टर ने थोड़ी ऊँची आवाज में कहा
"तुम समझ रही हो ना, मैं तुम से बात कर रही हूँ. हेलो...!!"
तभी महिला की तंद्रा टूटी और उसकी आँखों से आँसू टपक गए.
डॉक्टर ने कहा "मैंने तुम से पहले भी पूछा था कि क्या तुम परेशान हो और यदि हो तो तुम मुझे बता सकती हो. मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी और क्या पता बात करने से तुम्हारी समस्या का कोई हल ही निकल आये"
तभी उस महिला ने कहा “प्रॉब्लम तो है डॉक्टर, मुझे यह बताइये कि बच्चों को पालना आसान है या वृद्ध जनों को पालना...?
डॉक्टर ने कहा “क्या...? यह कैसा सवाल है ...?”
“हाँ..! आपने ठीक सुना”.
कुछ देर सोचने के बाद डॉक्टर ने कहा “दोनों को पालना एक जैसा ही है प्रिय, बच्चे बूढ़े एक समान. सब, बस एक सोच का फर्क है”.
"अच्छा...! मुझे तो ऐसा नहीं लगता, बच्चों को पालते वक्त उनके भले के लिए, उन्हें सही गलत समझाने और सिखाने के लिए, हम उन्हें कभी प्यार से, कभी फटकार से, कभी मार से संभाल लेते है. लेकिन क्या हम ऐसा कुछ भी बड़ो अर्थात बुज़ुर्गों के साथ कर सकते है. नहीं ना...? फिर बच्चे बूढ़े एक समान कैसे हुए...?"
“अरे आसान है, वृद्धावस्था में अक्सर लोग बच्चों जैसे ही हो जाते है थोड़े ज़िद्दी, मनमानी हरकतें करते है तो उन्हें प्यार से समझाओ बात करो. शुरु शुरु में मनमानी करेंगे, फिर मान जायेंगे.”
"और ना माने तो ...? यही तो प्रॉब्लम है कि वह ना प्यार से समझते है, ना गुस्से से समझते है, ज्यादा कुछ कहो तो रोने गाने लगते है. कहते है ‘हम तुम लोगों पर बोझ बन गए है तो हमें वृद्ध आश्रम छोड़ आओ, यह सब देखने सुनने से पहले अब तो भगवान हमें उठा ले, इससे तो अच्छा होता हम पहले ही मर जाते’ इत्यादि."
डॉक्टर ने कहा "देखो तुम्हारे पति तुम्हारे साथ आए हों तो उन्हें बुलाओ, मैं उनसे बात करना चाहती हूँ. ठीक है...! क्यूंकि ऐसी हालत में यदि तुम इस तरह के माहौल में रहोगी तो यह तुम्हारे लिए बिलकुल भी ठीक नहीं है. तुम्हारे तनाव का सीधा असर गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क पर पड़ता है. जिसके कारण उसका मानसिक स्वस्थ खराब हो सकता है. तुम ऐसा करो अपनी माँ के घर चली जाओ, फिर जब बच्चा पैदा हो जाये तो वापस आ जाना”
“वो नहीं हो सकता डॉक्टर, मेरे घर वालो ने पहले ही कह दिया है कि मेरा होने वाला बच्चा, मेरे पति और मेरे ससुराल वालों की ज़िम्मेदारी है, मायके वालों की नहीं, इसलिए यहाँ आने की ज़रूरत नहीं है”
पहले तो यह सुनकर डॉक्टर हैरान रह गयी फिर बोली
“अच्छा ठीक है, अपने पति को बुलाओ”
महिला ने अपने पति को बुलाया तो डॉक्टर ने उसे पूछा “यह बताइये कि आपका होने वाला बच्चा किसकी ज़िम्मेदारी है...? केवल आपकी पत्नी की ...? या आपकी और आपके घरवालों की भी है”.
"जी मेरी भी है, क्यूँ क्या हुआ..? आप ऐसे क्यूँ पूछ रही हो..?”
"आपने हालत देखी है अपनी पत्नी की, कितनी कमज़ोर हो गयी है वो. यही हाल रहा तो आगे जो भी होगा उसकी ज़िम्मेदारी मेरी नहीं होगी. क्या आपको नहीं लगता कि ऐसी हालत में उसका खुश रहना बाकी किसी भी ओर काम से ज्यादा ज़रूरी है ? लेकिन वह पिछले कई महीनों से तनाव में है. मुझे इसी सिलसिले में आपसे कुछ बात करनी है.
“जी कहिए”
“देखिये, जब किसी घर में उम्रदराज़ लोग होते है जो अपना काम भी सुचारु रूप से नहीं कर पाते. ऐसी हालत में उनकी देखभाल करना केवल उस घर की बहू के अकेले की ज़िम्मेदारी नहीं होती. उसके घर के पुरुष अर्थात उनके बेटे की भी उतनी ही ज़िम्मेदारी होती है. लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं होता कि वह केवल पति के माता पिता है तो उनकी देखभाल भी केवल पति ही करेगा, पत्नी नहीं करेगी. आप लोग बच्चे तो है नहीं, फिर भी आज मुझे आपको यह समझाना पड़ रहा है कि एक परिवार का महत्व और ज़िम्मेदारी क्या होती है."
ठीक उसी तरह, जिस घर में कोई नवजात शिशु का जन्म होता है, वहां भी केवल उस बच्चे की माँ की अकेले की ज़िम्मेदारी नहीं होती उस बच्चे को संभालने की, बल्कि परिवार के हर एक सदस्य की ज़िम्मेदारी है. ताकि माँ को आराम मिल सके. विशेष रूप से माँ की निद्रा के समय क्यूंकि नवजात शिशु की माँ को बच्चे के पालन पोषण के दौरान रात को भी सोने को नहीं मिलता. इसलिए जब भी वह दिन में सोना चाहे, तब पूरे परिवार को मिलकर उसका साथ निभाना चाहिए. क्यूंकि अपनी जान पर खेलकर एक महिला ने आपके वंश की वृद्धि के लिए, नो महीने कष्ट उठाया और जन्म के वक्त भी पारिवारिक तनावों को झेलते हुए, ना जाने कितने अनगिनत पाबंदियों के चलते, ना जाने कितने समझौते करने के बाद भी, वह आपके बच्चे को जन्म देती है. उस पर भी यदि आप उसे उसकी इस यात्रा में सहयोग नहीं कर सकते तो आपको उस बच्चे का पिता कहलाने का कोई हक नहीं और ना ही आपके परिवार के किसी बुज़ुर्ग व्यक्ति को उस बच्चे के ‘दादा दादी’ या ‘नाना नानी’ कहलाने का भी कोई हक नहीं है.
तो अब, ऐसे में आपकी ज़िम्मेदारी बनती है कि या तो आप अपने माँ बाप को और अपने ससुराल वालों को समझाइये या फिर अपनी पत्नी को लेकर, थोड़े दिन के लिए कहीं और चले जाइए. वरना लगातार तनाव और चिंता में बने रहने के कारण केस बिगड़ भी सकता है"
“जी, मैं समझ गया डॉक्टर की यदि पूर्ण रूप से स्वस्थ संतान और खुशहाल संयुक्त परिवार चाहिए तो परिवार के सभी सदस्यों की सोच में
"बदलाव ज़रूरी है"
जब भी हम परिवार में रह रहे होते हैं तब परिवार से जुड़े हर एक व्यक्ति की ज़िम्मेदारी परिवार के हर सदस्य की होती है, किसी एक सदस्य की नहीं क्यूंकि परिवार सभी का होता है सभी से मिलकर बना होता है किसी एक से नहीं ...!
जल्द मुलाक़ात होगी, फिर एक नयी कहानी के साथ तब तक के लिए जुड़े रहिए और इसी तरह अपना प्यार देते रहिए ...! धन्यवाद