Swayamvadhu - 38 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 38

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स्वयंवधू - 38

गलत यादे?

दो महीने तक गहरी कोमा में रहने के बाद अंततः वह जाग उठी। अधीर के आने के बाद मुझे उसके भविष्य की चिंता होने लगी थी।
और उस समय माता सरस्वती मेरी जीभ पर बैठी थीं। मेरी चिंताएँ सटीक थी! जैसे ही समीर अंदर दाखिल हुआ, एक डॉक्टर जिसने उससे पहले कोमलता से बात की थी उसने उसे सोते समय गर्दन पर हताश होकर कुछ इंजेक्शन लगाया। यह हर वक्त की तरह कोई सफ़ेद तरल नहीं थी बल्कि काले और भूरे रंग की गाढ़ी चीज़ थी।
उसने जाँच की कि क्या उसने अस्वीकृति का कोई संकेत तैयार नहीं दिखाया?
समीर के फोन पर एक सूचना आई जिसमें बताया गया कि वह बॉट-2 से जुड़ गया है।
"क्या यह बिजली का झटका देने में सक्षम है?", उसने अपना फ़ोन घुमाते हुए पूछा,
"हाँ सर, लेकिन त्रिज्या मायने रखती है। विद्युत झटका देने के लिए इसकी त्रिज्या लगभग 100 मीटर होनी चाहिए, लेकिन यह आवाज़ और शरीर की हरकत को लाइव रिकॉर्ड करके भेज सकता है। (आँखों की हरकत को छोड़कर। मुझे खेद है बच्चे, तुम मेरे बच्चे की उम्र की हो, लेकिन मेरा परिवार भी खतरे में है।) बस एक ही समस्या है।", उसने आगे कहा,
उसने चिढ़कर अपनी जीभ चटकाई।
डॉक्टर काँप गया।
उसने काँपते हुए कहा, "स-सर, भविष्य में जब आप उसका अधिक उपयोग करेंगे तो उसे बार-बार जाँच की आवश्यकता होगी। "
समीर व्यंग्यात्मक रूप से मुस्कुराया,
"ज़रूर हम उसे बचा जो रहे है।"
काफी देर तक इंतजार करने के बाद जब वह सामान्य दिखी तो समीर के इशारे पर वह डर के मारे कमरे से बाहर भाग गया।
समीर अपने फोन में कुछ करने लगा।
कुछ ही देर बाद उसे पुनः होश आ गया।
उसके सहायक ने उसकी मर्ज़ी के बिना उसे बैठा दिया।
वह बिना किसी सहायता के बिस्तर से चिपकी हुई खुद को संतुलित करने में असमर्थ थी।
वह खड़ा हुआ और अपना हाथ आगे कर कहा, "आपसे मिलकर खुशी हुई, मीरा।",
उसने कुछ नहीं कहा बस उसे हैरत में देखे जा रही थी। उसने उसके हाथ पर नज़र दौड़ाई। उसकी नज़रो को पकड़कर समीर ने अपने हाथ पीछे खींच ली।
उसने बात बदलते हुए प्रश्न किया, "मीरा, तुम्हें कैसा लग रहा है?", उसने सावधानी से पूछा, लेकिन फिर भी अपना धैर्य बनाए रखा। मैं उसकी आभा को महसूस कर सकती थी। वह बस उसे पुरुष, शक्तियों और गैर शक्तियों के बीच फेंकना चाहता था और जब वे उसे चीर रहे होते तब उनकी ऊर्जा को सोख लेना चाहता था।
इस आदमी में धैर्य तो बहुत है जो बीतते समय के साथ चरमरा रहा था।
वह अपनी असलियत छिपाते हुए मुस्कुराया, "यह बहुत अशिष्टता है कि मैंने अपना परिचय नहीं दिया और तुम पर सवालों की बौछार कर दी। मेरी गलती। मैं खुद समीर, खाद्य उद्योग में प्रसिद्ध बिजलानी कॉरपोरेशन का मालिक और सीईओ समीर बिजलानी हूँ।",
जिस पर उसने सतर्क होकर जवाब दिया, "आप बड़े हैं कृपया 'आप' का प्रयोग ना करें।",
(क्या!?????) मैं अवाक हूँ।
वह उसकी मूर्खता पर मुस्कुराया और निर्दोष खेलते हुए बोला, "हाहाहा, तुम बहुत प्यारी लड़की हो। मैं हमेशा से तुम्हारे जैसी बेटी चाहता था लेकिन देखो किस्मत का खेल मेरे कृतघ्न लड़के के कारण से एक बेटी मिल गई।", उसने उसके बालों को ऐसे संवारा जैसे कोई पिता संवारता हो।
उसने चौंककर पूछा, "बेटी?",
उसने अपनी नज़र शर्म से दूसरी तरफ कर शर्मिंदगी के साथ कहा, "मुझे पता है बेटे जो तुम्हारे साथ हुआ वो कोई अपने जानी दुश्मन के साथ भी नहीं करेगा। मैं नीच लग सकता हूँ पर हो सके तो मेरे बेटे को माफ कर दो। मेरा एक ही बेटा है, मैंने अपनी पत्नी से वादा किया था कि से उसे बहुत नाज़ो से पालूँगा पर लगता है मेरे दुलार ने उसे ड्रग एडिक्ट और वुमनाइजर बना दिया है।
मैं हमेशा उसके साथ सख्त रहा, ताकि वह भविष्य में एक अच्छा लीडर बने और कंपनी को वैसे ही संभाले जैसे मैंने किया था जब मेरे पिता ने इसे मुझे सौंपा था।", उसने भारी आवाज़ में लज्जित होते हुए कहा, "पर कहते है जैसा हम चाहते है हमेशा उसके उल्ट होता है। वही मेरे और तुम्हारे साथ भी हुआ। कायल, अंजलि, प्रांजलि... म्ममम इस बारे में हम बाद में बात करेंगे मीरा।",
उसने हक्के-बक्के और पिछली बातो को यादकर पूछा, "मीरा? पर मीरा कौन है?",
उसने सदमा पहुँचने वाला शक्ल बनाकर कहा, "तुम्हारा क्या मतलब है? तुम हो मीरा! तुम्हें कुछ याद तो है?",

मैं समझ गयी थी कि वह क्या करने की कोशिश कर रहा था, "बच्चे! अर्ध महाशक्ति! इस आदमी की किसी भी बात पर विश्वास मत करो... अरे!", मैंने उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए उसे बुलाने कि कोशिश की लेकिन लगता है कि मेरी आवाज़ उस तक नहीं पहुँच रही जबकि हम हर पल संवाद करते थे लेकिन अब... "ओए! वृषाली! क्या तुम मुझे सुन पा रही हो? अगर सुन सकती हो तो उसपर भरोसा मत करना!", मेरे पास जितनी शक्ति थी उतनी शक्ति से चिल्लाई पर लगता नहीं कि वो मुझे सुन सकती थी।

उसने डरकर अपना नाम बताया, "वृषाली, वृषाली राय। मैं वृषाली राय हूँ।", उसे कछ समझ नही आ रहा था।
उसने हताश होकर अपने सिर में मारा फिर अपने आदमी को डॉक्टर को बुलाने के लिए कहा और वहाँ उसके बगल उसका हाथ पकड़कर बैठ गया। वृषाली को स्थिति समझ नहीं आ रही थी। उसके लिए उसका अस्तित्व खतरे पर आ गया था।
"क्या मतलब है आपका मिस्टर समीर बिजलानी? आपने डॉक्टर को क्यों बुलाया? मैं वृषाली राय हूँ और आप भी मुझे जानते हैं, है ना? आप मुझे ज़बरदस्ती अपने विला में ले गए और मुझे धमकाया था कि वहाँ डायरी को ज़ोर से पढ़ूँ और आप मेरे परिवार को आज़ाद कर दोगे पर कल... पर...",
"पर क्या?", समीर ने चिंता में अब भी उसका हाथ पकड़ रखा था,
"कल? आज? दिन कौन सा?", वृषाली को समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा था।
तभी वही डॉक्टर वहाँ आया।
"डॉक्टर, क्या उसकी याद्दाश्त में कुछ गड़बड़ है?", उसके चेहरे पर चिंता झलक रही थी,
डॉक्टर भी उसके व्यवहार में अचानक आए परिवर्तन से आश्चर्यचकित थे। उसने अपने अंदर संयम इकट्ठा किया और भावहीन चेहरे से वृषाली को जाँचा,
"नाम?",
"वृषाली राय।", उसने डॉक्टर की तरफ देखा,
"जन्मदिन?",
"सात सितंबर उन्नीस सौ अट्ठानवे।", उसने समीर की तरफ देखा, 
"तुम्हारी उम्र क्या है?"
"चौबीस।",
"पता?",
"मैं अंडमान नामक एक द्वीप पर रहती थी, वहीं पली बढ़ी, वहीं स्कूली शिक्षा और ग्रैजुएट हुई। हाल ही में मैंने अपना सीएमए कोर्स भी पूरा किया है। मैं एक सामान्य जीवन जी रही थी जब तक कि कोरोना प्रकोप के बाद वृषा बिजलानी ने मेरा अपहरण नहीं कर लिया और मुझे अपने बंदी बना लिया। स्वयंवधू की आखरी प्रतिभागी।",
"वह सही है लेकिन...", डॉक्टर अपने में बुदबुदाया।
फिर आत्मविश्वास से कहा, "स्मृति में कुछ गड़बड़ लग रही है और यातना के कारण पूरी तरह थक जाने के बावजूद वह बिल्कुल ठीक थी। उसे कम से कम तीन महीने तक आराम की ज़रूरत है इससे पहले कि (उसका वास्तविक नरक जीवन शुरू हो जाए।) वो अपने नियमित जीवनशैली में वापस जा सके।",
(यातना?) वृषाली के चेहरे पर प्रश्नचिन्ह साफ दिखाई दे रहा था।
डॉक्टर ने उसकी ओर मुस्कुराकर जोड़ा, "यदि अभिभावक हमें अनुमति दें तो हम अभी बात कर सकते हैं?", उसने समीर की ओर घुमकर पूछा।
समीर ने चिंता में हाँ में सिर हिलाया।
डॉक्टर ने यह सुनिश्चित किया कि वह तनावमुक्त रहे, आराम से और सीधे बैठे। उसने समीर से उसके हाथ पकड़ने को कहा क्योंकि वह उसका अभिभावक था, हालाँकि वह एक आदमी के उसे छूने से असहज थी। लेकिन सच्चाई जानने के लिए उसने अनिच्छा से उनका अनुपालन किया।
सब कुछ तय करने के बाद उसने समीर से उसे असली सच्चाई बताने को कहा।

(मैं उससे भी अधिक उलझन में थी, क्योंकि मुझे पता है कि आप सब ने सैंतीसवें अध्याय तक जो भी पढ़ा वह सब वास्तविक है, लेकिन बाद में पता चला कि यह सब नकली है!?!)

उसने उसके हाथ को कसकर पकड़ते हुए कहा, "सच तो यह है कि तुम वृषाली राय नहीं हो।"
"क्या?!", वह अविश्वास में कहा,
"तुम्हारी असली पहचान मीरा की है। और तुम सीएमए धारक नहीं हो, वास्तव में तुमने कभी दसवीं भी पूरी नहीं की। और तुम कभी किसी द्वीप पर नहीं रहीं। हाँ, तुम एक सामान्य परिवार में जन्मी और पली-बढ़ी हो लेकिन अपनी आर्थिक स्थिति के कारण तुम उन अमीरों के लिए वेश्या बन गईं जिन्हें तुम्हारे जैसे मासूम चेहरे और काले लंबे बाल पसंद हैं।",
उसने अपना हाथ खींच लिया, "गलत! बिल्कुल गलत! आज तक मैंने किसी पराए आदमी को खुद को छूने तक नहीं दिया! मैं समुद्र के किनारे पली-बढ़ी हूँ! मैंने 2004 की सुनामी देखी है। मैंने हर एक दिन अपने दादा-दादी के ताने सुनने है और भूखी भी रही, जी-जान लगाकर पढ़ाई की सीएमए बनी और आपने बता दिया की मैंने पढ़ाई पूरी नहीं की?! मुझे मेरे जीवन के हर एक पल का हिसाब है!", उसने सिना ठोककर कहा,
"तो फिर तुम्हें अपना फोन नंबर याद होगा या अपने पिता का?", समीर ने उसे अपना फोन देते हुए पूछा,
उसने आत्मविश्वास से उसका फोन लिया और अपना नंबर डायल किया। कोरोना की जानकारी के बाद फोन शांत हो गया। फिर आगे से आवाज़ आई- 'यह फ़ोन नंबर मौजूद नहीं है।'
घबराकर उसने अपने पिता को फोन किया, कोरोना की जानकारी के बाद फोन बजा, वह आशा से भर गयी।
सामने से एक व्यक्ति ने फोन उठाया, "हैलो?",
वह ख़ुशी से बात करने गयी, "हैलो डै-", फिर आवाज़ सुन रुक गयी।
"कौन?", उसने पूछा,
"तुमने मुझे कॉल किया है तुम बोलो।", वह एक अनजान आदमी की आवाज़ थी,
उसने काँपती आवाज़ से पूछा, "नागराजन राय?",
"कौन?", सामने से आवाज़ गुस्सैल होने लगी,
उसने फिर भी पूछा, "क्या ये नाग-नागराजन का नंबर है? मैं-", उसने उसे बात पूरा करने भी नहीं दिया और चिल्लाया, "ये किसी नागराजन वागराजन का नंबर नहीं है! इस नंबर का मालिक पंद्रह साल से मैं हूँ!", उसने फोन काट दिया।
वृषाली को उसकी नाराज़गी समझ नहीं आई और वो कुछ समझने के हालत में भी नहीं थी।
समीर ने उसके कंधे पर उसे दिलासा देते हुए थपथपाया और अपना फोन लिया।
"ऐसा कैसे?", कह वह फूट-फूटकर रोने लगी।
"शांति हो जाओ मीरा।", समीर उसके बगल झुक उसे दिलासा दे रहा था तभी उसके जेब से एक तस्वीर वृषाली के हाथ पर आ गिरी जिसे देखकर उसके पैरो तले ज़मीन खिसक गयी। वो अपना चेहरा किसीको दिखाने के काबिल नहीं रही।