अत्याचार भाग 2
एक, दो महीने से अधिक समय बीत गये थे।
उसे उसके पिछले अपहरणकर्ता, उसकी नियति से अगवा करने के बाद उन्होंने बिना किसी दया के बार-बार क्रूरता से उसे प्रताड़ित करते गए। पिछले सनकी डॉक्टरों ने उसे कोमा में जाने के लिए पता नहीं कौन सी क्या दवाइयाँ दीं थी?!
वह एक जीवित लाश बन गयी थी जो दफनाए जाने का इंतजार कर रही थी। मैंने कवच को ढूँढने कि कोशिश की लेकिन मैं उस तक नहीं पहुँच सकी। मुझे उसे उसके पैंरो पर खड़ा करना होगा।
पर एक पेशानी है- वह कमज़ोर है इसलिए मैं भी कमज़ोर हूँ, उसे वापस खड़ा करने के लिए मुझे कवच को ढूँढना होगा लेकिन ऐसा करने के लिए मुझे वृषाली कि ऊर्जा की ज़रूरत है जो उसके पास नहीं है और मेरे ऊर्जा को भी ऊर्जा स्रोत की ज़रूरत है जो वृषाली है और उसकी आपूर्ति कवच खत्म कर सकता है जिसके लिए मुझे उसे ढूँढने की आवश्यकता है पर फिर ऊर्जा नहीं और मैं इस कभी ना खत्म होने वाले चक्र में फँस गयी हूँ।
आह!!!
यदि मैं चाहूँ तो मुैं उसकी जीव ऊर्जा को सोखकर अपनी आपूर्ति पूरी कर सकती हूँ पर... पर ये बच्ची नहीं बचेगी। ऐसा नहीं है कि वह अकेली है, मैं सुहासिनी या साक्षी के बीच किसी एक को चुन महाशक्ति बना सकती हूँ लेकिन... पता नहीं क्यों मैं खुद को उसकी ऊर्जा को चूसने, उसे खत्म करने और उसे मरने के लिए तड़पता छोड़ने के लिए तैयार नहीं कर पा रही हूँ?
इससे पहले, शक्ति, कवच, महाशक्ति को मारना मेरे लिए कोई कठिन काम नहीं था।
मैंने कईयो को मारा है!
यह हमेशा से ऐसा ही था। 'योग्यतम का जीवित रहना'- पशु साम्राज्य के समान ही था। समाज को इसी की ज़रूरत है। ताकतवर लोग नेतृत्व करें और कमज़ोर, वापस मिट्टी में विलीन हो जाएँ। मैं स्वयं इसी मानसिकता का उत्पाद हूँ। मैंने ऐसा एक बार नहीं बार-बार किया है जब भी कोई इसके जैसा कमज़ोर व्यक्ति अगला मुखिया बनने का दावा करता है। लेकिन आज, आज मैं अपने आप को उसे खरोंचने के लिए भी नहीं ला पा रही। फिर भी मैंने कुछ दिनों तक उसे कई बार मारने कि कोशिश की लेकिन मैं नहीं मार सकी। वह अभी भी बिस्तर पर पड़ी हुई थी और उसे ढूँढना और मारना आसान था। फिर भी मैं खुद को ऐसा करने के लिए मज़बूर नहीं कर सकी। मैं बस उसे भ्रमित भावनाओं के साथ देखते रही, जो मैंने अपने जीवन में कभी महसूस नहीं की थी। अचानक मुझे उसे गले लगाने की इच्छा हुई। मैंने उसे गले लगा लिया। जैसे ही मैंने उसे गले लगाया, उसका शरीर थोड़ा सा हिला। मैं चौंकी और उसे ध्यान से देखा। उसकी उँगलियाँ हल्के से हिल रही थीं। मैंने डॉक्टर को बुलाने कि कोशिश की लेकिन मेरी आवाज़ केवल उसे ही सुनाई देती है।
"आह! मा-", वह हल्की कमज़ोर आवाज़ में दर्द से कराहयी। उसकी बँद आँखों से धीरे-धीरे आँसू टपकने लगे। अलार्म बज गया। वह ज़ोर से गूँजा। डॉक्टरों की टीम तुरंत प्रतिक्रिया करते हुए कमरे में पहुँची। उन्होंने उसकी स्वास्थ्य स्थिति की गहन जाँच की।
चेक-अप के बाद डॉक्टर उत्साह में चिल्लाया, "आखिरकार! लगभग दो दिनों में वह जाग सकती है।",
(क्या! वह दो दिन में जाग जाएगी।)
दूसरे डॉक्टर ने उसे चुप कराकर भेज दिया।
उन्होंने उसकी जाँच की, विशेषकर उसके गर्भाशय की। कुछ तो गड़बड़ है। वह आदमी जिसने पिछले अस्पताल पर छापा मारा और उसे बचाया था, जल्दबाज़ी में आया। यह पहली बार था जब वह आदमी उससे मिलने आया था। नहीं लगता है। वह सीधे डॉक्टर से बात करने चला गया, उसकी ओर देखे बिना और चेहरे पर विजयी मुस्कान लिए अपने रास्ते चला गया। फिर से वे सभी उसे अकेला छोड़कर चले गए। फिर एक अन्य डॉक्टर के साथ एक महिला नर्स आए औऔर दिन भर उसके सामने बकवास करते हुए बिताते गए। डॉक्टर निकल गया। पर वो रही। जब भी वह अपना मुँह खोलती खंजर घोंपने वाले बात ही करती थी। वह हर विषय पर वृषाली की उपेक्षा करती थी।
पहले दिन,
"तुम्हें क्या लगता है रॉबिन, इसके जैसी मोटी और औसत दर्जे की लड़की उसके जैसे नीच अमीरज़ादे का ही ध्यान आकर्षित कर सकती है?",
वहाँ रॉबिन नामक कोई लड़का तो क्या, उन दोंनो के अलावा वहाँ कोई नहीं था।
"वाह! वह खुद को लड़की कैसे कह सकती है?",
"ओह! उसके शरीर के बाल देखो? क्या वह वास्तव में एक महिला है?",
उसने उसके हाथ को पोंछते हुए कहा।
"मेरी काली बिल्ली उससे सामने गंजी लगेगी और गोरी भी।",
"तुम्हें क्या लगता है कि कभी किसी ने उसकी तरफ देखने कि कोशिश की होगी?",
"उसे देखकर मुझे यकीन नहीं होता कि वह अपना शरीर बेचती थी। जैसे कि उस तरह से उसमें कौन दिलचस्पी लेगा? वह अवश्य ही जादू-टोने में माहिर होगी। हम्म... ऐसा ही होगा कि वह पैसे कमाने के लिए कुछ जादू-टोना करती होगी।",
और भी बहुत अपमान।
उसने देखा कि किस अपमान पर उसने प्रतिक्रिया व्यक्त की। आज उसने न्यूनतम प्रतिक्रिया दिखाई।
दूसरे दिन उसने उसके परिवार को भी नहीं छोड़ा और सीधा उससे बात करने लगी,
"बेचारे! उन्होंने तुम्हें त्यागने के बारे में ज़रूर सोचा होगा लेकिन दया करते हुए तुम्हें पाल लिया। पर नियती का खेल तो देखो। उन्होंने जिस बच्ची पर दया खाकर उसे जीवन दान दिया उन्हीं उनको इतना शर्मसार किया।
तुमने स्कूल छोड़ दिया, ठगो के साथ तुम्हारा उठना-बैठना था, अमीर को अपनी जाल में फँसाकर उनको लूटा। तुमने कारनामे अच्छे किये थे पर एक गलत निशाना साध दिया। अच्छा होता तुम हमसे दूर ही रहती। खैर अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत। अब तुम्हारे परिवार का भगवान ही मालिक है।",
उसने फिर से उसकी प्रतिक्रिया जाँची, इस बार उसकी प्रतिक्रिया बहुत ज़्यादा थी। वह ऐसे मुस्कुराई जैसे उसे जैकपॉट मिल गया हो। वह तुरंत अपना सेलफोन लेकर किसी को फोन करने के लिए बाहर भागी।
अनुमानित समय से दो दिन अधिक बीत गये। उसने अपना अपमानजनक प्रयोग जारी रखा और हर प्रतिक्रिया को अपनी डायरी में दर्ज करती गयी। एक सप्ताह के बाद उसकी आँखें हिलने लगीं। उसने यह देखा और तुरंत डॉक्टर को बुलाया। वह होश में आने के तुरंत बाद ही हिल गयी।
वह हतप्रभ थी।
डॉक्टरों ने उससे पूछा कि वह कैसा महसूस कर रही है,
"मतलब?", उसने उलझन में पूछा,
"क्या आपको शरीर में कोई दर्द महसूस हो रहा है?", उसने धीरे से पूछा,
"पता नहीं।", उसने जवाब दिया,
"ओके। नाम बता सकती हो अपना?",
उसने थोड़ा सोचने के बाद बोला, "वृषा- वृषाली?",
"आपको यकीन है?",
उसने फिर से वही प्रश्न पूछा जो उस पुलिस अफसर ने पूछा था।
वह घबरा गई, उसे साँस लेने में परेशानी होने लगी, उसे घबराहट का दौरा पड़ गया। लेटे हुए उसने अपनी गर्दन को कसकर भींच लिया और साँस लेने के लिए हांफने लगी। डॉक्टरों ने तेज़ी दिखाई और उसकी बांह पकड़ कर उसे बेहोश कर दिया। वह फिर सो गई।
अगले दिन जब वह फिर से जागी तो उसने देखा कि समीर उसके बगल में कुर्सी पर बैठकर उसे घूर रहा था और उसके चारों ओर हथियारबंद लोग खड़े थे।