Badlaav Zaruri Hai - 8 in Hindi Moral Stories by Pallavi Saxena books and stories PDF | बदलाव ज़रूरी है भाग - 8

Featured Books
Categories
Share

बदलाव ज़रूरी है भाग - 8

वृद्ध आश्रम 8

एक वृद्ध आश्रम को चलाने वाली संस्था के कार्यक्रम में पत्रकारों के सामने बड़ी -बड़ी बातें करते हुए देवयानी कह रही थी कि कहते है

“जिस घर में बुज़ुर्ग हँसते हुए रहते है उस घर में देवताओं का वास होता है. लेकिन आज के इस भौतिक युग में बुज़ुर्गों का हँसना और खुश रहना तो दूर की बात है. आजकल तो घर के बुज़ुर्ग घर के पुराने सामान की तरह हो गए हैं. जिन्हें बेकार का सामान समझ कर उनके अपने ही बच्चे पहले उनके एकल हो जाने की राह तकते हैं और फिर उनके एकल हो जाने के बाद उन्हें किसी पुराने फर्नीचर की तरह उनके ही कमरे से निकाल बाहर किया जाता है. इतने पर भी वह बिचारे यह सोचकर संतोष कर लिया करते है कि चलो कोई बात नही कमरा ना सही कम से कम अपनों का साथ तो है. लेकिन आजकल की निर्लज औलाद से उनका यह सुख भी नहीं देखा जाता. कुछ सालों तक वह उन्हें फर्नीचर समझ कर इधर से उधर करते रहते हैं और फिर जब बढ़ती उम्र के साथ साथ, जैसे जैसे उनके प्रति सेवा और खर्च बढ़ता है, उन्हें लोग मरती हुई हालत में यहाँ वृद्ध आश्रम छोड़ जाते हैं. यह सब देखकर तो मेरा ह्रदय खून के आँसू रो दिया करता है”

इतने में तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा कमरा गूँज उठता है. उनके बाद कई और महानुभाव आकर बड़ी बड़ी बातें करते है और कुछ ही घंटों में सभा समाप्त हो जाती है. सभी के चले जाने पर देवयानी सभी वृद्ध जनो के पास जाकर, वहां के कर्मचारियों से कहती है

“चलो फटाफट इन सभी के यह अच्छे कपड़े बदलकर इन्हें वही रोज मर्रा वाले पुराने कपड़े दे दो, वरना अभी यह लोग सब कपड़े गंदे कर लेंगे. कोई खाना गिरा लेगा, तो किसी के अन्य कारणों से खराब हो जायेंगे. वैसे ही किसी का पेट सही नहीं रहता, उपर से आज सभा के चक्कर में सब ने खूब खाया पिया है...! तैयार रहो तुम सब कल मचने वाली गंद के लिए...!”

तभी एक बूढ़ी माँ ने कहा

“बेटा हम लोगों में से कुछ ही लोगों को पेट की ऐसी समस्या है कि वह अपने शरीर पर काबू नहीं रख पाते. फिर तुम हम सभी को एक ही श्रेणी में रखकर क्यूँ बात करती हो...?”

“अरे अम्मा आज नहीं तो कल, तुम भी इसी श्रेणी में आही जाओगी.”

देखते ही देखते जो वृद्ध आश्रम वृद्धिओं के कपड़ों और रहन सहन को देखते हुए बड़ा ही समृद्ध और अच्छा दिखाई दे रहा था, वह अचानक ही गिरा हुआ और काम चलाऊ सा दिखने लगा था. सभी बुज़ुर्गों के चेहरे का रंग उतर चुका था. ऐसा लगा मानो कोई नाटक चल रहा था और उस नाटक के खत्म होते ही, सभी पात्रों का मेकअप उतर गया और उनका असली चेहरा सामने आ चुका था. वही अकेलेपन और अवसाद से भरा जीवन, वही एक लम्बी ख़ामोशी और अपनों की यादों का दर्द, सारे माहौल में मानो मातम सा छा गया. उसी देवयानी ने घर पहुँच कर खुद अपने घर के बुज़ुर्ग के साथ भी वैसा ही व्यवहार किया. जब उसने देखा कि उसकी सास जो कि दमे की मरीज थी, ने जब उससे खाँसते हुए कहा,

“बेटा मेरे पम्प में डालने वाली दवा खत्म हो रही है..,”

अभी सास की बात खत्म भी नहीं हो पायी थी कि देवयानी ने जोर से चिल्लाते हुए कहा,

“मैं तो तंग आ गयी हूँ आप से, रोज कोई ना कोई बहाना ढूंढ़ ही लेती हो तुम मेरे प्राण पीने का कभी चश्मा टूट गया, कभी दवा खत्म हो गयी, कभी पेट खराब हो गया, कभी कुछ कभी कुछ ..!”
बड़बड़ाते हुए देवयानी अपने कमरे में जाकर अपने पति से बोली,

“तंग कर रखा है तुम्हारी माँ ने मुझे, बुढ़िया मरती भी तो नहीं कि जान छूटे...!”

पति ने कहा, “क्या हुआ बेबी तुम इतनी परेशान क्यूँ हो, मैंने तो पहले ही कहा था कि माँ को भी उसी वृद्ध आश्रम में छोड़ आते हैं पर तुम ने ही मनाकर दिया.”

“हाँ... तुम तो यही चाहते हो कि मैं ऐसा करूँ और दुनिया मेरे नाम पर थूके कि देखो इकलौती बहू होने के बाद भी अपनी इकलौती सास को ना संभाल सकी और वृद्ध आश्रम में छोड़ आयी. तुम्हें पता भी है, वहां मेरी कितनी इज्जत है, सब कितना सम्मान करते हैं मेरा...! पर तुम्हारी माँ ना एक दिन मेरा नाम मिट्टी में मिलाकर रहेगी.”

“अरे नहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा, मैं हूँ ना. तुम चिंता मत करो मैं देखता हूँ.”

पति “क्या माँ, यह सब क्या लगा रखा है….! तुमको समझ नहीं आता वो बिचारी अभी काम से वापस आयी है और उसके आते ही तुमने अपनी मांगे रखना शुरु कर दिया. क्या हो जायेगा जो एक दिन दवा नहीं लोगी तो ? यह है ना कॉफी के बीज, अटैक आये तो सूंघ लेना..!”

“पर बेटा वो तो ताज़ा ताजा भुने हुए सूंघे जाते है, ऐसे थोड़ी कुछ होता है और वैसे भी मैंने तो केवल दवा के लिए ही कहा था...!”

“बस मुझे सब पता है, अब तुम उसकी शिकायत ना करो मुझ से...!”
कहते हुए वह भी कमरे ऐ बाहर चला गया. अगले दिन सुबह अखबार में जब बूढ़ी माँ ने सभा में दिया हुआ अपनी बहू का भाषण पढ़ा तो उनकी आँखों में पानी उतर आया. जब घर की एक कर्मचारी ने उनसे पूछा,

“क्या हुआ अम्मा तुम रो क्यों रही हो, ऐसा क्या लिखा है इस अख़बार में...?”

अम्मा ने अख़बार छिपते हुए कहा “कुछ नहीं, ‘कुछ भी तो’ नहीं वो तो मेरी आंखें ख़राब हो गयी है ना, तो अक्सर पानी बहता रहता है.

अच्छा...! कर्मचारी ने उस वक्त तो अम्मा से कुछ नहीं कहा. लेकिन जब उसने भी वह भाषण पढ़ा तो उसे भी वही दर्द महसूस हुआ जो अम्मा को हुआ था. उसने तुरंत संस्था के लिए देख रेख करने वाले (हेल्प एज इंडिया) नामक संस्था जो कि एक गैर कानूनी संस्था है जिसका काम है यह देखना कि बुज़ुर्गों से जुड़ी अन्य संस्थाओं का काम सुचारु रूप से चल रहा है या नहीं. जैसा बाहर दिखायी देता है, हकीकत में भी सब वैसा होता है या नहीं, कहीं किसी बुज़ुर्ग को मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित तो नहीं किया जाता. उनको समय पर भोजन एवं दवाएं उपलब्ध करायी जाती है या नहीं, सभी का प्रॉपर इलाज आदि हो रहा है या नहीं, का ध्यान रखती है और कुछ भी गड़बड़ मिलने पर कठोर निर्णय द्वारा दंड भी देती है. को कर्मचारी ने फोन करके देवयानी की सारी सच्चाई बताते हुए उसका सारा कच्चा चिट्ठा खोल दिया. कुछ ही देर में वहां छापा जैसा पड़ा और बुज़ुर्गों के रखे जाने की सारी व्यवस्था का ढोंग सामने आगया. जिसके लिए उसे गिरफ्तार भी किया गया. और जाते जाते एक महिला पुलिस अधिकारी ने देवयानी से कहा,

“यदि सच में बदलाव लाना है ना, तो उसकी शुरुआत सबसे पहले खुद से और खुद के ही घर से करनी पड़ती है....! ऐसे दिखावे से बदलाव नहीं आता...”

किन्तु हाँ इस मामले में भी लोगों में यह जागरूकता फैलाने की अधिक जरूरत है कि घर के बुज़ुर्ग चाहे जैसे भी हों, वह घर का कोई ‘पुराना सामान नहीं बल्कि घर का सम्मान है’. और उन्हें भी यह समझना होगा कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बल्कि दोनों हाथों से बजती है तो ऐसी सूरत में दोनों की भलाई के लिए

“बदलाव ज़रूरी है”