There was one Meera in Hindi Fiction Stories by rahul chaudhary books and stories PDF | एक थी मीरा

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एक थी मीरा

मीरा 
एक दिन एक गरीब घर में एक लड़की का जनम हुआ ,जिसका नाम रखा मीरा, जैसा नाम वैसा दिल,दिखने में जैसे कोई अप्सरा हो जो धरती पर स्वर्ग से उतर आई हो,जो एक बार उसके दर्शन करने से खुद को धन्य समझने लगे ऐसी थी मीरा...

बचपन से ही उसके दिल में ममता कूट कूट के भरी थी,ऐसा कोई हो ही नहीं सकता जो उसे न पसंद करता हो... गांव में बहुत गरीबी थी ,मीरा का परिवार भी बहुत गरीब था, दो वक्त की रोटी के लिए भी पूरे परिवार को दिन रात मेहनत करनी होती थी... पर फिर भी घर में कोई न कोई भूखा ही सोता था।

एक दिन मीरा अपने खेत में काम कर रही थी,तभी गांव का एक जमींदार जो बहुत अमीर था वहां से गुजर रहा था,जैस ही मीरा पर उसकी नज़र गई वो वही जैसे थम सा गया हो,,
पता नहीं कितने घंटों वो मीरा को बस ऐसे ही देखता रहा,समय का उसे पता ही नहीं चला,मीरा अपने काम में मन से लगी थी, उसे अपने आस पास का पता नहीं चला,...
साम हो गई ,मीरा अपना कुदाल लिए घर की ओर निकल पड़ी,पर वो जमींदार वही का वहीं खड़ा था, उसकी यादों में गुम, उसने कभी भी अपने जीवन में इतना प्यार,इतना सुकून कभी महसूस नहीं किया था...
वो घर आया,सबसे पहले अपने माता पिता से मिला ,बोला मुझे एक लड़की से प्यार है, मै उसकी अपना जीवन साथी बनाना चाहता हूं,पिता ने पूछा कौन जात है,उसने कहां खेत में काम करती है..पिता ने फिर पूछा नाम क्या है, उसने कहां नहीं पता, कहां रहती है,इस पर भी उसने अपना सिर न में हिला दिया...

अब पिता क्रोधित हो गए..बोले पागल हो गया  है क्या.ये कौन सा मजाक है,न जात का पता ,न ही उसके बारे में कुछ पता है.. जाओ अपना काम करो और जो पैसे मैने दूसरे किसान से लाने को बोले थे वो कहां है...
वो इधर उधर देखता हुआ बोला वो तो मैं...वो तो मैं वहां जा ही नहीं पाया,रास्ते में ही रह गया... पिता ने अपना सिर पीट लिया ,बोले कोई काम का नहीं है आवारा कहीं का..और उन्होंने न जाने कितनी ही गालियां उस नौजवान जमींदार को सुना दी,,,,,,

पर वो कहां सुन रहा था,उसकी आंखों के सामने तो बस मीरा की तस्वीर थी,जो बस मुस्कुरा रही थीं, आप अपने बालों को,अपने फेट पुराने कपड़ों को जो उसके पसीने से पूरी तरह भीग चुके थे,उनको संभालने का नाकाम कोशिश कर रही थी,
उसके बालों से एक —एक कर के बूंदे उसके उजले उजले गालों से होते हुए उसके होंठो को छूकर जैसे उसकी प्यास बुझा रहा हो ...कर के कहीं गुम हो जा रहा था....वो बस इसी बात में गुम था तभी.....

तभी एक आवाज आती है उसके कानो में और जैसे वो चौंक जाता है......उससे यकीन ही नहीं हो रहा था......

दरवाजे पर वही लड़की एक बूढ़े इंसान के साथ खड़ी ,अपनी पलकें नीचे झुकाए खड़ी थी...
पहले तो उस जमींदार को लगा कि कोई सपना तो नहीं देख रहा है,फिर जब अपने बाप की आवाज उसके कानो में पड़ी तो वो जैसे निंद से जाग गया हो,...
उसका बाप उसे गालियां देके जैसे बोल रहा हो जाओ कोई आया है दरवाजे पे नकारा कामचोर...
वो एक एक कदम बढ़ा कर दरवाजे तक पहुंचा तो उस बूढ़े ने उसको हाथ जोर के बोला मालिक आप आज हमारे गांव में आने वाले थे , महीने का ब्याज लेने पर आप आए नहीं, हम गांव वालों से कोई गलती हो गई हो तो हम सब गांव वालों के तरफ से मै आपसे माफी मांगता हु, बोल के वो बूढ़ा आदमी उसके पांव में गिर पड़ा....

उसको देखते देखते मीरा भी नीचे बैठ गई, हाथ जोर के,

जमींदार बाबू से रहा नहीं गया वो माना कि अमीरी में पला था,पर दिल का बुरा न था, उसने उस बूढ़े इंसान को उठाया और बोला इसमें आपकी कोई गलती नहीं है,मै ही कुछ काम से गांव नहीं आ पाया...आप माफी मत मांगिए।
बूढ़ा आदमी को जैसे रेगिस्तान में पानी की नदी मिल गई हो....
मीरा जैसे बुत बन के वही खड़ी थी ,उसके मन में जमींदार बाबू के लिए कुछ न जाने पता नहीं क्या क्या सोचें जा रही थी कि कितना प्यार है इनकी बातों में ,न कोई अमीरी का दिखावा न कोई ढोंग, मीरा को ये बातें जैसे अच्छी लगने लगी हो,,,
जमींदार बाबू ने बूढ़े इंसान को पकर के ले आए और अपने bedroom में लेके आ गए,मीरा तो वहां से हिल भी नहीं पाई इतनी जल्दी जल्दी ऐसा हुआ,
उस बूढ़े इंसान ने हाथ जोड़कर बोला मालिक ऐसा मत कीजिए हम नीच जात के लोग है अगर ठाकुर साहब को मालूम हुआ तो वो हमलोग को जिंदा न छोड़ेंगे,
जमींदार बाबू ने कहा आप इसकी चिंता मत कीजिए बोल कर अपने नए सोफे पर साथ में बिठा लिया और bole वो साथ मे आपके के कौन है बाबा...

बूढ़े ने बोला वो मेरी बेटी है मालिक,बेचारी के किस्मत ही खराब थे कि वो हमलोगों के घर में पैदा हुई बेचारी,पर दिल की बहुत नेक है मालिक,सब पूरे गांव वाले उसको पसंद करते है,रुकिए मालिक अभी बुलाता हु उससे,,ऐसा कह के बूढ़े ने जोर से आवाज लगाई मीरा.....मीरा......मीरा........आ जा इधर,

जमींदार बाबू ने मन में ही सोचा कितना प्यार,कितना पवित्र नाम है , कितना अपना लगता है जैसे जन्मों जन्मों से इसको जनता हु, इस से रिश्ता था  ,इतना सोचते सोचते ही मीरा ने घर के अंदर अपना कदम आगे बढ़ाया,मीरा अपनी पलके झुकाए आगे धीरे धीरे आ रही थी, आते आते रुक गई, मन में सोचा अब क्या करु...बूढ़े आदमी ने हाथ पकड़ के उसको आगे खींच लिया और जमींदार बाबू के आगे खड़ा कर दिया, 
मीरा जैसे शर्म के मारे जमीन में गर गई हो ऐसे लग रहा था, जमींदार बाबू ने कुछ देर उसकी सुन्दरता को निहारा फिर,पूछा क्या नाम है आपका, 
मीरा ने अपना होंठ दबा के धीरे से बोला मीरा..
जमींदार बाबू ने पूछा कुछ खाओगी..मीरा ने ना में सिर हिला दिया........

उसी समय कुछ बहुत गंदी गंदी गालियां बोलते हुए ठाकुर साहब रूम के अंदर आए,,,,,

ऐसे देख के तीनों चौक गए.....
ठाकुर साहब ने तीनों को साथ में देखा तो उनका गुस्सा और बढ़ गया,उन्होंने तीनों को गंदी गंदी गाली देते हुए बोले तूने आज मेरी पूरी जिंदगी भर की जमींदारी और इज्जत मिट्टी में मिला दी ,तू निकल जा मेरे घर से ,ऐसे बोलते हुए उन्होंने जमींदार बाबू को कपड़े से पकड़ कर घसीटते हुए बाहर ले जाने लगे ,
मीरा और उसके बाबू दोनों हाथ जोड़े गिड़गिड़ाते रहे की मालिक इसमें जमींदार बाबू की कोई गलती नहीं है,पर ठाकुर साहब कहां किसी की सुन ने वाले थे ,
जमींदार बाबू की मां ने भी ठाकुर साहब को बहुत मनाने की कोशिश करी पर पता नहीं क्यों , ठाकुर साहब के सिर पर अपनी इज्जत मिट्टी में मिल जाने की दुख था जो उन्होंने अपने पूरी जीवन में कमाई थी जो उनके बेटे ने एक पल में खत्म कर दिया था ।

आखिरकार ठाकुर ने तीनों को घर से निकाल दिया और बोले अगर तुमने कभी भी यहां आने की कोशिश की तो मेरा मरा मुंह देखना,....

जमींदार बाबू को उस समय दुख तो बहुत हुआ कि घर से उन्हें निकाला गया है ,पर कोई पछतावा नहीं, उन्हें अपने दिल में न जाने किसी तरह का सुकून मिल रहा था, उन्हें आगे क्या होगा उनके साथ उनकी जरा सी भी जानकारी नहीं थी और न वो कोई परवाह कर रहे थे,

मीरा और उनके बाबू बार बार हाथ जोर के माफी मांगे जा रहे थे कि मालिक मेरी गलती के वजह से आपको घर से निकाल दिया,..
अब आप कहां jaiyega,
जमींदार बाबू ने जवाब दिया ,अचानक से उनको खयाल आया मै कहां,रहूंगा,क्या करूंगा, क्योंकि उनको कुछ भी आता नहीं था,
बड़े लाड प्यार से उनकी मां ने उन्हें पाला था और ठाकुर साहब ने आज तक कोई काम करने तक नहीं दिया था...

वो जवाब नहीं दे पाए.... बोले पता नहीं मुझे की जगह नहीं पता जहां रहूंगा,मै किसी को जानता भी नहीं हूं...
कुछ देर सोचने के बाद मीरा के बाबू ने बोला..मालिक तब तक आप हमारे घर चलिए तब तक ठाकुर साहब का गुस्सा भी शांत हो जाएगा,

जो कुछ भी हमलोग गांव वाले सेवा आपकी कर पाएंगे वो जरूर करेंगे..
जमींदार बाबू को बहुत मनाने पर आखिर कार मीरा और उनके बाबू की बात उनको माननी ही पड़ी।।।

तीनों मीरा के गांव की और चल दिए....

गांव वालों ने जब तीनों को साथ आते देखा तो उन्हे लगा पता नहीं क्या हो गया है, लगता है ठाकुर साहब ने और अनाज मांगा है, सब आपस मे बात करने लगे...

मीरा ने जैसे तैसे सबको हटा के जमींदार बाबू को अपने घर में ले गई और एक पुराने सी फटे हुए कपड़े जो जमीन पे पड़े हुए थे उस पर बिठा दिया और बोली मालिक आप यहां आराम कीजिए मै आती हु आपके खाने के लिए कुछ लेके,

मीरा के बाबू बाहर सबको समझा रहे थे कि मालिक अनाज लेने नहीं आए है,उनको ठाकुर साहब ने घर से निकाल दिया है,बाद में जब उनका गुस्सा ठंडा हो जाएगा तो उन्हें वापिस बुला लेंगे,, पर गांव वाले मानने को तैयार नहीं थे, बोले कहीं ठाकुर साहब को और गुस्सा आ गया तो, वो हम सब लोगों को माफ नहीं करेंगे...

मीरा ने आकर गांव वालों से बोली जमींदार बाबू की जिम्मेदारी मैं लेती हु, उनके वजह से अगर कुछ होता है तो मेरी जो सजा आपको ठीक लगे वो दीजिएगा..
गांव वालों का मन तो नहीं था पर मीरा की बातों को न मानना ऐसा भी नहीं था, सब ने बोला बेटी जमींदार बाबू की जिम्मेदारी अब से तुम्हारी है, ऐसा बोलके सब गांव वाले चले गए...
मीरा और उसके बापू ने चैन की सांस ली..

मीरा जल्दी से पेड़ से कुछ फल तोड़ के लाई और एक टूटे हुए मिट्टी के बर्तन में रख के जमींदार बाबू को खाने के लिए दिया,,

बोली मालिक अभी ये कहा लीजिए मै आपके लिए कुछ बना लेती हु खाने में,,,
जमींदार बाबू ने अपनी नजरें उठाई तो देखा, मीरा सच में कोई अप्सरा थी या कोई परी थी जो आसमान से उतरी थी, कुछ समय तक तो फिर उनकी नजरें जैसे जम सी गई थी, अचानक से जमीनदार बाबू ने बोला .. मीरा तुमने जो मेरे लिए किया है वो बहुत है, मैने गांव वालों की सारी बातें सुनी, तुमने मुझको बिना जाने पहचाने जो मेरे पे विश्वास किया उसके लिए पूरी जिंदगी तुम्हारा कर्जदार रहूंगा..
तुम्हारा बहुत धन्यवाद,और हा मुझे अब से तुम जमींदार बाबू नहीं कहोगी..
मुझे मेरे नाम से बुलाओगी..मेरा नाम मोहन है...ऐसा कहकर मोहन ने फल ले लिया और खाने लगा..
मीरा के मन में न जाने बहुत से खयाल आ रहे थे पर वो डरते डरते बोली, नहीं मालिक गांव वाले क्या बोलेंगे,हम छोटी जाती के लोग है,मुझे पाप लगेगा अगर मैने आपको आपके नाम से बुलाया तो मालिक...
पर मोहन ने बीच में ही मीरा की बातों को काट कर बोला , नहीं मीरा, तुम्हे मेरी कसम है, तुम मेरा मरा मुंह देखोगी अगर तुमने मुझे आज से मेरे नाम से नहीं बुलाया, ऐसा कहकर  मोहन ने मीरा का हाथ पकड़ लिया, जैसे ही मीरा को मोहन के हाथों का स्पर्श हुआ,जैसे दोनों एक के हो गए हो, कुछ अलग सा एहसास हुआ, समय जैसे रुक सा गया हो एक पल के लिए, दोनों थम से गए की अचानक ये क्या हो गया, एक बिजली सी दोनों के शरीर में से निकल गई हो, जिसका एहसास बाद में पता चला,, मीरा को जब इसका एहसास हुआ तो उसने तुरंत मोहन के हाथों से अपना हाथ छुड़ा कर तेजी से दौर के घर के बाहर भाग गई...

और मोहन उसको एकटक जाता हुआ देखता रहा.. बिना पलके झपकाए........♥️

कुछ दिन इसी तरह से एक दूसरे को देखते देखते कब गुजर गए दोनों को पता ही नहीं चला।
दोनों जैसे खुद अपने मन में एक दूसरे के हो गए हो बिना कुछ बोले ,बिना कुछ किए, बस एक एहसास हुआ और दोनों एक अटूट रिश्ते में हो गए जिसे दुनिया में कोई भी,वो खुद भी तोड़ नहीं सकते थे।

एक दिन मोहन ने मीरा के बाबू को कहां, मुझे यहां बैठे बैठे हुए बहुत दिन हो गया ,मेरा मन भी नहीं लगता है ऐसे बैठे बैठे आप पे बोझ बनी, कृप्या कर के आप मुझे अपने साथ साथ काम में मदद करने दीजिए, पहले पहले तो उन्होंने साफ साफ मना कर दिया पर मोहन बाबू के ज्यादा जिद करने पर बोले ठीक है मालिक आप मीरा के काम में मदद कर दिया कीजियेगा।।

सुबह होते ही मीरा मोहन बाबू को जगाने आ गई, मोहन गहरी नींद में था पर मीरा को देखते ही,वो एकदम हड़बड़ा गया,बोला रुको मीरा मै कपड़े बदल लू, ऐसा कहकर वो गांव वालों दी गई फटी पुरानी कुर्ता पहन कर आ गया,

दोनों हाथ में कुदाल लिए पैदल ही चल पड़े, मीरा ने कुछ खाने के लिए पोटली में बना के रख लिया था, खेत कुछ दूर था,दोनों ऐसे ही चुपचाप चलते रहे बिना एक दूसरे से कुछ बोले,बिना एक दूसरे को देखे,पर एक दूसरे का एहसास दोनों के दिलों में था,
अचानक से मोहन का हाथ की उंगलियां मीरा के हाथों को स्पर्श कर गई, दोनों के दिल की धड़कने तेज हो गई।।

मोहन से रहा नहीं गया वो,मीरा को देखकर मीरा को बोला, मीरा तुम जानती हो मेरे दिल में कौन है,मीरा चुप रही, मोहन ने फिर पूछा,मीरा मै चला जाऊंगा एक दिन तो तुम मुझे याद करोगी न...ऐसा बोलना था कि मीरा की उंगली अचानक से मोहन के होंठो पे जैसे जम से गए हो, मीरा ने चुप करा के बोला ,मालिक मै आपकी दासी हु, आप ऐसी बाते न किया कीजिए मेरा कलेजा जैसे टूट के बिखर जाता है,मैने आपको अपना प्रभु माना है आप मेरे स्वामी है,आपके बिना अब मै अपनी जीवन सोच भी नहीं सकती,     

 ...ऐसा बोलते बोलते मीरा के आंखों से न जाने आंसू की बूंदे जैसे बह निकली हो नदी से, मोती के जैसे बहने लगी और उसके गोरे चेहरे को जैसे आज भीगा देना चाहते थे, बहुत दिनों से जो उसने जैसे खुद को रोक रखा हो आज वो बांध टूट गया हो,

मीरा रोए जा रही थी, उसे ऐसे रोता देख मोहन भी अपनी आंसु को नहीं रोक पाया,, लेकिन फिर भी खुद को संभाल के पहले उसने दोनों हाथों से उसके आंखों के नीचे जो मोती की बूंदे थी उसको पोंछ और दोनों हाथों को अपने हाथ में लेके अपने आंख में लगा के , बोला

 मीरा मै जानता हु तुम्हारे दिल की बातें,तुम्हे कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है,तुम्हारी आँखें सब कुछ कह देती है मुझ से,

मै कभी भी तुमसे दूर नहीं जाऊंगा मेरी प्यारी....♥️
ऐसा कह कर उसने दोनों हाथों को अपने होंठो से चूम लिया.........

पता नहीं दोनों कब तक एक दूसरे के बाहों में रहे पता ही नहीं चला,कब सुबह से दोपहर हो गई, तभी एक गांव का छोटा लड़का वहां खेलने आया था,उसने दोनों को देख कर गांव की तरफ भागा,उसको क्या पता था प्यार क्या होता है, प्यार की तड़प क्या होती है,प्यार का एहसाह क्या होता है,वो तो बस गांव वालों को बताने चला गया कि देखो क्या हो रहा है,, 

इधर दोनों को एहसास तक नहीं हुआ कि उस छोटी सी गलती के कारण जो उनके नज़र में प्यार था उसकी आगे चल कर इतनी बड़ी सजा मिलेगी.

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गांव वाले उनके पास आके जमा हो गए और चिल्लाने लगे तब उन दोनों ,प्यार के मारे प्रेमियों की आँखें खुली, उन्होंने देखा,उनको चारों तरफ से गांव वालों ने घेर रखा है,मीरा अचानक से मोहन से अलग हो गई और अपना सिर नीचे कर के गांव वालों के आगे हाथ जोड़कर बोलने लगी रोते रोते.. इसमें मालिक की कोई गलती नहीं है,सब मेरी गलती है, कृपया करके मालिक को कुछ मत कीजियेगा, पर गांव वाले कहां मानने वाले थे, उनकी आंखों में जैसे खून उतर आया था।।


मीरा को किसी एक गांव वाले ने पकर के अलग खींच लिया ,मोहन बोलने लगा ,जो भी सजा देनी है मुझे दो , इसमें मीरा की कोई गलती नहीं है।।
आपलोग बस मीरा को कुछ मत कीजिए,,
मीरा के आंसु रुकने का नाम नहीं ले रहे थे,वो मोहन के पास जाने के लिए तड़प रही थी,उसके शरीर पर जो पहले से फटे पुराने कपड़े थे वो नाम मात्र के ही बच गए थे, मिट्टी से वो भी सानी पड़ी थी,...


मोहन ने एक बारी मीरा की आंखों में देखा,और मुस्कुरा के बोला,मीरा रो मत,कोई बात नहीं,तुम मेरी हो,
और हर जनम में तुम मेरी ही रहोगी,,ऐसा कहकर वो आगे बढ़ा ही था उसकी आंखों के वो मोती जिसे वो अपनी जान से भी ज्यादा मानता था कि पीछे से किसी गांव वाले ने एक तलवार लेक पीठ में अंदर तक घुसा दिया,

 अचानक ऐसा देख मीरा को मानो जैसे एक जोर का करंट लगा हो,वो रोते रोते चुप हो गई.. एक मिट्टी की ताबूत की तरह जम गई..


मोहन को लगा जैसे उसके प्राण अब बस निकलने वाले है पर फिर भी उसकी आंखों में वो संतोष था,वो प्यार था,वो मुस्कान थी,किसी तरह वो मीरा के कदमों में आके गिर पड़ा.. मीरा हिल तक नहीं पाई अपने पांव तक नहीं हिला पाई,...मोहन ने उसके मिट्टी से सने पांव को चूमा और बोला ..

सांस उसका साथ नहीं दे रहे थे पर टूटी हुई आवाज में मीरा की तरफ  मुस्कुरा करदेखकर बोला मीरा.....
मीरा तुम्ंमममम्ममम्म...................

बस इतना ही तो बोल पाया था वो.....