प्रेमाबहुत पुरानी समय की बात है, गौतम नगर का एक राजा हुआ करता था उसका नाम भैरव आर्य हुआ करता था। उसकी प्रजा उस से बहुत खुश थी,वो अपने ईमानदार और दयालु प्रवृति के कारण दूर दूर तक विख्यात था।
उसके वंश में वही एक अंतिम एक राजा था जिसकी कोई संतान नहीं थी, यही एक वजह से वो बहुत परेशान रहा करता था और साथ में उसकी प्रजा भी दुखी रहती थीं।
कई गांव वालों ने प्रेम पूर्वक अपने बच्चे तक को उनको समर्पित करना चाहा पर भैरव अपने वाणी और अपने कर्म पर अटल बना रहा।
आस पास के राज्य से संबंध भी मधुर थे ,सब राजा भैरव को बहुत पसंद और प्यार करते थे।
संतान के लिए राजा भैरव ने 51 सादिया तक की पर कोई रानी से, किसी से उसे संतान की प्राप्ति नहीं हुई, कई0पास मंदिरों में गया,कई कई दिनों तक का व्रत किया ,कई कई बार हवन करवाया, मंदिरों का निर्माण करवाया, दान दक्षिणा सब कर के देख लिया पर संतान प्राप्त करने की लालसा कभी पूरी नहीं हुई।
इसी ग़म में राजा भैरव बीमार रहने लगा,रानी सब मिलके कितना भी समझाती की किसी बालक को गोद ले लेते है पर भैरव का मन नहीं मानता था,उसे तो बस अपना ही खून चाहिए था जो कि पूरे प्रजा को आगे लेके बढ़े उसका खयाल रखे।
एक दिन एक बहुत दूर हिमालय पर्वत से एक साधु बाबा कही जा रहे थे तो नगर के बगल में ही एक गुफा में उन्होंने अपना रात बिताने की सोच वही रुक गए।
बगल के किसी गांव वाले को खबर लगी कि एक बहुत सिद्ध पुरुष महात्मा आए है तो वो दौरा दौरा राज्य महल में गया,जाके राजा भैरव के चरणों में गिर के बोला, महाराज एक बहुत योगी महात्मा आए है पास के एक गुफा में रुके है, ऐसा गांव वाले कहते है कि जो भी उनके दर्शन कर लेता है ,और अगर वो आशीर्वाद दे देते है तो उस मनुष्य की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।।
ऐसा बोलकर वो गांव वाला विनती करने लगा कि आप उनसे एक बार मिल लीजिए महाराज।
भैरव ने अब संतान प्राप्ति की उम्मीद जैसे छोड़ दी थी ,वो न जाने कितने ही योगी बाबा से मिला था,पर उस गांव वाले का प्यार देख कर वो उसे मना नहीं कर पाया,बोला जाओ उस बाबा को आदर के साथ इस महल में लेके आओ,और कहना राजा भैरव ने आपको राज्य महल में आमंत्रित किया है, ऐसा बोल के बगल में खड़े सिपाही और साथ में खड़े मंत्री को आदेश दिया, आप जाके उनको लेके आए।
गांव वाला प्रणाम करके सब के साथ साथ चल पड़ा।
सब लोग को उस गुफा तक पहुंचते पहुंचते साम हो गई थी।
अंधेरा धीरे धीरे बढ़ रहा था।
गुफा के अंदर जाके मंत्री ने देखा एक दिए कि रोशनी में एक साधु जो कि बिना वस्त्र पहने ध्यान में लीन थे।
उनको साधना करते देख मंत्री ने उनकी साधना तोड़ना सही नहीं समझा,वो गुफा से बाहर आ गया,उसे बस कुछ ही झलक देखने को मिली थी , पर पता नहीं कैसे उसका विचलित मन को जैसे शांति मिल गई हो,उनके मुख पे एक अजब सी रोशनी थी ,एक तेज था, मंत्री ने न जाने कितने लड़ाई लड़ी थी,कितने का वध किया था पर पहली बार ऐसा हुआ जैसे उसे किसी के नाराज होने का भय हो।
वो बाहर प्रतीक्षा करने लगा,पर अंदर नहीं जा पाया दुबारा, प्रतीक्षा करते करते रात बीत गया, दिन होने को आया पर उन योगी का ध्यान नहीं टूटा।
बाहर ही सिपाहियों ने अपना छोटा सा एक जगह बनाई और इंतेज़ार करने लगे बाबा के बाहर आने का।
ऐसे इंतेज़ार करते करते 10 दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला, भूख प्यास जैसे मर गया हो, वहां आकर ऐसा प्रतित हो रहा था।
एक दिन अचानक से बाबा गुफा से बाहर आए उनको देखते ही सबके सब उनके चरणों में लेट गए और मंत्री ने विनय पूर्वक बोला,
बाबा हमारे राज्य के महाराज प्यारे दयालु राजा भैरव आपसे मिलना चाहते है। कृपया करके आप हमारा निमंत्रण स्वीकार करें और साथ चले।
बाबा एक मुख पे एक अलग तरह की मुस्कान थी,वो बोले मूर्ख तू मुझे महल में ले जाने आया है,जा वापस लौट जा, अगर देवता भी मुझे लेने आए तो उनमें भी इतना तेज़ नहीं की वो मुझे लेके जा सके और तू तो एक साधारण सा मानव है,मुझे नहीं पता है क्या तूने कितने पाप किए है, कितनो के प्राण लिए है, कितनो का वध किया है,चला जा ,यहां से । ऐसा बोलके वो जंगल में निकल गए।
ये सब सुन के मंत्री की मानो प्राण ही जैसे निकल गए हो,वो उसके आंखों से आंसू निकले ही जा रहे थे।किसी तरह वो अपने पांव पे उठा और बोला चलो महल।
जब राजा को ये बात पता चली तो वो आनंद से भर उठा और खाली पैर उस गांव वाले के साथ उस बाबा से मिलने चला गया ।
गुफा के अंदर जाके वो बाबा के चरणों में गिर पड़ा और फूट फूट के रोने लगा।
बाबा ने आंखे खोली फिर राजा को कंधे से उठा कर पास में बैठा कर बोले बेटा मुझे पता है कि तुम बहुत दुखी हो, तुमने सारे प्रयत्न कर लिए पर तुम्हे संतान की प्राप्ति नहीं हुई है,ये तुम्हारे पिछले कर्मों का फल है। तुम दुखी मत हो, तुम्हारी प्रजा ही तुम्हारी संतान है।
ये सब सुन के राजा को विश्वास हो गया वो बोला प्रभु कृपया करके मुझपे दया कीजिए,कोई उपाय बताइए जिस से मै पिता होने का सुख प्राप्त कर पाऊं।
योगी कुछ देर ऐसे ही ध्यान में रहकर अपनी आंखे खोल बोले पूर्व की दिशा में 250 कोश दूर एक जंगल है उसके बीचों बीच एक झोपड़ी है उसमें एक पत्थर की मूर्ति है एक लड़की की, पिछले जन्म में तुमने उसके प्रेमी को मार के उसके साथ उसकी इज़्ज़त को भंग किया था,तभी से उस लड़की ने श्राप देकर समाधि ले ली थी, तभी से हर जन्म में तुम ऐसा ही दुख भागोगे।
एक ही उपाय है अगर वो श्राप किसी तरह खत्म हो जाए तो तुम्हे शांति मिल जाएगी, उसके लिए तुम्हे उस पत्थर की मूर्ति से अपने कर्मों की माफी मांगनी होगी, पर मै इसमें तुम्हारी कोई मदद न कर पाऊंगा क्योंकि वो श्राप एक सामान्य श्राप नहीं है,वो जीवन भर , जन्मों जन्म का श्राप है जो बहुत शक्तिशाली है। ऐसा कहकर योगी फिर अपने ध्यान में लीन हो गए।
भैरव राजा उनको प्रणाम कर वैसे ही खाली पैर निकल पड़े । 2 महीने बाद चलते चलते कितने जंगल को पार करते कितने बाधा को पार करते , फल फूल खाते आखिर कार जंगल के बीचों बीच उस झोपड़ी में पहुंच ही गए।
देखा एक पत्थर की मूर्ति तपस्या करने जैसी मुद्रा में बैठी है और चारों तरफ से धूल भरी हुई थी।
पहले तो राजा भैरव ने मिट्टी हटाया और बगल के नदी से पानी लाके मूर्ति को साफ किया,
तो देखता है कि मूर्ति में जैसे जान आ गई थी, इतनी प्यारी, इतनी खूबसूरत, इतनी मनमोहक,इतनी जैसे अप्सरा भी शर्मा जाए या जलन से क्रोधित हो जाए,
वाकई में बहुत ही प्यारी किसी कोमल,नाजुक सी परी को किसी ने पत्थर में कैद किया था।
उसने सोचा पता नहीं क्यों मैने इसके साथ ऐसा किया, उसको अपने पुराने कर्म का पछतावा हो रहा था।
वो वही बैठ के उसकी सुन्दरता को बस निहारता रहा....
बैठे बैठे कब रात हो गईं पता ही नहीं चला।
बाहर जंगली जानवरों की आवाज से उसकी नींद खुली।
पता नहीं उस लड़की की आंखों में ऐसा क्या था,उसने अपने पूरे जीवन में उसने कितनी ही शादियां की थी , कितनी ही लड़कियों के साथ सोया था, रात बिताई थी पर ऐसी खूबसूरत आंखे ,ऐसी रूप कभी नहीं देखी,वो भी जब वो पत्थर थी और पता नहीं कितने सालों से या सच कहूं तो दशकों से।
रात की अंधेरी परछाई पूरी तरह से जंगल को अपनी बाहों में ले चुका था। चारों तरफ से जानवरों की आवाजें, सांप, बिच्छू, मेढक जैसे किसी तरह से पागल हुए जा रहे थे, भैरव का मानो कान फटा जा रहा था।
उसने एक लकड़ी की जोर जोर के उस चांदनी रात में दीवार बना के उस झोपड़ी का रास्ता बंद कर दिया फिर वही उसके पास बैठ कर अपने पुराने दिनों में खो गया,,
धीरे धीरे रात बीत रही थी, पता नहीं कब उसकी आंख लग गई,वो उसके गोद में सिर रख के वही सो गया।
आधी रात के करीब अचानक से किसी आवाज़ से उसकी नींद टूट गई,देखा पास में जो पत्थर की मूर्ति गायब थी। वो चौंक गया कि आखिर क्या हुआ,कैसे हुआ ऐसे।
वो पागल की तरह इधर उधर खोजने लगा।
बहुत देखने के बाद एक कोने में नजर पड़ी,देखा एक लड़की बिना कपड़ों के ,कोने में पड़ी पड़ी रो रही है।
वो जल्दी से उसके पास गया,अपना वस्त्र निकाल के उसके ऊपर डाल दिया,वो कांप रही थी,हवा जोरो से चल रही थी।
उसने किसी तरह पत्थर के टुकड़ों की सहायता से आग जलाई और उसके पास जा के उसके पास बैठ गया।
राजा ने पूछा आप कौन है और आप यहां कैसे आ गई।
वो रो रही थी,रोते जा रही थीं, राजा को दया आ गई,बोला आप मत रो,मै आपकी मदद करूंगा,आप अपना परिचय दो।
पर वो कहां सुन रही थी,वो बस रो रही थीं और रोते रोते बेहोश हो गईं,
राजा भैरव घबरा गए कि क्या हुआ,वो अचानक से दौर पड़े नदी की ओर,जाके पानी किसी तरह कपड़े में डाल के ले आके उस नाजुक सी लड़की के मुंह पर मारा।
अचानक से वो जैसे निंद से जाग गई।
और राजा साहब को गौर से देखने लगी अपना रोना छोड़ कर, कपड़े जो कि राजा भैरव के ही थे पूरी तरह से ढक लिया,और खुद में ही सिकुड़ गई।
राजा भैरव ने दुबारा पूछा तुम कौन हो, कहा से आती हो।
इस बार उस लड़की ने टूटी फूटी आवाज में बोली,
मै,,,,,,, मैं,,,,,,,, प्रेमा हु, मै यहां तपस्या कर रही थी,पर पता नहीं क्या हुआ मुझे कुछ भी याद नहीं,बस मेरी आँखें खुली तो मैं यहां जमीन पे पड़ी हुई थीं।
बस मुझे और कुछ याद नहीं।
राजा भैरव समझ गया ,कि वो पत्थर वाली लड़की यही है,वो बोला याद करो कि तुम्हारे साथ क्या हुआ था... याद करो....
प्रेमा याद करने की कोशिश करती है पर उसका सिर बहुत जोरो से दर्द होने लगता है,वो बोलती है,मुझे कुछ भी याद नहीं की क्या हुआ, कृपया कर मेरे मोहन के पास ले चलो। कहा है मेरा मोहन ...
वो मोहन का नाम लेके बार बार रोने लगती है..ले चलो मेरे मोहन के पास मुझे...
राजा भैरव पूछता है कौन है मोहन, कहां रहता है..
प्रेमा बोली ,मोहन मेरा प्रेमी है,वो मुझसे बहुत प्रेम करता है,वो एक पल के लिए भी मेरे से अलग नहीं रह सकता। मुझे नहीं पता वो कहां है....
राजा भैरव को समझते देर न लगी कि वो पिछले जन्म के मोहन को ढूंढ रही है,उसने बोला .. हा मै जानता हूं मोहन को ,वो मेरा बहुत अच्छा मित्र है, उसी ने मुझे यहां आपके पास लाने को भेजा है,आप मेरे साथ महल में चलिए, मोहन अब राजा बन चुका है, पूरी प्रजा उसको बहुत प्यार करती है।।
प्रेमा मोहन का नाम सुनकर, उस से मिलने के लिए विचलित हो गई।बोली चलिए मुझे मेरे मोहन से मिलवा दीजिए, ऐसा प्यार, ऐसी प्रीत देख के राजा भैरव के आंसु निकल आए,जन्मों की दूरी भी , निर्जीव जीवन भी दो प्रेम की रीत को , प्यार को, एहसास को खत्म करना तो दूर, रती भर कम नहीं कर पाए,वो मन में ही सोचने लगा कि मै कैसा पापी हु जो ऐसे जोड़े को अलग कर दिया, उसका कलेजा जैसे अंदर ही अंदर कट रहा था।
रात में ही राजा भैरव ने निश्चय किया कि अगर मेरे प्राण भी चले जाए तो ठीक है पर मै ऐसे ही प्रेमा की जिंदगी जो दुबारा मिली थी,उसको खुशियों से भर दूंगा,ऐसा सोच के उसने प्रेमा को अपने गोद में उठा के उस जंगल में निकल पड़ा जिसमें इंसान तो क्या जंगली जानवर भी दिन में जाने से डरते थे।
उसके पांव से खून आने लगा पर वो रुका नहीं चलता ही चला गया,पसीने से तर हो गया पर एक जुनून था जो उसके खून में जैसे घुल जा गया था।
एक समय के लिए तो प्रेमा की नजर राजा भैरव की मुख पर पड़ी,वो सोची की किसी बड़े आदमी को मेरे मोहन ने मुझे ले जाने को भेजा है, शायद ये मोहन का मित्र है,तभी तो इतनी शक्ति के साथ मुझे बिना रुके ले जा रहा है।।।
चलते चलते 2 दिन बीत गए, राजा भैरव के शरीर ने जवाब दे दिया था पर उनकी हिम्मत ने नही।
वो नगर के करीब आके गिर पड़े बेहोश होके, प्रेमा भी । साथ के एक गांव वाले ने देखा तो सिपाहियों को खबर दी गई।
दोनों को बेहोशी की अवस्था में राज्य महल लाया गया,दोनों का उपचार किया गया।
राजा भैरव की नींद खुली अगली सुबह वो प्रेमा प्रेमा बोलके उठ पड़े, वैद्य से बोले वो लड़की कहा है जिसे मै लाया था, वैद्य ने बोला महाराज वो अभी सो रही है, उसकी तबियत ठीक नहीं है शायद ही वो बच पाए।।
राजा भैरव ने वैद्य के गर्दन को मरोड़ के बोला,जो भी करो पर उसे कुछ भी नहीं होना चाहिए.... बोलके वो प्रेमा के रूम में चला गया, देखा एक फुल सी नाजुक कोमल लड़की,कितने ग़म लिए नींद में पड़ी हुई है,वो उसके सिर के पास बैठ कर उसके बालों में अपने हाथ डाल कर सहलाया और बोला, कुछ नहीं होगा प्रेमा,कुछ भी नहीं होने दूंगा मै तुम्हे, तुम्हारा प्यार, तुम्हार मोहन तुम्हे जरूर मिलेगा,मै लाऊंगा मोहन को तुम्हारे पास।।।।।
धीरे धीरे प्रेमा की तबियत में सुधार आने लगा, कुछ ही महीने बाद वो ठीक हो गई और मोहन को ढूंढने लगी, किसी को भी उसके रूम में जाने की इजाजत नहीं थी, बस राजा भैरव ही आ जा सकते थे।।
राजा भैरव ने बोला कि मै इस राज्य का मंत्री हु और राजा मोहन किसी काम से दूसरे देश गए है ,और जल्द ही अपना काम पूरा करके आपके पास आ जाएंगे।।।
पर दिनों दिन प्रेमा को चिंता होने लगी ,उसकी तबियत फिर से खराब होने लगी, राजा भैरव ने एक चित्रकार को प्रेमा के पास भेजा और बोला आप राजा मोहन का चित्र बनाएं और जब वो लौट के आयेंगे तो आप उन्हें ये भेट कीजिए।।
प्रेमा को ये बात सही लगी,वो मोहन का चित्र बनवाने को राजी हो गई।
कुछ सप्ताह की मेहनत के बाद एक नौजवान लड़के का चित्र बन के तैयार हो गया जो वाकई में बहुत सुंदर था, प्रेमा को खुशी का ठिकाना नहीं रहा ,वो घंटों मोहन का चित्र लिए रोती रही।।।।
राजा भैरव चित्र लेके एक वैद्य के पास गए और उन्होंने कहा मुझे ऐसी ही शकल का मास्क चाहिए चेहरा चाहिए जिसे कोई भी न पहचान पाए,उसकी मां तक भी नहीं, अगर ऐसा नहीं हुआ और थोड़ी सी भी गलती रही तो सब को फांसी पे लटका दूंगा।।।
कुछ दिनों बाद सबकी मेहनत रंग लाई,एक हूबहू चेहरा बन के तैयार हो गया, अगर उसको अपने चेहरे पे लगा लिया जाए तो भगवान भी न पहचान पाए ऐसे था।।
राजा भैरव ने वो चेहरा अपने चेहरे पे लगा कर महल चल दिया।जैसे ही उसने प्रेमा के कमरे में पैर रखा उसकी नज़र प्रेमा पर और प्रेमा की नजर राजा भैरव पे पड़ी जो कि अब मोहन बन चुका था। प्रेमा जैसे खड़ी थी वैसे ही खड़ी रुक गई,जैसे उसके जिस्म से उसके प्राण निकल रहे हो और मोहन में समाना चाह रहे हो पर उसके पांव उसका साथ नहीं दे पा रहे थे।
आंखों में से जैसे आंसु की नदियां बह निकली।।।
चेहरे देख के ऐसा लगता था जैसे उसने अपने प्रभु को देख लिया हो, अब बस उसे अब अपने जीवन से कुछ नहीं चाहिए, कितने सदियों की बेचैनी को चैन मिल गया हो, शांति मिल गई है।।
आंसू निकले ही जा रहे थे।।।ऐसे रोते देख राजा भैरव का भी दिल भर आया,उसके भी आंसू निकलने लगे,न चाहते हुए भी, उसे लगने लगा मै ही उसका मोहन हु।
घंटों तक दोनों ऐसे ही एक दूसरे को देखते रहे ।।।।।
राजा भैरव प्रेमा के पास जाके उसके आंखों से आंसू पोछे जो कि अब सुख चुके थे रोते रोते।। प्रेमा ने गले लगा के मोहन को बोली, कहा चले गए थे मोहन मुझे अकेला छोड़ के,मै इतना रोई हूं, मुझे नहीं पता मेरे साथ क्या हुआ, क्यों मुझे छोड़ कर चले गए,क्यों........
राजा भैरव ने भी कस के गले लगा लिया और बोला माफ कर दो प्रिय, मेरे से बहुत बड़ी भूल हो गई....
मैं अब कभी तुम्हे छोड़ कर नहीं जाऊंगा चाहे मेरी प्राण ही क्यों न चली जाए।।।
प्रेमा ने अपनी कांपते होंठो को मोहन के होंठो पे रख के बोली,प्यारे दुबारा मरने की बातें मत करना नहीं तो मैं अपना प्राण त्याग दूंगी।।।
मोहन ने प्यार से प्रेमा को अपनी बाहों में भर कर उसे बच्चे की तरह चुप कराने लगा......
राजा भैरव को मोहन बने कितने महीनों बीत गए थे, बाहर आके राजा भैरव को राज्य भी चलाना होता था पर प्रेमा के लिए उसे मोहन...अब प्रेमा के बिना मोहन का भी कोई वजूद नहीं था.... राजा भैरव कब प्रेमा को अपने प्राणों से ज्यादा चाहने लगे उनको पता तक नहीं चला...
एक दिन प्रेमा बोली मोहन आपने मुझे प्यार तो दिया है सब सुख मिला है मुझे पर मै अब आपकी अर्धांगिनी आपकी रानी हो जाना चाहती हूं।अब मै आपकी पुरी तरह से धर्मो के अनुसार आपसे विवाह करना चाहती हूं।।।
मोहन के चेहरे पे एक प्यारि सी मुस्कान थी,बोला प्रिय मेरा ये जीवन सिर्फ़ आपका है,आप जब भी चाहे मैं विवाह की तैयारी करवाता हूं, पर ये विवाह में सिर्फ मैं और आप रहेंगी प्रिय,क्योंकि मै दुनिया को नहीं चाहता कि किसी की भी गंदी नजर आप पे पड़े।।
प्रेमा हंसते हुए बोली जैसा आपको सही लगे मेरे प्रभु,मुझे बस आपकी बनना है।।।ऐसा बोलके वो राजा भैरव के कंधे पे अपना सिर रख के सो गई।।।
विवाह का दिन भी आ गया, राजा भैरव ने किसी को भी इसकी जानकारी नहीं दी,एक बंद कमरे में एक पंडित ने दोनों की शादी करवाई,दोनों को आशीर्वाद दिया पर राजा भैरव के मन में एक बेचैनी थीं कि उसने मोहन न होने की बात प्रेमा से छुपाई थी,वो जानता था कि प्रेमा ये बात सह नहीं पाएगी।।
वो रात आ ही गई जिसका प्रेमा को जन्मों जन्म से इंतेज़ार था, आखिर कार वह अपने प्यार से प्रेम कर रही थी जिसका इंतेज़ार पता नहीं कितने सालों तक किया था।।
दोनों रात भर एक दूसरे से प्यार करते रहे,एक अलग तरह की ऊर्जा का प्रवाह उस रूम में हुआ जिसे देवताओं तक ने नमन किया,उस पवित्रता को जो कि प्रेमा के मन में, उसके रोम रोम के था।।।।
2 महीने बाद प्रेमा पेट से थी, राजा भैरव का बच्चा उसके पेट में पल रहा था,.......
राजा भैरव को खुशी का ठिकाना नहीं था वो आखिर कार संतान प्राप्त करने वाला था, योगी की बात सही साबित होने वाली थी... खुशी में वो प्रेमा के पास जाके प्रेमा को चूमने लगा जैसे उसको उसकी खोई हुई जिंदगी वापिस लौट आई हो।।
कब रात हो गई समय कब निकल गया पता नहीं, रात के समय नींद में जब अचानक से मुंह के उसके खुजली होना चालू हुआ,तो उसे क्या पता था कि भगवान को क्या मंजूर था।।।
खुजली करते हुए उसके मुंह से मोहन का चेहरा निकल के दूर जा गिरा।।
प्रेमा की नींद खुली वो रात में पानी पीने के लिए उठी, पीने के बाद वो जैसे ही बिस्तर के पास आई तो देखती है मोहन का चेहरा निकल कर गिरा हुआ है और राजा भैरव बगल में सोया हुआ है।।।
एक बिजली सी गिरा उसकी आंखों के सामने,उसे होश न रहा, अचानक से उसे सब याद आने लगा , कैसे राजा भैरव ने मोहन के प्राण लिए थे उसके सामने,कैसे उसकी इज़्ज़त लूटी थी, कैसे उसने तपस्या कर अपने प्राण त्याग दिए थे.......सब एक झलक में उसकी आंखों के सामने दिखाई देने लगा।।।।
उसके आंसू,,उस अभागी प्रेमा के आंसु सुख से गए थे, कैसे भगवान ने उस से बदला लिया था,जिस ने उस पर इतना जुल्म किया अब वो ही उसके पेट में पल रहे बच्चे का पिता है।।।।।आह...... आह.......ये भगवान ये कैसा न्याय है आपका, इस से अच्छा था आप मेरे प्राण ले लेते पर ऐसी सजा तो नहीं देनी थी....
मेरा क्या कुसूर था, क्या गुनाह था,नई तो बस सच्चे मन से अपने प्रेमी को अपना भगवान मान कर उसकी पूजा करती थी।।।क्या प्यार की पूजा पाप है....
ऐसे ही न जाने कितने भाव प्रेमा के मन में उत्पन्न हो रहे थे। आखिर कार प्रेमा ने दीवार से एक तलवार निकाल कर,फिर सोते हुए राजा भैरव के पेट में घुसा दिया।।।
राजा भैरव के मुख से खून की नदियां जैसे बह निकली हो, खून की उल्टियां होने लगीं, आँखें लाल हो गई, उसे समझते देर न लगी कि प्रेमा को पता चल गया था कि वह मोहन नहीं है।।
एक मुस्कान लिए राजा भैरव बोला कोई बात नहीं प्रेमा, मैं तुम्हारा गुनहगार हूं , मुझे तो मेरे कर्मों की सजा तो मिलनी ही थी, और यह तुम्हारे हाथों से मिली इस से ज्यादा जीवन में और मुझे कुछ नहीं चाहिए,मैने जो पिछले जन्म में पाप किए है उसकी सजा इस प्यारे से बालक को मत देना,ये पवित्र है,मेरे मन में कोई छल नहीं था, मै ये जानता था कि तुम मोहन के बिना नहीं रह सकती हो, हो सके तो .....
हो सके तो.........
मुझे......
मुझे माफ़........
बस राजा भैरव की सांसों ने उसका साथ छोड़ दिया था........ और प्रेमा बस उसके आगे एक पत्थर की मूर्ति की तरह खड़ी थी जिसके आंखों में आंसू सुख चुके थे..........