Swayamvadhu - 36 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 36

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स्वयंवधू - 36

अत्याचार

वृषाली बिना दरवाज़े और खिड़कियों वाले एक ठंडे सफेद कमरे में लोहे के बिस्तर से बंधी हुई जागी। घबराकर उसने अपने अंगों को हिलाने कि कोशिश की। उसे अपने उन हाथों में दर्द महसूस हुआ जहाँ सुहासिनी ने उसे पकड़ा था। उसे वहाँ एक घाव महसूस हुआ पर वह इसे नहीं देख सकती थी लेकिन मैं देख सकती हूँ और वास्तव में वह एक सूई चुभोने वाला घाव था। इसी कारण से वह वहाँ बेहोश हो गई थी। वह फिर खुद को छुड़ाने के लिए तड़पी, लेकिन लोहे के बिस्तर केवल डरावनी चीखने जैसी आवाज़ें निकाल रहे थे।

"हेल्-",

इससे पहले की वो मदद के लिए चिल्ला पाए, सफेद कोट पहने हुए पाँच डॉक्टर्स का समूह उसे होश में आता देख आ धमके। उसने मदद माँगने कि कोशिश की लेकिन उसके मुँह पर डक टेप चिपका दिया। उसने विरोध में अपना हाथ-पैर हिलाया। उन्होंने उसका खून निकालने कि कोशिश की, लेकिन उसने इसका विरोध किया। उसे विरोध करते देख एक डॉक्टर ने उसे बिजली का झटका देने कि कोशिश की। वृषाली ने डर के मारे अपना शरीर कस लिया। वह अपनी आँखें बँद करके मौत से भी बदतर दर्द का इंतज़ार करने लगी। तभी उसे एक ज़ोरदार धड़ाम सुनाई दिया जैसे कोई भारी वस्तु दीवार से टकराई हो। यह डॉक्टर था जिसने उसे इलेक्ट्रिक शॉक देने कि कोशिश की थी, "तुम्हारी इतनी हिम्मत! ऐसी मूर्खता फिर से करने की मत करना!", वह क्रोध में दहाड़ा, "हमें केवल उसे शांत करने की ज़रूरत है। वह डर गई होगी!",

उसने वृषाली से पूछा मुस्कुराहट के साथ, "ठीक है?", वह बहुत भ्रमित और भयभीत थी। फिर उसने उसकी नसों में इंजेक्शन से कुछ छोड़ा जिससे वह स्वप्निल और मानसिक रूप से अस्थिर महसूस होने लगी। उसे ऐसा लगा जैसे उसने स्वप्निल और आरामदायक महसूस करा कुछ भयानक महसूस कराने के लिए कोई निषिद्ध चीज़ ले ली हो।

उसने विरोध करने कि कोशिश की, लेकिन पाया कि उन्होंने उसे उस स्वप्निल अवस्था में अकेला छोड़ दिया। उसने उन्हें बुलाने कि कोशिश की, मदद के लिए विनती करने कि कोशिश की, लेकिन उसे एहसास हुआ कि पहले तो उसके मुँह पर टेप चिपका दिया गया था। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह लोहे का बिस्तर किसी तरह का बादल था और वह, उस लोहे के बिस्तर पर सवार हो सफेद आकाश में तैर रही थी, वह उसका आसमान था। कुछ मिनटों या कुछ घंटों के बाद उसका दिमाग स्थिर होने लगा। वे फिर से आए, मशीनों से अपनी रीडिंग ली और फिर से दवाइयाँ इंजेक्ट कीं और वह फिर से उस धुंधली स्वप्निल स्थिति में थी। यह चक्र लगभग एक सप्ताह तक चलता रहा। प्रत्येक बीतते सेकंड के साथ उसकी बेहोशी और अस्थिरता और भी प्रबल होती गई। मैंने उसका नाम पुकारने कि कोशिश की, उसे उसकी जिम्मेदारियाँ और कवच से किए गए वादे याद दिलाने की कोशिश की, लेकिन यह सब पूरी तरह से व्यर्थ था। उसके दिमाग को उन दवाओं ने नियंत्रण कर लिया था जिसे कुछ घंटे के अंतराल में दी जाती थी। जैसे-जैसे उसके नशे में रहने का वक्त बड़ता गया, वो कम आने लगे। धीरे-धीरे उसने खुद पर से काबू खो दिया था।

(उसने अपने आस-पास के माहौल का, उसपर की जा रही प्रताड़ना, खाने-पीने, खुले में साँस लेने तक वंचित रखा है। उसे एक कूड़े की तरह फेक रखा था।) मुझे माफ़ करें, मेरी भावनाएँ जो बहुत पहले गंगा में बह गई थीं, वापस आ गईं। मैंने क्रूर अत्याचार पहले भी एक शक्ति को दूसरे पर करते देखा पर इस प्रकार का अत्याचार कभी नहीं देखा। अंतिम प्रताड़ना जो मैंने देखी थी उसमे बस उन्होंने, उन्हें दण्ड गृह में डाल दिया और उनके विलीन होने की प्रतीक्षा की। लेकिन यह... इतने लंबे समय से लुप्त शक्ति को प्राप्त करने के लिए इस प्रकार की यातना हास्यास्पद है। 


एक लंबे इंतज़ार के बाद वे लोग फिर आए।

एक सप्ताह बाद उन्होंने उसके मुँह से टेप हटाया। टेप सूखे चमड़े को अपने साथ उखाड़ते हुए निकली। पानी की कमी के कारण उसके होंठ पापड़ की तरह सूख गए थे। फिर भी उन्होंने उसपर तरस खाना की जगह कुछ अजीब परीक्षण करने के लिए उसके अधमरे शरीर से खून निकालने लगे।

"अर्गग! ये खून निकल क्यों नहीं रहा?", एक डॉक्टर चिल्लाया,

(उसके अंदर बचा क्या है जो निकालोगे!)

मैं चिल्लायी? मैं केवल चिल्ला ही सकती थी क्योंकि मेरी शक्ति केवल उसकी चेतना से संबंधित है। 

उन्होंने उसका सलाइन बदला। वह बिना भोजन या पानी के इसी पर जीवित थी। उसे सुध नहीं थी कि वो कौन और कहाँ किस अवस्था में थी। मुझे पता है, नशे की उलझन में उसे किस तरह का डर और आतंक झेलना पड़ा। उस पुलिस अफसर की बाते बार-बार उसे कुरेदे जा रहे थे। उसे अपने अस्तित्व पर चिंतित करने लायक भी नहीं छोड़ा, यह वर्णन करने से कहीं अधिक भयानक था। मैं सब जानती क्योंकि वो मेरा हिस्सा है और मैं उसकी।

हाथ और पैर असुविधाजनक स्थिति में बँधे रहना, प्रत्येक हल्की हरकत के बाद रस्सी शरीर में अंदर और अंदर गड़ते जाना, ठंड से बचने के लिए कोई उचित कपड़े या चादर नहीं होना, उसके साथ ऐसे खिलौने जैसा व्यवहार करना जिसे कोई दर्द का पता ना हो और हर बार उसे अजीब द्रव्य का इंजेक्शन देते थे और उन्हें वो दवाई कहते थे, जिसे देखते कोई भी बताता दे कि वो, वो नहीं कुछ और ही है। मैंने सब देखा। जब-जब वह मौत के कगार पर होती, तब भी उन्होंने उसे मरने नहीं दिया। उन्होंने उसे लगभग एक महीने तक इसी तरह जीने के लिए मज़बूर किया।

उस नरक में वही दिनचर्या थी, किस समय, मुझे नहीं पता, यह सुबह है या रात, वे हमेशा की तरह अंदर घुस आए और फिर से उसे काटना शुरू कर दिया। उनके काम के बीच में मुझे दरवाज़े के दूसरी तरफ से ज़ोरदार आवाज सुनाई दी। डॉक्टरों को भी नहीं पता था कि क्या हुआ। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, पुलिस अधिकारियों का एक समूह अधीर (समीर का बांया हाथ) के साथ धमक आए और सभी को मार डाला, सिवाय एक के, जो मुख्य डॉक्टर था।

अधीर वहाँ का प्रभारी व्यक्ति था। उसने उसके महत्वपूर्ण अंगों की जाँच करने के लिए डॉक्टरों के एक नए सेट का आदेश दिया और उसे तुरंत मुख्य अस्पताल ले जाया गया। फिर से उस पर कई परीक्षण किए गए, यह पिछली बार की तुलना में बेहतर था। उन्होंने उस पतली रस्सी जैसी चीज़ को हटा दिया जिसे केव पता नहीं कुछ धागा कहते है। यह पतला था पर इतना मजबूत था कि मांस को चीर दे। यही कारण था कि थोड़ी सी हरकत से ही यह उसके अंगों में गहराई तक घुस गया। विवरण उसके सामने प्रकट नहीं किया गया, भले ही वह बेहोश थी, वे उसके सामने बात करने से बचते थे। उनका इलाज जारी रहा लेकिन सुधार धीमा था।

दो महीने हो गए थे, उसके ऊपरी घाव धीरे-धीरे ठीक हो रहे थे लेकिन अंदरूनी........