Swayamvadhu - 35 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 35

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स्वयंवधू - 35

धोखा 

सुहासिनी उसे लिविंग रूम से निकालकर गलियारे में ले जाने ही वाली थी, तभी पुलिस का दस्ता पूरे घर में छापा मारने के लिए घुस आया। उन्होंने सभी अंगरक्षकों को अपने अधीन कर लिया। उन्होंने उन्हें अंदर अपने साथ आने का इशारा किया।
उनके पीछे चलते हुए डर से उसके हाथ काँप रहे थे। कंपन छिपाने के लिए उसने अपना हाथ जेब में डाला। अंदर उसके हाथ में कंगन जैसा कुछ लगा जिसे उसने कसकर पकड़ लिया।
(गहरी साँस लो और शांत रहो।) कवच की सलाह उसके मन में गूँजी,
(नहीं! ये मेरे मन की नहीं, वृषा की आवाज़ की है!) उसने मुझसे कहा,
(मैं इसके लिए तैयार नहीं हूँ। क्या होगा यदि हमारी अटकलें गलत साबित हुई तो?) उसका दिमाग पूरी तरह से धुंधला गया था,
(बस चुप रहो। अति प्रतिक्रिया या कम प्रतिक्रिया मत करो। प्रवाह के साथ चलो जैसे तुम करती हो। लेकिन किसी पर भी भरोसा मत करो जैसे तुमने मुझ पर किया। अपने और अपने स्मृति पर विश्वास रखना। तुम बिलकुल ठीक रहोगी। परम शक्ति तुम्हारे साथ है। शुभकामनाएँ।) और यह आखिरी शब्द था जो उसने उस लड़की से कहा था।
(तो क्या वह पहले से ही जानता था?) हम दोनों हैरान थे,
(आप नहीं?)
(वृषा?)
(वृषा?)
(वृषा! आपने वादा किया था कि आप मुझसे बात करेंगे।)
(वृषा बिजलानी! आप कहाँ हैं?) उसने कभी जवाब नहीं दिया।
वह अंदर ही अंदर फफूट-फूटकर रो रही थी।
उस पर चिंता की लहर दौड़ गई।
वह अपने आस-पास के माहौल पर ध्यान नहीं दे रही थी, बस अपनी जेब में कंगन को टटोल रही थी।
"...कौन है?",
"यह कौन है?",
"मैम! यह कौन हैं?", एक महिला हवलदार के साथ सब इंस्पेक्टर ने उसे कई बार बुलाया,
वह उछल पड़ी, "ज-जी?",
"आपका इनके साथ क्या रिश्ता है?", सब इंस्पेक्टर ने सुहासिनी की ओर इशारा कर पूछा जिससे दूसरे अफसर बात कर रहे थे,
"ये मेरी दी- ये वृषा बिजलिनी के दोस्त शिवम रेड्डी की मंगेतर, सुहासिनी राय है।",
"और आपका नाम?", उसने भौंह उठाकर पूछा,
"वृषाली राय।",
"दोंनो राय? आपके बीच का रिश्ता क्या है?",
"दो राय बहने नहीें होती। और रही हमारे रिश्ते की बात, वह एक अनजान का दूसरे अंजान से है।",
"एक अंजान दूसरे अंजान के हाथो को पकड़कर तैश में नहीं निकलता। आप क्या छिपा रहे हैं?", माँग भरे अंदाज में उसकी आवाज़ थोड़ी ऊँची हो गई थी,
वृषाली थोड़ा झिझकी, "हाँ, वह एक अजनबी से भी बढ़कर है, एक हीरो है जिसने मुझे वृषा बिजलानी से बचाया है।", वह तेज़ी से साँस लेने लगी।
"आपका क्या मतलब है?", उसने संदेह से पूछा,
"बहुत सी बातें। आप क्या जानना चाहते हैं?", उसने खोखले आत्मविश्वास से पूछा, "मुझे लगता है कि आपके पास मेरे लिए कुछ प्रश्न हैं।",
"आपका अंतर्ज्ञान बिल्कुल सही है। आपका नाम?",
"वृषाली राय।", उसे पसीना आने लगा,
"उम्र?",
"चौबीस।",
"माता पिता का नाम?",
"नागराजन राय और भाग्यश्री राय।",
"भाई बहन?",
"...", उसने चुप्पी साध ली,
"मैम आपकी चुप्पी बात नहीं छिपा सकती।",
उसका थोड़े दबाव से काँपती आवाज़ से कहा, "दो-",
"दो क्या?", उसने और दबाव के साथ पूछा,
"ऑफिसर आप उसपर ऐसे दबाव नहीं डाल सकते।", सरयू उसके पास भागते हुए आ रहा था। बीच में ही दूसरे अधिकारी ने उसे रोक दिया, "आप जाँच को रोक नहीं सकते।", उसने धमकाते हुए कहा, "वो 'दो' क्या?",
उसने डरकर कहा, "दी और भाई! मेरी एक दी और एक अनुज है। मैं मंजिली हूँ।", उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं,
"तो वह आपकी बड़ी बहन है। फिर आपकी बहन आपको इतनी जल्दी कहाँ ले जा रही थी?", अधिकारी ने पूछा,
उसने जवाब देते हुए थोड़ा असमंजस व्यक्त किया, "वह...आह...वह-",
"कोई बात नहीं, तो कल आप कहाँ थी?", उसने एकरस स्वर में पूछा,
"ज़्यादा कुछ नहीं।", उसने खुद को शांत करने की कोशिश की,
"तो आपके घाव का कारण?", उसने उसके हाथ की ओर इशारा करते हुए पूछा,
"मैं बाथरूम में गिर गई थी और हाथ कट गया।", उसने कहा,
"क्या आप हमें दिखा सकते हैं?", वह पूछ नहीं रहा था बल्कि उसे आदेश दे रहा था, अनिच्छा से उसे अपनी पट्टियाँ खोलनी पड़ीं, जिससे उजागर हुआ कि उस पर किसी नुकीली चीज़ से गहरा घाव हुआ था। उसकी आँखें बेकाबू झपक रही थीं,
"ये गिरकर लगी चोट तो नहीं लगती। खैर छोड़िए। आपकी चोट, आपकी मर्ज़ी हम क्या बोल सकते है। वैसे आप इन्हें पहचानती है?", उसने उसे एक फोटो दिखाई। ऑफिसर बेसब्र सा लग रहा था।
उसने फोटो ध्यान से देखी। फोटो में वृषा बिजलानी खून से लथपथ किसी स्त्री को अपने बाहो में थाम पागलो की तरह हँस रहा था। उसके हाथ खून से लाल थी, ध्यान से देखा जाए तो उसके साथ में चाकू थी और वो स्त्री बेजान थी।
"क-क-क्य-क्या ये ज़ि-ज़िदा है?", उसने उस लड़की पर इशारा कर पूछा,
"दुख की बात है, नहीं! आप उसके सामने खून देख रही हैं? यह उसके सीने में एक साथ कई बार चाकू से वार करने के कारण हुआ है, मल्टीपल ओरगन फेल्यर और दौरे पड़ने के बाद उसकी भयानक मौत हो गई। आप उसकी आँखों में दर्द और आतंक पूरी तरह देख सकती हैं।",
उसने खौफ़ में सिर हिलाया। चित्र में वास्तव में वृषा ही था, परंतु वह इस भावना से नज़रअंदाज नहीं कर पा रही थी कि वह वृषा नहीं था। वह कुछ हद तक अपने पैरों का संतुलन खो रही थी।
"आप वृषा बिजलानी को कैसे जानती हैं?", उन्होंने उससे पूछा,
वह हिचकिचाई।
"मैम, आप हमसे ज़्यादा देर तक कुछ नहीं छिपा सकतीं। हम आपके बारे में पहले से ही सब कुछ जानते है।",
वह आश्चर्यचकित तो हुई, पर घबराई नहीं।
"तो फिर आप सबने पहले मेरी मदद क्यों नहीं की? और आज आप मुझसे अपराधी की तरह पूछताछ क्यों कर रहे हैं?", उसने उनसे पूछा। वो पसीने से भरा चेहरा हांफते हुए पोंछ रही थी।
जब वह अपना बचाव कर रही थी तो उन्होंने एक पुलिस अधिकारी को चिल्लाते हुए सुना, "हमें ड्रग्स और पैसे मिल गए! साथ ही कई अवैध हत्यारे भी!...",
वृषाली हैरान थी।
"अब शेर पिंजरे में है।", सामने खड़ा अधिकारी बुदबुदाया।
"माफ़ करें?", उसने पूछा,
नीचे साइट पर मौजूद वरिष्ठ अधिकारी ने आदेश दिया, "उस कमीने को गिरफ्तार करो!",
"क्या?!", अपने आप में चिल्ला उसकी तरफ घूमी।
अगले ही पल, अधिकारियों ने कवच को हथकड़ी लगाकर घर के बाहर ले गए। उसने एक बार भी उसकी ओर मुड़कर नहीं देखा, लेकिन हम जानते हैं कि उसका आंतरिक स्व केवल उसी पर केन्द्रित थी।
उसने चुटकी बजाते हुए उसका ध्यान अपनी तरफ किया, "एक आखिरी सवाल। क्या आप शत प्रतिशत आश्वस्त हैं कि आप 'वृषाली राय' ही हैं?", उसने एक शैतानी मुस्कान के साथ पूछा,
यह उसकी घबराहट और गिरती हुई शरीर पर आखिरी हमला था, "क्या वाहियात सवाल है!", अंततः उसका शरीर जवाब दे गया और वह बेहोश होकर गिर पड़ी। अधिकारी ने उसे पकड़ लिया, "काफी मुश्किल काम था।", वह बुदबुदाया,
"जल्दी से एम्बुलेंस बुलाओ!", वह चिल्लाया। (बहुत सारा पैसा, मैं आ रहा हूँ!)
सुहासिनी सहित सभी लोग उसे अधिकारियों द्वारा ले जाते हुए देख रहे थे। उसकी आँखें भावहीन मृत थी। इसके बाद, सूर्यास्त के बाद अधिकारियों द्वारा उन्हें ले जाया गया। इस पूरे घोटाले में मीडिया की कोई संलिप्तता नहीं थी, जो काफी संदिग्ध था। इसके बाद सभी अपने सामान्य जीवन फिर से लौट गये सिवाए एक के-
वह ठण्डे सफेद कमरे में जागी, अत्यंत सफेद कमरा, जहाँ अन्य रंगों का कोई अस्तित्व नहीं था, केवल मशीनों की बीप और ठण्डे लोहे के बिस्तर की चरमराहट थी जिसमे उसके हाथ-पैर बँधे हुए थे।