बदलाव ज़रूरी है शृंखला में लीजिये प्रस्तुत ही एक और नयी कहानी जिसका शीर्षक है
आदतें
हर किसी की कोई ना कोई आदत जरूर होती है. किसी की अच्छी तो किसी की बुरी. कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण रूप से ना अच्छा होता है ना ही बुरा. सभी में थोड़ी बहुत अच्छाई और थोड़ी बहुत बुराई जरूर होती है.
एक आंटी अपनी बेटी के घर आयी. जो कि एक छोटे शहर से आयी थी. एक ऐसा शहर जहाँ अब भी उनकी उम्र के लोगों के लिए उनका पुराना समय पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ था. जहाँ अब भी पड़ोसी को पड़ोसी की फिक्र हुआ करती है. जहाँ अब भी कुछ विशेष बने तो उसका आदान प्रदान होता है. जहाँ अब भी किसी एक के घर में कोई खुशी का मौका आता है तो पूरा मुहल्ला मिलकर खुशी मानता है. जहाँ प्यार से अब भी घर के बच्चों को उनके घर के नामों से ही बुलाया जाता है और कोई किसी की बात का बुरा नहीं मानता.
विशेष रूप से जब कोई वृद्ध किसी बच्चे को किसी भी नाम से पुकारे तो कोई भी बच्चा या युवा उस बुज़ुर्ग व्यक्ति की बात का बुरा नहीं मानता. जहाँ के बच्चे हो या युवा स्त्री हो या पुरुष केवल बड़ों का सम्मान करना जानते है. जहाँ इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि वह बूढ़ा व्यक्ति उनके अपने घर है या किसी और के घर का, आज के समय में सोचो तो ऐसा लगता है जैसे हम किसी दूसरे ही जहान की बात कर रहें है. ऐसा तो कभी इस धरती पर संभव ही नहीं हो सकता. ऐसी बातें तो केवल किस्से कहानियों में ही देखने सुनने को मिलती है. है ना..?
लेकिन अब कोई भला आज की पीढ़ी को कैसे समझाये कि वास्तव में एक समय ऐसा था. खैर जिन्होंने वह समय जिया है, वह सभी लोग इस बात को समझ सकेंगे.
तो भई एक दिन वो आंटी शाम को अपने घर से घूमने निकली. अब घूमते घूमते जब वो थक गयी तो पास ही बने बागीचे में जाकर बैठ गयी. कुछ ही देर में वहां उनकी बेटी की उम्र की ही एक महिला आकर बैठ गयी और सुस्ताने लगी. उस महिला का वजन अधिक था और बदन भारी और वह पजामा और बिना बाँह की टीशर्ट पहने थी. पहले तो बहुत देर तक आंटी उस महिला को बड़े ध्यान से देखती रही.
फिर जैसे ही उस महिला ने आंटी की और देखा.
आंटी ने उससे हँसते हुए कहा
"पहले ध्यान दे लिया होता तो नौबत यहाँ तक नहीं आती... नहीं...?"
महिला के चेहरे की त्यौरियाँ चढ़ गयी लेकिन वह चुप ही रही कुछ ना बोली, आंटी ने फिर कहा
"बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ...? भारी बदन वाली महिलाओं को मेरा मतलब है, मोटे लोगों को ऐसे कपड़े नहीं पहना चाहिए. अच्छा नहीं लगता ना कल से चुन्नी लेकर आना."
इस बार उस महिला ने फिर आंटी की और गुस्से से देखा और उनसे कुछ कहने ही वाली थी कि उसे किसी और ने आवाज देकर बुला लिया. फिर आंटी जब अपने घर को जाने लगी तो लिफ्ट में जाते ही उन्हें वह महिला फिर से दिखायी दी. महिला का फिर दिमाग ख़राब हो गया.
आंटी ने उसे देखते ही कहा "अरे तुम इसी बिल्डिंग में रहती हो क्या...?"
महिला ने कहा "जी नहीं"
अच्छा तभी एक और बहुत मोटा कम उम्र का बच्चा उस लिफ्ट में आया और वह महिला उससे बेटा बेटा कहकर बात करने लगी.
तब भी आंटी जी से चुप ना रहा गया और उन्होंने दुबारा उस महिला से कहा
"अच्छा तो यह मोटू तुम्हारा बेटा है...? वैसे तुम्हें देखकर ही समझ आता है कि यह तुम्हारा ही बेटा होगा. क्यों रे मोटू लगता है मम्मी बहुत अच्छा खाना बनाती है...! हैं... है ना...?""
बच्चा उनकी तरफ देखता ही रह गया.
इसी तरह आंटी ने हर दिन किसी को मोटा कहा, किसी को पतला, किसी को काला कहा, तो किसी को गंजा, कुल मिलाकर हर रोज जाने अनजाने वह किसी ना किसी व्यक्ति का दिल दुखाती ही चली गयी क्यूंकि वह यह नहीं जानती थी कि बड़े शहरों में लोग ऐसे सम्बोधन से बुरा मान जाते हैं. एक दिन उन्होंने एक 19-20 साल की एक लड़की से कह दिया.
"यह कैसी पूँछ जैसी चोटी है तुम्हारी"
और उसकी चोटी हिला हिलाकर हँसने लगी. और कहा
"अरे बिटिया जब हम तुम्हारी उम्र के रहे ना, तब हमारी यह मोटी मोटी चोटी हुआ करती थी और एक यह तुम्हारी चुट्टईया है"
लड़की उनकी बात से दुखी होकर रोने लगी और घर भाग गयी.
पीछे आंटी कहती ही रह गयी कि
"अरे सुनो तो हमारे पास एक नुस्खा है आजमा कर देखो तुम्हारे बाल भी घने हो जायेंगे....!"
अगले ही दिन उस लड़की की माँ उनसे लड़ने उनके घर आ धमकी और उसने आंटी को यह कहते हुए खूब भला बुरा सुनाया कि
"आप अपने आप को समझती क्या हैं...? आपने क्या ठेका ले रखा है कि सब को सुधार कर ही मरेंगी. आपको क्या लगता है कि आप सद्गुण सम्पन्न है....! आप में कोई बुराई नहीं है..? अरे आपको शर्म आनी चाहिए...! दादी नानी की उम्र में लोग बच्चों को अपने अनुभवों से प्रोत्साहित करते है. हतोत्साहित नहीं करते...! इतना भी नहीं समझती क्या आप...! बुढ़िया कहीं की ना जाने अपने आप को क्या ही समझती है. आप होती कौन है किसी को यह बताने वाली कि किसको क्या करना चाहिए क्या नहीं...?"
सास है तो अपनी बहू पर हुक्म चलाओ ना... वो दबती होगी तुझ से, हम नहीं दबेंगे...!
इतने में आंटी की बेटी घर आयी और उसने यह शोर सुना तो उसने पूछा
"आप कौन है..? और मेरे घर में आकर मेरी माँ पर इस तरह से चिल्ला क्यूँ रही है...? हुआ क्या है माँ...?"
मतलब आप इनकी बहू नहीं है..?
"जी नहीं, मैं इनकी बेटी हूँ "
वाह...! तब तो और भी बढ़िया...!
क्या मतलब है आपका...?
"आप अपनी माँ को समझाती क्यूँ नहीं यह सबको आपकी ही तरह देखती है और किसी से कुछ भी कह देती है. इन्होंने मेरी बेटी से कह दिया कैसी पूँछ जैसी चोटी है तेरी, मेरी तो मेरे समय में ऐसी इतनी मोटी चोटी हुआ करती थी..."
बेटी ने अपने खूबसूरत बाल देखे और कहा
"हाँ तो...?"
तो मतलब...? "आप जानती है मेरी बेटी का इलाज चल रहा है. वह अपनी कमियों को लेकर पहले ही घर के बाहर जाना बंद कर चुकि है. थोड़ा बहुत घर के बाहर खेल लेती है कभी कभी. वह भी आपकी माँ से देखा नहीं गया...! हर इंसान परफेक्ट नहीं होता. सभी में कोई ना कोई कमी होती है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आप उस इंसान की उसी कमी को लेकर उसे टांट मारो, उसका मजाक उड़ाओ, वह भी उसी के सामने.... इतनी तमीज तो सभी को होती ही है ना....? और यदि नहीं होती तो आपको नहीं लगता कि होनी चाहिए...?? "
"बेटी ने आंटी की और देखते हुए पूछा माँ यह जो कह रही है क्या वह सच है...? "
आंटी शहर वालों का ऐसा रवैया देखकर सदमे में थी उन्होंने कुछ ना कहा.
बेटी ने फिर पूछा माँ...!
पर वो कुछ नहीं बोली उनकी आँखों में केवल जल भर आया.
"बेटी ने कहा देखिये माँ को नहीं पता था कि आपकी बेटी के साथ ऐसी कोई समस्या है... उन्होंने बच्ची समझ कर कह दिया होगा...! माँ की तरफ से मैं आपसे माफ़ी मांगती हूँ. आप उन्हें माफ़ कर दीजिए. बुज़ुर्ग हैं हो जाता है कभी कभी...! कहते हुए आंटी कि बेटी ने किसी तरह सबको समझा बुझा के अपने घर से विदा किया.
उनके जाने के बाद बेटी ने माँ से कहा...
"क्या माँ आप भी ना...!!! क्या ज़रूरत है किसी से कुछ कहने सुनने की, अपने काम से काम रखा करो ना आप. आपके शहर जैसा यहाँ बड़े शहरों में नहीं होता माँ...! यहाँ काले को काला, चपटे को चिंकी, या मोटे को मोटा नहीं कह सकते. ऐसा कहना "बॉडी शेमिंग" कहलाता है...!"
"पर बेटा मैं तो ऐसी ही हूँ शुरु से और हमारे उधर तो कोई बुरा नहीं मानता और बेटा ऐसी छोटी -छोटी बातों को दिल से लगा बैठेंगे तो आजकल के बच्चे मानसिक रूप से दिन प्रति दिन और भी ज्यादा कमज़ोर पे कमजोर होते चले जाएंगे. फिर जीवन की परेशानियों और उतार चढ़ावों का सामना कैसे करेंगे...?
"कैसे भी करें माँ, यह उनकी समस्या है हमें उनसे क्या...?"
"अरे ऐसा कैसे...? कल को तेरे बच्चे होंगे तब भी तू यही कहेगी...? नहीं बेटा यह गलत है, इस मामले में
"बदलाव बहुत जरूरी है" आखिर बच्चे ही तो देश का भविष्य है. "
अच्छा...! और कैसे आयेगा यह बदलाव...? ऐसे उनके मुंह पर उनकी कमियां गिनाकर...?
नहीं, उनमें किसी भी तरह आत्मविश्वास का संचार कर के उनसे बात कर के... ही बदलाव लाया जा सकता है क्यूंकि जब तक वह अपने मन में चल रही बात किसी से कहेंगे नहीं तब तक उनकी समस्या का समाधान निकलेगा कैसे.....?
."सच कहा माँ आपने, बदलाव जरूरी है...! दोनों के लिए. मैं तो शुरु से ऐसी ही हूँ से भी काम नहीं चलेगा माँ...!
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