बदलाव जरूरी है शृंखला में लीजिये पेश है चौथी कहानी जिसका शीर्षक है
बिल्लू
गरीब तबके के लोग या वह लोग जो कहीं से पलायन करके कहीं और पहुंचे हैं. यहाँ एक देश से दूसरे देश वाले पलायन की बात नहीं हो रही है बल्कि गाँव से शहर आने वाले लोग जो आय बढ़ाने के चक्कर में अपने स्थान को छोड़कर, घर परिवार को छोड़कर गाँव से शहर चले आते हैं और फिर अत्यधिक गरीबी, यहाँ तक के निजी जरूरतों के अभाव में अपना जीवन व्यतीत करते रहते है. वह भी अपने जीवन में संघर्ष करते -करते यह बात बखूबी जान जाते है, समझ जाते है कि शिक्षा का जीवन में क्या महत्व है. फिर भी कभी पैसों के अभाव में तो कभी ज्यादा पैसा कमाने के लालच में वह अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते या यूँ कहें कि नहीं पढ़ा पाते और जल्द से जल्द अपने बच्चों को काम पर लगा देते है. जिससे उनके बच्चे पढ़ तो नहीं पाते लेकिन दुनिया दारी बहुत अच्छे से सीख जाते हैं.
बिल्लू भी ऐसे ही अधिक पैसा कमाने के चककर में अपने गाँव को छोड़कर अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गया था. उन दिनों बिल्लू और उसके परिवार ने इतनी गरीबी और लाचारी के दिन देखे जिसकी उन्होंने गाँव में कभी कल्पना भी नहीं की थी. बिल्लू की पत्नी और बिल्लू का झगड़ा अक्सर इसी बात को लेकर होता था कि गाँव में रहकर शहर के जीवन के बड़े बड़े सपने दिखाकर वो उसे यहाँ लाया था लेकिन सच्चाई तो कुछ और ही निकली.
बिल्लू दो वक्त की रोटी कमाने के लिए कभी मजदूरी करता, कभी पानी पूरी बेंचता, तो कभी सब्जी ठेला लगाता. फिर भी अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी ना कमा पता. हालत इतनी खराब थी कि कई बार भीख माँगने जैसी नौबत आ जाती तो कभी केवल पानी पीकर ही सोना पड़ता. बिल्लू के बच्चे को शहर में आकर यदि कुछ पसंद आया या था तो वह थी एक से बढ़कर एक शानदार गाड़ियाँ. बिल्लू का बेटा उनमें घूमने के सपने देखा करता और अपने पापा से कहता
"एक दिन मैं भी बड़ा होकर ऐसी ही गाड़ी खरीदूँगा, आप देखना फिर मैं आप और माँ उसी में घूमने जाया करेंगे....!"
बिल्लू यह जानता है कि उसका बेटा अभी बहुत छोटा है और ना समझ है इसलिए वह अपने बेटे की बातों को सुनकर बस मुसकुरा देता है. फिर एक दिन वही बच्चा एक दुकान के बाहर बैठकर बड़ी बड़ी गाड़ियों को आते जाते बड़ी हसरत भरी निगाहों से देख रहा होता है. तभी एक गाड़ी उसके पास आकर रुकती है और उसमें से एक चचा गाड़ी के काँच उतारते हुए उसे कुछ पैसे देना चाहते है क्यूंकि उन्हें लगता है कि वह बच्चा कोई भिखारी है. बच्चा कहता है
"नहीं नहीं मुझे भीख नहीं चाहिए."
तो चचा कहते
“चलो फिर मैं तुम्हें कुछ खिला देता हूँ”
बच्चा भूखा तो होता ही है, चचा उसे दो समोसे लेकर देते है. एक बच्चा खुद खा लेता है और एक अपनी माँ के लिए रख लेता है. उसे ऐसा करते देख चचा उसे एक और समोसा दिला देते हैं. बच्चा दोनों समोसे अपने माँ बाप के लिए रख लेता है. फिर वह उन चचा से कहता है.
“यदि मैं आपकी गाड़ी साफ कर दूँ तो क्या आप मुझे अपनी इस गाड़ी में एक चक्कर घुमा दोगे क्या...??”
चचा ने उसकी तरफ आश्चर्य से देखा और फिर मुसकुरा के कहा "चल"
बच्चा एकदम खुश हो गया. रास्ते में उसने चचा को अपने सपने के विषय में सब कुछ बताया. उसकी बातों को सुनकर कहीं ना कहीं चचा को अपना बचपन याद आगया और उन्होंने उसे एक चक्कर घुमाने के बाद वापस उसी जगह लाकर छोड़ दिया जहाँ से उठाया था और उस बच्चे से कहा
"यदि तुझे ऐसी गाड़ियों का शौक है तो मेरे पास एक रास्ता है."
सच्ची...!!!
"हाँ... सच्ची कल अपने पापा को लेकर इस पते पर आ जाना "
अगली सुबह वह बच्चा अपने पिता बिल्लू के साथ उस पते पर पहुँच कर क्या देखता है कि बहुत से लोग वहां कई बड़ी बड़ी गाड़ियों की मरम्मत कर रहे है. बच्चा हर एक गाड़ी के उपर हाथ फेरता हुआ वहाँ पहुँच जाता है जहाँ चचा बैठे मोबाइल पर कुछ देख रहे थे. बच्चे को देखकर चचा मुसकुराते है और उसे बैठने के लिए कहते है. बिल्लू भी चचा के गैरेज को बड़े ध्यान से देख रहा होता है. चचा बिल्लू को अपना परिचय देते हैं. और उस बच्चे को काम सिखाने की बात करते है. बिल्लू साफ मनाकर देता है. कहता है
"अभी तो उसकी खेलने खाने और पढ़ने लिखने की उम्र है. अभी से वो उसे काम में झोंककर उसका बचपन नहीं छीनना चाहता."
चचा बिल्लू को समझाते है
"कौन से बचपन की बात कर रहे हैं आप..? वो जो भूखा प्यासा लोगों का मुंह तकता फिरता है कि कोई उसे कुछ खिला पिला दे...!"
ऐसे बचपन से तो अच्छा है वह कोई काम सीख ले चार पैसे घर में आयेंगे तो आपको भी सहारा हो जायेगा और उसके लिए भी भविष्य में कोई ना कोई रास्ता खुल जायेगा. कम से कम भूखों मरने से तो अच्छा है."
बिल्लू ने फिर कहा "नहीं नहीं...! चाहे कुछ भी हो जाय वो अभी से अपने बच्चे के उपर किसी तरह की कोई ज़िम्मेदारी नहीं डालना चाहता पर हाँ यदि उसके लायक कोई काम हो तो बतायें "
चचा ने कहा "ठीक है आगे तुम्हारी मर्जी."
बिल्लू ने सोचा मैं तो अनपढ़ होने के कारण शहर आकर भी कुछ ना कर सका लेकिन मैं अपने बेटे को जरूर पढ़ाऊंगा ताकि आगे चलकर उसे यह दिन ना देखने पड़े.
बिल्लू ने पास ही के एक सरकारी स्कूल में अपने बच्चे का दाखिला करवा दिया और दिन रात मेहनत कर के एक सोसाइटी में गार्ड के काम पर लग गया. रात भर वहां ड्यूटी करता और दिन में आकर सोता उसकी पत्नी ने भी लोगों के घर झाडू कटका बर्तन आदि साफ करने का काम पकड़ लिया. लेकिन उसे जब यह पता चला कि बिल्लू ने उसके बेटे को काम सीखने से मनाकर दिया तो दोनों पति पत्नी में बहुत लड़ाई हुई क्यूंकि बिल्लू की पत्नी ने खुद भी कभी पाठशाला का मुंह नहीं देखा था इसलिए उसे भी कभी पढ़ाई का महत्व समझ ही नहीं आया.
खैर दिन बीतने लगे परिवार की माली हालत अब पहले से सुधारने लगी थी. किन्तु बिल्लू के बेटे का मन पढ़ाई में जरा नहीं लगता था उसके दिमाग में हमेशा वही बड़ी बड़ी गाड़ियाँ ही घूमती रहती थी. चुंकि बिल्लू की पत्नी भी अनपढ़ थी इसलिए उसने भी कभी अपने बेटे को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित नहीं किया. इसलिए कहा जाता है
"जिस घर की महिला शिक्षित होती है वहां पूरा घर शिक्षित होता है"
इसलिए बेटियों के लिए भी शिक्षा उतनी ही अनिवार्य है जितनी बेटों के लिए. खैर समय के साथ साथ जैसे जैसे बिल्लू का बेटा बड़ा होने लगा. वैसे वैसे गलत संगत में पड़ बिगड़ने भी लगा था. उसकी हरकतों से तंग आकर बिल्लू ने अपने बेटे को चचा के यहाँ काम पर लगा दिया. जहाँ उसके हुनर को तो कोई पहचान ना मिल सकी किंतु ठीक होने आयी बड़ी एवं महंगी गाड़ियों को टेस्ट ड्राइव के बाहने घुमाने और खुद उसमें में घूमने का शौक जरूर पूरा हो गया.
इधर पढ़ें लिखें लोग भी परेशान है कि उनका बच्चा वो वाली पढ़ाई नहीं करना चाहता जो वो उससे करवाना चाहते है. स्कूल की एक ptm (पैरेंट्स टीचर मीट) में एक अभिभावक ने एक अध्यापक से प्रश्न किया कि
"आखिर ऐसी क्या वजह है, जो बच्चे पढ़ना ही नहीं चाहते...? फिर चाहे अमीर के हों या गरीब के....!" अध्यापक ने उत्तर दिया
"जहाँ तक मुझे लगता है आजकल की भौतिक दुनिया के हिसाब से बच्चे के लिए शिक्षा से अधिक महत्व उसके हुनर और सपनों का होना चाहिए और उसकी शिक्षा भी उसी के हिसाब से दी जानी चाहिए या चुनी जानी चाहिए."
तो एक दूसरे बच्चे की माँ ने अध्यापक से प्रश्न किया कि "सभी की इतनी हैसियत नहीं होती कि वह अपने बच्चे के हुनर के हिसाब से या उसके सपनों के हिसाब से उसे उसकी वही शिक्षा दिलवा सकें तो फिर ऐसे में क्या किया जाना चाहिए...? क्यूंकि इसका यह अर्थ तो नहीं कि बच्चे नहीं पढ़ना चाहें तो हम उन्हें पढ़ाये ही नहीं...!"
अध्यापक जी ने कहा जी
"आपकी चिंता अपनी जगह बिलकुल सही है क्यूंकि चाहे कुछ भी हो जाए बच्चे का शिक्षित होना तो बहुत ही जरूरी है इसमें तो कोई दौराय है ही नहीं, लेकिन मेरी समझ से ऐसे हालातों में हमें बच्चे को बहुत ही आम कोई डिग्री लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए. ताकि आपातकालीन स्थिति में वह जीवन यापन हेतु कुछ तो कर सके. जैसे ट्यूशन पढ़ना इत्यादि ऐसे में हम वह पैसा बचाकर वही पैसा उसके हुनर को तराश ने और निखारे में लगा सकते है"
तभी एक और बच्चे के पिता ने कहा
"मेरे विचार से यह तो कोई समाधान नहीं हुआ "इसका अर्थ तो यह निकल रहा है कि फिर तो हमें अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में डाल देना चाहिए"
अध्यापक जी ने कहा "जी बिलकुल...! यदि आपका बच्चा बिलकुल पढ़ना ही नहीं चाहता कुछ करना ही नहीं चाहता तो आप ऐसे में उसे किसी भी महँगे से महंगे स्कूल में डाल दीजिये वो नहीं ही पढ़ेगा. आगे तो अब यह तो अपनी अपनी सोच है, इसमें मैं क्या ही कह सकता हूँ. आपका बच्चा और आप ही का पैसा है. अब यह निर्णय भी आपको ही लेना है कि आप महंगे स्कूल में दुगनी फीस देकर भी अपने बच्चे को एक साधारण नौकरी करते हुए देखना चाहते है या फिर कम फीस देकर आप अपने बच्चे के हुनर पर काम करके उसकी खुद की कंपनी खड़ी देखना चाहते है...!" याद रखिये देश पूंजीपतियों के भरोसे ही चलता है आगे आप सब खुद समझदार है"
"जी सही कहा आपने इसके लिए तो सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली में
बदलाव जरूरी है....!"
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