वो दिन एक आम दिन जैसा ही था, लेकिन शायद किस्मत ने मेरे लिए कुछ खास तैयार कर रखा था। मैं अपने कॉलेज के पहले दिन के लिए बेहद उत्साहित था। नई जगह, नए दोस्त, और एक नई शुरुआत का सपना लेकर मैं कैंपस में पहुंचा। चारों तरफ लड़के-लड़कियां अपने दोस्तों के साथ हंसते-खिलखिलाते नजर आ रहे थे। कुछ चेहरे घबराए हुए थे, तो कुछ आत्मविश्वास से भरे। मैं भी अपने आप को शांत और सामान्य दिखाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अंदर से दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
पहली क्लास शुरू होने से पहले मैं लाइब्रेरी की तरफ चला गया। वहां का माहौल बेहद शांत और सुकूनभरा था। मैं एक किताब लेने के लिए शेल्फ के पास गया। जैसे ही मैंने हाथ बढ़ाया, उसी समय एक लड़की ने भी वही किताब पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया। हमारी उंगलियां हल्के से टकराईं। उसने झट से हाथ पीछे खींच लिया और मुझसे नजरें मिलाईं।
उसकी आंखों में कुछ खास था। गहरी भूरी आंखें, जिनमें जैसे अनगिनत कहानियां छिपी थीं। हल्की मुस्कान के साथ उसने कहा, "सॉरी, ये किताब आप ले लीजिए।" उसकी आवाज में इतनी मिठास थी कि मैं कुछ पलों के लिए शब्दों को भूल गया।
"नहीं, आप पहले लीजिए। मुझे कोई जल्दी नहीं है," मैंने कहा।
"शुक्रिया," उसने मुस्कुराते हुए किताब ले ली और पढ़ने के लिए पास की एक टेबल पर बैठ गई।
मेरे कदम अनजाने में उसकी ओर खिंच गए। मैं भी उसी टेबल पर बैठ गया। मैंने किताब खोलने का नाटक किया, लेकिन मेरी नजरें बार-बार उसकी ओर खिंच रही थीं। वो बड़े ध्यान से किताब पढ़ रही थी, और कभी-कभी बालों को कान के पीछे समेटती थी। उसकी हर एक हरकत जैसे मेरे दिल पर एक छाप छोड़ रही थी।
कुछ देर बाद उसने मेरी ओर देखा और मुस्कुराई।
"आपकी पहली क्लास किसकी है?" उसने पूछा।
"मैथ्स की," मैंने जवाब दिया।
"अच्छा! मेरी भी वही क्लास है।"
ये सुनते ही मेरे दिल में एक अजीब सी खुशी हुई। क्या ये किस्मत थी या कोई इत्तेफाक?
क्लास शुरू होने से पहले हमने थोड़ी और बातें कीं। उसने बताया कि उसका नाम राधिका है। वो दिल्ली से आई थी और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए इस शहर में आई थी। उसकी बातों में एक सादगी थी, जो मुझे बेहद भा गई।
जब क्लास शुरू हुई, तो मैं और राधिका एक ही बेंच पर बैठ गए। पूरी क्लास के दौरान मेरा ध्यान पढ़ाई से ज्यादा उसकी ओर था। वो जब-जब बालों को कान के पीछे ले जाती, मैं मंत्रमुग्ध हो जाता।
क्लास खत्म होने के बाद हमने साथ में कैंटीन जाने का फैसला किया। वहां हमने चाय पी और एक-दूसरे के बारे में और बातें कीं। राधिका को किताबें पढ़ने और पुराने हिंदी गाने सुनने का शौक था। मुझे भी वही सब पसंद था। हमारी पसंद-नापसंद इतनी मिलती-जुलती थी कि मैं हैरान रह गया।
उस दिन के बाद से हमारी मुलाकातें बढ़ने लगीं। हम हर रोज साथ में क्लास जाते, लंच करते और लाइब्रेरी में पढ़ाई करते। धीरे-धीरे हमारी दोस्ती गहरी होती गई। राधिका का साथ मुझे बहुत सुकून देता था। उसके साथ वक्त कब गुजर जाता, पता ही नहीं चलता।
एक दिन मैंने हिम्मत करके उससे पूछ ही लिया, "राधिका, क्या तुमने कभी प्यार के बारे में सोचा है?"
वो कुछ पल चुप रही, फिर मुस्कुराते हुए बोली, "प्यार... शायद वो एहसास है, जब किसी के साथ वक्त बिताने पर दिल को सुकून मिले।"
उसके जवाब ने मुझे यकीन दिला दिया कि शायद वो भी मेरे लिए कुछ महसूस करती है।
कुछ हफ्तों बाद, एक शाम जब सूरज ढल रहा था, और आसमान में हल्की गुलाबी रंगत थी, मैं राधिका को कैंपस के गार्डन में ले गया। मैंने फूलों का एक गुलदस्ता तैयार किया था और अपना दिल खोलने का फैसला कर लिया था।
"राधिका," मैंने धीरे से कहा, "तुम्हारे साथ बिताया हर पल मेरे लिए खास है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि किसी के साथ इतनी जल्दी इतनी गहरी जुड़ाव महसूस कर पाऊंगा। मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं... मैं तुमसे प्यार करता हूं।"
राधिका ने मुझे कुछ पल के लिए देखा। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन वो मुस्कुरा रही थी।
"अर्जुन," उसने कहा, "मैं भी तुम्हारे लिए यही महसूस करती हूं। लेकिन मैं डरती थी कि शायद ये एकतरफा हो।"
उसकी बात सुनते ही मेरे दिल में जैसे खुशी की लहर दौड़ गई। मैंने उसे गले लगाया और उसने मेरे प्यार को स्वीकार कर लिया।
उस दिन के बाद हमारी जिंदगी बदल गई। हम साथ में सपने देखते, मुश्किलें बांटते, और एक-दूसरे के साथ हर पल को संजोते। हमारी पहली मुलाकात से शुरू हुई ये कहानी एक खूबसूरत रिश्ते में बदल गई