शादी के लिए घरवालों से बात
राधिका से दूसरी बार मिलने के बाद हमारी जिंदगी फिर से बदल गई। हम दोनों ने तय कर लिया था कि अब हम एक-दूसरे से दूर नहीं रहेंगे। प्यार तो पहले से था, लेकिन अब इसे एक नाम देने की जरूरत थी। हमने शादी का फैसला कर लिया। लेकिन ये इतना आसान भी नहीं था।
मेरे घरवालों के लिए ये खबर चौंकाने वाली थी। मैं एक छोटे से शहर के पारंपरिक परिवार से था, जहां परिवार की पसंद को ज्यादा महत्व दिया जाता था। वहीं राधिका का परिवार भी कुछ ऐसा ही था, जो जात-पात और रीति-रिवाजों को बहुत महत्व देता था।
मैंने सबसे पहले अपने माता-पिता से बात करने का फैसला किया। एक शाम, डिनर के बाद मैंने धीरे-धीरे बात शुरू की।
"पापा, मम्मी... मैं आपसे कुछ जरूरी बात करना चाहता हूं," मैंने झिझकते हुए कहा।
मेरे पापा ने अखबार से नजरें उठाईं और बोले, "क्या बात है अर्जुन? कुछ परेशानी है?"
"नहीं, परेशानी नहीं... मैं शादी के बारे में बात करना चाहता हूं।"
मेरी इस बात पर मेरी मां चौंक गईं।
"अरे वाह! शादी की बात कर रहा है हमारा बेटा। अच्छा, तो लड़की कौन है? कहीं हमसे छुपाई तो नहीं?" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।
मैंने गहरी सांस ली और कहा, "मम्मी, पापा, लड़की का नाम राधिका है। हम कॉलेज के समय से एक-दूसरे को जानते हैं। वो दिल्ली में रहती है और नौकरी करती है। हम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं।"
मेरी बात सुनते ही पापा के चेहरे पर गंभीरता आ गई।
"अर्जुन, तुम जानते हो कि हमारा परिवार परंपराओं को मानता है। क्या राधिका हमारी जाति से है? क्या उसका परिवार हमारे जैसे रीति-रिवाज मानता है?"
मैंने शांत रहते हुए कहा, "नहीं पापा, वो हमारी जाति से नहीं है। लेकिन मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि वो एक बहुत अच्छी लड़की है। वो हमारे परिवार को समझेगी और हर रिश्ता निभाएगी।"
पापा चुप हो गए। मम्मी ने भी कुछ नहीं कहा। कमरे में सन्नाटा छा गया। मैं समझ गया कि ये इतनी जल्दी आसान नहीं होगा।
दूसरी तरफ, राधिका ने भी अपने घरवालों से बात की। उसके पापा को ये बात पसंद नहीं आई।
"राधिका, तुम जानती हो कि हम अपनी परंपराओं को कितनी अहमियत देते हैं। अर्जुन अच्छा लड़का हो सकता है, लेकिन क्या वो हमारे परिवार के साथ तालमेल बिठा पाएगा?" उन्होंने नाराजगी भरे स्वर में कहा।
राधिका ने उन्हें समझाने की पूरी कोशिश की। "पापा, अर्जुन और मैं एक-दूसरे को बहुत अच्छे से जानते हैं। वो एक ईमानदार और सच्चे दिल का इंसान है। मैं आपसे बस इतना चाहती हूं कि आप उसे एक बार मिलें।"
हम दोनों के परिवारों की ये स्थिति हमारे लिए चुनौती बन गई। लेकिन हमने हार नहीं मानी। हमने तय किया कि सबसे पहले दोनों परिवारों की मुलाकात करवाई जाए।
दो हफ्ते बाद, मेरे माता-पिता और राधिका के माता-पिता की मुलाकात हुई। शुरुआत में माहौल थोड़ा असहज था। दोनों तरफ की परंपराओं और विचारधाराओं में काफी अंतर था। लेकिन जब बातचीत शुरू हुई, तो धीरे-धीरे दोनों परिवार एक-दूसरे को समझने लगे।
राधिका की मां ने कहा, "हम बस यही चाहते हैं कि हमारी बेटी खुश रहे। अगर अर्जुन उसे समझता है और खुश रखेगा, तो हमें कोई आपत्ति नहीं है।"
मेरे पापा ने भी मुस्कुराते हुए कहा, "हमारी भी यही सोच है। जब बच्चों ने एक-दूसरे को चुना है, तो हमें उनकी खुशी में खुश रहना चाहिए।"
उस दिन के बाद से दोनों परिवारों के बीच रिश्ते मजबूत होने लगे। हमने शादी की तारीख तय की और दोनों परिवारों ने मिलकर तैयारियां शुरू कर दीं।
शादी के दिन, राधिका और मैं मंडप में बैठे थे। चारों तरफ खुशी और प्यार का माहौल था। मैंने उसकी आंखों में देखा और मुस्कुराया। उसने भी हल्के से मुस्कुराकर मेरा हाथ थाम लिय