उलझन
"कल शाम हुआ क्या था? भविष्य के लिए मुझे विस्तार से बताओ।" कवच ने अपनी नियति को अब भी सीने से लगाकर रखे था।
कमरे में हल्की बीप की आवाज़ गूँजी जिसपर वृषाली का ध्यान नहीं गया।
उसने उसे थोड़ा पीछे हटाकर कहा, "मैं अब ठीक हूँ। राज ने मुझ पर तब हमला किया जब मैं विषय के साथ वीडियो कॉल पर थी। उसने मुझे लैपटॉप पर फेंक दिया और मुझे काले रंग का कुछ पीने पर मजबूर किया। आपके बताने के बाद पता चला कि यह मुझे एक दिन के लिए गूंगा बनाने वाला कोई काला पानी था।", उसने उसे शिकायत भरी नज़रे से देखा,
"क्षमा? फिर उसने क्या किया?", कवच ने हाथ जोड़कर माफी माँगी,
उसने हल्की काँपती पर मज़बूती और गुस्से से उसे हाथ दिखाते हुए कहा, "आ- कैसे माफ कर सकती हूँ? भक्षक हमारे भक्षण के ताक पर है और हमारा कवच, हमारा कवच तो बस बात छुपाने में लगा हुआ है।", उसे सुनाने के बाद, "तो, 'उसने क्या किया?', आपने तो देखा था मेरी कैसी हालत थी?!",
कवच ने उसके हाथ को थामकर कहा, "ऐसा अभिनय करना बँद करो जैसे कि तुम ठीक हो।",
एक व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ उसने कहा, "तो क्या करूँ?!", उसने चिल्लाकर पूछा, "यह हमारी वास्तविकता होने जा रही है। समीर अधिक ऊर्जा के लालच में और अपना स्वामित्व स्थापित करने के लिए निश्चित रूप से उन सबको कुछ ना कुछ घिनौने काम करने पर मजबूर करेगा। मैंने उसका पागलपन कल देखा लिया है, एक साथ कई मोहरे!
आप सुनना चाहते है ना कल क्या हुआ? तो सुनो!
कल जो राज ने किया था वह एक छोटा नमूना था मेरे लिए। उसने मुझे जिम के बेंच पर पटका और मेरे सारे कपड़े एक-एक कर खुन्नस से फाड़ा, मेरे बंधे हुए बाल तानकर खोला और खुद को मुझपर थोपने कि कोशिश की और इतना ही नहीं उसने मुझे उस हालत में सभी प्रताड़ित लोगों की विनती और चीखें और दर्दनाक मौत देखने पर मजबूर किया। क्रूर कहना छोटा होगा, उनका दर्द क्रूर या बहुत क्रूर से अनगिनत गुना क्रूर था।
बच्चों को भी इतनी निर्दयता से मारा। उनमे से तो कईयों ने तो पालने से कदम भी बाहर नहीं रखा था। उसने ना केवल दूसरों को बल्कि अपने पिता, माता और नियति को भी मार डाला। उसने राज और शिवम के पिता और शिवम की माँ को भी शक्ति के लिए सोखकर मार डाला।",
वह फिर से रोने के कगार पर आ गयी।
"मेरे शरीर को... टटोलते हुए उसने मुझे आदेश दिया कि मैं चुप रहूँ और उसके आदेश का पालन करूँ, नहीं तो वो अगले दिन मेरे सामने मेरे परिवार के हर एक सदस्य के कटे हुए मस्तक परोसेगा। और जो दरिंदगी मैंने देखी थी उसके बाद मैं मज़ाक समझकर भी उसे नकार नहीं सकती थी। उन्होंने आदेश दिया कि जब मैं जागूँ तो मुझे बिना किसी सवाल-जवाब के एक आदमी का पीछा करना चाहिए और कुछ दस्तावेज और डायरी लेनी चाहिए और ज़ोर से पढ़ना है जैसे कि मैं इसका आनंद ले रही हूँ और इन सारे सबूतों से आश्वस्त हूँ। लेकिन जब मैं उठी तो मैं शराब और कटलरी से घिरी हुई खाने की मेज़ के शीर्ष पर थी। मेरी आवाज़ भी नहीं थी, फिर मैंने आपको देखा। आपकी वजह से मैं शांत रह सकी। धन्यवाद। लेकिन मैं इतना मज़बूत नहीं हूँ कि इतने लंबे समय तक अभिनय कर सकूँ और सच कहूँ तो मैं एक मूर्ख हूँ। हम नहीं जानते कि भविष्य में हमारे लिए क्या है और मैं अपने इन अविश्वसनीय कंधे पर अनगिनत लोगों के जीवन का नकारात्मक परिणाम सहन नहीं कर सकती। मुझे खेद है। मुझे खेद है, लेकिन मैं इतने सारे जीवन की नीलामी नहीं कर सकती। क्या होगा अगर मैं आपको या आपकी योजनाओं को नुकसान पहुँचा जाऊँ? मैं ऐसा नहीं कर सकती!",
फिर से रोना और माफ़ी माँगना शुरू हो गया।
उसने उलझन भरी आह भरी।
"वृषाली, जाकर न्यूज़ लगाना।",
उसने जाकर टी.वी खोला। पूरे दुनिया में ये ब्रेकिंग न्यूज़ थी कि कैसे समीर बिजलानी के साहसिक योगदान के कारण, दुनिया में व्याख्यात माफिया, डॉन भारतीय पुलिस की गिरफ्त में थे।
"नमस्कार दर्शकों! आप सभी का इस सनसनी में स्वागत है जहाँ एक व्यापारी जो हम आम लोंगो को सिर्फ एक उपभोक्ता के रूप में ही नहीं बल्कि हमे आपनी परिवार के सदस्य की तरह मानता है जिसके लिए अपनो की सुरक्षा अपनी सुरक्षा से सर्वप्रथम है! यह कोई आम व्यापारी नहीं, बल्कि बहु अरबपति समीर बिजलनी है! जिसने विश्वव्यापी गैंगस्टर को गिरफ्तार करने के लिए खुद को एक चारा के रूप में पेश किया था। हमारे देश को गौरव दिलाने के लिए यह एक सफल योजना थी। ऐसा किसी भी देश नहीं कर पाया जिसे हमारे देश और हमारे देश के माननीय बिजनेसमैन ने कर दिखाया है।", न्यूज़ ऐंकर ने सीने ठोककर कहा।
उसने दूसरा चैनल रखा,
"आज हमारे देश के लिए गर्व करने वाला दिन है! समीर बिजलानी जी के साहसिक-",
उसने चैनल बदला,
"समीर जी की वीरता-",
चैनल बदल,
"समीर सर ने वो किय-",
टी.वी बँदकर कवच की ओर घूमकर पूछना चाहती थी पर उसे शब्द मिल नहीं मिल रहे थे।
व्यंग्यात्मक मुस्कान,
"क्या? कौन? क्यों?", अभी भी सब कुछ समझने की कोशिश कर रही थी।
"वे सभी काली दुनिया में उसके प्रतिस्पर्धी थे। सभी ऐसे गंभीर अपराधों में लिप्त थे, जिनके बारे में तुम्हारे जैसे एक सामान्य इंसान अपने सबसे अशुद्ध विचार में भी नहीं सोच सकता। ड्रग तस्कर, मानव तस्कर, हत्यारा, चलते-फिरते यातना उपकरण, राक्षस, कातिल ये सब उनके लिए छोटे दर्जे है।",
"तो... उन्होंने उसे शिकार करने दिया?", उसने उलझन में पूछा,
"खैर, उनके पास हमेशा की तरह एक मनोरंजक प्रदर्शन था।", उसने अभी भी व्यंग्यात्मक ढंग से मुस्कुराते हुए कहा,
"कौन? ओह!", उसे समझ आया, "कब से?",
"सत्रह या शायद अठारह साल से।", उसने कहा,
"मतलब जब आप नौ-दस साल के थे तब से। आपकी माँ? वो कैसे मान गय-", तब उसे उसका बचपन याद आया, "माफ करना।",
वो संभलकर नीचे उतरा,
"तुम्हें तैयार हो जाना चाहिए बच्चे। उसने अपना जाल बिछा दिया है। दो-तीन दिनों के अंदर सब बदलने वाला है। अब तुम्हारी सुरक्षा तुम्हारी है।" उसने उसे दुलारते हुए कहा,
"इतनी जल्दी? मुझे तो यह भी नहीं पता कि वह क्या चाहता है? क्या होगा अगर मैंने आपकी योजना बिगाड़ दी तो?",
फिर से उसने उसे ह्रदय से चिपका लिया।
दोनों ही अपनी भावनाओं के उतार-चढ़ाव में थे। उसे प्रक्रिया में लाना कठिन था और उसे कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया था। उसे केवल इतना पता था कि उसे समीर की हर गतिविधि पर नज़र रखनी थी और पुलिस के लिए गवाही के रूप में काम करना था। इस तरह वह उस समयावधि तक सुरक्षित रहेगी जब तक वह अपना हमला शुरू करेगा। वृषाली संदेह और भय से भरी हुई थी जबकि वृषा को अपने पिता की तानाशाही को समाप्त करने की नई इच्छाशक्ति मिल गई थी।
उसके मोबाइल पर संदेश आया। होमस्क्रीन पर संदेश के साथ जंजीर का नाम दिखाया गया। 'गुलाबी विला दो दिन।'