Swayamvadhu - 34 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 34

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स्वयंवधू - 34

बस बहुत हो गया!

उसने उसे अपने खजाने की तरह अपनी बांहों में थाम रखा था।
शांत होने के बाद, "क्या आपको दर्द नामक चीज़ की कोई जानकारी है? , उसने उसे डाँटा, "अब और मत हिलना।",
वह व्यंग्यात्मक हँसी हँस, "यह कुछ भी नहीं है। मैं एक दशक से भी अधिक समय से इस दर्द के साथ जी रहा हूँ।",
उसने मुँह बनाया फिर डाँटते हुए कहा, "इसका धन्यवाद, अब आपका घाव लगभग असाध्य है। यदि मुझमें बीमारी या कम-से-कम घावों को ठीक करने की क्षमता होती तो यह काफी रहता।", उसने थोड़ी देर रुककर उसकी ढीली पट्टियों को ठीक करते हुए पूछा, "वैसे हमारे पास क्या शक्तियाँ हैं? हम एक उन्नत प्राचीन पंथ के प्रयोग की तरह हैं। भगवान! क्या हमारे पास पानी या आग जैसी चीज़ों को नियंत्रित करने की क्षमता है? कूल!", वह उत्साहित दिख रही थी,
वह उस पर बेकाबू होकर ज़ोर से हँसा, वह इतना ज़ोर से हँसा कि उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
"वाह! मैं तुम्हारे आस-पास इतना सहज क्यों महसूस करता हूँ?", अपनी ख़ुशी के आँसू पोंछते हुए, "यह पहली बार है जब मेरा जन्मदिन आनंददायक रहा।",
"और मेरा तनाव और शर्मिंदगी से भरा हुआ था।", तंस में कहा,
"हाहा! हमारे पास हजारों साल पहले के हमारे पूर्वजों की तरह कोई अलौकिक शक्तियाँ नहीं हैं, लेकिन हमारा शरीर अभी भी लगभग पहले जैसा है। हम महान योद्धा थे और युद्धों में अजेय थे। आर्य के पूर्वज हमारे चिकित्सक थे। वैसे ही ज़ंजीर परिवार रणनीतिकार थे, रेड्डी परिवार निर्माण कार्य में अच्छे थे, हमारा परिवार महान योद्धाओं का था जो किसी भी परिस्थिति में लड़ने में सक्षम थे, और तुम्हारा परिवार-",
उसने हैरत में खुद पर इशारा किया।
उसने हामी में सिर हिलाया।
"लेकिन हमें कभी भी इस तरह की अंगूठी या हार नहीं मिला। यहाँ तक कि मेरे दादा-दादी के पास भी ऐसा कुछ नहीं है।", उसने अविश्वास में कहा,
"क्योंकि परिवार में केवल पहले जन्मे पुरुष बच्चे को ही शक्तियाँ प्राप्त हो सकती हैं, बाकी को नहीं।",
"तो फिर कैसे? मैं अपनी बड़ी बहन के स्थान पर महाशक्ति कैसे बन गई? क्या वह महाशक्ति नहीं है?",
"मैं भी नहीं समझ सका, तुम क्यों? बड़े या पुरुष ही शक्ति बन सकते है और बड़ी पुत्री, महाशक्ति। तुम्हारे मामले में तुम्हारे पिता का पहले से ही एक बड़ा भाई है और उसके भी तीन बेटे और एक बेटी है। ठीक कहा ना?",
"राघव, जीत, आदि और सत्यभामा। सब हमसे बड़े।",
"कायदे से सत्यभामा को महाशक्ति होना चाहिए।", कवच असहजता से बड़बड़ाया,
"वो कैसे?-", वह बात कर रही थी जब कवच फ़ोन बजा।
"थोड़ा इंतज़ार करो। हैलो?", बात करते समय उसने विनम्रता से उसे इशारा किया कि वह भूखा है, "अगर आपको खाना हो तो आधे घंटे में नीचे आ जाइये।", बीच में टोकने से वह थोड़ी चिड़चिड़ी हो गई। ऐसा लग रहा था जैसे कवच को निषिद्ध उत्तर देने से बचा लिया गया हो। उसकी असहजता को महसूस करते हुए वह सीधे रेड्डी के कमरे की ओर चली गई।
खट-खट, उसने दो बार दस्तक दी। कुछ ही सेकंड में दरवाज़ा खुला, "वृषाली?", थका हुआ शिवम तुरंत जाग गया, "मेरे कुछ प्रश्न हैं, क्या मैं?", उसने पूछा, "हाँ ज़रूर।", वह उसे अंदर ले गया, सुहासिनी भी सुस्ती से उठी, "माफ करना दीदी, लेकिन मुझे शिवम जी से कुछ सवाल पूछने हैं।",
"क्या?", उसकी आवाज़ आदेशात्मक लग रही थी। फिर उसका ध्यान वृषाली के हाथ पर लगे पट्टी पर गया, "ये किसने किया?",
"ये? बाथरूम में फिसल गयी थी।", उसने बिना किसी हिचकिचाहट के झूठ बोला,
शिवम उसे देखते रह गया।
शिवम से, "केवल प्रथम जन्में ही शक्तियाँ हो सकते हैं। सही या गलत?", वह कुछ देर तक हैरान रहा, फिर बोला, "हाँ, बड़े लड़के हमेशा शक्ति होते हैं और पीढ़ी में जन्मी पहली लड़की महाशक्ति होती है।", "ओह! लेकिन फिर भी कायदे से महाशक्ति सत्यभामा को ही होनी चाहिए।" उसने खुद से कहा,
"ये नया क्या चल रहा है?", सुहासिनी कड़क स्वरों में पूछा,
"यही की हम इन पछड़ो में कैसे फँस गए? डैडा के ऊपर बड़े है और हमारे ऊपर भी! तो हम सब शक्तियाँ कैसे? और समीर हम तीनों के पीछे क्यों पड़ा हुआ है? समझ नहीं आ रहा।", उसने उसकी तरफ देखा,
"शिवम ने कुछ ऐसा ही कहा था जब हमने डेटिंग शुरू की थी, लेकिन मैंने पहले इस पर विचार नहीं किया था। यदि हम इस समूह का हिस्सा हैं तो नियमों के अनुसार क्या विवेक के परिवार को ही शक्तियां मिलनी चाहिए? ... कुछ ठीक नहीं लग रहा है... अरे रुको!", वह चिल्लाई। उसकी चीख से शिवम और वृषाली ने एक सेकंड के लिए अपनी आत्मा छोड़ दी थी।
"क्या अभी भी लगता है कि आप इस मॉडल को झेल सकते हो?", वृषाली ने तिरछी नज़र से शिवम को पूछा,
"प्यार किया तो डरना क्या। इयरड्रॉप्स काम आऐंगे।", उसने घबराते हुए मुस्कुराकर कहा,
"अभ्यास ही कुंजी है।", उसने भी हामी में सिर हिलाते हुए उसका साथ दिया,
"तुम ये जीजा साली क्या कर रहे हो?", उन्होंने अपने पीछे धमकी भरी आवाज़ सुनी,
"कुछ नहीं। तो फिर आपको किस बात पर आश्चर्य हुआ?", उसने चापलूस बहन की तरह पूछा,
"बच्चो की जानने की बात नहीं है।", उसकी दी ये बात कह ही रही थी कि, "क्या?!", वो भी चीख पड़ी, "मतलब-",
"ट्यूबलाइट! मुँह बँद रख अपना।", सुहासिनी ने अपना सिर पकड़ लिया। इतना कुछ होने के बाद भी वो उसका दिमाग इतना धीरे चल रहा था, "मत, कुछ मत बोलना! तुम ज़िंदा कैसे बची? ये मेरी बहन कैसे?",
वृषाली बिना बोले सुन रही थी।
शिवम बगल में दोंनो बहनो को झगड़ता देख आश्वस्त हो गया।
वृषाली की दादी ने अपने पति को धोखा दिया था। उसका पति अभी भी इस तथ्य से अनजान है। चालाकी में माहिर वह उससे दिल की गहराई से नफरत करती थी, लेकिन अपने परिवार के कर्ज के कारण उसे उससे शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ा और उसका प्यार पीछे छूट गया। विवेक राय और पायल राव उसके प्रेमी का बच्चे है।
"तो इसलिए हमे साँस लेने पर भी टोका जाता थ-",
"वृषा? वृषा डा~र्लिंग?", दोंनो सब पचा ही रहे थे तब उन्हें एक अनजान लड़की की आवाज़ आई,
"तुम मुझे हवाई अड्डे पर अकेला कैसे छोड़ सकते हो? क्या होता अगर कोई मेरा वहाँ अपहरण कर लेता?", उसने खुद को एक एनीमे की लड़की की तरह पेश किया जो खुद को दिखाना पसंद करती है। उसकी आवाज़ बहुत पतली और तीखी थी। यह आवाज़ कवच के कमरे के सामने से आ रही थी।
(बेचारा! लेकिन प्यारा!)
(क्या मतलब है तुम्हारा? हाँ?) मैंने उसे ताना मारते हुए पूछा,
(कुछ नहीं!)
"वाह! आज वह उसे बिस्तर तक ज़रूर ले जाएगी।",
"ओये! चुप रहो लेकिन-", आर्य ने कहा,
वे दोनों और हर कोई सुस्त और नींद में था, जबकि उनमें से कुछ अभी भी सो रहे थे।
भैय्या चाय लेकर आए।
"यह बहुत मज़ेदार है। क्या मेरे बाबू ने ताना ताया?", आर्य, दिव्या और वृषाली सभी ने एक साथ कहा। एक-दूसरे को एक ही समय में एक ही बात कहते देखकर वे हँसने लगे,
"वाह! मुझे इस ताज़गी की ज़रूरत थी।", दिव्या ने कहा।
"भव्या, आई एम सॉरी बट नो।", कवच ने कहा, "यू आर ओनली ए गुड फ्रेंड ऑफ माइन नथिंग मोर नथिंग मोर। प्लीज़ स्टॉप!", कवच ने सबके सामने कहा,
भव्या ने उन्हें तीखी नज़रो से देखा और कवच के हाथ पर चिपककर, "आजकल लोग बहुत बेशर्म हो गए है।"
अटपटे वे नीचे की ओर गए तो पाया कि पूरा लिविंग रूम फूलों से भरा पड़ा था और फर्श पर उपहार बिखरे पड़े थे।
"वाह! क्या यह वैलेंटाइन है?", एक सहायक ने टिप्पणी की,
वे इस कमरे को साफ़ कर रहे थे, "यह हर साल का नाटक है।"
"एक व्यक्ति इतना दृढ़ कैसे हो सकता है?"
अजीब, "क्या हम खाएँ? पर कहाँ?" , साक्षी ने पूछा,
"छत पर। कम से कम हम वहाँ नाश्ता तो कर सकते हैं।" दिव्या ने क्रोधित होकर कहा,
हम सबने अपना नाश्ता छत पर रखा। इसे समुद्र विषय पर सजाया गया था। महासागरों की खोखली ध्वनि, झिलमिलाहट, ध्वनियाँ यह वास्तविक महासागर की तरह थी।
"मम्मी डैडी कल तुमसे बात करना चाहते थे। कल तुम्हारा जन्मदिन था-", शिवम उसे रोकने गया,
"क्यों शिव? इसकी बहुत मनमर्ज़ी हो गयी है। अब बस! मैं कितने दिनों से इसे मम्मी डैडी से बात करने के लिए कह रही हूँ और ये महारानी, उन्हें टाले जा रही है!", चिल्लाकर उसके कंधे में दो मुक्के मारे,
"सुहासिनी बस।", शिवम ने उसे रोका,
"बस बहुत हो गया! हम अभी निकल रहे है। मम्मी से दो और कूटने पर तुममे अक्ल आ जाएगी।", कह वो उसका हाथ पकड़ उसे वहाँ से घसीटते हुए ले गयी, "बहुत हो गया स्वयंवर-स्वयंवधू, शक्ति महाशक्ति का खेल!"
नीचे उनकी मुलाकात पुलिस के झुंड से हुआ जो घर में रेड में रही थी। पूरा घर पुलिसवालो से भर गया था।