Mahabharat ki Kahaani - 6 in Hindi Spiritual Stories by Ashoke Ghosh books and stories PDF | महाभारत की कहानी - भाग 6

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महाभारत की कहानी - भाग 6

महाभारत की कहानी - भाग-५

शुक्र का देवताओं के प्रति शत्रुता तथा शुक्र का महादेव के गर्भ में प्रवेश

 

प्रस्तावना

संपूर्ण महाभारत पढ़ने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है। अधिकांश लोगों ने महाभारत की कुछ कहानी पढ़ी, सुनी या देखी है या दूरदर्शन पर विस्तारित प्रसारण देखा है, जो महाभारत का केवल एक टुकड़ा है और मुख्य रूप से कौरवों और पांडवों और भगवान कृष्ण की भूमिका पर केंद्रित है।

महाकाव्य महाभारत कई कहानियों का संग्रह है, जिनमें से अधिकांश विशेष रूप से कौरवों और पांडवों की कहानी से संबंधित हैं।

मुझे आशा है कि उनमें से कुछ कहानियों को सरल भाषा में दयालु पाठकों के सामने प्रस्तुत करने का यह छोटा सा प्रयास आपको पसंद आएगा।

अशोक घोष

 

 

शुक्र का देवताओं के प्रति शत्रुता तथा शुक्र का महादेव के गर्भ में प्रवेश

 

धर्मराज युधिष्ठिर ने पितामह भीष्म से पूछा, “पितामह! महामती शुक्राचार्य ने किस कारण से देवताओं के अप्रिय तथा दानवों के प्रिय कर्म किये तथा स्वयं देवर्षि होकर भी देवताओं की शक्ति को किस कारण से कम कर दिया? मुझे यह जानने की बहुत उत्सुकता है कि उसने अपनी महिमा और महानता कैसे प्राप्त की, और वह गगन के मध्य तक जाने में सक्षम क्यों नहीं है; अत: आप कृपा करके इस विषय में सारा वृत्तांत सुनाइये।”

भीष्म ने कहा, “धर्मराज! मैंने इस कथा के बारे में पहले जो कुछ सुना और जाना है, उसे यथाशक्ति बता रहा हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो। महामुनि शुक्राचार्य का जन्म भृगु कुल में हुआ था, जिसमें परशुराम द्वारा उनकी माता की हत्या किये जाने से देवता अत्यंत रुश्ट हो गये थे। भगवान कुबेर भगवान इंद्र के खजाने की रक्षा में लगे हुए थे। महामुनि शुक्राचार्य ने योगबल से कुबेर के शरीर में प्रवेश कर उसका सारा धन लूट लिया। धनपति कुबेर अत्यंत दुखी होकर देवाधिदेव महादेव के पास गये और उनसे बोले, 'महेश्वर! भगवान भार्गव योगबल में मेरे शरीर में प्रवेश करके मुझे अवरुद्ध करके सारे धन अपहरण कर के बाहर निकाल गए हैं। महायोगी महेश्वर कुबेर की ये बातें सुनकर उनकी आंखें भयानक क्रोध से लाल हो गईं और वे बार-बार कहने लगे, 'दुरात्मा भार्गव कहां हैं?' उस समय शुक्राचार्य्य महादेब का मतलब जानकर महादेव के शूल के सिरहाने खड़े हो गये। तभी भगवान महादेव ने वहां शुक्र को देखा और शूलग्र को पिनाक की भाँति नीचे उतार दिया। शुक्राचार्य ने देवादिदेव के शूलग्र को नीचे करते ही शुक्राचार्य्य पर कब्ज़ा कर लिया। तब महादेव ने शुक्राचार्य को अपने मुख में ले लिया और निगल लिया। इस प्रकार महात्मा शुक्राचार्य महादेव के गर्भ में प्रवेश कर गये और वहाँ भ्रमण करने लगे।''

युधिष्ठिर ने कहा, “पितामह! महातेजस्वी शुक्राचार्य ने भगवान देबादिदेव के गर्भ से बाहर आए बिना वहां भ्रमण क्यों की और अपनी भ्रमण के दौरान उन्होंने वहां क्या किया, इसकी कहानी मुझे बताएं।

भीष्म ने कहा, “बत्स! भगवान कैलासनाथ ने शुकरचार्य को उदरमे प्रबेश कराके लंबे समय तक एक पेड़ की तरह पानी में प्रवेश किया अर बहत दिन तक तपस्या किय। फिर वह पानी से उठा और पितामह ब्रह्मा ने उसके कुशलता और तपस्या के बारे में पूछा। उस समय, महेश्वर ने ब्रह्मा के प्रति अपनी तपस्या का विस्तृत विवरण देकर उन्होंने देखा कि उनका तेजो को प्रबुद्ध होने देखा गया, और अपनी तपस्या और दिव्य शक्ति के साथ त्रिलोक मे फिर से ध्यान शुरु कर दिया। महान योगि शुकराचार्य, बहुत चिंतित हो कर बार बार महादेव की प्रशंसा करते हुए अपने पेट से बाहर आने के लिए प्रार्थना करने लागा; हालांकि, वह किसी भी तरह से सफल नहीं हुया। अंत में उसने बार बार महेश्वर से कहा, 'भगवान! आप मुझे छुटकारा दे कर मुझे रक्शा किजिये, मैं अब दुख को सहन नहीं कर सकता। इये सुन कर महादेब कहा आप मेरे लिंग क द्वार से बाहर आइये।

"जब महेश्वर ने यह कहा, महर्षि शुक्राचार्य्य ने पहले रास्ता नहीं देखा, तो थोड़ी देर के लिए पेट की यात्रा करने के बाद, अंत में महादेव के लिंग के माध्यम से बाहर आ गया। महर्षि भार्गब महेश्वर के लिंग से बाहर आने क बाद से वह शुक्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। महादेव के क्रोध के कारण, महर्षि शुक्राचार्य्य को अन्तरिक्श के बीच में कभी नहीं देखा गया। तब भगवान देबादिदेव ने महातेजस्वी शुक्राचारी को बाहर आते देखा और गुस्से से उनको मारने कि लिये शुल उठाय। देवी पार्बती ने महादेव को नाराज देखा और कहा, 'स्वामी! यह ब्राह्मण मेरे बेटे बन गया है क्योंकि लिंगद्वार से बाहर आया है; इसलिए आपको इसे नहीं मारना चाहिए।

"जब पारबती ने ऐसा कहा, तो भगवान महादेव प्रसन्न हो गये और बार बार मुस्कुराते हुए उनसे बोले, 'देवी! मैं प्रसन्न हूं, इसे कहे दीजिए कि यह जहां जाना चाहे वहां जाए।' तब महर्षि शुक्राचार्य महादेव और माता पारबती को प्रणाम करके आपन पछन्द के स्थान पर चले गए। यह भृगुनन्दन महात्मा शुक्राचार्य की कथा है।”

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(धीरे-धीरे)