Ek Mahaan Vyaktitva - 4 in Hindi Motivational Stories by krick books and stories PDF | एक महान व्यक्तित्व - 4

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एक महान व्यक्तित्व - 4

की हमारी हॉस्टल की सबसे खास बात मुझे यहाँ की प्राथना सभा लगी। हमारे जिवन मे जब हम बालक अवस्था मे होते है तो सबसे जरूरी ये है की हमारे अंदर से संस्कार की पूर्ति हो जो केवल और केवल भक्ति, पार्थना और भगवान् का भजन कीर्तन करने से आती है। असल मे हमारा शरीर और आत्मा अलग अलग है हमारे पंच तत्वों से बने बाह्य शरीर को तो हम भोजन दे कर उसका विकास कर लेते है लेकिन हमारी आत्मा का विकास करने के लिये पार्थना रूपी भोजन की जरूरत पडती ही है इस लिये तो " प्राथना को आत्मा का खोराक (भोजन) कहा गया है। "बस ऐसी ही विचारधारा के रूप मे हमारे प्रधान अध्यापक प्राथना सभा को बहुत महत्व देते थे । वैसे हर विद्यालय को सरस्वती माता का मंदीर कहा गया है और सुबह की प्राथना के साथ ही हर कॉलेज और स्कूल मे पढाई की शरुआत होती है पर हमारे हॉस्टल की पार्थना सभा बहुत ही विशेष और खास थी हमारे यहाँ दो बार सुबह और शाम को पार्थना होती थी। हम शरुआत मे गये तो हम सबको पार्थना की नोट बुक बनवाई की जिसमे पार्थना, भजन, धून , सुविचार सब कुछ हमने अलग अलग कलर रंग की पेन से लिखा बीच मे कई जगह पर भगवान , देवी देवता के फोटो स्टिकर लगा कर हमने बहुत ही सुंदर नोट बुक तैयार कर ली थी। हम सब मिल कर 100 के आस पास बच्चे थे जिनमे सबको बारी बारी से 3 लोगो की जोडी मे आगे जाके सबको साथ मे नोट बुक मे देख कर पार्थना करवानी थी। जिसमे सबका बारी बारी से नंबर आ जाता था। सबसे पहले श्लोक उसके बाद पार्थना उसके बाद भजन उसके बाद धून उसके बाद आखरी श्लोक इस तरह पार्थना होती थी। उसके बाद नंबर के अनुसार अच्छा सुविचार बोलने के लिये खडा करते थे। उसके बाद  अखबार मे आई मुख्य घटना सुनानी पडती थी। उसके बाद सबसे मजेदार आज का गुलाब बनाते थे मतलब जो लडका या लडकी सबसे सुंदर दिखता, अच्छे से ना धो के तैयार होकर आता जिस के बाल भी ठीक हो अच्छा दिखता हो उसे पसंद करते और उसका अलग से गीत भी होता था। आज का गुलाब हम तुमको बना रहे है!!!!! फिर उसका नाम एक दिन के लिये नोटीश बोर्ड पर लिखते थे। मजा तो तब आता था जब किसी गलती के लिये उस गुलाब को मार पड जाती तो सब बोलते की आज गुलाब तो मुरजा गया। और शनिवार को सुबह शाम हनुमान चालीसा भी करनी होती थी हम सब को एक छोटी सी हनुमान चालीसा की किताब हमारे पास रखनी थी। बस ऐसी ही हमारे हॉस्टल की प्राथना सभा थी। इस कलयुग की आधुनिक स्कूल की बीच हमारी दिखने मे काफी आधुनिक लेकिन गुरुकुल परम्परा से चलने वाली ये गजब की हॉस्टल थी। मेरा सौभाग्य ही था की मुझे ऐसी स्कूल मे संस्कार मिले यही हमारे सनातन धर्म की शिक्षा है जो आज के  टीवी मोबाइल जैसे आधुनिक उपकरणों के बीच भी मुझे मिली और मेरे व्यक्तित्व निर्माण की इस जर्नी मे मुझे सहायता प्रदान करी। वैसे ही हमारी हॉस्टल मे बहुत सारे तहैवार् मनाये जाते थे लेकिन नवरात्रि विशेष रूप से पूरे 9 दिनों तक धूम धाम से मनाई जाती थी। शुरू मे तो मुझे गरबा खेलना बिल्कुल भी नही आता था। 9 दिनो मे एक दिन ऐसा भी रखा जाता था जिस दिन हमारे मम्मी पापा भी आते थे लेकिन मेरी आर्मी  जैसी जिंदगी ऑफिसर जैसा मे और बॉर्डर जितना दूर मेरा घर इस लिये नही  आ सकते थे । हमारे सर ने हम सब को पहले दिन बहुत प्यार से गरबा हमे नही आया लेकिन दूसरे ही दिन से हमे मार के सिखाने लगे तब जल्दी जल्दी मे सिख गया । मुझे  गरबा धीरे धीरे आने लगा सबसे पहले मेने एक ताली वाला गरबा सिखा उसके बाद तीन ताली वाला उसके बाद सबसे सुंदर और मेरे प्रिय "वावा वाया ने वादल उमत्या गोकुल मा तहुक्या मोर मलवा आवो सुंदर वर शामलिया। " मतलब डाँडिया रास जो मुझे बहुत अच्छे लगते थे। ये मुझे गरबा मे सबसे अच्छा लगता था। 2 साल तो हो गये थे उसके बाद हम थोडे पुराने हो गये थे मतलब सीनियर बन गये।हमे पहले से ही कब कहा क्या हो सकता है का सर की मार पड़ेगी, वो कब बाहर जाते है, कब क्या करते है सब पता होता था। उसके बाद हम बाहर से भी खाना मंगा के खाने लगे थे। फिर भी सर का डर तो कभी खत्म ही नही हो सकता है आज भी डर लगता है काश हमारी किस्मत मे हमेशा हमारे स्कूल ले टीचर का साथ होता तो जिवन के कठिन से कठिन गोल भी हम आसानी से प्राप्त कर लेते लेकिन हमारी पढाई अंग्रेजो ने इस तरह तैयार की है की हम एक टीचर के साथ थोडी देर ही नसीब हो पाये अगर पुरा जीवन हमे गुरु का साया मिले तो आज आचार्य चाणक्य की तरह बहुत सारे चंद्रगुप्त मौर्य पैदा हो जाते और फिर से अखण्ड भारत बना देते इस लिये अंग्रेजो एवम बहुत सारे विदेशी शासको ने हमारे भारतीय शिक्षा हमारी गुरुकुल परम्परा को मिटाने की कायरता पूर्ण कोशिश की है। लेकिन अब भारत धीरे धीरे जाग रहा है जो बहुत ही अच्छी बात है। ऐसे ही हमारी हॉस्टल से हमे बाहर घूमने भी ले जाते थे। और शनिवार को शाम को और रविवार को पुरा दिन हमे टीवी भी दिखा ते थे लेकिन घर की तरह रिमोट हमारे पास नही रहता कोई भी एक सीडी मे मूवी चला देते थे वो देख ते थे हम लेकिन बहुत ही मजा आता था हम पूरे स्प्ताह मे बस रविवार का इंतजार करते रहते थे। और सबसे हँसी की बात ये थी की जो हमने मूवी देखी उसके बहुत सारे डायलॉग हम याद कर लेते थे और पूरा वीक हम यही बोला करते थे जब तक दूसरी मूवी ना देख ले तब तक यही चलता रहता था अगर किसी से लडाई हो जाय फिर तो पूरी की पूरी मूवी लाईव हो जाती थी। बस ऐसे ही मजेदार किस्सो के साथ मेरे व्यक्तित्व का निर्माण हो रहा था। मेने तीसरी, चौथी और पाचवी तक की पढाई इस स्कूल मे की आगे के पार्ट मे ये जानेगे की ऐसी कोन कोन सी बाते इस हॉस्टल और स्कूल से सीखने मिली जिसने मेरे जिवन के मूलभूत आधार को बनाने की कोशिश की।