Darinda - Part - 14 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | दरिंदा - भाग - 14

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दरिंदा - भाग - 14

अपनी बहन अल्पा के साथ हुई क्रूरता की सच्ची कहानी सुनकर मौलिक का खून खौल रहा था। उसने अल्पा को एक बार फिर से अपने सीने से लगाकर कहा, "जिसने मेरी बहन की ऐसी हालत कर दी है उसे मैं छोड़ूंगा नहीं।"

अल्पा को आज अपने भाई के वह शब्द याद आ रहे थे, जब उसने कहा था, "अल्पा, वह लड़का अच्छा नहीं है। यदि वह अच्छा होता, तो हम कभी भी मना नहीं करते। मैंने उसके बारे में अपने कुछ दोस्तों से सुना है, जो उसे जानते हैं।"

परंतु तब अल्पा ने उसकी किसी भी बात पर विश्वास नहीं किया था, काश कर लिया होता।

इस सब में लगभग तीन-चार घंटे का समय निकल गया। इसी बीच वह आदमी जिससे शाम को राज बातें कर रहा था वह आया। प्रिया, उसके पापा और मौलिक सभी ने उसे आते हुए देखा।

वह आदमी आया तो यह देखकर दंग रह गया कि दरवाज़ा बाहर से बंद है। उसने इधर-उधर देखा फिर खिड़की के पास जाकर अंदर झांका तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था क्योंकि अंदर तो राज नशे में धुत्त पड़ा सो रहा था और दरवाज़ा बाहर से बंद था। उसे यह समझने में देर नहीं लगी कि राज के नशे में होने का फायदा उठाकर वह लड़की भाग गई है और दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया है। बदले हुए हालात देखकर वह आदमी समझ गया कि मामला गड़बड़ है। वह चुपचाप वहाँ से जाने लगा।

इधर मौलिक ने पूछा, "अल्पा कौन है वह आदमी?"

"पता नहीं भैया आज पहली बार राज इसे शाम को लेकर आया था और मुझसे कह रहा था, अब देखना वह आएगा रात को ..." कहते हुए अल्पा फिर रोने लगी।

विनोद ने कहा, "मौलिक चलो इसे पकड़ लेते हैं"

तब मौलिक ने कहा, "नहीं अंकल उसे जाने दो, हमें उससे क्या। हमें तो उस राज को पकड़ना है। यह आदमी तो वैसे भी छूट जाएगा। वह क्यों आया है यह सिर्फ़ वह दोनों जानते हैं। हमारी अल्पा के सामने तो वह नहीं आया। अब हम पुलिस को बुला लेते हैं।"

"हाँ ठीक है।"

मौलिक ने तुरंत ही पुलिस को फ़ोन करके बुलाया।

इतनी रात को पुलिस के आने और इतनी हलचल से कुछ अड़ोस-पड़ोस के लोग भी जाग गए। पुलिस आई तो मौलिक, अल्पा, प्रिया और विनोद ने उन्हें सब कुछ बता दिया। अशोक ने वह सी. डी. भी चला कर दिखा दी।

अब पुलिस राज को पकड़ने के लिए उसके घर पहुँच गई। दरवाज़ा खोलकर पुलिस, मौलिक, अशोक और विनोद सभी अंदर गए।

पुलिस ने पहले आवाज़ दी, "ऐ उठ!"

इंस्पेक्टर ने लात से उसे धक्का मारते हुए फिर कहा, "अरे उठ!"

पर राज हिला तक नहीं। फिर पुलिस ने वहाँ रखे बर्तन से पानी लेकर राज के ऊपर छिड़का परंतु राज की गहरी नींद पर उसका भी ज़्यादा असर नहीं हुआ। तब इंस्पेक्टर ने उसके बाल पकड़कर उसे घसीटा तो उसकी आंखें खुली।

वह चिल्लाया, "कौन है?"

पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा, "तेरा बाप, चल उठ।"

यह देखते ही राज का नशा उतर गया। वह हैरान था, यह सब क्या हो गया ...कैसे हो गया ...! उसने इधर-उधर नज़र घुमाई परंतु अल्पा उसे कहीं भी दिखाई नहीं दी। मौलिक को देखते ही वह पहचान गया कि अरे यह तो अल्पा का भाई है।

उसने कहा, "मौलिक तू ...?"

"हाँ मैं, आख़िर तूने अपनी औक़ात दिखा ही दी। तेरे कर्मों की सजा अब तुझे मिलेगी। तूने मेरी बहन पर बहुत अत्याचार किया है, ऊपर वाला भी तुझे कभी माफ़ नहीं करेगा। इंस्पेक्टर साहब ले जाइए इसे।"

राज ने झुंझलाते हुए पूछा, "पर अल्पा कहाँ है?"

मौलिक ने उसे धुत्कारते हुए कहा, "उसका तो नाम भी अपनी गंदी ज़ुबान से कभी मत लेना। तेरे पापों का घड़ा भर चुका है। उस पर किये एक-एक ज़ुल्म का हिसाब अब तुझे चुकाना होगा।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः