अल्पा अपने भाई मौलिक को बुलाने का सुनकर डर रही थी।
तब विनोद ने कहा, "अल्पा बेटा अब यही सही रास्ता है। तुम्हें क्या लगता है वह राज, तुम्हें चैन से जीने देगा? नहीं, इसलिए उसे उसके किए की सजा मिलनी ही चाहिए। इस काम में तुम्हारे भाई से ज़्यादा और कौन तुम्हारा अपना हो सकता है। अल्पा अपने तो हमेशा अपने ही होते हैं। हमारे परिवार से बड़ा और कुछ नहीं होता कोई नहीं होता, कोई भी नहीं।"
"अंकल आप ठीक कह रहे हैं।"
"अशोक अंकल आप बुला लीजिए भैया को।"
"ठीक है बेटा।"
विनोद ने कहा, "आप लोग चाहें तो यहाँ ही रुक सकते हैं। मेरी प्रिया बहुत चाहती है अल्पा को, है ना अल्पा?"
अल्पा ने कहा, "हाँ सच में प्रिया की वज़ह से ही आज मैं यहाँ आप लोगों के साथ हूँ वरना वह दरिंदा तो मुझसे पैसे कमाना चाहता था।"
अशोक ने मौलिक को फ़ोन लगाया, "हेलो मौलिक।"
"हाँ बोलिए अंकल, आप आ गये वापस? कैसे हैं आपके पिताजी?"
"अरे नहीं मौलिक, मैं अभी वापस नहीं आया हूँ हालांकि मेरे पिताजी अब ठीक हैं लेकिन मैं यहाँ एक बहुत ज़रूरी काम में उलझ गया हूँ और इसमें मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।"
"मेरी मदद?"
"हाँ मौलिक।"
"ठीक है अंकल बोलिए ना, मैं क्या कर सकता हूँ?"
"तुम बस यहाँ मेरे पास चले आओ।"
"अंकल आख़िर बात क्या है?"
"यहाँ आकर जान लेते तो अच्छा रहता पर मैं जानता हूँ तुम मानोगे नहीं। यहाँ मेरे पास अल्पा भी है।"
"क्या ...? यह आप क्या कह रहे हैं अंकल ...अल्पा?"
"हाँ-हाँ बेटा अल्पा। वह बहुत मुसीबत में है, रो रही है।"
"लेकिन आपको कैसे ...?"
"प्रश्न मत करो मौलिक जितनी जल्दी हो सके आ जाओ।"
"अंकल मेरी बात करवाइए ना उससे।"
"ठीक है लो अल्पा"
अल्पा ने फ़ोन हाथ में पकड़ा तो उसके हाथ कांप रहे थे। मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे।
मौलिक ने कहा, "हैलो अल्पा ..."
अल्पा बोली, "हैलो भैया आप आ जाइए," कह कर वह रो पड़ी।
मौलिक ने कहा, "अल्पा मेरी बहन, मैं सब कुछ समझ गया हूँ। तू चिंता मत कर, मैं आ रहा हूँ।"
उसने अपनी पत्नी गीता को आवाज़ लगाकर कहा, "गीता जैसी हो वैसी ही यहाँ आ जाओ और चलो मेरे साथ।"
"लेकिन कहाँ? आख़िर हुआ क्या है?"
"पहले तुम कार में बैठो फिर बताता हूँ।"
अपनी पत्नी गीता को लेकर उसी समय मौलिक कार से निकल पड़ा। रास्ता केवल 2 घंटे का ही था।
गीता ने पूछा, "अब बताओ ना मौलिक क्या हुआ है?"
"गीता हमारी अल्पा बहुत मुसीबत में है वह अशोक अंकल के साथ है।"
"उनके साथ?"
"अभी ज़्यादा कुछ पता नहीं है। वहीं चलकर असलियत मालूम होगी पता नहीं उसके साथ क्या हुआ है।"
कुछ ही समय में वे दोनों अशोक के घर के नज़दीक पहुँच गए। मौलिक ने अशोक को फ़ोन लगाकर पूछा, "अंकल कहाँ आना है?"
अशोक ने उसे विनोद के घर का पता भेज दिया। कुछ ही देर में मौलिक और गीता वहाँ पहुँच गए। घर में अंदर आते ही उन्हें जैसे ही अल्पा दिखाई दी तो उसकी हालत देखकर मौलिक और गीता चौंक गए।
"यह क्या हो गया अल्पा? तेरी ऐसी हालत ...?"
अल्पा अपने भाई से लिपटकर रोने लगी।
"सॉरी भैया," कहते हुए वह बेहोश हो गई। कुछ ही समय में पानी छिड़क कर उसे होश में लेकर आए।
उसके बाद प्रिया और विनोद ने पूरा किस्सा मौलिक को सुना दिया।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः