Darinda - Part - 12 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | दरिंदा - भाग - 12

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दरिंदा - भाग - 12

इस तरह अचानक अशोक अंकल को अपने सामने खड़ा देखकर अल्पा समझ ही नहीं पा रही थी कि वह क्या करे। कैसे उनसे नज़र मिलाये। उसके लिए यह शर्मास्पद लम्हा था क्योंकि अशोक तो सब कुछ जानते थे फिर भी उन्होंने उस समय चुप रहना ही ठीक समझा।

लेकिन उस समय के हालात ने प्रिया को यह अंदाजा तो दिलवा ही दिया कि ऐसी कोई बात ज़रूर है जिसे अल्पा जी ने अब तक उससे छिपाया है।

उसके बाद अल्पा अशोक से लिपटकर रोने लगी। उसके मुंह से बार-बार एक ही वाक्य निकल रहा था, "मुझे माफ़ कर दीजिए अंकल आई एम सॉरी।"

अशोक ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा, "अल्पा तुम्हारी ऐसी दुर्दशा कैसे हो गई? तुमने बताया क्यों नहीं? तुम्हारा भाई मौलिक कितना परेशान है।"

"जानती हूँ अंकल, मुझे मेरी गलती की सजा मिल रही है। मैं उन्हें किस मुंह से अपनी बेबसी की कहानी सुनाती। भैया भाभी ने मुझे कितना समझाया था लेकिन मैंने उनकी एक न मानी। उस समय राज ही मेरे लिए सब कुछ था और मैं उसके प्यार में पागल हो गई थी। मैं नहीं जानती थी कि मैं अपने आपको धोखे और अत्याचार से भरी गंदी खाई में डुबाने जा रही हूँ। मैं यह भी नहीं जानती थी कि मैं अपने आपको एक शैतान के हवाले कर रही हूँ। अंकल यह तो भगवान की कृपा थी जो इस परिवार ने, इस प्रिया ने मुझे बचा लिया वरना आज तो वह मुझे ...," इतना कहकर अल्पा फफक कर रो पड़ी।

प्रिया दंग होकर अल्पा की तरफ़ देख रही थी। अल्पा का झूठ पकड़ा गया था लेकिन प्रिया ने कुछ भी नहीं कहा। वह समझ गई थी कि अल्पा ने मजबूरी में ही झूठ बोला होगा कि उसका कोई भी नहीं है। लेकिन प्रिया मन ही मन सोच रही थी कि अपनों को छोड़कर, उन्हें धोखा देकर, अल्पा को इस तरह घर नहीं छोड़ना चाहिए था।

विनोद और प्रिया अब तक सब समझ चुके थे कि अल्पा ने अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर यह प्रेम विवाह रचाया था। लेकिन वह दोनों दंग होकर चुपचाप खड़े यह सब सुन रहे थे और देख भी रहे थे।

अशोक ने अल्पा से पूछा, "अल्पा क्या मैं मौलिक को यहाँ बुलाऊँ?"

"नहीं अंकल बिल्कुल नहीं, मैं उनका सामना नहीं कर पाऊंगी। कितना समझाया था उन्होंने परंतु मैं उन्हें धोखा देकर उनकी आंखों में धूल झोंक कर इस पापी धोखेबाज दरिंदे के साथ भाग आई; पर अंकल आप यहाँ कैसे?"

"अल्पा पिछले कुछ दिनों से मेरे पिताजी की तबीयत थोड़ी खराब चल रही थी इसलिए मैं लगभग एक महीने से उनकी मदद करने के लिए यहाँ पर आया हुआ हूँ। मैं बस वापस जाने ही वाला था कि प्रिया मुझे बुलाने आई। उसने जब मुझे यह सब बताया तब यहाँ आने का मेरा बिल्कुल भी मन नहीं था। मुझे लग रहा था कौन इस झमेले में फंसे लेकिन शायद भगवान ने ही मेरा मन बदल दिया और मैं आ गया, थैंक यू प्रिया बेटा।"

विनोद की तरफ़ देखते हुए अशोक ने कहा, "सर मैं बचपन से अल्पा को जानता हूँ। इसके पिताजी मेरे बहुत अच्छे मित्र थे। अल्पा भी बहुत अच्छी लड़की है पता नहीं कैसे ...?"

"छोड़िए अशोक जी, आपने तो बहुत ही नेक काम किया है। मुझे लगता है गलती करने के बाद उसे और अधिक बढ़ाते जाना सही नहीं होगा। आपको अल्पा के भाई को यहाँ ज़रूर बुलाना चाहिए।"

"हाँ आप ठीक कह रहे हैं। अब वही इस राज को पुलिस के हवाले करेगा। अल्पा का भाई मौलिक बड़ा जाना माना वकील है। वह उस लड़के को उसकी नानी याद दिला देगा।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः