Nagendra - 4 in Hindi Fiction Stories by anita bashal books and stories PDF | नागेंद्र - भाग 4

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नागेंद्र - भाग 4

अवनी की एक सांप से शादी हुई 6 साल हो गए थे और अब उसकी शादी नागेंद्र नाम के किसी इंसान से हुई थी। उनके परिवार की हालत काफी खराब थी और ऐसे में कोई गजेंद्र सिंह नाम का इंसान उनकी हवेली में आ गया था। गजेंद्र सिंह ने गायत्री जी के हाथ में एक नोटिस दिया था जिसे देखते ही गायत्री जी की आंखें गुस्से से लाल हो गई थी।

गिरधारी लाल और नगेंद्र ने एक दूसरे की तरफ देखा और नगेंद्र ने गायत्री जी के नजदीक जाते हुए पूछा।

" मम्मी जी क्या है इस नोटिस में?"

गायत्री जी ने नागेंद्र की तरफ देखा और कहा।

" यह आस्तीन का सांप है। मेरे पिता दिलराज सिंह के यहां मैनेजर का काम करता था। धोखे से मेरे पिता के भोलेपन का फायदा उठाकर इसलिए सब कुछ अपने नाम पर कर दिया। सिर्फ यह हवेली बच गई थी क्योंकि वह मेरे पिताजी ने पहले ही अवनी के नाम कर दी थी। अब यह आस्तीन का सांप इस हवेली को भी हथियाना चाहता है और इसी का नोटिस लेकर आया है।"

इतना कहकर गायत्री जी ने अपनी लाल आंखों से गजेंद्र सिंह की तरफ देखा और तेज आवाज में कहा।

" सुन आस्तीन के सांप मेरी बात ध्यान से सुन तुझे यह हवेली इस जन्म में तो क्या अगले जन्म में भी नहीं मिलेगी। यह मेरे परिवार की थी है और हमेशा मेरे ही परिवार की रहेगी। इसे मेरे पिताजी ने मेरी बेटी का नाम किया था तो इसके ऊपर अपनी गंदी नजर डालने की कोई जरूरत नहीं है।"

गजेंद्र सिंह बेशर्मों की तरह मुस्कुराहट के साथ गायत्री जी की तरफ देख रहा था। उसके ऊपर गायत्री जी के गुस्से का कोई असर दिख ही नहीं रहा था। इस तरह से हंसता हुआ देखकर नागेंद्र और गिरधारी लाल को भी गुस्सा आ रहा था लेकिन वह गायत्री जी के सामने कुछ ज्यादा बोल नहीं सकते थे। गजेंद्र सिंह ने नागेंद्र की तरफ देखा और हंसते हुए कहा।

" गायत्री जी मैं तो आपसे पहले ही कहा था कि अवनी की शादी मेरे बेटे से कर दो। इससे जायदाद भी तुम्हारे पास ही रहती थी और यह हवेली हमारे पास रहती थी। दोनों ही तरफ से हमारा काम हो जाता लेकिन तुमने अपनी बेटी की शादी इस नालायक और नाकारा से कर दी।"

नागेंद्र गजेंद्र सिंह की बात सुनकर उसकी तरफ देखने लगा। उसे देखकर यह लग ही नहीं रहा था कि उसकी कोई गुस्सा आ भी रहा है या नहीं। उसका चेहरा इन सब के बीच भी एकदम शांत दिख रहा था। बस उसने अपनी मुट्ठी कसकर बंद की हुई थी इसी से पता चल रहा था कि उसे गुस्सा आ रहा है।

गजेंद्र सिंह नगेंद्र के नजदीक आया और उसने नागेंद्र को ऊपर से नीचे की तरफ देखा और फिर गायत्री जी की तरफ देखकर कहा।

" पता नहीं गायत्री जी, आपने इसमें क्या देख लिया कि अपनी फूल सी बेटी की साथ इस से करवा दी। मेरा बेटा दिलावर सिंह दिल का दिलदार है अवनी को खुश रखता। मैं तो कहता हूं अभी भी जरा से भी देर नहीं हुई चाहे तो मेरा बेटा अभी भी तुम्हारी बेटी से शादी करने को तैयार है।"

इस बार गिरधारी लाल अपने आप को रोक नहीं पाए और वह दो कम आगे आते हुए कहने लगे।

" तेरा वह नालायक बेटा दिलावर सिंह? तेरी हिम्मत कैसे हुई उसका नाम मेरी बेटी के साथ जोड़ने की? कैसा नालायक बेटा है वह मुझे नहीं पता क्या? रोज बीयर बार में जाकर कितनी शराब पीता है और हर वक्त कितनी लड़कियों के साथ घूमता फिरता और सोता है मुझे नहीं पता? ऐसे आदमी की शादी में क्या मेरी बेटी से करवाऊंगा?"

गिरधारी लाल गजेंद्र सिंह के बेटे दिलावर सिंह के बारे में यह सारी बातें बोल रहे थे लेकिन गजेंद्र सिंह के चेहरे पर गुस्से के कोई भाव नहीं दिख रहे थे। उन्होंने तो अपना चेहरा इस तरह से ऊपर किया हुआ था कि जैसे उनके बेटे ने कोई बहुत बड़ा मेडल जीत लिया हो। उन्होंने अपने बेटे की सेखी बजाते हुए कहा। 

" अरे गिरधारी लाल तुम नहीं जानते यह सारी बातें तो हम जैसे अमीर लोगों के लिए आम बात है। हर रोज अलग-अलग लड़कियों के साथ घूमना फिरना, सोना और शराब और सबाब का आनंद लेना, यही तो होता है हम जैसे लोगों का काम।"

उन्होंने अपनी एक आंख बंद करके गिरधारी लाल की तरफ देखते हुए कहा।

" आजकल तो मैंने भी यह सब शुरू कर दिया है।"

गायत्री जी अपनी आंखें लाल करके इस बेशर्म आदमी को देख रही थी। उन्होंने अपने गुस्से को किसी तरह से शांत किया और अपनी उंगली को हवेली के मेन गेट की तरफ करते हुए कहा।

" इससे पहले की मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाए निकल जा यहां से।"

गिरधारी लाल ने अपने कपड़ों को ठीक किया और अपनी कार की तरफ जाते हुए कहा।

" गायत्री जी मुझे भी कोई शौक नहीं आप जैसे गरीबों के बीच रहने का। अगले महीने कोर्ट में आ जाना पेसी के लिए। क्योंकि 6 महीने के अंदर अंदर यह हवेली में अपने नाम पर करवा लूंगा। तुम सब लोग अपने लिए कोई छोटा सा घर देख लो जहां पर सब रह सको।"

इतना कहकर वह उस कार में बैठ गये और पलक झपकते ही कर हवेली के बाहर निकल गई। गायत्री जी अपना सर पकड़ कर वही कुर्सी में बैठ गई। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करें। अवनी जो काम करती थी वह सारे पैसे तो उनके खाने-पीने में ही खर्च हो जाते थे फिर अब वह वकील और कोर्ट के पैसे कहां से निकलेंगे? अगर यह एक लौटी हवेली भी उनके हाथ से चली गई तो फिर वह क्या करेंगे?

गायत्री जी को इस तरह से दुखी देखकर गिरधारी लाल को भी अच्छा नहीं लग रहा था। वह उनको समझने के लिए आगे आए और उनके कंधे पर हाथ रखा ही था कि गायत्री जी ने गुस्से में उनकी तरफ देखा और फिर गजेंद्र की तरफ देखा। दोनों की तरफ बारी-बारी देखते हुए उन्होंने कहा।

" जो गलती मेरी मां ने की थी वही गलती मैंने भी की। मेरी मां ने तुम्हारे जैसे नाकारा आदमी से शादी करवा दी और मैं मेरी बेटी की शादी इसके साथ करवा दी। काश मेरी बेटी की शादी किसी अमीर घर में होती तो फिर काम से कम मुझे यह दिन तो नहीं देखना पड़ता। घर में दो-दो आदमी होने के बाद भी वह इतना कुछ कह कर चला गया। समझ में नहीं आता मैं तुम दोनों डरपोकों के साथ कैसे रहूं।"

गिरधारी लाल समझ गए थे कि गायत्री जी गजेंद्र सिंह का पूरा गुस्सा उन दोनों पर उतर रही है। नागेंद्र भी शायद इस बात को समझ गया था इसलिए दोनों भी चुपचाप खड़े होकर उनकी बातों को सुनाने लगे।

वही इन सब से अनजान अवनी होटल में पहुंच गई थी। जयपुर का यह फाइव स्टार होटल महफिल इन काफी फेमस था। जयपुर घूमने आने वाले लोगयहां पर रुकते थे और इसी से होटल की कमाई काफी अच्छी होती थी। होटल की सर्विसेज भी काफी बढ़िया थी। यह लोग घूमने फिरने के लिए टैक्सी और गाइड भी प्रोवाइड करते थे। इसी के कारण टूरिस्ट यहां पर उतरना ज्यादा प्रेफर करते थे।

अवनी यहां पर भी ज्यादा कोई लोगों से बात नहीं करती थी। वह यहां पर आती थी और तुरंत अपने केबिन में जाकर अपना काम करने लगती थी। आज भी वह अपने केबिन की तरफ ही जा रही थी कि रिसेप्शनिस्ट ने उनको रोकते हुए कहा।

" अवनी मैम आपको बलराज सर ने अपने केबिन में बुलाया है।"

यह होटल महफिल इन यशराज सोलंकी का था और बलराज सोलंकी उनका ही बेटा था। यशराज सोलंकी के इंडिया में और भी कई जगह होटल थे इसलिए उनके पास इतना समय नहीं होता था कि वह यहां पर आए। बलराज सोलंकी के ऊपर उन्होंने इस पूरे होटल की जिम्मेदारी दी हुई थी। बलराज सोलंकी वैसे तो अच्छा इंसान था लेकिन उसकी नजर हमेशा अवनी के ऊपर रहती थी।

अवनी इस बात से बिल्कुल भी अनजान नहीं थी। यही कारण था की अवनी बलराज सोलंकी से ज्यादा मिलती नहीं थी लेकिन वह उनकी एम्पलोई थी इसलिए ज्यादा देर तक टाल भी नहीं सकती थी। उसने गहरी सांस ली और खुद को तैयार करते हुए बलराज सोलंकी के केबिन की तरफ जाने लगी। 

अवनी जैसे ही केबिन के अंदर पहुंचे केबिन के अंदर से गुलाबो की खुशबू बाहर आ गई। पूरे कमरे में गुलाबो के खुशबू वाला रूम फ्रेशनर किया हुआ था। कमरे में ताजे फूलों का गुलदस्ता लगाया हुआ था। जब भी कभी बलराज अवनी को बुलाता था वह इसी तरह की तैयारी करता था।

आखिर किस किस्म का इंसान है यह बलराज सोलंकी? गजेंद्र सिंह किस तरह की धोखेदारी से हवेली को अपने नाम पर करवा लिया था? क्या अब यह हवेली भी

गजेंद्र सिंह के पास चली जाएगी?