Nagendra - 5 in Hindi Fiction Stories by anita bashal books and stories PDF | नागेंद्र - भाग 5

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नागेंद्र - भाग 5

गजेंद्र सिंह गायत्री जी के पिता दिलराज सिंह को अपनी बातों में फंसा कर उनका पूरा कारोबार अपने नाम करवा चुका था। अब उसकी नजर हवेली पर थी और उसने हवेली को अपने नाम करवाने के लिए भी कोर्ट में कैसे डाला था। कहानी वहां अवनी बलराज सोलंकी के केबिन की तरफ जा रही थी जो उसे होटल महफिल इन के मालिक का बेटा था।

पूरा कमरा गुलाबो की खुशबू से महक रहा था और जगह पर नाचे गुलाब के फूलों के गुलदस्ते उसे और भी महका रहे थे। यह सब कुछ देखकर अवनी अपनी जगह पर ही जम गई। उसका दिल उससे कह रहा था कि वह भी कभी यहां से उल्टे कदम वापस लौट जाए। 

" मिस अवनी प्लीज कम इन।"

अंदर से आई बलराज की आवाज सुनने के बाद तो अवनी का वापस जाने का कोई सवाल ही नहीं था। उसने एक गहरी सांस ली और अंदर जाकर खड़ी हो गई। बलराज इस वक्त लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था उसने बिना अवनी की तरफ देखे हुए ही कहा।

" प्लीज बे सीटेड।"

अवनी चुपचाप बैठ गई। बलराज ने हल्की नजर से अवनी के चेहरे की तरफ देखा। अवनी का चेहरा गुलाबी था और इस वक्त उसकी पाल के नीचे की तरफ थी। नीचे कल के होने के बाद भी वह इतनी घनी थी कि साफ दिखाई दे रही थी। बलराज जब भी अवनी को देखा था उसकी मन नजरे हटाने का करता ही नहीं था।

काफी देर तक जब कोई आवाज नहीं आई तब अवनी ने आंखें ऊपर करके बलराज की तरफ देखा। अवनी से आंखें मिलते ही बलराज ने अपनी नजर वापस लैपटॉप की तरफ की तब अवनी ने पूछा।

" मिस्टर सोलंकी आपको मुझसे कुछ काम था?"

बलराज ने लैपटॉप को बाजू में रखा और कहा।

" जी आप तो जानती है कि हमें 2 महीना के बाद 12 जनवरी को होटल खुले हुए पूरे 25 साल हो जाएंगे तो मेरे डेड यह चाहते हैं कि सिल्वर जुबली की बड़ी पार्टी ऑर्गेनाइज हो। बस इसी के बारे में आपसे कुछ डिस्कशन करना था। क्या आप इसमें मेरी कुछ मदद कर सकती है?"

अवनी ने अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए कहा।

" जी बिल्कुल सर मैं जरूर आपकी मदद करूंगी। लेकिन मुझे थोड़ा समय लगेगा। आप तो जानते हैं कि अगले महीने न्यू ईयर आने वाला है और हर साल की तरह इस साल भी न्यू ईयर काफी जबरदस्त होने वाला है। इस समय टूरिस्ट की भीड़ कुछ ज्यादा ही होती है और हम लोग अपने होटल में भी पूरा रॉयल मैनेजमेंट करते हैं। इसीलिए हमारा पूरा स्टाफ इसी काम में लगा हुआ है।"

बलराज को अवनी की यही बात सबसे अच्छी लगती थी क्योंकि अपनी कोई भी बात घुमा फिरा कर नहीं करती थी उसे जो भी कहना होता था वह तुरंत कहती थी। बात करते वक्त ना वह कभी चापलूसी भरी बातें करती थी और ना ही ऐसी बातें की उससे अच्छा काम दुनिया में और कोई नहीं कर सकता। 

अवनी और बलराज ने12 जनवरी को होने वाले फंक्शन के बारे में कुछ डिस्कशन किया और कुछ डिस्कशन उन्होंने न्यू ईयर की पार्टी के लिए किया। फिर अवनी वहां से परमिशन लेकर वापस अपने केबिन में चली गई। बलराज कुछ देर तक अपनी को वैसे ही देखता रहा और फिर उसने हल्की मुस्कुराहट के साथ वापस अपना काम शुरू कर दिया।

अवनी जैसे ही अपने केबिन में पहुंचे उसने देखा कि उसकी मां का फोन बार-बार उसे आ रहा है। ऑफिस के समय पर वह अपना फोन हमेशा साइलेंट में करती थी शायद इसी वजह से उसे इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि उसकी मां उसे बार-बार कॉल कर रही है। सावित्री जी इस तरह की औरत नहीं थी कि वह बार-बार फोन करके किसी को परेशान करें। आज ऐसा हुआ था इसका मतलब था की बात कुछ बड़ी थी।

" बेटा अवनी तू नहीं जानती कि आज क्या हो गया? वह आस्तीन का सांप वापस आज घर आया था।"

फोन उठाते ही गायत्री जी ने आज जो कुछ भी हुआ था वह सारी बातें बता दी। अवनी यह सब कुछ खामोशी से सुन रही थी लेकिन उसके चेहरे पर परेशानी के भाव दिखाई दे रहे थे। उसे याद था के गजेंद्र सिंह के कारण ही उसकी शादी हड़बड़ी में नागेंद्र से कर दी गई थी। गजेंद्र सिंह अपने बेटे की शादी अवनी से करवाना चाहता था और उनका बेटा दिलावर सिंह भी इस बात के लिए राजी था।

वह तो गायत्री की थी जिन्होंने इस शादी से साफ इनकार कर दिया था। दिलावर सिंह ने तो गुस्से में आकर यह तक कह दिया था कि वह अवनी को किडनैप करके उसके साथ शादी करेगा। ऐसे समय में गायत्री जी को यही अच्छा लगा कि अवनी की किसी तरह से जल्दी से जल्दी शादी कर दी जाए ऐसा कुछ करने के बारे में ना सोचे।

" अवनी तु सुन भी रही है कि मैं क्या कह रही हूं?"

गायत्री जी की आवाज से अवनी का ध्यान टूटा। अवनी ने अपने हथेली से सर पर हल्का सा दबाव बनाते हुए कहा।

" मां आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं है मैं कुछ करती हूं।"

गायत्री जी के फोन रखने के बाद अवनी एक हाथ से अपने सर को पकड़ कर कुर्सी में बैठ गई। दरअसल अवनी को पहले से माइनग्रेन की प्रॉब्लम थी। जब भी वह टेंशन लेती थी तब उसका आधा सर दर्द करने लगता था। दिलावर सिंह के बारे में सोचते ही उसका सर वापस दर्द करने लगा था। उसने कड़क चाय का आर्डर दिया और काम में अपने आप को बिजी करने लगी।

गजेंद्र सिंह खुश होते हुए अपनी कार में बैठा था और फोन पर अपने बेटे के साथ बात कर रहा था।

" फिक्र मत कर एक में एक दिन वह अवनी तेरी बात मान ही लेगी। उसे अगर तेरी दुल्हन ना बनाया ना तो मेरा भी नाम बदल देना।"

वह लोग आगे जा ही रहे थे कि बीच में उनकी कर खराब हो गई। अचानक कार रुकने के कारण गजेंद्र सिंह आगे की तरफ झुक गया और उसका फोन हाथ से छूटकर नीचे गिर गया। उसने ड्राइवर की तरफ देखकर गुस्से में कहा।

" दिखाई नहीं दे रहा या पी के आया है?"

ड्राइवर ने हल्का सा पीछे देखते हुए कहा।

" माफ करना साहब लगता है कि कुछ गड़बड़ हो गई है मैं अभी चेक करता हूं।"

कहने के बाद ड्राइवर तुरंत नीचे उतर गया। गजेंद्र सिंह ने नीचे देखा तो उसका फोन दिखाई नहीं दे रहा था। हाथ से छूटने के बाद शायद वह फोन किसी सीट के नीचे चला गया था। गजेंद्र सिंह नीचे झुक कर अपना फोन ढूंढने लगे। ड्राइवर ने खिड़की के पास आकर कहा।

" सर इंजन गर्म हो गया है मैं पानी लेकर आता हूं।"

गजेंद्र सिंह ने शायद उसकी बात सुनी नहीं क्योंकि वह नीचे जोकर फोन ढूंढने में बिजी था। ड्राइवर वहां से पानी लेने के लिए निकल गया। काफी देर ढूंढने के बाद गजेंद्र सिंह के हाथ में फोन आया। फोन नीचे गिरने की वजह से उनके बेटे का फोन डिस्कनेक्ट हो गया था।

गजेंद्र सिंह फोन को देख रहे थे कि वह कहीं खराब तो नहीं हो गया कि तभी कार स्टार्ट हो गई। गजेंद्र सिंह ने ड्राइवर की तरफ देखा तो वह चुपचाप कार ड्राइव कर रहा था। उसने फोन पर हल्के हाथ से मारते हुए ड्राइवर से पूछा।

" क्या हो गया था कार में? कितनी चाहे महंगी कार ले लो लेकिन परेशानी तो आती ही है। अब यह फोन भी हल्का सा नीचे गिरा था कि खराब हो गया। आजकल चीज अच्छी मिलती ही नहीं है चाहे कितने भी पैसे डालो।"

उसने देखा कि ड्राइवर कुछ रिएक्ट नहीं कर रहा है तो वह फोन को चालू करने की कोशिश करने लगा। की तभी उसे लगा कि कार लिमिटेड स्पीड से कई गुना ज्यादा तेजी से आगे बढ़ रही है। कार की स्पीड अब इतनी हो गई थी कि गजेंद्र सिंह खुद को संभाल नहीं पा रहे थे तो कभी इधर तो कभी उधर गिर रहे थे। उसने ड्राइवर की तरफ गुस्से में देखा और कहा।

" अरे क्या कर रहा है तू मारना चाहता है क्या मुझे? कार की स्पीड कम कर।"

गजेंद्र सिंह चिल्ला चिल्लाकर ड्राइवर को कार की स्पीड कम करने को कह रहे थे लेकिन ड्राइवर और भी स्पीड में कार चला रहा था। ड्राइवर को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि वह बहुत गुस्से में हो। गजेंद्र सिंह को अब डर लगने लगा था क्योंकि कर तेजी से पहाड़ी रास्तों की तरफ जाने लगी थी। उसने अपने आसपास देखा और डरते हुए कहा।

" यह तो कार को किस तरफ ले जा रहा है? तू सुन भी रहा है कि मैं क्या कह रहा हूं?"

गजेंद्र सिंह का ध्यान खिड़की के बाहर की तरफ था लेकिन जैसे ही उन्होंने ड्राइवर की तरफ देखा तो वह हैरान रह गए क्योंकि ड्राइवर वहां पर था ही नहीं। वो कार बिना कोई ड्राइवर के आगे की तरफ जा रही थी। अब कार का बैलेंस बिगड़ रहा था और कर इधर-उधर होकर एक तरफ जाने लगी थी।

अगर वह ड्राइवर नहीं था तो कौन था? क्या आज का दिन गजेंद्र सिंह का आखिरी दिन है? अवनी गजेंद्र सिं

ह के इस केस का जवाब किस तरह से देगी?